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कविता

संवाद होना चाहिए
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संवाद होना चाहिए

चन्द्रेश टेलर पुर (भीलवाडा़) राजस्थान  ******************** अपनों में हो भले ही वैर भाव, अपनो में हो कितना भी टकराव, टूटते बिखरते रिश्तो के बीच में भी, अहं की बर्फ गलाने के लिए, समर्पण की चाह होनी चाहिए.... नित निरंतन संवाद होना चाहिए......।। घुट रही है संवेदनाएँ हर पल, मनुज दनुज मे नित परिवर्तित, गुम सुम होती रिश्तों की मिठास, जरा सी बातों मे खींचती तलवारें, मिटाने इन बढती दीवारों के लिए, स्व आत्म साक्षात्कार होना चाहिए... नित निरंतर संवाद होना चाहिए.......।। जम रही बर्फ नफरतों के बाजार में, जहर उगलती जनता नित प्रतिदिन, धर्म, जाति के ठेकेदार खुश होतें, जगाने आशा की किरणो के लिए, मानवता से प्यार होना चाहिए.... नित निरंतर संवाद होना चाहिए.......।। एक विषाणु से सहमी पूरी दुनिया, लॉकडाउन मे दुबका हुआ इंसान, अवसादों से घिरे संपूर्ण संसार में, जीवन और मरण के बीच अंतिम, एक अनूठा संवाद हो...
पिता
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पिता

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मां धरती पिता आकाश है, टिमटिमाते तारों का, अटूट विश्वास है, पिता रब की, सच्ची अरदास है, जीवन में पिता की जगह खास है। टूटे हुए मनोबल का सहारा है, मार्गदर्शक बन राह दिखाता है, मां वर्तमान तो पिता, भविष्य की चिंता करता है। पतझड़ में मधुमास है, उदास होठों की मुस्कान है, जिस घर में पिता नहीं, वह घर रेगिस्तान है। पिता है तो जीवन रंगीन है, वर्ना उदासी के साए हैं, रिश्ते नाते सब पिता से, वर्ना अपने भी पराए हैं। पिता नाव की पतवार है, पिता से ही सपने साकार है, पिता परिवार का पालनहार है पिता से ही रिश्ते में व्यवहार है। पिता से ही बच्चों की पहचान है, मंगलसूत्र की शान है, हिमालय बन परिवार की रक्षा करता है, मां प्यार पिता संस्कार है, पिता से ही है इठलाता बचपन है, रंगीन जवानी है, वर्ना नींद नही आंखों में, उदासी की कहानी है। माता पिता स्नेह का...
सपने
कविता

सपने

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उ.प्र.) ******************** बिखरी हैं ज़मीन पर यादों की सारी कतरनें, कुछ ख्वाब रखे थे जाने कहाँ गुम हो गये। तिनका तिनका समेटते रहे इस जहाँ से हम, सपनों के वो खजाने अब कहाँ गुम हो गये। बीते कल में खुद को ढूंढता अपना वज़ूद इस अंधाधुंध भीड़ में कहीं गुम हो गया है। जब तब तनहाई के साये चीखते हैं मुझ पे एक परछाईं सिसकती है बेजुबान सी ढूंढते रह जाते हैं भीड़ में हम भी चेहरे काश कुछ चेहरे अपनापन तो जतलाते। सब सोचता समझता रहा है वज़ूद ये कल भी था और आज भी है। मगर ये हकीकत तो सबको पता है हंसी में भी छिपे रोग छल जाते हैं। यहाँ रोज ही अपने सपने बिखरते, इस जहाँ से चलो हम निकल जाते हैं। . परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी...
तेरा आंचल पाकर
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तेरा आंचल पाकर

