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ग़ज़ल

डूबी बस्तियां सैलाब में
ग़ज़ल

डूबी बस्तियां सैलाब में

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है, डूबी बस्तियां सैलाब में मेरा घर कटता है। बद जुबानों पे अब लगाम लगाया जाए, खबर है तुम्हें? ज़हर से ज़हर कटता है। कैसे कटती है मुफलिसी में जिंदगी देखो, इस दौर में शरीफ लोगों का ही सर कटता है। किताबें हैं नहीं मय्यसर गरीबों को, इसी कशमकश में कितना हुनर कटता है। कितने दर्द मिलते है जाफरानी बस्ती में, किसी का रेत में भी सफर कटता है। हो इनायत जहनी खुदादाद अब शाहरूख पे, इंकलाबी लहजों से जालिम का पर कटता है। वेवहर लड़खड़ाती, है अब ग़ज़ल मेरी, इसी पेशोपेश में जैरो-जबर कटता है। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
अवध में राम आये हैं
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अवध में राम आये हैं

उषाकिरण निर्मलकर करेली, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सुमंगल गीत गाओ तुम, अवध में राम आये हैं। सुमन-श्रद्धा लुटाओ तुम, अवध में राम आये हैं। सकल ब्रम्हांड के स्वामी, विधाता वो जगत के हैं। चरण उनके पखारो तुम, अवध में राम आये हैं। सहज, सुंदर, सलोना है, मेरे भगवान का मुखड़ा, कि मन-मंदिर बसाओ तुम, अवध में राम आये हैं। नयन कजरा, तिलक माथे कि कुंडल-कान धारे हैं, नजर अब तो उतारो तुम, अवध में राम आये हैं। सदा ही भाव वो देखे, सभी स्वीकार है उनको, कि शबरी बन खिलाओ तुम, अवध में राम आये हैं। समझते हैं, सभी के कष्ट, वो पालक-पिता जग के, सभी दुख को मिटाओ तुम, अवध में राम आये हैं। वचन की लाज रखनें को, गये चौदह बरस वन में, पुकारो लौट आओ तुम, अवध में राम आये हैं। कि लक्ष्मण जानकी है संग, अब कर्तव्य के पथ पर, पवनसुत जी पधारो तुम, ...
कहीं मन का, कहीं तन का …
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कहीं मन का, कहीं तन का …

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** कहीं मन का, कहीं तन का, किसी से वास्ता जो भी। रहे थोड़ा, ज़ियादा या किसी से फ़ासला जो भी। किसी की याद लेकर ही चलें हैं साथ हम लेक़िन, जताते हैं, निभाते हैं, किसी का क़ायदा जो भी। तकाज़ा उम्र का होगा, रही होगी फ़िकर सबकी, नहीं आई हमें नींदें, किया हो रतज़गा जो भी। समझदारी इसी में थी कि पहले साध लें मन को, बुरा कोई, भला कोई, मिले फिर सामना जो भी। मिला अब तक हमें उतना नहीं उम्मीद थी जितनी, कभी इतनी, कभी उतनी, रहे फिर इल्तिज़ा जो भी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्र...
यहाँ की, वहाँ की ख़बर में नहीं है
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यहाँ की, वहाँ की ख़बर में नहीं है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** यहाँ की, वहाँ की ख़बर में नहीं है। जो अब तक किसी की नज़र में नहीं है। सुने जो सभी की, करे अपने मन की, वो बन्दा किसी के असर में नहीं है। चला आ रहा है बराबर से लेक़िन, वो रस्ता किसी के सफ़र में नहीं है। उतारे जो दरिया में कश्ती अकेले, वो जज़्बा सभी के ज़िगर में नहीं है। निकलते ही सूरज रहे जिसमें गर्मी, मज़ा एक ऐसी सहर में नहीं है। जो नेकी के बदले इज्ज़त मिले वो, बुराई से जीती क़दर में नही है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किय...
एक रात आप …
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एक रात आप …

