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आंचलिक बोली

बुरा न मानो होली है …
आंचलिक बोली, कविता

बुरा न मानो होली है …

ग्वाला प्रसाद यादव 'नटखट' जोशी लमती, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) गरीबहा मनके घर फुटे परे, चोरहा मन महल में ढ़लगे हे घुसखोर के दिन-बादर चलत हे अऊ नेता मनके बात अलगे हे इहां दान-धरम के गोठे गोठ में कोढ़िया मनके भरे झोली हे अऊ तभो कहत हम छत्तीसगढ़िया बुरा न मानो होली हे.... नौकरी वाले घर अऊ नौकरी आथे फेर गरीब के लैइका बेरोजगार हे ब्यवहार कुशल जऊन जाने नहीं तेखर तीर डिग्री के भरमार हे ये लोकसभा चुनाव में नेता मन देथे भांग के मीठ मीठ गोली हे अऊ तभो कहत हम छत्तीसगढ़िया बुरा न मानो होली हे.... विकास के धुआं म हाय-हाय मनखे के जिनगी जरत हवय धरती के रंग बेरंग होथे इंहा कतको जीव जंतु मरत हवय सब्बो ल जानके मनखे करथे पेलहा कस हंसी ठिठोली हे अऊ तभो कहत हम छत्तीसगढ़िया बुरा न मानो होली हे.... परिचय :-  ग्वाला प्रसाद यादव 'नटखट' निवासी ...
गजब मिठाते अऊ गजब सुहाते
आंचलिक बोली, लघुकथा

गजब मिठाते अऊ गजब सुहाते

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** एक दिन के बात आय समारू घर म कोनो नई राहय घर के जम्मो लईका सियान हर अपन ममा घर घुमे बर चल देते। फेर क घर ह पुरा सुन्ना होगे समारु जईसे तईसे दिन भर बिताए के बाद म संझा के बेरा होगे, तब समारू हर नंग्गत के अघाए भुखाय घलो रथे कबार कि बहिनिया कुन बोरे बासी भर ल खाय रथे। समारु लकर धकर हाडी कुरिया म जईसे मुच्चा ल उठआईस त पाते कि कुरवी म एको कन अन्न के दाना नई राहय। ये सब ल देख समारु भुख पियास म तरमिर-तरमिर करे लागिस फेर क करय गघरा म पानी भराय राहय समारू गघरा ले लोटा भर पानी निकाल सांस भर के पीये लागिस, अईसे-तईसे करके समारू कुछ समय बिता डरिस। फेर वोहर रोज अन्न के दाना खाय बिना वोला नींद घलो नई आवय समारू हाडी कुरिया म जेवन बनाय बर भीड़ जथे जइसे आगी सपचाय बर छेना लकड़ी ल देखते त सबे हर सिरा गे रईथे। ये सब ल देखत समारू के मति फेर छरिया ज...
आगे फागुन तिहार
आंचलिक बोली, कविता

आगे फागुन तिहार

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) अमरय्या मा आमा मयुरे कारी, कोयली कुहुकत हे, लाली-पियुरी परसा फूले, सबों के मन ह पुलकत हे। सरर-सरर चले पिचकारी, उढ़े सुग्घर रंग-गुलाल, पातर -कवर मोर गांव, के गोरी दिखे लाले-लाल। फागुन के फाग संग, सुग्घर डोल नगारा बाजे, जय-जय हो तोर फागुन महाराज, मन-मयारु नाचे। मया-पिरीत के संग खेलबोन, पिरीत के सुग्घर होरी, दया-मया ल बांधे रहिबों संग, म पिरीत के सुग्घर डोरी। बड़ सुग्घर हे पावन लागे, हे फागुन के सुग्घर महीना हा, सबों ल सुहावन लागे, सुग्घर रंग-गुलाल के महीना हा। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
बदलियां गल्ला
आंचलिक बोली, कविता

बदलियां गल्ला

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** (पहाड़ी कविता) अज्ज कल बदलना लग्गियां तेरियां गल्लां तेरे शहरे दे मौसमे सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गा। तेरा अंदाज गिरगिटे दे रंगे सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गा तेरा प्यार तेरे रुसदे चेहरे सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गा तेरा व्यवहार तेरियां नजरा सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गे तेरे जज्बात तेरे लफ्जां सैंई। अज्ज कल बदलना लग्गी मेरी अहमियत तेरी बदलिया सोच्चा सैंई। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने पर...
जरे आदमी
आंचलिक बोली, कविता