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। देख सुबह तेरी सूरत को सगरे काम संवर जाते। तुझको करे दुखी जो जग में उसके काम बिगड़ जाते। करूँ याद ईश्वर को उसमे तेरी शकल है माँ... तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। कैसे भूलूँ मेरा बचपन जब तुमने संघर्ष किया। देकर जन्नत गोद मुझे फूलों का स्पर्श दिया। होता रहा सफल मैं क्योंकि तेरा दखल है माँ। तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। आज भी तेरे हाथों की रोटी का कोई जवाब नही। जितना तूने दिया है मुझको उसका कोई हिसाब नही। चित्र तो लगा रखा घर मे जो तेरी नकल है माँ। तेरा आंचल पाकर मेरा जन्म सफल है माँ। तेरे बिना अधुरा हूँ सब तेरे बिना विफल है माँ। रहकर मुझस...
इक जवान शिक्षा के नाम
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इक जवान शिक्षा के नाम

उषा शर्मा "मन" बाड़ा पदमपुरा (जयपुर) ******************** आरएससी बीकानेर है पुलिस राजस्थान, नाम बताते है अपना ये आशु चौहान। है इसी तीसरी बटालियन का एक जवान।। कोरोना में देश कर्तव्य संग शिक्षा की प्रदान। लाखों बच्चों की शिक्षा जुड़ी संग बटालियन जवान।। निःशुल्क शिक्षा प्रदान करने की मुहिम बने देश की आन। ईमानदारी से कर्तव्य निभा शिक्षा क्षेत्र में किया अपना नाम।। समाज को शिक्षित बना सके ऐसा है उनका काम। पढ़ाने का ऑनलाइन संसाधन आशु जीके ट्रिक है उसका नाम।। दिए २१००० रू. चूरू की आपणी पाठशाला को दान। आशु चौहान संग पुलिस फोर्स में अश्वनी है उनका नाम।। देश का प्रत्येक व्यक्ति अगर ऐसी सोच अपनाये। अपनी मातृभूमि में कोई भी अशिक्षित नहीं रह पाए।। . परिचय :- उषा शर्मा "मन" शिक्षा : एम.ए. व बी.एड़. निवासी : बाड़ा पदमपुरा, तह.चाकसू (जयपुर) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक ...
जब हमेशा के लिए सोता है जवान
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जब हमेशा के लिए सोता है जवान

रोशन कुमार झा झोंझी, मधुबनी (बिहार) ******************** जब कोई जवान हमेशा के लिए सोता है, दिल क्या? मेरा दिमाग़ भी रोता है। क्योंकि कोई अपनी सिन्दूर तो कोई अपने लाल को खोता है, सच पूछो तो बड़ा दुख होता है, जब कोई जवान हमेशा के लिए सोता है। चाह कर भी नहीं देखते कि वह पतला है या मोटा है, बल्कि आँसू के साथ मैं एक दर्दनाक कविता बोता है।। क्योंकि मेरी कोई सीमा नहीं, दर्दनाक कविता लिखते वक़्त मेरे कलम के गति धीमा नहीं। यूं तो हर कोई आँसू पोछता है, पर हम यूं आँसू के साथ एक दर्दनाक कविता के बारे में सोचता है। जब कोई माँ अपनी पुत्र खोती, पाल-पोष कर बड़ा किये रहती, खिलाकर रोटी। जब कोई स्त्री अपनी सिन्दूर धोती, हम यूं रोशन आँसू के साथ लिख बैठते कविता उन शहीदों पर, इसे मत समझना पथरा-पोथी।। . परिचय :-  रोशन कुमार झा सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज, कोलकाता निवासी : झोंझी, मधुबनी, बिहार, आ...
माँ की गोद में
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माँ की गोद में

