Wednesday, May 14राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

एक चेहरा दिखता है
कविता

एक चेहरा दिखता है

संजय जैन मुंबई ******************** जहाँ पर हम होते है, वहां पर तुम नहीं होते। जहाँ पर तुम होते हो, वहां पर हम नहीं होते। फिर क्यों हर रोज सपने में, तुम मुझको दिखते हो। न हम तुमको जानते है, और न ही तुम मुझको।। ख़्वाबों का ये सिलसिला, निरंतर चलता जा रहा। हकीकत क्या है इसका, नहीं हमको है अंदाजा। किसी से जिक्र इसका, नहीं कर सकता हूँ मै। कही ज़माने के लोग, हमें पागल न समझ ले।। की रब से मै करता हूँ, सदा ही ये प्रार्थना। सदा ही खुश रहना तुम, दुआ करता संजय ये। की तुम जो भी हो, और जहाँ पर भी हो तुम। सदा ही सुखी शांति से, रहना वहां पर तुम।। अनजाने में कभी जो, मिल गए अगर तुमको। तो नज़ारे फेर मत लेना, हमें अनजान समझकर। कही रब को भी हो मंजूर, हम दोनों का ये मिलाना। की तुम दोनों बने हो बस, सदा ही साथ रहने को।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत है...
सियासत
कविता

सियासत

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** कहाँ गए वो दिन भारत के, सम्मान सभी का प्यारा था। मर्यादित भाषा थी सब की, कर्तव्य हमारा नारा था। आक्रोशित होना बुरा नहीं, अंदर के भाव नियंत्रित हों। मृत हुई आत्मा, मन कुंठित, तुम बुरी तरह क्यों चिंतित हो? पहले पी एम को याद करो, इन्दिरा, राजीव महान हुए। उनके कुल के तुम वारिस हो, गुण उनके तुममें नहीं छुये। भद्दी गाली, सतही भाषा, डंडे मारो, क्यों बोल गये। देख भीड़ जनता की क्यों, जहर जुबाँ से घोल गये? होकर बाशिंदे मूल रूप से, कश्मीर भुला कर रोये कब? राम लला का केस चला .... कैसे बरसों तक सोये तब? धारा हटी तीन सौ सत्तर, बेचैन हुए कपड़े फाड़े। अच्छे काम सुहाये कब, हर जगह अड़ंगे ही डाले। मनमोहन को भी तंग किया, घोषणा पत्र भी फाड़ दिया। अब तलक हमें कुछ याद नहीं, तुमने क्या अच्छा काम किया? अधीर आपका नेता है, वो जोर-जोर चिल्लाता है। दो कौड़ी का ...
साथी
कविता

साथी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** उबड़ खाबड़ कंटको से भरे पथरीले तप्त रास्तो पर से मैं तुझे सुरक्षित यात्रा करा लाया। राह के नुकीले कंकड़ कांटो का दमन करते, तेरे कष्टों का शमन करते मैं तुझे पड़ाव पर ले आया। पाते ही पड़ाव तूने मुझे तिरस्कृत कर उतार फेंका। मैं सम्पूर्ण रास्ते के कष्टों से उतना आहत नही हुआ जितना तेरे पड़ाव के दरवाजे पर हुआ मैं धूल से लथपथ फिर तेरी प्रतीक्षा में हूँ अनंत राह पर तेरे साथ चलने के लिए रुक मत चलता रह अनंत पथ पर उस पथ पर तुझे मेरी जरूरत न होगी मैं तेरा ''जूता'' जिसके हिस्से में हमेशा बिछोह आता है। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
समझो बसन्त है
कविता

समझो बसन्त है

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** फूलों-सा हंसता हो जीवन, समझो बसन्त है। सरसों खेतों में फूल उठे, आम पेड़ बौराए हों, बेलों पर खिलें नए फूल, समझो बसन्त है। सुर-सुगन्ध-सी लगे पवन, हरीतिमा के विभिन्न रंग, पतझड़ में बिखरें पीत पात, समझो बसन्त है। भौंरे गाने को मचल उठें, कोयल भी छेड़े कूक तान, सब जीवों में ज्यों नई जान, समझो बसन्त है। भारत की प्रगति का विश्वास, आतंक संघर्ष का हो अन्त, लेखनी लिखे जब नया अंक, समझो बसन्त है। फूलों-सा हंसता हो जीवन, समझो बसन्त है। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सा...
गंतव्य मेरा
कविता

