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मजदूर

किरण पोरवाल
सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
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मजदूरी मजदूर की है मजबूरी,
दिन रात वह काम है करता,
फिर भी वह भूखा ही सोता।
बच्चे देखो नंगे फिरते,
नहीं पादुका इनके पैर।
हाथ में रोटी यही पकवान।
नहीं आशियाना इनके पास,
नहीं शिक्षा है इनके पास,
काबिला ही इनका परिवार,
इसमें रमते दिन और रात।
टीवी मोबाइल से नहीं है काम,
खेतिहर मजदूरी करते
तिल मिलाती धूप में तपते,
बारिश हो या ठंड अपार,
उद्देश्य इनका एक ही “काम”।
भाग्य भरोसे इनका काम,
कभी सूखा कभी अति है वृष्टि,
सबकी मार इसे है पड़ती,
राम भरोसे इनका काम,
कहां सुख और कहां आराम।
हाथों का सिराना रखकर,
चैन की नींद सोता दिन रात।
सूर्य उदय हो रोटी सेके,
दो मिर्ची ऊपर धर लेवे,
जी तोड़ मेहनत है करते,
पैदा करते धन और धान्य,
फिर भी हाथो नहीं कुछ दाम।
रात को नाच गान है करते
जीवन में आनंद है करते,
नहीं माथे पर गम के निशान।
इनकी मेहनत से हम खाते,
धन-धान्य यह उपजाते,
फिर भी मान नहीं सम्मान।
खून पसीना यह है बहाए,
फिर भी मान सम्मान यह
नहीं पाए, धूतकारे सेठ साहूकार।
इनकी मेहनत कभी नहीं खाना,
भारत के है यह भगवान,
कर्म करते दिन और रात।
हाथ जोड़ हर पल यह रहते,
मालिक के हैं यह वफादार,
वाह रे गरीबी किया कमाल?
प्रभु गरीबी किसे नहीं देना,
नहीं मोहताज किसी का करना,
अन्न धन का सबको भंडार है भरना,
सुखचैन से रहे सब आज,
यही है विनती प्रभु
किरण विजय की आज।

परिचय : किरण पोरवाल
पति : विजय पोरवाल
निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स
व्यवसाय : बिजनेस वूमेन
विशिष्ट उपलब्धियां :
१. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित
२. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित
३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा “साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४” से सम्मानित
४. १५००+ कविताओं की रचना व भजनो की रचना
रूचि : कविता लेखन, चित्रकला, पॉटरी, मंडला आर्ट एवं संगीत
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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