Saturday, April 27राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

जीवन मूल्य

दायित्व
जीवन मूल्य

दायित्व

स्वाती जितेश राठी नई दिल्ली ******************** बस बहुत हुआ अब ओर नहीं ना एक शब्द ना एक और दायित्व कुछ नहीं। कुछ नहीं करेंगे अब मेरे माँ पापा किसी के लिए भी सिवाय नानी माँ के क्योंकि वो उनकी जिम्मेदारी है जो उन्होंने अपने पूरे मन से ली है और सच्चे मन से निभा भी रहे है। पर आप लोग उनकी जिम्मेदारी नहीं है फिर भी वो आप लोगों को निभाते आ रहे है पर बस अब ओर नहीं। देख मीनल तुझे बीच में पड़ने की कोई जरूरत नहीं। ये तेरी नानी मेरी भी माँ है मौसी हूँ मैं तेरी। इस घर पर मेरा भी बराबर का हक है। हक के लिए कौन मना कर रहा मौसी लेकिन दायित्वों का क्या वो भी तो बराबर है आपके और मेरी माँ के अपनी माँ यानि मेरी नानी के लिए। वो क्यों भूल जाते हो आप? खैर मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप केवल हक जताना जानते हो फर्ज निभाना नहीं। वो आपके और नानी जी के बीच की बात है लेकिन मेरे माँ-पापा को परेशान करने या उनकी बे...
मानसिक स्वास्थ्य को कैसे रखें दुरुस्त?
स्वास्थय

मानसिक स्वास्थ्य को कैसे रखें दुरुस्त?

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी वाराणसी, काशी ************************ विगत कई महीनों से हम सभी प्रायः घरों में ही कैद हैं अत्यंत आवश्यक होने पर ही घरों से बाहर निकल रहे हैं। आफिस का काम घर से ही 'वर्क फ्रॉम होम' कर रहे हैं। लोगों से मिलना-जुलना, चौराहे, चट्टी, हाट-बाजार में जाना न के बराबर हो गया है। सुख-दुःख बांटने का अवसर अब केवल संचार माध्यम से हो रहा है। जियनी-मरनी, शादी-विवाह में शामिल होना दूर की बात हो गयी है। मुहल्ले,कॉलोनी में कोई कोरोना पॉजिटिव हो गया तो 'हॉट स्पॉट'होते ही बांस-बल्ली से घिरकर घरों में रहने को अभिशप्त। ये सभी हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। वास्तव में जो 'सोशल दिस्टैंडिंग'की बात की जा रही है, वह लोगों से आपस में भौतिक दूरी बनाए रखने की अपील है ताकि एक दूसरे को संक्रमित होने से बचाया जा सके।लोग घरों में रहने के लिए बाध्य हैं। प्रतिदिन अट...
योग आसन…स्वास्थ्य साधन
कविता, योगा, स्वास्थय

योग आसन…स्वास्थ्य साधन

लेखक- अज्ञात ********************   सुन लो सुन लो काम की बात योगासन के बहुत हैं लाभ। तन मन रख्खे निर्विकार करें रोज सूर्य नमस्कार अंतर्मन मे हो अनुशासन जब करते हम पद्मासन भोजन का हो अच्छा पाचन करें नित्य हम वज्रासन करें फेफड़े अच्छा काम रोज करेंगे प्राणायाम ओज से मस्तक दमकाती बड़े काम की कपालभाति स्नायुओं मेरहे तरी जब हो गुंजित "भ्रामरी लंबाई का पाता धन नित्य करें जो ताड़ासन रीढ़ मे आए लचीलापन करलो भैय्या हल आसन सर्व अंग पुष्टि का साधन होता है सर्वांगासन जोड़ों का अच्छा संचालन करते जब हम गरुड़ासन उदर अंगो का हो नियमन जब हम करें मयूरासन याद दाश्त होती अनुपम जो नित करता शीर्षासन कमर लचीली का कारण बनता है त्रिकोणासन चौड़ी छाती का साधन रोज लगाओ दण्डासन मन का होता शुद्धि करण जब लगता है सिद्धासन हो थकान का पूर्ण शमन अंत मे कर लो शवासन और अंत मे रख लो याद यम नियमबिन बने...
आखरी पत्ता नहीं… बचा हुआ एक पत्ता यानि और पत्तों की उम्मीद…
गुण श्रेष्ठता, नैतिक शिक्षा, संस्कार