गंतव्य मेरा

शिवम यादव ''आशा'' ग्राम अन्तापुर (कानपुर) ******************** वो नहीं देख सकते हैं गंतव्य मेरा बना देखकर मुझको हैवानी चेहरा हमारे हुए न तुम्हारे क्या होंगे यही आखिरी था सफ़र साथ मेरा कल वो आप आज हम जाएंगे सालों बाद किसी की जिन्दगी चलाने से नहीं चलती किसी की झोपड़ी जलाने से नहीं जलती आसमान छूने का हौसला होता है पंछियों के अन्दर क्योंकि उड़ाने सिर्फ़ परों से नहीं होती तुम्हें कोई नफ़रत के भावों से देखे उसे प्रेम के गीत तुम अपने दे दो बने प्रीत तेरी या मेरी बने वो हर एक राह पर प्रेम की जीत लिख दो अपने ही हर काम से ही वो खुश हैं ये दुनियां क्या सोचे वो इससे से अलग हैं पड़ी बात जब-जब है मुझको उठानी मेरे साथ से वो अलग हो गए हैं ये नफ़रत की बातें हैं मुझसे न होती चलो आज मिलकरके बातें हैं होती उन्हें क्या था समझा वो क्या हो गए हैं मेरे नाम से उनको आफ़त सी होती कभी द...
तकदीर
कविता

तकदीर

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मेरे हाथों की लकीरों ने मेरी तकदीर बदल दी। मैं ऐसी नहीं थी मेरी सोच बदल दी यूं तो मैं अकेले ही चली थी सफर पर... तेरे हर एक कदम ने मेरी राह बदल दी तेरे हाथों की लकीरों ने मेरी तकदीर बदलती दी। मेरी कोशिश रही अपने जज्बातों को उतारने के पन्नों पर... तूने हर बार मेरी कोशिश बदल दी।। सुरेखा सुनील . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग...
तुम जब
कविता

तुम जब

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** बसंत तुम जब आते हो। जीवन में, उमंग भर जाते हो। हवाएं चलती हैं। सुगंध ले कर। जीवन मे , खुशबू भर जाते हो। बसंत तुम जब आते हो। एहसास जागते हैं। हर तरफ, फूल खिलते हैं। कहीं पीले-कहीं नारंगी। जीवन रंग बरसते हैं । बसंत तुम, जब आते हो। जीवन में, उमंग भर जाते हो। नदिया इठला कर चलती है। दिनों में मस्ती आ जाती है। आसमां में चहकते हैं पक्षी, जिंदगी कोयल से गीत गाती है। बसंत तुम, जब आते हो। जीवन में, उमंग भर जाते हो। नई आस-नई प्यास नए विचार-नए आधार। बन कर छाते हो। बसंत तुम, जब आते हो। जीवन में, तरंग भर जाते हो।। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
इंदौर रहेगा नम्बर वन
कविता

इंदौर रहेगा नम्बर वन

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** खत्म नही होगा स्वच्छता का दौर था, है और रहेगा नम्बर वन इंदौर देश और दुनिया में छाया हुआ है। नाम हो जग में ऐसी मेरी दुआ है। अहिल्या की नगरी है एक पहचान। सुप्रसिध्द मंदिर यहां रंजीत हनुमान जहां देखो वहां तो हो रहा है शौर... था, है और रहेगा नम्बर वन इंदौर। स्वच्छ्ता सर्वेक्षण में चौका लगाया है। सबको पीछे छोड़ फिर अव्वल आया है। मनीष सिंह जी जब नगर निगम आयुक्त हुए। तभी से सारे इंदौर वासी गन्दगी से मुक्त हुए। फिर संभाली हाथ आशीष जी ने बागडोर... था, है और रहेगा नम्बर वन इंदौर आईबस में सफर करना लगता है सुहाना। खुद की कार छोड़ सबको इसमें ही जाना। इतना सुखद व सुरक्षित सफर है। अब हर यात्री की इसपर नज़र है। सिटिबस में लागू है योजना महापौर... था, है और रहेगा नम्बर वन इंदौर ई रिक्शा दे मुखिया ने किया रोजगार आरंभ। नारी विशेष के लिए अह...
अनछुए बिखरे पल
कविता