रोहित कुमार विश्नोई भीलवाड़ा, राजस्थान ******************** गरम पानी से नहलाकर ठण्ड में माँ का हमें ऊपर ही धूप में बैठाना, दीवाली की छुट्टियों में सारे बिस्तर-कपड़े ऊपर सुखाना। सर्दी की छुट्टियाँ के अन्धेरे रजाईयों में और उजाले छतों पर बिताना, जाड़े में ही स्कूल में भी मेडम का छत पर ही क्लास लगाना। एसी-हीटर वाले कमरे और उनकी आलीशानता अब हमारी यादों को बाहर बुहारती हैं, घर की छत आज भी पुराने दिनों को पुकारती है।। दिल करता है ले आऊँ एक बड़ी वाली सरसों के तेल की शीशी बाजार से और बोलूं माँ से कि लो कर दो चम्पी और मालिश अपनी गोद में मेरा सर रखकर, जिन्दगी को फिर से जी लूँ मैं माँ की गोद में अपने उसी बचपने की छत पर।। परिचय :- रोहित कुमार विश्नोई स्नातकोत्तर - हिन्दी विषय (राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा-उत्तीर्ण) स्नातक - कला संकाय (हिन्दी, इतिहास, राजनीतिक विज्ञान) स्नातक - अभियान्त्रिकि (यान्त...
धरती माँ की पुकार
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धरती माँ की पुकार

डॉ. यशुकृति हजारे भंडारा (महाराष्ट्र) ******************** कल रात मेरे ख्वाबों में धरती माता आई थी कहने लगी देखो, रंगीन आसमानों के नीचे भोर की लालिमा सी लगती हूँ रंग-बिरंगे फूलों से मैं लदी हूंँ चहुँ ओर छाई है हरियाली, तुम सब सदा बनाये रखना मुझे सुंद। अब बहने लगी नदी स्वच्छ, निर्मल जल की धारा बन गई है तुम सबके लायक न करना प्रदूषित न कहना वह मैली हो गई है हे मानव ! तुम सदा रखना शुद्ध और पवित्र। धरती माता मुझसे कहती है मां बेटे का सदा बना रहे यूं ही रिश्ता अन्न, फूल, फल तुमको देती रही यूं ही सदा। बदले में मैं तुमसे कुछ ना लेती कहने लगी धरती माता। सुनो तुम सब हो मेरे बेटे बहने दो मंद-मंद पवन शीतल सुगंधित होने दो मुझकों शीतल सुगंधित अब रहने दो मुझकों। परिचय :- डॉ. यशुकृति हजारे निवासी : भंडारा (महाराष्ट्र) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
बारिश की बूंदें
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बारिश की बूंदें

विनोद वर्मा 'दुर्गेश' तोशाम (हरियाणा) ******************** बारिश की बूंदें बरसी मन मेरा हर्षाए। सावन का मस्त महीना प्रियतम की याद दिलाए। तन भीगा और मन भीगा आँचल भी भीगा जाए। पहले सावन की बारिश जियरा मेरा चुराए। टप-टप गिरती बूंदे और पंछी शोर मचाएं। साजन बिन सूना सावन विरह आग लगाए। बूंदों की बौछार में मन शीतल हो जाए। गर साथ तेरा हो साजन सावन पावन हो जाए। परिचय :-विनोद वर्मा 'दुर्गेश' निवासी : तोशाम, जिला भिवानी, हरियाणा आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी क...
अश्क
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अश्क

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दिल मे जो बसा है वो, आँखों मे दिखने लगा, पोरो पे आ छुप जाता, क्यू मुझमे बसने लगा..? कब तक सहेज रखूंगा? अब ज्वार सा उठने लगा, साहिल को आतुर मौजे, बन भवँर,हैं घुमड़ने लगा... समंदर दबा रखा था, बरबस छलकने लगा, ये आब था रुका-सा, तुझे देख,फ़फ़कने लगा... हैं खता क्या जो उसकी? हो खफा दुर जाने लगा, था मर्ज चंद हर्फो का, हकीम आज़माने लगा... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी ...
किसे चुनें
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प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी अगर खुद को चुनती। फिर वो मौत का फंदा ना बुनती। जिंदगी अगर खुद को चुनती। दूसरों पर रखी , उम्मीद जब है थमती।। खुद को हार कर, जिंदगी की आस जब है जमती।। जिंदगी अगर खुद को चुनती। फिर वो मौत का फंदा ना बुनती।। जिंदगी अगर खुद को चुनती। कर खुद पर भरोसा, जब तक, सांसों की डोर है चलती।। साथ अपने हिम्मत से, हर बात है बनती। मुश्किलें दौर भी, आकर चला जाएगा। बदल अपनी सोच , सब कर है सकती।। खुद से जो फिर हार गया, अपने सामने ही, हथियार डाल गया। मौत उसे है चुगती।। जिंदगी जब खुद को चुनती। फिर वो, जिंदगी की कहानियां ही बुनती।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
यादें जीवन की
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यादें जीवन की

