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कहीं मन का, कहीं तन का …

नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार म.प्र.
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कहीं मन का, कहीं तन का, किसी से वास्ता जो भी।
रहे थोड़ा, ज़ियादा या किसी से फ़ासला जो भी।

किसी की याद लेकर ही चलें हैं साथ हम लेक़िन,
जताते हैं, निभाते हैं, किसी का क़ायदा जो भी।

तकाज़ा उम्र का होगा, रही होगी फ़िकर सबकी,
नहीं आई हमें नींदें, किया हो रतज़गा जो भी।

समझदारी इसी में थी कि पहले साध लें मन को,
बुरा कोई, भला कोई, मिले फिर सामना जो भी।

मिला अब तक हमें उतना नहीं उम्मीद थी जितनी,
कभी इतनी, कभी उतनी, रहे फिर इल्तिज़ा जो भी।

परिचय :- नवीन माथुर पंचोली
निवास : अमझेरा धार म.प्र.
सम्प्रति : शिक्षक
प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित।
सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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