अनछुए बिखरे पल

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** हम चाहते हैं समेटना अपने इस आंचल में अहसास के सारे अनछुए बिखरे हुए पल उम्र के गुजरते हुए हर इक पड़ाव के संग जीत औ हार के वो दरकते फिसलते पल बचपन में उंचाई में खुद से ही उछाले हुए उम्मीदों के वो पांच छोटे औ सख्त कंकड़ पुनः हथेली फैला वापस पा लेने की चाह में बस जीत जाने की चाहत के वो अशेष पल। बिदाई के वक्त व्यग्र पिता की शिक्षा को जीवन के नवनिर्माण का आधार बनाकर माँ के आंसू में मिले आशीष की झड़ी संग बेहिसाब प्यार से सराबोर ममत्व के वो पल। नवकोपल को अपनी गोद में अठखेलियाँ करने की अनवरत चाहत संग संपूर्णता में डूब कर अपना सर्वस्व न्यौछावर करके भी वात्सल्य को देख प्रफुल्लित होने के वो पल। उम्र के मध्याह्न में सहृदयता से स्वतंत्रचेता अपनाते हुए स्व प्रश्न वाचक बन संयमित स्वनुशासित होकर जीवन के उत्तरार्द्ध में सूक्ष्मदर्शी बन शिवत्व को पाने के व...
विश्व की ये शक्ति
कविता

विश्व की ये शक्ति

डॉ. अर्चना राठौर "रचना" झाबुआ म.प्र. ******************** बिटियां होतीं प्यारी-प्यारी, घर की होती हैं फुलवारी। रंग-बिरंगे फूलों जैसी, सजती इनसे घर की क्यारी। मां की होतीं सखी वे प्यारी, और पिता की राजदुलारी। जिनके घर जन्मे है बेटी, उनकी दुनिया हो उजियारी। मात-पिता की सेवा करतीं, कभी ना होती उनसे न्यारी। नहीं किसी से कम है बेटियां, देख रही ये दुनिया सारी। जगमग करता है घर इनसे, रौनक होतीं घर की प्यारी। ईश्वर की रचना है निराली, विश्व की ये शक्ति सारी। परिचय :- नाम - डॉ. अर्चना राठौर "रचना" (अधिवक्ता) निवासी - झाबुआ, (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gm...
कैसे कह दूँ साल नया है
कविता

कैसे कह दूँ साल नया है

नफे सिंह योगी मालड़ा सराय, महेंद्रगढ़ (हरि) ******************** धर्म सनातन, हिंदी भाषी, कैसे कह दूँ साल नया है? कुछ अंग्रेजी भारतवासी, करते रोज बवाल नया है।। सर्दी से मुरझायी कलियाँ, कोहरे का मातम छाया है। पर्वत छुपे बर्फ के नीचे, साल नया नहीं आया है।। शीतलहर का कहर जोर पर, बादल में सूरज शर्माता। सैनिक सरहद पे ठिठुर रहे, न बुढों का बिस्तर गर्माता।। शिक्षा संग संस्कार जोड़ना, न ये दिल में ख्याल नया है। कुछ अंग्रेजी भारतवासी, करते रोज बवाल नया है।। कहते सब आजाद मुल्क है, सब नियम नये बनाए हैं। रिती-रिवाज, परंपरा अपनी, खुद अपनों ने दफनाए हैं।। सोच रही होगी भारत माँ, देखो ! दिन क्या आया है? अच्छे लगने लगे पराए हैं, खुद अपना वर्ष भुलाया है।। पीड़ का पर्वत आज पीठ पर, लेकर खड़े विशाल नया है। कुछ अंग्रेजी भारतवासी, करते रोज बवाल नया है ।। गोदी में सब लिये बहारें, जब चैत्र प्रतिपदा आएगी। ...
बेटी
कविता