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** (अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या पर) इतनी-सी क्या देर हो गई तुझे, तुम्हें आए कितना दिन हुआ, ऐसे कोई थोड़े जाता है भला क्या, ये जिंदगी कोई खेल थोड़े है, चौतीस यैवन देख चुके तुम, क्या इतना ही ज्यादा हो गई, इस छोटी-सी जिंदगी मे, जीवन क्यों मजबूर हूई, अभी सारा जीवन बाकी था, शुरुआत तो अब हुई थी, दूसरे की हौसला देने वाले, स्वयं क्यूँ तू हार गए तुम, इस नश्वर दुनिया मे तुम, मौत को क्यूँ दोस्त बना लिए तुम, अभी और अधियारा आता भी, इतनें मे क्यूँ हार गए तुम, जीने का सलीका सिखाने वाले, स्वयं सलीका भुल गए तुम, युवा जीवन के पायदान पे चढ़ते, दुनिया से क्यूँ रूठ गए तुम, सबके चेहरे पे हँसी लाने वाले, स्वयं डिप्रेशन मे चले गए तुम, इस बेखुदी दुनिया मे, जीवन से हार गए तुम ! परिचय :- रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी...
मजदूर और शहर
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मजदूर और शहर

दीपाली शुक्ला कसारडीह दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** शहर तू क्या उसे भूला पाएगा? जो सहमा सा है शहर तू आँचल में छिप जाएगा, खून पसीना सींच भी वह ममता न पाएगा, उॅगली पकड़ चलाया जिसने तू उसे भूला जाएगा, मकान तो छोड़ ही दे वह चारदीवारी न पाएगा, वह जानता नहीं क्या मिला उसे यहाॅं, न जानता है वहाॅं क्या मिल पाएगा, जिस तरह जानता है हर डगर को वह यहाॅ, उसके इस सफर को क्या कोई समझ पाएगा, कभी खुद को न तुझसे मिला पाएगा, दिल में फिर भी न तूझसे गिला पाएगा, अपना न सका तू अलविदा भी न कह पाएगा, क्यों तेरे खातिर वह मिट्टी वतन की छोड़ आएगा, बापू ! पूछना मत अब, कब तक लौट आएगा, यह जवान बाजूओं के दम से, सैलाब न रोक पाएगा, बापू बेटा चला है तेरा भी, और मेरा भी, दुआए पहुॅची उस तक, तो एक तो लौट ही जाएगा, सपने जिससे सहेजे थे, वह ताले तोड़ लाएगा, हर चीज उस पेटी की हकीकत ही बेच खाएगा, उसकी बाती बिना तू आँगन...
रोशनी की किरन
कविता

रोशनी की किरन

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** दूर बहुत दूर एक रोशनी की किरन दृष्टि गोचर होती है, मन मयूर बिना कुछ विचार किए, थिरक उठता है पाॅव अनायास ही ता ता थैया की, ताल पर थिरक उठते हैं, मधुर शहनाई गूंज उठती है, दिल के सूने आॉगन मे, रोम-रोम पुलकित हो उठता है, अनजाने मिलन से, मन वीणा के हर तार से, स्वर लहरी फूट पड़ती है एक खूबसूरत स्वर्ग सा, अहसास होने लगता है, यूॅ अहसास होता है मानो, कदम-कदम पर खुशियों के, महकते फूलों की विशाल चादर बिछी है, मन चंचल हो दौड़ पड़ता है इधर-उधर, और अन्तस तल मे अनजानी सी मस्ती छा जाती है मानो कोई आवारा भॅवरा, गुंजार करे हर डाली पर..... परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड...
मंदिर-मस्जिद और चिड़िया
कविता