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** साहब एक रात आप यतीमखाने में रहिए, दौलत के भूखे न बन खुदगर्ज जमाने में रहिए। हर शहंशाह ने लिखवाए कसीदे अपने दौर में, चर्चे रहे फकीरों के फकीर बन ज़माने में रहिए। मेरे संगे बुनियाद की तामीर में तो पत्थर नहीं है, आप हुजूर एक रोज मेरे भी गरीबखाने में रहिए। प्यार खुलूस इज्ज़त चाहत सब है मेरी बस्ती में, त्यौहार में कभी आप मेरे आशियाने में रहिए। मुसीबतों से जो लड़ते-लड़ते फौलाद बना हूं मैं, लाख हो नशा दौलत का मगर पैमाने में रहिए। तख्तियां कितनी भी हो मगर दरार नहीं मुझ में, वो शख्स जैसा हो आप रिश्ता निभाने में रहिए। मेरे घर के तमाम पाए ज़मींदोज़ हो चुके आब, आप सच लिख के जालिम के निशाने में रहिए। खुले आसमान में रहते हैं बहुत से लोग शाहरुख़, कभी एक रात आप उनके शामियाने में रहिए। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया...
बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है
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बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** बड़ी उम्मीदों से जिंदगी का सफर कटता है, डूबी बस्तियां सैलाब में मेरा घर कटता है। बद जुबानों पे अब लगाम लगाया जाए, खबर है तुम्हें? ज़हर से ज़हर कटता है। कैसे कटती है मुफलिसी में जिंदगी देखो, इस दौर में शरीफ लोगों का ही सर कटता है। किताबें हैं नहीं मय्यसर गरीबों को, इसी कशमकश में कितना हुनर कटता है। कितने दर्द मिलते है जाफरानी बस्ती में, किसी का रेत में भी सफर कटता है। हो इनायत जहनी खुदादाद अब शाहरूख पे, इंकलाबी लहजों से जालिम का पर कटता है। वेवहर लड़खड़ाती, है अब ग़ज़ल मेरी, इसी पेशोपेश में जैरो-जबर कटता है। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
कुछ दूरियाँ बना लो … सब लोग क्या कहेंगे …
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कुछ दूरियाँ बना लो … सब लोग क्या कहेंगे …

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** होती नहीं उजागर, तो और बात होती। होती जो बात घर पर, तो और बात होती।। पहरे लगे हुए थे, वातावरण था भय का, होता नहीं अगर डर, तो और बात होती।। कुछ दूरियाँ बना लो, सब लोग क्या कहेंगे, होते कहीं जो बाहर, तो और बात होती।। सरनाम थे कभी जो, बदनाम इश्क में हैं, करते न प्यार पथ पर, तो और बात होती।। मन में दबा रखी है, हर बात बावरी ने, होती जो बात खुलकर, तो और बात होती।। आकाश के सितारे, लटके हुए टंँगे हैं, बसते अगर धरा पर, तो और बात होती।। कैसा सवाल था यह, तुम भी न कर सके हल, देते सटीक उत्तर, तो और बात होती।। पानी यहाँ कहाँ है, मरुथल मलाल का है, मिलता अगर सरोवर, तो और बात होती।। यह जान भी न जाती, नुकसान भी न होता, लाते जो "प्राण" को घर, तो और बात होती।। परिचय :- गिरेन्द्...
दोगले दाग़दार होते हैं
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दोगले दाग़दार होते हैं