जरे आदमी

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी) वइसे तो दूध के जरे आदमी ह दही घलो ल फूंक के पिथे, फेर कोनो धियान नइ देवय के गरीब शोसित आदमी ह का का सहि के जिनगी जींथे, वो तो गरीबी के आगी म रोज के रोज जरत रथे, उपर ले जात के अपमान कोनो ल कुछु नइ कहय फेर भितरे भीतर धधकत मरत रथे, कतका घिनक बेवस्था बनाय हें मनुस के घटिया रहबरदार मन, बिन काम बुता करे बने हे ऊंच अउ काम कर कर के मरत हे निच कहा जरोवत हे अपन तन, बेसरमी ल ओढ़ रात दिन जात पात के नाव म सतावत हें, जानवरपना भरे हे ओकर तन मन म रोज रोज छिन छिन जतावत हें, आदमी जरे तो हे फेर मरे नइ हे, का डर हे के पलटवार करे नइ हे, जे दिन एमन जुर मिल एक हो जाहि, सासन सत्ता अपन हाथ म लाय के बिचार नेक हो जाहि, जे दिन अदरमा इंखर फाट जाहि, ओही दिन अपन बिरूध बने सबो अमानवीय बेवस्था ल काट जाहि। ...
मोर छत्तीसगढ़ महतारी
आंचलिक बोली

मोर छत्तीसगढ़ महतारी

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** भारत मां के दुलवरिन बेटी, नदिया नरवा अऊ घाटी हे, पबरीत,सुग्घर निरमल भुंइया मोर छत्तीसगढ़ के पावन माटी हे। मोर छत्तीसगढ़ के पावन माटी हाबे ग सुग्घर चंदन, ऐ माटी मा खेलिन-खुदिन शीरी-कृष्णा अऊ रघुनंदन। मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोर महीमा हा अपरम्पार हे, तोर कोरा मा बोहथे सुग्घर, महानदी, अरपा, पैरी, के धार हे। दंत्तेवड़ा मा दंत्तेश्वरी दाई, डोगरगढ़ मा बम्लेश्वरी बिराजे, रतनपुर मा महामाई बैईठें, गंगरेल के तीर मा अंगारमोती बिराजे। छत्तीसगढ़ के तीज-तिहार सुग्घर इंहा हरेली,तीजा-पोरा हे, नादिया, बैइला, गिल्ली-डण्डा सुख के सुग्घर महतारी के कोरा हे। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरच...
आगे बसंत
आंचलिक बोली, कविता

आगे बसंत

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** पियर-पियर सरसो फूले, पियर उड़े पतंग, पियर पगड़ी पहिर के, आगे ऋतु राज बसंत। अमरय्या मा आमा मयुरे कारी, कोयली कुहुकत हे, लाली-पियुरी परसा फूले, सबों के मन हा पुलकत हे। सरर-सरर चले पुरवाही, मन मयुर झूमें नाचे, फागुन के फाग संग, सुग्घर डोल नगारा बाजे। पातर-कवर गांव के गोरी, झुले कान के बाली, मया-पिरीत के बांधे, डोरी हंसी अऊ ठिठोली। मन भावन उत्साह, अऊ उमंग ज्ञानी, गुनी ,संत, मन मा खुशी गजब, सुग्घर लागे आगे बसंत। कतिक करव बखान, तोर हे ऋतु राज बसंत, तोर महीमा ल बताइन, दिनकर, वर्मा अऊ पंत। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
भीति … मराठी कविता
आंचलिक बोली

भीति … मराठी कविता

माधवी तारे लंदन ******************** मला वाटते ही कसली भीति, ना चोरा ची न अंधारा ची, अथाह साहित्य सागरातूनी गवसेल कसा मज सुषमानुकूल शब्द मोती? वालुकामयी समुद्र किनारी पाहुनी वेगमयी लाट उसळती, भय पतनाचे मम नेत्र मिटती. दुर्गम असे मज सादा शिंपला नी मोती. कुशल अशा रचनाकारांना नवे आव्हान मायमावशी देती होतं शब्दांची साहित्य निर्मिती त्यात कशी टिकावी हीच भीति पणती माझी मिणमिणती… परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु ...
बोली
आंचलिक बोली, कविता