मंदिर-मस्जिद और चिड़िया

रंगनाथ द्विवेदी जौनपुर (उत्तर-प्रदेश) ******************** मै देख रहा था अभी जो चिड़िया मंदिर के मुँडेर पे बैठी थी, वही कुछ देर पहले मस्जिद के मुँडेर पे भी बैठी थी. वहाँ भी ये अपने पर फड़फड़ाये उतरी थी, चंद दाने चुगे थे, यहाँ भी अपने पंख फड़फड़ाये उतरी, और चंद दाने चुग, फिर मंदिर की मुँडेर पे बैठ गई. फिर जाने क्यूँ एक शोर उठा, मंदिर और मस्जिद में अचानक से लोग जुटने लगे, और वे चिड़िया सहम गई. शायद चिड़िया को मालूम न था कि वे, जिन मंदिर-मस्जिद के मिनारो पे, अभी चंद दाने चुग, अपने पंख फड़फड़ाये बैठी थी, उसमे हिन्दू और मुसलमान नाम की कौमे आती है, जहा से हर शहर और गाँव के जलने की शुरुआत होती है, और हुआ भी वही, फिर उस चिड़िया ने अपने पर फड़फड़ाये मिनार से उड़ी, और फिर कभी मैने उस चिड़िया को, शहर के दंगो के बाद, दाना चुग पर फड़फड़ा, किसी मंदिर या मस्जिद की मिनार पे बैठे नही पाया, शायद वे चिड़...
जीवन का उद्देश्य
कविता

जीवन का उद्देश्य

सतीश गुप्ता नरसिंहपुर ******************** अब खामोशी बांटने को महक दे तो सही उठा के हाथ से अपने गुलाब दे तो सही आया है कुछ करने को जानता है सनम उठाकर नैनों से नजरिया बांट तो सही इतिहास है सिखलाता है पल-पल यहां फिर विस्फोट कर नई गंगा बहा तो सही भरोसा है भीतर का भाव महकेगा यहां खुद को खुदी से मधुबन बना तो सही उठा के दिल से कुछ शोरगुल कर यहां खामोशी जागृत कर खुशबू दे तो सही माता-पिता हैं बचपन महकता है यहां बुढ़ापा आया तब सहारा बन तो सही नजरिया पावन हो यू कौन मारे यहां आज दर्द उनका उधारी तो कर सही . परिचय :- सतीश गुप्ता जन्मतिथि : १५-०३-५२ निवासी : नरसिंहपुर कार्यक्षेत्र : रिटायर्ड टीचर लेखन के कार्य में रुचि कविता, गजल, पिरामिड हाइकु छंद आदि। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी...
मेरी आस्था
कविता

मेरी आस्था

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** मूर्ति पूजा की आलोचना के प्रतिउत्तर स्वरुप प्रथम प्रयास बिखर जाते हैं बनाने हमारा वजूद खुद चोट खाकर। रौंदे गए होकर मिट्टी अपनी रौनक गंवाकर।। जिससे बनी ये सारी कायनात है कीमती हर पत्थर निर्भर जिसपर सिर्फ इंसान नहीँ भगवान् है।। अगर गलत है इसे पूजना तो सिर्फ इतना बता मेरे दोस्त बिन मिट्टी और पत्थर के वजूद है किसका?? किसमें है दम जो मूल चुका दे ब्याज सहित इसका?? जर्रा जर्रा इसी ने बनाया है। तुझे दी ये अनमोल काया है।। गर चुका नहीँ सकते मूल ; तो नहीँ कभी भूलेंगे फक्र से ताउम्र पत्थर की मूरत पूजेंगे।। अपनी आलोचना का डर किसी और को दिखाना । आइन्दा मेरी आस्था पर अंगुली नहीँ उठाना।। तुम करोगे निंदा हमारी थोथे बन बैठे बड़े, ना वेद पढ़े ना शास्त्र पढ़े नित बने आलोचक ही मनगढे। ना नीति रची ना गीति वची वैचित्र कुंठाजित मूढ़मढें।। केवल कर्मों का ...
राजपूत सुशांत
कविता