बेटी

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** अंतर्मन के इक कोने में ..... उसे बिठाकर रखा है। बेटी है तीरथ चारधाम, मंदिर मस्ज़िद मक्का है। शब्द शब्द बेटी बन जाता ... भाषा भाव मनोहारी। दिल धड़कन में रहती है, उपवन की है हरियाली। परिवर्तन की आँधी में, माँ तो उसकी डरने लगती। बेटी है इक मंत्र सरीखी, ह्रदय पीर हरने लगती । उच्च मानकों का संबोधन, सर्वोत्तम होती है बेटी। घर वो कभी स्वर्ग नहीं होता, जहाँ नहीं होती बेटी। दो कुल की इज़्जत, मर्यादा,बेटी क़िस्मत होती है। कष्ट ज़माने भर के हों, कभी न विचलित होती है। जिस कमरे में बचपन बीता, रोकर जहाँ हँसी बेटी। मंदिर एक बना देना.....उस जगह जहाँ खेली बेटी। सभी खिलौने बचपन के, मुस्काते हैं बनकर बेटी। गुड्डे गुड़िया चीता भालू, सब कहते खुद को हैं बेटी। पेन, पेंसिल, रबर सॉफ़्नर, बेग, अनछुए आदि-आदि। वक़्त मिले चर्चा कर लेना, सोए ना होंगे कई रात। होंग...
नानकदेव चालीसा
कविता, चौपाई

नानकदेव चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* आदिगुरु हैं नानका, पीछे अंगद देव। अमरदास गुरू रामजी, पंचम अर्जनदेव।। हरगोविन्द हररामजी, हरकिशन अरु तेग। दशम गुरु गोविन्दजी, हरते पीडा वेग।। जय जय जय गुरुनानक देवा। प्रभु की वाणी मानव सेवा।। रावी तट तलवंडी ग्रामा। गुरु जनमें पावन ननकाना।। सन चौदह उनहत्तर साला। कातिक पूनम भया उजाला।। कालू मेहता घर अवतारा। मां तृप्ता की आंखों तारा।। देवी सुलछणी धरम निभाये। श्रीचंद लखमी दो सुत पाये।। गुरु गोपाला पाठ पढाये। नागरि लिपि आखर समझाये।। नानक नितनव प्रश्न बनाते । शिक्षक सब सुनके घबराते।। हिंदी संस्कृत फारस सीखा। सबमें एक प्रकाश ही दीखा।। लिपि गुरुमुख भाषा पंजाबी। जागा ज्ञान कुशंका भागी।। अ अविनाशी सत्य है भाई। जो सतनाम तुम्ही बतलाई।। नाच भांगडा लंगर द्वारा। सिख संगत गावे संसारा।। वाहेगुरु सतनाम बताया। छोड़ अहम ओंकार सिखाया।। पंथ ...
ऋतु राज बसंत
कविता

ऋतु राज बसंत

जनार्दन शर्मा इंदौर (म.प्र.) ******************** देखो मां शारदे के बसंतोउत्सव की, बही बासंती बयार है। मां स्वरपाणी के चरणो को करते, बारंबार वंदन नमस्कार है। विद्या, बुद्धि, स्वर, वाणी कि देवी का, करते हम पूजन है। आओ ऋतु के राजा बसंत, आपका करते हम अभिनंदन है। शिशिर कि सर्द हवाये भी अब हमसे दूर होती जाती है। जाडो़ कि कुनकुनी लगती धूप में भी, चूभन सी आती है। हरियाली के नवांअंकुरित फूलो से प्रकृति ने किया श्रंगार है। नवयौवनाओ के रूप से भी,छलका मनमीत के लिये प्यारहै। पीले मीठे चावल की महक,चहुंऔरपीले वस्त्रो का नजारा है। करे स्वागत हम सब ये बसंत पंचमी का पर्व बहुत प्यारा है। ये उत्सव बहुत ही प्यारा है। . परिचय :- जनार्दन शर्मा (मेडीकल काॅर्डीनेटेर) आशुकवि, लेखक हास्य व्यंग, मालवी, मराठी व अन्य, लेखन, निवासी :- इंदौर म.प्र. सदस्य :- अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी परिषद... उपलब्धियां :- हि...
तुम अक्षर हो मेरा
कविता

तुम अक्षर हो मेरा

अभिषेक खरे भोपाल (म.प्र.) ******************** तुम अक्षर हो मेरा, मैं शब्द तुम्हारा तुम शुरुआत मेरी, मैं पूर्ण विराम तुम्हारा।। तुम कविता हो मेरी, मैं लेखक तुम्हारा स्याही तुम मेरी, कलम मैं तुम्हारा।। तुम पल नहीं मेरा, हरपल हो मेरा तुम नदी नहीं, सागर हो मेरा।। तुम चांदनी नहीं मेरी, चांद हो मेरा तुम रात नहीं, सवेरा हो मेरा।। सुबह की खिल खिलाती धूप हो ढलती हुई शाम हो, चांदनी रात हो प्रकृति का श्रृंगार हो, मेरा मुस्कुराता हुआ संसार हो। प्यार का तुम राग हो, तुम मेरा सितार हो। . परिचय :- अभिषेक खरे सचिव - आरंभ शिक्षा एवं जनकल्याण समिति, भोपाल (म. प्र.) कोषाध्यक्ष - ओजस फाउंडेशन, भोपाल (म.प्र.) निवास - भोपाल (म.प्र.) शिक्षा - एम कॉम बी.यू. भोपाल पीजीडीसीए, एमसीयू भोपाल आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सक...
वीर सैनिक
कविता