बोली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी बोली झिनकर भरोसा के सबो बोलहि गुरतुर बोली, कोनो कस्सा बोलहि, कोनो गुरतुर बोलहि, कोनो जहर मौहरा कस बोलहि, त कोनो नुनछुर बोलहि, पढ़हे लिखे मनखे ले मत पालव उम्मीद, के गाबेच करहि मीठ-मीठ गीत, पढ़ेच होय ले का होही, जात के गरभ म अतका घमंड हे जागतेच रइही कभू नई सोही, एक ठीन बेरा रहिस रिस्ता नता अनुसार सबो मीठ बोलय, मीत मितान मन तो गोठियाय के पहिली मुंहे म सक्कर ल घोलय, फेर आज सब नंदावत हे, गियां, महापरसाद ल छोड़ संगी दाई, ददा, भाई तक ल भुलावत हें, कहां गइस मया अउ कहां गइस दया, आज सबो हे सुवारथ खातिर सिरिफ बासी खया, सत ल बताय बेरा चिचियाथें, अउ मीठ बोली म चेता के धमकाथें, मोला तो कोनो नई दिखत हें बिन सुवारथ के मीठ बोलवा, बोली के दोस नई हे आज सबो एके रद्दा म रेंगत हें ब्यवह...
रक्षाबंधन तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधाई
आंचलिक बोली, कविता

रक्षाबंधन तिहार के गाड़ा-गाड़ा बधाई

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ के भूंइया म, आथे जी तिहार। रक्षासूत्र म बंध जाथे, भाई बहन के प्यार।। माथा म तिलक लगाके, हाथ म बंधाय डोर। बहन के सुरक्षा खातिर, भइया लगाय जोर।। एक दुसर मीठा खिलाके, देवत हे उपहार। चरण छुके आशीष मांगे, बने प्रेम व्यवहार।। परब सावन महीना म, आथे साल तिहार। संस्कृति ल संवारे बर, करत हे घर परिवार।। युवा भाई मिलजुल के, करव बेटी उद्धार। बेटी के ईही रुप हरे, जानव ए अधिकार।। वसुंधरा के पहुंचे ले, जगत म उड़गे शोर।। चंदा मामा खुश होगे, बांधिस प्रीत के डोर। मंगलकामना पठोवत, श्रवण करत पुकार। रक्षाबंधन के तिहार म, लाओ खुशी बहार।। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू निवासी : भानपुरी, वि.खं. - गुरूर, पोस्ट- धनेली, जिला- बालोद छत्तीसगढ़ कार्यक्षेत्र : शिक्षक घोषणा पत्र : मैं ...
काखर पाछु म जाना हे
आंचलिक बोली, कविता

काखर पाछु म जाना हे

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दु माडल हे देस के आघु जेला चाहव चुन ल जी, का करम कुकरम हे एखर भीतरी आवव थोरकुन गुन ल जी, गोड़ गिरव अउ माथा रगड़व एक माडल ह कहिथे जी, जनमानस ल भरमाये खातिर आस्था के धार बहिथे जी, जात पात बरिन ल मान के खुदे नीच कहलावव जी, बइठान्गुर के बात ल मानव पेट ओखर सहलावव जी, जाति धरम के पाछु म आंखी मुंदा जावव जी, हाथी कस ताकत ल अपन छिन छिन म भुला जावव जी, एक बरन ह राजा रहि एक बरन ह रद्दा बताही जी, एक बरन ह लुटही खसोटही बाकी धार बोहाही जी, हजारों बरस के पाखंड ह जोर से फेर बोमियाही जी, पुरखा हमर रोये रहिन हे जइसे वोही दिन ह लउट के आही जी, अब बात करन दूसर माडल के ओमा का का होही जी, कोन उड़ही अद्धर अकास म कोन धरती म सुत रोही जी, संविधान ह रक्छा करही सबला सबल बनाही जी, भाई बरोबर सब मिल जुल रहीं समता के फुल ...
बेटा शहर जात हे …
आंचलिक बोली, कविता