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** दोगले दाग़दार होते हैं। फिर भी वे होशियार होते हैं।।१।। सावधानी यहाँ जरूरी है, चूकते ही शिकार होते हैं।।२।। आप जितने सवाल करते हो, तीर से धारदार होते हैं।।३।। जिन पलों में कमाल होता है, बस वही यादगार होते हैं।।४।। दाँत होते नहीं परिन्दों के, क्यों कि वे चोंचदार होते हैं।।५।। चोर शातिर मिजाज ही होंगे, या कहो आर - पार होते हैं।।६।। शूल क्या आजकल बगीचे के, फूल भी धारदार होते हैं।।७।। वार करते न सामना करते, इसलिए ही शिकार होते हैं।।८।। नोंक तीरों की रगड़ पत्थर पर, तब कहीं धारदार होते हैं।।९।। बालकों को अबोध मत समझो, वे बड़े होनहार होते हैं ।।१०।। "प्राण" कहते न बोलते उनके, हर जगह इन्तजार होते हैं।।११।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्...
सागर गहरा कितना क्या है
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सागर गहरा कितना क्या है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** सागर गहरा कितना क्या है। मछुआरों ने ही समझा है। तेज हवा, लहरों से लड़ना, पतवारों की जीवटता है। गिर-उठकर चलना कश्ती ने, तूफानों से ही सीखा है। भाप बने या बर्फ वही जल, जाकर सागर में गिरना है। सूरज - अग्नि से बनकर भी, धरती का जल से रिश्ता है। मंथन के दौरान जो चाहा, सब कुछ सागर से निकला है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी र...
खुश्क तबियत
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खुश्क तबियत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** खुश्क तबियत हरी नहीं मिलती। और फिर रसभरी नहीं मिलती।।१।। लोग कहते कि चाँदनी देखो, चाँदनी साँवरी नहीं मिलती।।२।। नाज़ नखरे हजार होते हैं, रूपसी बावरी नहीं मिलती।।३।‌। नाज़नीनों को भटकते देखा, आप सी सहचरी नहीं मिलती।।४।। हूर तक को उतार लेता पर, आप जैसी परी नहीं मिलती।।५।। इश्क नमकीन हुस्न मीठा है, प्रीति भी चरपरी नहीं मिलती।।६।। "प्राण" की प्यास आखिरी होगी, ज़िन्दगी दूसरी नहीं मिलती।।७।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...
ज़वानी में क्या रखा है
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ज़वानी में क्या रखा है

मुकेश कुमार हरियाणा ******************** तू मेरी आँखों के सामने है तो माज़ी में क्या रखा है तेरी फ़लसफ़ी तस्लीम करूँ कहानी में क्या रखा है। ज़हनी नफ़सियाती का कोई मर्ज़ नहीं दर्द क्यों ज़र्द तो टूटे दिल–ए–मशरिक़ की रवानी में क्या रखा है। मेरी साँसें इतनी आरिज़ी थी जितनी बेकल थी बेख़ुदी तेरी आँखों में तैर जाऊँ तो फिर सूनामी में क्या रखा है। कोहिनूर क्या है पत्थर है तू तो जीता जागता हुस्न है तेरे इश्क़ में डूब न जाऊँ तो सुहानी में क्या रखा है। तेरी निगाहों की जाज़बियत दिल में दवा सा असर करे तुझसे प्यार मैं क्यों न करूँ यूँ बेइमानी में क्या रखा है। सारे आईनों को जंग लग जाए आँखें धुँधली हो जाए तू न बन पाए हमसफ़र तो फिर ज़वानी में क्या रखा है। शब्दार्थ :– माज़ी :– अतीत ज़हनी नफ़सियाती :– दिमाग़ी मनोरोग मशरिक़ :– पूरब, पूर्व दिशा आरिज़ी :– व्यथित सु...
बर्फ़ाब
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बर्फ़ाब

मुकेश कुमार हरियाणा ******************** जो मिल गया सो मिल गया अब तो दिल में ख़्वाब सजा लीजिए ले के मुझे बाँहों में तुम यूँ आँखों में क़दह-ए-शराब बना लीजिए। कहते है जोड़े आसमान में बनते है हमने तो कभी सोचा नहीं ये बात है तो कच्चे डोर में बाँधके मुहब्बत के बाब आ चलिए। इश्क़ में जुर्म कर बैठे कोई बात नहीं इश्क़ की तामीर की जाए अब पीछे भी क्या हटना आप फ़र्द–ए–हिसाब सुना दीजिए। हाए! नाक पे गुस्सा फिर भी बड़े शौक़–हसीं लगते हो तुम तो हमने तो होंठों पे लिया नाम तुम्हारा चलो इताब बना लीजिए। ख़्यालों को ज़ेहन में रखते हैं छोटे से दिल में अरमान बड़े रखते है सुनो मीठे मीठे सवालों का मज़ा अपने ही हिसाब का लीजिए। हल्की हल्की बारिश की बूंदें मेरे गालों पे क्या पड़ने लगी कि जैसे फिज़ा साजिशें करनी लगी बहाके ले जाने को सैलाब बना दीजिए। आ बैठ मेरे सम्त काली नज़...
चलो इसमें पते की बात तो है
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चलो इसमें पते की बात तो है