वीर सैनिक

डॉ. गुलाबचंद पटेल अहमदाबाद (गुज.) ******************** सिर पर कफन बाँधकर निकलते वीर सैनिक होते हैं, देश के लिए जान कुर्बान करने वाले वीर सैनिक शाहिद होते हैं न मात-पिता न भाई-बहन को याद लाते हैं, तभी तो दुश्मन को वीर सैनिक लड़ पाते हैं, हर पल वीर सैनिक गीत राष्ट्र के गुनगुनाते है, देश रक्षा की चिंता उन्हें हर पल सताती है, पेर मे भारी बूट, कंधे पर बंदूक लगाते हैं, देख ले अगर दुश्मन से तो गोली चलाते हैं, दुश्मन देश जब मातृ भूमि पर हमला करते हैं, तब दुश्मन को वीर सैनिक मार गिराते है, सैनिक वीर के कारण देश हमारा सलामत है, नहीं तो देस में दुश्मन घुसकर कब्जा करते हैं, दुश्मन से लड़ते वीर सैनिक शहीद हो जाते हैं, जान अपनी कुर्बान कर परम वीर चक्र पाते हैं सैनिक शहीद की जब शरीर गांव में आती हे, तब पूरे गाँव शहर में शोक मग्न हो जाता है, वीर सैनिक को हम दिल से करते हैं सलाम, आप राष्ट्र प्रेम, तु...
आराधना के स्वर
कविता

आराधना के स्वर

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** विद्या की देवी माँ शारदे से आराधना करता हूँ। मैं दो हाथ जोड़कर बस प्रार्थना करता हूं।। मेरी कलम मैं ताकत दे। शब्दों का खजाना दे।। मैं गरीबों का दर्द बांट सकूँ। अपनी कलम से भला कर सकूं।। जो काम नहीं करते कलम से। ओर गरीब दम तोड़ देता बेचारा।। ऐसे लोगों के जख्म भर सकूँ। मां पैनी कलम बने ऐसी ताकत दें।। मेरे शब्दों से दूसरों को हौंसला मिले। जो भी मुझसे मिले दिल से गले मिले।। माँ सुर में इतनी मिठास दें कि जो सुनें निहाल हो जाएं। कटे जन्म के बंधन और जीवन संवर जाए।। नव सृजन करूँ नव पथ चलूँ। नवीन कदम बढ़ते जाएं।। . परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी क...
बचपन के दिन
कविता

बचपन के दिन

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** बचपन के थे दिन सुहाने, गीत गाते थे हम मस्ताने, भेदभाव का नहीं था नामो-निशान मोह-माया से थे हम अनजाने। चंदा मामा लगते प्यारे नित्य शाम को बाट निहारे मन भाती थी पूनम रौशनी रात्रि भी खेलते भाई-बहन सारे। झट चढ जाते पेड़ों पर, नजर रहते मीठी सेबों पर, अपना-पराया का नहीं था ज्ञान विश्वास करते श्रेष्ठजनों के नेहों पर। हम भींगा करते छम-छम बूंद में, हम खोए रहते भीनी-भीनी सुगंध में, चंचलता रहता तन मे हरदम परियों को देखा करते गहरी नींद में। बचपन के थे दिन सुहाने , हर गम से थे बेगाने , मौज ही मौज था जीवन में माँ की आँचल तले थे खजाने   परिचय :-  रीतु देवी (शिक्षिका) मध्य विद्यालय करजापट्टी, केवटी दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर...
किनारों में बंधकर
कविता