बेटा शहर जात हे …

देवप्रसाद पात्रे मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) बेटा ल शहर के पिज्जा-बर्गर बड़ लुभात हे। दाई हाथ के चटनी बासी अब नई मिठात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... धनहा खार के नागर तुतारी अब नई सुहात हे। बेटा घुमय शहर, ददा भिन्सारे ले खेत जात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... नागर के मुठिया पकड़त म अब लजात हे। हाथ म मोबाइल आँखी म तश्मा सजात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... जहुरिया मन संग पार्टी म मजा खूब आत हे। दाई ददा बोरे बासी, बेटा मुर्गा-भात खात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... जांगर धर लिस ददा के, बइठे बइठे चिल्लात हे। कान होके भैरा होगे, बेटा ल नई सुनात हे।। अपन गाँव-घर ल छोड़, बेटा शहर जात हे... सुरु होगय मुंह जबानी, धर के बात नई बतात हे। बड़े से बात कइसे करना हे, संस्कार ल भुलात हे। अपन गाँव-घर ल...
चांद कहवा छुपल
आंचलिक बोली, कविता

चांद कहवा छुपल

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। दिल के दरवान दिल के दरद ना बुझे। नीर अखियां के गिरल त सब बह गईल।। जेके अखियां के पुतरी बनवले रहीं। उ बदल जायी अइसे खबर ना रहे।। आसमां के परी जिनके जानत रहीं। छोड़ अइसे दिहें तनिको डर ना रहे।। इहे जीवन के असली सच्चाई बा हो। नाहीं मुहवा खुलल बात सब कह गईल।। चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। बनके परछाई जे हमरा साथे चलल। आज ओही के रहिया निहारत बानी।। जे सजावल सनेहिया के संसार के। का भईल अब कि उनके बिसारत बानी।। सात सूर जेके आपन बनवले रही। बेसुरापन के फिर भी झलक रह गईल।। चांद कहवा छुपल कि छुपल रह गईल। प्रेम से इ सहेजल भवन ढह गईल।। सुख के सपना देखल आज सपना भईल। जान जायी की रही बा फेरा लगल।। आस के जो जरवनी दीया बुझ गईल...
होली अइसे खेलहु
आंचलिक बोली, कविता

होली अइसे खेलहु

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी बोली होली अइसे खेलहु कि सब ला खुशी होये, अइसे झन खेलहु कि मां बाप के नाम बदनामी होये.! हरियर, पिवरी, लाल, गुलाबी लगाहु सबला रंग जी, भाई-चारा के रिश्ता निभाहु सबला रखहु संग जी.! मया-पिरित के गोठ गोठियाहु बबा-दाई ला रंग लगाहु, उत्साह-उमंग के साथ मनाहु होली तिहार जी.! ऐकता अउ खुशहाली के तिहार ये, येला भगवान भी मनाये बर करथे इंतिजार ये.! बबा के गीत जोरदार हे.. होली खेले रघुवीरा अवध में,, इही हमर संस्कृति अउ परम्परा जोरदार हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
मनमीत बनल केहु ना
आंचलिक बोली

मनमीत बनल केहु ना

आनंद कुमार पांडेय बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** मनमीत बनल केहु ना, अब हीत बनल केहु ना। सूर के हमरा सजावेला, संगीत बनल केहु ना। सब कोस रहल बा हमके। छवलस बदरिया गम के।। हम कोसी ए दुनिया के। या खुद अपना हीं करम के।। बा खेल इ बदलल हमरो। अब जीत बनल केहु ना।। मनमीत बनल केहु ना। अब हीत बनल केहु ना।। किस्मत के लड़ाई बा। लगले हीं खाई बा।। अब साथ छोड़त हमरो। अपने परछाई बा।। मझधार में जीवन नइया बा। रण प्रीत बनल केहु ना।। मनमीत बनल केहु ना। अब हीत बनल केहु ना।। लिखनी बहुतेरे कहानी। आफत में खुद हम बानी।। एह गैर के महफिल में। अब के हमके पहचानी।। अनुमान गलत नईखे। जनगीत बनल केहु ना।। मनमीत बनल केहु ना। अब हीत बनल केहु ना।। जज्बा बा जीत हीं जाईब। खुद से हीं किरिया खाइब।। आनंद ए कठिन डगर में। हमहुॅ किरदार निभाइब।। बनके देखलाइब हम अब। दुनिया के एक नमू...
अमर रहे गणतंत्र हमर
आंचलिक बोली, कविता