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चलो इसमें पते की बात तो है। सफ़र में इक सहारा साथ तो है। ज़ुबाँ ये पूछती है इन लबों से, भला दिल में कहीं ईमान तो है। तबीयत है बड़ी नासाज़ लेक़िन, चलो इसमें ज़रा आराम तो है। हमारा है, हमेशा, ये जताकर, कि हमसे शख़्श वो नाराज़ तो है। बनाता है सभी जो काम अपने, किसी का सिर पे अपने हाथ तो है। कही वैसी, रही है सोच जैसी, हमारी शायरी बेबाक़ तो है। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी क...
ख़्वाब जो नींद में देखा होगा
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ख़्वाब जो नींद में देखा होगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** ख़्वाब जो नींद में देखा होगा। जागकर सोचने से क्या होगा। आपके जो क़रीब आया है, जान पहचान का रहा होगा। जान पाया है हाल महफ़िल का, शख़्श वो रात भर जगा होगा। साथ चलकर कहीं बिछुड़ना फिर, इस ज़माने का सिलसिला होगा। जो निभाया गया है मुश्क़िल से, सख़्त वो दिल का क़ायदा होगा। पास आएगा छोड़कर सबको, साथ में जिसके वास्ता होगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
आम को इमली बताने आ गए
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आम को इमली बताने आ गए

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** ज़लज़ला दिल में मचाने आ गए जाम आँखों से पिलाने आ गए आम को इमली बताने आ गए ह़क़ ग़रीबों का चुराने आ गए है नहीं ईमां बचा दिल में ज़रा झूठ के किस्से सुनाने आ गए बेच कर अपने वतन की आन को मूर्ख जनता को बनाने आ गए कब समंदर से बुझी है तिश्नगी लब के साग़र में डुबाने आ गए साग़र-जाम रह न पाए वे हमारे बिन तभी शाम को मिलने मिलाने आ गए क़त्ल करते हो स्वयं ऐ दिलरुबा ख़ून फिर मुझ पर लगाने आ गए माँ के आँचल में पला खुद ईश है हम वहीं सिर को झुकाने आ गए अम्न की बातें न जिनको हैं पसंद अब्र वे अंबर पे छाने आ गए क़ह्र कम होता न *रजनी* पे कभी नैन से नैना लड़ाने आ गए परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मति...
सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का
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सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** मिली जितनी कभी सोची नहीं थी। हमारी ख़्वाईशें इतनी नहीं थी। न कर पायी असर हमपर कभी वो, कही जिस बात में तल्ख़ी नहीं थी। सिला दे पाए जो रस्में वफ़ा का, रिवायत आपकी वैसी नहीं थी। फ़िक्र रखती तो जाकर लौट आती, हवा थी वो कोई कश्ती नहीं थी। मिली तो मिल गई जब उसने चाहा, ख़ुशी हालात से रूठी नहीं थी। किसी का नाम लेकर भूल जाना, ये आदत आपकी अच्छी नहीं थी। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भ...
चलें फिर लौटकर अपनें घरों को
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चलें फिर लौटकर अपनें घरों को

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** चलें फिर लौटकर अपनें घरों को। परिंदे कह रहे हैं अब परों को। तकाज़ा नींद का टूटा है जबसे, समेटा जा रहा है बिस्तरों को। रहें हैं साथ लेक़िन दूरियों पर, निभाया है सभी ने दायरों को। अग़र है इम्तिहाँ जैसा सफ़र तो, हटा दो रास्तों से रहबरों को। शिक़ायत वक़्त से कब तक रखेंगे, भुलाया है कि जिसने अवसरों को। निकाले काम के बदले चुकाकर, बिगाड़ा है सभी ने दफ़्तरों को। पते की बात भी दम तोड़ देगी, सुनाई जाएगी जब मसखरों को। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषण...
तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए
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तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए

आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अब तकल्लुफ का कोई एहसास तो दिखलाइए जो सुकूं दे दिल को वो अल्फ़ाज़ तो दिखलाइए बेटियों के पैर में बेड़ी है इन को खोल दो इन परिंदों को ज़रा आकाश तो दिखलाइए कट गई शब ख्वाब में ऊंची उड़ानें साथ थी अब सहर की खुशनुमा परवाज़ तो दिखलाइए मैंने तो दिल को मेरे अब कैद करके रख लिया आप अपना थोड़ा सा अंदाज़ तो दिखलाइए हम चलेंगे साथ जब तक है इशारा आपका क्या क़दम है आपका आगाज़ तो दिखलाइए तितलियों को इस तरह पकड़ो ना नाज़ुक हैं बड़ी साथ में इनके यही इकरार तो दिखलाइए देश की खातिर जो सीना तान करके हैं खड़े आपको है इन पे कितना नाज़ तो दिखलाइए परिचय :- आलोक रंजन त्रिपाठी "इंदौरवी" निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) शिक्षा : एमए (हिंदी साहित्य) लेखन : गीत, गजल, मुक्तक, कहानी, तुम मेरे गीतों में...
बदली आबो-हवा देख रहा हूं
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बदली आबो-हवा देख रहा हूं

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** शहर की बदली आबो-हवा देख रहा हूं, बीमारों की कतारें हाथों में दवा देख रहा हूं। मुर्दा खोर इंसानों से मिलना है तो देखिए ये बस्ती, कितने इंसानों को पूछते मैं रास्ता देख रहा हूं। खुशियों के आंसू गम के आंसू देख रहा हूं, कितने लबों पे अभी उसका चर्चा देख रहा हूं। इंसानों की लुटती दुनियां जंगली बस्ती देख रहा हूं, कदम-कदम पर पैसों को रुपए बनते देख रहा हूं। आनी जानी दुनिया में बैठा तमाशा देख रहा हूं, सोच में हूं हकीकत देख रहा हूं या सपना देख रहा हूं। बेरोजगारों की बस्ती में भुखे सियार कितने हैं, मिट्टी के इंसानों को "शाहरुख" खाते मुर्दा देख रहा हूं। परिचय :- शाहरुख मोईन निवासी : अररिया बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अप...
खुद को उड़ती चिड़िया कर ले
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खुद को उड़ती चिड़िया कर ले

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** टूट पड़ें बस ग्राहक इतनी मोहक पुड़िया धर ले। बेशक घटिया माल रहे पर पैकिंग बढ़िया कर ले।। हाथों हाथ बिकेंगीं तेरी चीज़ें बाजारों में, जीत भरोसा जनता का फिर काली हँड़िया भर ले।। पाँव और ये पंख सलामत दोनों रखने होंगे, उड़ना ही है तो फिर खुद को उड़ती चिड़िया कर ले।। भरी जवानी में बुढ़िया सी सूरत ठीक नहीं है, रंगत बदल और खुद को खुद कमसिन गुड़िया कर ले।। ये रनिवास महल की रौनक सब मिटने वाली है, अच्छा होगा भव्य भवन को छोटी मढ़िया कर ले।। प्राण किसी के नहीं बचे हैं लाखों ने की कोशिश, इसीलिए खुद को कागज सा उड़िया मुड़िया कर ले।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है...
हमेशा याद रहता वो
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हमेशा याद रहता वो