किनारों में बंधकर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** किनारों में बंधकर ..... सहा बहुत होगा। प्यार मेरे लिए ..... सच,रहा बहुत होगा। ज़िंदगी के वो जंगल ..... कटीले भी होंगे। मिले होंगे टापू ..... कई टीले भी होंगे। तुम किनारों में बंधकर अकुलाई होगी। जान, दो न बता अब, कैसी अँगड़ाई होगी? उठतीं गिरती हिलोरों का, सीना दिखा दो। मैं ठहरा समंदर हूँ, मुझे जीना सिखा दो। थीं मुरादें हमारीं ..... एक दिन हम मिलेंगे। दूरियाँ थी बहुत ..... फूल कैसे खिलेंगे? मैं खारा मग़र ..... हैं मोती माणिक मुझी में। प्यार लहरों में ढूंढूँ ..... या ख़ुद की ख़ुशी में? ग़र तुझसे कहूँ, यूँ कि ..... तीब्र तूफ़ान हूँ मैं। जबसे ज़लबे दिखाये तू ..... परेशान हूँ मैं। मैं समंदर हूँ ..... लेकिन, प्यासा रहा हूँ। मैं मोहब्बत का मारा ..... तमाशा रहा हूँ। इतराकर इठलाकर ..... तू घर से चली थी। जान, मालूम मुझे ..... तू बहुत मनचली थी। ...
विश्वकर्मा वन्दन
कविता

विश्वकर्मा वन्दन

जीत जांगिड़ सिवाणा (राजस्थान) ******************** हे विश्वव्यापी हे श्वेताम्बर, हे शिल्पराट हे दयावान, हे विश्वाधार हे महारक्षक, हे विश्वकर्मा हे शक्तिवान। हे जीवाधार हे विश्वपति, हे कर्मकुशल हे सूत्रधार, जगती के आधार अटल, आलोक पुंज हे तारणहार। कर प्राप्त हो हुनर सर्व को, और मन मंदिर प्रदीप्त रहें चित संवेदनाओं को जानें, सब सत्कर्मो में संलिप्त रहें। जीवन में सदा साथ तेरा हो, और मन में तेरा ही वास रहें भ्रम भँवर से निर्भय हो गुजरे, निज सामर्थ्य पर विश्वास रहें। हर मनुज कर्म का भान करें, निज समाज का सम्मान रहें, होंठो पर हो मुस्कान सदा, मन में भारत ये महान रहें। नित नई ऊंचाइयो मिलती रहे, हर एक पंछी की उड़ान को, फुले फले नित नए तरुवर, पतझड़ से पत्ते अनजान रहे। नए दिवस नई नई रचनाएं, गगन चुमते रहे सहचर मिलती रहे तेरी कृपा और, सिर पर तु तन आसमान रहे। . परिचय :- जीत जांगिड़ सिवाणा...
दुःख के अनगिनत रूप
कविता

दुःख के अनगिनत रूप

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ********************   स्वार्थ निस्वार्थ भाव से रहे प्राणी, सारा जग सुख ही सुख। पनप गई स्वार्थ की भावना, ढेर लगेंगे अनगिनत दुःख के।। ईर्ष्या अच्छे विचार, श्रेष्ठ कर्म, सुख के है साथी अपने। जाग गई ईर्ष्या मन में, जाग उठेंगे अनगिनत दुःख।। छल - कपट जीवन का आधार है विश्वास, सार्थक जीवन बनाए विश्वास। कोशिश हुई छल-कपट की, रोक न सकेंगे अनगिनत दुःख को। मोह-माया इस धरा के सभी जीवो में, मनुष्य जीवन है सर्वश्रेष्ठ। क्षण भर की मोह-माया से, दिखेंगे दुःख के अनगिनत रूप।। . परिचय :- नाम :- कुमार जितेन्द्र (कवि, लेखक, विश्लेषक, वरिष्ठ अध्यापक - गणित) माता :- पुष्पा देवी पिता :- माला राम जन्म दिनांक :- ०५. ०५.१९८९ शिक्षा :-  स्नाकोतर राजनीति विज्ञान, बी. एससी. (गणित) , बी.एड (यूके सिंह देवल मेमोरियल कॉलेज भीनमाल - एम. डी. एस. यू. अजमेर) निवास :-  सिवाना, जिला...
प्रेम चरित्र
कविता