अमर रहे गणतंत्र हमर

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** कतिक सुग्घर हे दिन आज, सुनो-सुनो ग संगवारी। नाचो कुदों गीत गावव, देश के सब्बों नर-नारी।। सुग्घर अमर रहे गणतंत्र हमर, आगे सुग्घर देश भक्ती के तिहार। आन बान अऊ शान तिरंगा, नमन् करन धरती अऊ आसमान।। आज हमन आजादी पाऐन, जेमन लढ़िन अड़बड़ लड़ाई। देश के रक्षा खातिर अपन, प्राण ल घलो गवाईन।। हिन्दू मुस्लिम सिख अऊ ईसाई, आपस म सब्बों भाई-भाई। भाई चारा एकता के हाबें संदेश, जन-जन ल सुग्घर मिलिस आदेश।। नमन हे महापुरुष तोला, सुभाष, नेहरु अऊ गांधी जी। आजादी के अलख जगईस, जेन लइस क्रांति के आंधी जी।। वंदेमातरम्, जय हिन्द, जय भारत, जय छत्तीसगढ़ के नारा ल बुलाना हे। आजादी के अमृत महोत्सव म घरों-घरों तिरंगा अब फहराना हे।। परिचय :-  डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा ज...
आबे संगी मोर गाँव
आंचलिक बोली, कविता

आबे संगी मोर गाँव

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आबे संगी मोर गाँव, ‌ हावय मया पिरीत के ठाँव। अमरय्या हर निक लागे सुग्घर बर पीपर के छाँव।। आबे संगी मोर गाँव..... मोर गाँव के खरखरा बाँध के निरमल पानी, डुबकी लगाथन हम जम्मों परानी । शिव भोला म पानी चढ़ाके , मिलथे सब्बों ल‌ भोले बबा के आशीष ।। आबे संगी मोर गाँव..... खेती खार सुग्घर लागे, बाहरा खार के धनहा डोली । निक लागे सुग्घर अरा तत्ता के बोली, कारी कोयली कुहुके बन म कौवा के कांव -कांव।। आबे संगी मोर गाँव..... जागर ठोर मेहनत करे , सुख-दुख के सब संगवारी हे । देवता धामी इहां बिराजे, बैंइठे हावय इहां ठाँव- ठाँव ।। आबे संगी मोर गाँव..... चैतु, बुधारु, अउ हावय इतवारी, मया पिरीत के हाबें फूलवारी । झुनुर-झुनुर पैंरी बाजे, भुरी नोनी के सुग्घर पाँव।। आबे संगी मोर गाँव..... नद...
शहरी/किसान
आंचलिक बोली

शहरी/किसान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) भले तू बाट्या बड़ा महानु, बड़ा सा अहै तोहारु मकानु, अही हमु किञ्चौ ना हलकानु, हे बबुआ हमहूँ अही किसानु।। बड़ु सुंदरु रहनि-सहनि तुम्हरा हर मनईन ख़ातिर इकु कमरा बढ़िया तोहार है खानु-पानु मुला लागतु हौ जैसेन बिमरा नूनु-भातु चटनी-रोटी ई हमारु पूरिउ-पकवानु।। हे बबुआ ... तू ए सी मा बासि करौ ठंडाई पी-पी ऐश करौ हमतौ सेंवारी मा घूमी मुला ठंड़ी-ठंड़ी सांसु भरौं फ्रिज कै तू पानी पिअतु अहा हमरौ गगरी मा हउ भरानु।। हे बबुआ ... तू सूटेड-बूटेड बना रहा हरु चौराहे पै अड़ा रहा हमतौ बस खेती-बारी मा चंहटा-मांटी मा सना रहा रूपिया-पैइसा से लदा अहा हमतौ अही मटिया मा धसानु।। हे बबुआ ... तू कामु किहा रूपिया पाया मनमाना सबकछु भरि लाया हमतौ खेते म जरी-मरी तब्बौ हाथे न दिखी माया...
गुरु बाबा के गुण गाबो
आंचलिक बोली, कविता