राजपूत सुशांत

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** राजपूत सुशांत, तेरे चाहने वाले आज बहुत अशांत, पवित्र रिश्ता से बनाया अपनी पहचान, पर्दे पर किया तूने जीवंत, द ग्रेट धोनी महान, जिंदादिली थी तेरी पहचान, सोसल मीडिया पर तेरे लाखों फॉलोअर्स, सभी बिहारियों का तूं था अभिमान, फिर किस बात ने किया तुझे यूं परेशान, किंकर्तव्यमुढ़ कर गया तेरा देहांत... परिचय :- बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें ...
इंसान और प्रकृति
कविता

इंसान और प्रकृति

मुकुल सांखला पाली (राजस्थान) ******************** तेरा जैसा इस दुनिया में, कोई नहीं, रे इंसान! अपने स्वार्थ के खातिर तू हर लेता जीवों के प्राण। जितना तू लालच करेगा, अपने पाप का घडा भरेगा। कवि मुकुल तुझसे है कहता, कहे बिना अब ये नहीं रहता। प्रकृति से तू क्यों कर रहा खिलवाड? इसी का परिणाम है, कभी भूकंप, कभी बाढ। बार-बार संकेत देकर प्रकृति ने तुझे समझाया। आंखो पर बंधी लालच की पट्टी तू इसे समझ नही पाया। आधुनिकता की होड में तू हो जायेगा बरबाद। बिना प्रकृति और जीवो के कैसे रहेगा तू आबाद? कुछ पैसे के खातिर तू लेता जीवों की जान तेरे जैसा इस दुनिया में कोई नहीं, रे इंसान! परिचय :- मुकुल सांखला सम्प्रति : अध्यापक राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, खिनावडी, जिला पाली निवासी : जैतारण, जिला पाली राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो क...
गुनाह क्या है
कविता

गुनाह क्या है

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** मेरे पैरों में जब भी काँटा चुभा, उस बेदर्द से बस यही मैंने पूछा- बताओ ना तुमने क्यों घायल किया है? कहता नफ़रत का मैंने हलाहल पिया है। जिया हूँ बहुत सियाही रातें, कभी तो पूनम मुझे मिलेगी। मगर कभी ना मुझे लगा था, मेरी ही कली यूँ मुझे छलेगी। अरे ! मैं तो जी भर के तोड़ा गया हूँ, किस्मत के हाथों मरोड़ा गया हूँ। नहीं देख पाया बहारों के सपने, खिज़ा की तरफ ही मोड़ा गया हूँ। इसलिये चुभता और चुभाता हूँ सबको, एहसास उसी दर्द का कराता हूँ सबको। मेरे पास तो है बस घृणा की विरासत, वही बाँटता फिरता रहता हूँ सबको। बाँटकर भी ये नफ़रत ना कम हो सकेगी, रेत सेहरा की भी क्या शबनम हो सकेगी?? एक ही कोंपल,डाल के हम थे साथी, मगर फूल ने मेरी दुनिया भुला दी। मैंने हर पल सजाया,संवारा कली को, भंवरे से प्रेम की लौ उसने जला दी। कहती चुभने लगे हो तुम हर सांस में, और...
समय करता नहीं इंतजार
कविता