प्रेम चरित्र

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** भूल गई तुम मुझको सच में पर में तुमको भूल ना पाया शायद तुमने ठोकर मारी में तुमको ठुकरा ना पाया ख्वाब सजाया था दिल में तुमने उसको भी तोड़ दिया दोस्त मेंरे सब ऎसे निकले सांथ मेरा हीं छोड़ दिया जाने दो वो, बीता कल था अब क्या उसको याद करूँ कोई नहीं हैं अब भी दिल में में किससे फरियाद करूँ पर उम्मीद अभी थी बांकी मन में भी विश्वास रहा उसनें हीं ठुकराया मुझको उसको भी मैं याद रहा शायद सच था प्यार मेरा जो उसनें फिरसे याद किया मिलकर उसनें फिर से मुझको जी ते जी आबाद किया फिर से अलख जगा इस दिल में फिर में ख्वाब सजा बेठा वो फिर भी मेरी नहीं हुई में फिरसे उसका हो बेठा हर बार वो मुझसे मिलती हैं हर बार बिछड़ भी जाति हैं वो जेसी भी हैं अच्छी हैं बस मुझको बहुत रूलाती हैं फिर भी ये विश्वास हैं उस पर वो वापस गले लगायेगी भूल नहीं पायेगी मुझको मन हीं मन पछत...
प्रेम की भाषा
कविता

प्रेम की भाषा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** प्रेम ना हिंदी ना अंग्रेजी होता है। सच तो यह है........? प्रेम हर भाषा से, ऊपर होता है। प्रेम शब्दों का कहां, मोहताज होता है। यह तो, जज्बों से बयां होता है। यह अहसास, बहुत खास होता है। यह तो, हर रूह का प्राण होता है। प्रेम ना हिंदी ना अंग्रेजी होता है। लेकिन यह और बात है। हर किसी के हिस्से में, यह कहां होता है। यह अनंत तक, जाने की राह होता है। जिंदगी खूबसूरत हो जाती है। जब किसी से, किसी को प्यार होता है। प्यार की दुनिया में, नफरतों के लिए, फिर कहां कोई स्थान होता है। प्रेम ना हिंदी, अंग्रेजी होता है। यह भाषा का, नही भावों का भव्य भाव होता है। जो दिल प्रेम से भरा होता है। क्या ..... बांटोगे तुम सरहदों, भाषाओं, और इंसानों के नाम पर। यह तो, धरती से आसमां तक बेशुमार होता है। प्रेम ना हिंदी ना अंग्रेजी यह हर भाषा से ऊ...
बसंती मोसम
कविता

बसंती मोसम

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** आ गया बसंती मोसम सुहाना, गा रहा मन तराना। मिली राहत जिंन्दगी को, चेन दिल को आ गया, प्यार की अमराहयों से, गीत याद आ गया, आज अपने रंज गम को, चाहता हैं गम भुलाना, आ गया बसंती मोसम सुहाना। बाग की हर शाक गाती, झूमती कलियाँ दिवानी, पात पीले मुस्कुराते, मिली जैसे है जवानी, हर तरफ ही लुट रहा है, आज खुशियों का खजाना, आ गया बसंती मोसम सुहाना। सब मगन मन गा रहें है, आ गई ऐसी बहारें, प्राण बुन्दी मुक्त मन, दिलों की टूटी दिवारें, बहुत दिन के बाद उनका, आज आया है बुलावा, आ गया बसंती मोसम सुहाना। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा...
नारी तुम हो देवी शक्ति
कविता

नारी तुम हो देवी शक्ति

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** नारी तुम हो देवी शक्ति जो तेरा करता अपमान मानव नही है दानव है वो दैत्य के रूप मे करता काम कितनी निर्भया मलिन हुई कितनी प्रियंका का अन्त हुआ देश की व्यवस्था बड़ी बुरी है ये भी तो राजनीति से जुड़ी है आँखोदेखी पर ना करते विश्वास चाहे पड़ी हो किसी निर्भया की लाश इस दुष्कर्म का सबूत माँगते जबकि सच्चाई वो सम्पुर्ण जानते थाने कोर्ट और पुलिस वाले राजनीति की रोती सेंकने वाले एक को तो नपुंसक बना कर देखो सरे आम फाँसी पर लटका कर देखो ऐसा भी होगा एक दिन है सम्पुर्ण विश्वास मुझे पड़ी रहेगी अबला कोई जिस रोज अपनी बांहे समेटी संविधान बदल जाएगा उस दिन इन्साफ तुरंत मिल जाएगा उस दिन फर्क यही होगा कि होगी वो किसी नेता की बेटी नारी तुम हो देवी शक्ति नारी तुम हो देवी शक्ति . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हि...