गुरु बाबा के गुण गाबो

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता चलना झंडा फहराबो... गुरुबाबा के गुण गाबो... मानवता संदेश खातिर धाम गिरौधपुरी जाबो... मनखे मनखे सब्बो ऐके समान हे ... सब्बो समान हे ...बाबा ... सब्बो समान हे ... मानुस काया के तो इही ह पहचान हे ... इही ह पहचान हे ...बाबा... इही ह पहचान हे ... ऐके ही खून अउ ऐके ही तो चाम हे.. एक ही चाम हे.. बाबा... एक ही चाम हे.. . चलना नवा बिहान लाबो... चलना तीरथ धाम जाबो.. मानवता संदेश खातिर धाम गिरौधपुरी जाबो... सच के रद्दा बतैइया गुरु घासीदास बाबा हे.. घासीदास संत हे...बाबा... घासीदास संत हे.. जीव हतिया रोकैइया बाबा मांहगू के लाला हे.. मांहगू के लाला हे... बाबा... घासीदास बाबा हे.. सतनाम के संदेश बगरैइया अमरौतिन के दुलरवा हे.. अमरौतिन के दुलरवा हे...बाबा... ...
नवा साल के अगोरा
आंचलिक बोली, कविता

नवा साल के अगोरा

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता सगा बरोबर सब रददा देखत हे, नवा जिनगी शुरु करें बर अगोरा करत हे, जम्मो जन नवा साल के आगोरा करत हे.! नोनी बाबु नवा साल बर पिकनिक मनाये के तैयारी करत हे, नवा जोड़ी शादी के बंधन में बंधे के अगोरा करत हे.! नवा साल सबके जीवन में मंगल हो, हर गांव में नचई-गुदई अउ सत्संग के तैयारी चलत हे.! नवा साल मा प्रेमी-प्रेमिका अपन प्रेम के इजहार करें बर अगोरा करत हे, नवा साल मा सब अपन जीवन मा परिवर्तन करें के अगोरा करत हे.! जम्मो जन नवा साल अगोरा करत हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कह...
हमरौ खान-पान
आंचलिक बोली

हमरौ खान-पान

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (अवधि भाषा) तालमेल रखिहौ तनिक, खानपान व्यवहार। मान प्रतिष्ठा बाढ़िहै, चहुँ हुयिहैं , सत्कार। चहुँ हुयिहैं सत्कार, जीभु भलु स्वादु चखेगी। खट्टा-मीठा संगु, मीठु पकवानु मिलेगी।। "मधुरस" भलु समझायि, इसारा करतु भली के। बनबावउ चौसारु, जेंवाबउ बैठि कुली के।। चला चली रसोई बनाई हो भल पाहुनु हँ आबत। भाँति-भाँति व्यंजनु सजाई हो भलु पाहुनु हँ आबत।। आई चतुर्थी गनेसा मनाई लडुवा ढ़ूढी से भोगु लगाई रिद्धी औ सिद्धी बुलाई हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति---- दीपावली मा मावा मँगाये होरी आई त गुझिया छकाये दसहरा रसगुल्ला भाये हो भलु पाहुनु हँ आबत।। भाँति--- कृष्ण जन्माष्टमी हलुवा ही हलुवा गुरुपर्व दिना कड़ा प्रसदुवा नरियर खीरु बिहू सजाये हो भल पाहुनु हँ आबत।। भाँति--- ठण्डी म दाल बाटी चोखा खि...
नदावत हे
आंचलिक बोली

नदावत हे

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता खेत-खेत भारा राखे, कोठार बनाई नदावत हे, थ्रेसर के जमाना आगे, गाडा-बइला के मिजाई नदावत हे.! पहली लइका मन सीला बिने ला जाये, सीला बिने अउ बेचे मुर्रा अउ लाडु लाके खाये, अबके लइका स्कुल ले आये मोबाइल मा बीजी हो जाये.! पाठ चुड़ी बोईर काटा घलो नदावत हे, कोठार मा झाला बनाई सब्बो माजा बुलावत हे.! अब खेते मा मिन्जे अउनचे ले धान ला सोसाइटी ले जावत हे, हमर संस्कृति परम्परा नदावत हे, सुर कलारी नेग जोग सब मजाक बनावत हे.!! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
टुरी खोजाई
आंचलिक बोली, कविता