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** हमेशा याद रहता वो अग़र हर बार होता तो। कहानी में कहीं उतना असर क़िरदार होता तो। उठा लेता सभी के साथ उनमें हाथ वो अपना, हमारी बात रखने के लिए तैयार होता तो। लगा लेते गले उसको शिक़ायत भूलकर सारी, कि दिल का हाल जब लब पर खुला इज़हार होता तो। वहाँ उसकी ख़ता सारी समझकर माफ़ हो जाती, रिवायत में किसी ज़ज़्बात का इकरार होता तो। उसे दिखता, उसे मिलता, उसे ही चाहता अक्सर, कि उसकी वो कभी उतनी हसीं दरकार होता तो। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाण...
कहीं हमारी कहीं तुम्हारी
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कहीं हमारी कहीं तुम्हारी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** कहीं हमारी कहीं तुम्हारी, विरोधियों ने कमी बता दी। हक़ीक़तों का बयान आना, शुरू हुआ तो ज़ुबाँ दबा दी।। दलील देने लगा खलीफा, कि पंख तेरे नये नये हैं, भरी ज़रा सी उड़ान भर तो, ज़मीन पर ही हवा खिला दी।। भला बता दो किसे मिला है, सुकून दौरे जहाँ में आके, सदा सताता रहा जमाना, कभी घुटन तो कभी सजा दी।। हजार मुँह हैं हजार बातें, हजार दुखड़े खड़े दिखे हैं, जहाँ जहाँ भी गया वहाँ जो, मिला उसी ने कथा सुना दी।। कहा हटो सब खलास राशन, अमीर का तब गरूर टूटा, फक़ीर भूखा चला गया पर, सलामती की दिली दुआ दी।। न देह होगी न रूह होगी, न प्राण प्यारे कहीं मिलेंगे, कई पढ़ेंगे हमारी ग़ज़लें, मेरी गजल ही मुझे पढ़ा दी।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोष...
ज़िन्दगानी लिख गया
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ज़िन्दगानी लिख गया

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** एक खतरों से लबालब ज़िन्दगानी लिख गया। दूसरा भी कम न था कुछ सावधानी लिख गया।। बहुत कम शब्दों में समझाते मिलेंगे लोग अब, आज फिर कोई कहावत में कहानी लिख गया।। वह कभी कोई नशा करता न था फिर भी स्वयं, रोज रहती है नशे में यह जवानी लिख गया।। जो न बीवी को कभी अपना सका भर जिन्दगी, आज मरते वक़्त उसको रातरानी लिख गया।। झूठ को सच और सच को झूठ लिखता था न वह, किन्तु अपने मुहल्ले को राजधानी लिख गया।। जो कभी रुख़सार से बहकर गिरे तेरे लिए, अश्क़ के उन मोतियों को वक़्त पानी लिख गया।। प्राण हैं तो महफिलें भी जी उठेंगीं दोस्तो, फिर न कहना बात यह कितनी सुहानी लिख गया।। परिचय :- गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" निवासी : इन्दौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना...
कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने
ग़ज़ल

कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने या मुहब्बत बची हैं दरमियां अपने हर इक चेहरा नया, अभी प्यार हुआ कुछ नजाकत बची हैं दरमियां अपने वो मुहब्बत नहीं शायद नादानिया थी अपनी शरारत बची हैं दरमियां अपने चाँद तोड़ लाते थे मुहब्बत में लोग इक नदामत बची हैं दरमियां अपने कह न पाए आपस मे बारहा हम तुम यही शिकायत बची हैं दरमियां अपने जीना किसको हे ताअबद यहाँ पर एक कयामत बची हैं दरमियां अपने हम छुपा भी गए ख़ामोशियों को यही हकीकत बची हैं दरमियां अपने बारहा नज़र उठतो तेरी सूरत पर मेरो कोई चाहत बची हैं दरमियां अपने तेरा अतीत मेरी ज़िंदगी बन गई यारो यही इमारत बची हैं दरमियां अपने मेरे अलफ़्फ़ाज सुनाइ नहो देते मोहन यही मुसीबत बची हैं दरमियां अपने नजाकत-कोमलता नदामत-पश्चाताप ताअबद-अनंत काल तक...
अपनापन तो होली
ग़ज़ल

अपनापन तो होली

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** समझें अपनापन तो होली। रक्खें अच्छा मन तो होली। साथ हमारे आज अगर हो, सम्बन्धों का धन तो होली। आपस में रहने ,जीने का, सीखें सच्चा फ़न तो होली। साथ-साथ जो मन को भाये, भीगे ऐसा तन तो होली। खुल जाएँ गाँठे रिश्तों की, मिट जाएँ अनबन तो होली। ऊँच -नीच का भेद भुला कर, मिल जाये जन-जन तो होली। रंगों में हैं सच जीवन का, कर लें सब मंथन तो होली, परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अ...