समय करता नहीं इंतजार

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** समय करता नहीं इंतजार ! मानव, थोड़ा सोच विचार !.. समय करता नहीं इंतजार पहियां, हर पल चलता है, जीवन, हर क्षण छलता है, मति, मानव की मरती है, मनमानी वह करती है, समय संचालित संसार !.. समय करता नहीं इंतजार सुख-दुख इसके गहने हैं, हानि लाभ, सबको सहने हैं, दिन-रात, इसका उपक्रम है, मैं - मेरा, सबका संभ्रम है, समय का सौ टका व्यवहार !.. समय करता नहीं इंतजार राजा रंक इसके बल से, बनते मिटते इसके छल से, जीवन मृत्यु समय का बंधन, मोह माया पीड़ा क्रंदन, झूठी सारी मनुहार !.. करता नहीं इंतजार राई को पर्वत कर देता, आंखों में सिंधु भर देता, छल कपट से बचना है, पाप प्रपंच से हटना है, करता सबका संहार !.. समय करता नहीं इंतजार परिचय : रमेशचंद्र शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिन्दी र...
गौरैया
कविता

गौरैया

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** क्या फिर इस प्रदूषण में मखमल सी हरियाली फैलेगी? फिर इन सीमेंट के जंगलों में कोई गौरैया चेहकेगी ? क्या फिर इस धरा पर बसंत की खुशबू महकेगी? क्या फिर धरा हरी भरी अदाओं से, कवियों की लेखनी बन पाएगी? या धीरे धीरे ये लेखन भी कंक्रीट के जंगल पर निर्भर होगा? क्या आम की अमराइयों की महक से कोयल कूकेगी? फिर असली गुलाबों की महक महकेगी? या कभी जूही की कलियां भी मनमोहक महक मेहकाएंगी। बचा लो इस धरा को प्रदूषण के असर से धरा फिर फूलों की बहार बन जाएगी। धरती में फिर छा जाएगी हरियाली। गौरैया फिर अपने सपनों की उड़ान भरेगी। परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर,...
नारी
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नारी

ममता रथ रायपुर ******************** नारी तू मौन है पर तुझमें शब्दों की कमी नहीं भीतर आवाज बहुत है पर बोलती कुछ भी नहीं चाहतें तो बहुत है तेरी पर उम्मीद किसी से करती नहीं चाहे कितने भी दर्द हो दिल में पर दूसरों के सामने अपना दर्द कहती नहीं नारी तू मौन है पर तुझमें शब्दों की कमी नहीं परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
बेटियां
कविता

बेटियां

नम्रता गुप्ता नरसिंहपुर ******************** मै कहानियों की दुनिया की सैर कराने आयी हूं अपने ही एक किरदार को मै आज समझने आयी हूं बेटी बन में आज बेटी की परिभाषा बतलाने आयी हूं कहानी की कोई परी होती है बेटियां नाजुक छुईमुई सी होती है बेटियां जरूरत पड़े तो काली बन संहार करती है बेटियां नया सृजन कर दुनिया बनाती है बेटियां फिर क्यों दुनिया पर ही बोझ कहलाती है बेटियां फूल की कोमल कली सी होती है बेटियां पल-पल अपनी जड़ों को मजबूत करती है बेटियां पापा की राजदुलारी होती है बेटियां मां की परछाई कहलाती है बेटियां वन को उपवन बनाती है बेटियां बहू के रूप में दो कुलों को जोड़ देती है बेटियां मुश्किल वक़्त में सूर्य की किरण होती है बेटियां फिर अपने प्रियतम की अर्धांगिनी बन जाती है बेटियां अम्बर से धारा को रोशन कर देती है बेटियां जब मानव जन्म कर मां कहलाती है बेटियां रातों को अपनी बच्चो पर वारती ...
धूप विसर्जन दिन है गुजरा
कविता

धूप विसर्जन दिन है गुजरा

जितेंद्र परमार समदड़ी- बाङमेर (राजस्थान) ******************** धूप विसर्जन दिन है गुजरा देख निशा होने को आई खग पुनः जो लौटे नीड़ को संध्या ये गगन में छाई अद्भुत अनोखा ये नजारा कुदरत रूप सजाने आई मनभावन ये समय सुहाना चाँद तारे भी संग में लाई कष्ट थकान भरे इस तन को कर्म मुक्ति अब मिलने आई सकल दिवस की एक कामना आंखों में नींद सहसा छाई परिचय :- जितेंद्र परमार निवासी : समदड़ी- बाङमेर (राजस्थान) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या ग...