टुरी खोजाई

परमानंद सिवना "परमा" बलौद (छत्तीसगढ) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता ऐ गाँव ले वो गाँव चलत हाबे घुमाई, जेला कथे छत्तीसगढ़ मा टुरी खोजाई.! एक सियान हे ता दो नवजवान हे, गाडी मा बइठे नशा करे बिगडे जुबान हे.! कोनो सच बतात हे खेती किसानी इही मोर अभिमान हे, ता कोनो जुट गाडी बंगला कई ऐकड खेत कही कही के बतात हे.! जुठ लबारी तोर काम नई आये, काम अही तोर व्यवहार हा, टुरी (लडकी) मत खोजो, खोजना हे ता घर बर बेटी खोजो.! पइसा वाले जन देख-देख ले वोकर घर परिवार व्यवहार ला, पइसा वाले मारही पीटही झगडा करही व्यवहारवान बेटी ला सम्मान दीही.! ! परिचय :- परमानंद सिवना "परमा" निवासी : मडियाकट्टा डौन्डी लोहारा जिला- बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भ...
कुछू समझ नइय आवत हे …
आंचलिक बोली

कुछू समझ नइय आवत हे …

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी रचना मोला तो बिल्कुल ऐ बात के समझ नइय आवत हे.. ११ दिन पूजा करीन बिसर्जन मॅं डीजे बजावत हे.. कोनो ह पीये हे दारु त‌ केते चखना मॅं झड़त हे लाड़ू .. कोनो ह पीयत नशा मॅं गांजा पीइय ह जादा होगे त बजावत हे बाजा.. झूमत-झूमत झूपत-झूपत अऊ नाचत कूदत जावत हे.. ग्यारह दिन पूजा करीन बिना रंग ढंग के डीजे बजावत हे.. देवत हे एक दूसर ल गारी नशा मॅं नांचत हे जम्मो संगवारी आना जाना ल जाम कर दीस सड़क चलैय्या मन‌ ल‌ हलाकान कर दीस सियान मनखे ह समझा परीस त अंगरी ल दिखावत हे .. ग्यारह दिन पूजा करीन बिसर्जन मॅं डीजे बजावत हे.. धीरे-धीरे पहुंच गे नरुवा तरिया पूजा करे बर सब्बो सकलागे जहुंरिया जय-गणेश, जय-गणेश.. पूजा करीन जम्मो संगी चोरो-बोरो लंबोदर ल धरीन तैरे बर आईस तै...
देखो ओ काल्या की काकी
आंचलिक बोली, कविता

देखो ओ काल्या की काकी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** देखो ओ काल्या की काकी उमड़ घुमड़ कर बादल आए पनिहारीन पानी हे चाली गाय तो में दुवा ने जाऊं बोकड़ा तो छोरा है लईग्या गाय तो चरवा मैं हूं लई जाऊ मक्कयां तो पाकन है लागा कागला आईने तू है उड़ाय कड़वा नीम की डाली पे देखो छोरिया झूला दे रे लगाए देखो काल्या की काकी उमड़ घुमड़ कर बादल आए टापरो ऊपर मै तो ढाकू कवेलू तू मने झेलाए छाछ तो मैं बिलोवन लागी छोरा हाको देरे लगाए आबा पर तो मोड़ है अईग्या कोयलड़ी है शोर मचाए देखोओ काल्या की काकी उमड़ घुमड़ कर बादल आए खेत पर मैं तो हूं जाऊं रोटा लइने तु हे आए छोरा छोरी आंगण में खेले प्रेम घणो उनमें है आए पड़ोसी मिल बाता में लागी छोरा छोरी टेर लगाएं चालो मिल झूला है झूला आपस में है गीत सब गाय किरण तो मालवी है बोले प्रेम घणों इनमें ...