आखरी पत्ता नहीं… बचा हुआ एक पत्ता यानि और पत्तों की उम्मीद…

ज्योति जैन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** https://youtu.be/VRRxrIyGRX0                           यूं तो मैं आम दिनों में भी अपनी पसंद के सारे काम कर लेती हूँ पर फिलहाल लॉकडाऊन में चूंकि बाहर नहीं जाना होता, सो और अतिरिक्त कार्य भी हो जाते हैं, जिनमें बागवानी भी शामिल है। इन दिनों माली भैया नहीं आ रहे सो पुराने सीज़नल पौधों के सूखते चले गमलों में नये रोपे लगाने बैठी थी। मुझे ध्यान आया कि पिछले दिनों चौकोर गमला माली ने एक ओर रख दिया था, ये कहकर कि उसकी वॉटर लिली सूखकर खत्म हो चुकी है। वो मेरा पसंदीदा पौधा है। वॉटर लिली ज़रा से में फैलकर अपने छोटे-छोटे गोल पत्तों से गमले की सुन्दरता और बढ़ा देती है। मैंने सबसे पहले वही गमला हाथ में लिया। वॉटर लिली सूख चुकी थी। पर ये क्या...! एक बिल्कुल नन्ही सी, गोल पत्ती उस सूखी मिट्टी से झांक रही थी। मैंने फौरन उसमें पानी डाला। पिछले दस द...
काजोल
जीवन मूल्य

काजोल

अनुपमा ठाकुर सेलू (महाराष्ट्र) ******************** एक दिन संध्या समय जब मैं और मेरी बेटियाँ पाठशाला से लौटी तो देखा घर के आँगन में दरवाजे के पास एक बिल्ली विश्राम कर रही थी। उसे देखते ही मेरी छोटी बेटी खुशी के मारे उछल पड़ी। गेट खोलने पर वह हमसे डरकर पीछे-पीछे सरकने लगी। मेरी बेटी उसे हाथ लगाने का प्रयास करती पर वह डरकर पीछे सरकती। उतने में मेरी बड़ी बेटी तुरंत भीतर से दूध ले आई और उसके सामने रख दिया। दूध को देखते ही वह म्याऊं-म्याऊं करते हुए समीप आकर दूध पीने लगी। उसका डर अब पूरी तरह से समाप्त हो चुका था। वह अब खुशी-खुशी मेरी बेटियों को हाथ लगाने दे रही थी। रात होने तक वह वहीं बैठे रही, किसी काम से मैं बाहर आती तो वह मेरी ओर मुँह किए माँऊ-माँऊ कर चिल्लाती और अपने शरीर को मेरे पैरों से रगड़ने लगती। अब यह उसका नित्य का क्रम बन चुका था। रात में पता नहीं वह कहां निवास करती परंतु जैसे ...
नैतिक बल
कविता, नैतिक शिक्षा, संस्कार

नैतिक बल

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** शारिरिक बल, बुद्धिबल, से बलशाली नीति, नैतिक बल के सामने, टिकती नहीं अनिती। व्यक्ति जाति या राष्ट्र हो, होता उसका नाश, जो अनिती पथ पकड़ता, है साक्षी इतिहास। नैतिक बल से आत्म बल है संवद्ध घनिष्ठ, टका एक दो पृष्ठ है, किसे कहें मुख पृष्ठ। है यदि सच्ची नीति तो, वहीं धर्म आधार, ठहर न सकता धर्म है, जहां न नीति विचार। सब धर्मों को देख कर, गोर करें यदि आप, तो पायेंगे नीति का, सब मे अधिक मिलाप। अचल नियम है नीति के, अचल न चक्र विचार, मत विचार है बदलते, नीति धर्म आधार। निर्भर करता नियत पर, नीति अनिती कलाप, शुद्ध हर्द्रय सदभावना, मूल्यांकन का माप। . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्...
समस्या एक जीवन की कड़ी है
संस्कार

समस्या एक जीवन की कड़ी है

*********** रचयिता : राजेश कडोले समस्या एक जीवन की कड़ी है, और समाधान भी जीवन की एक कड़ी है अगर समस्या ना आए, तो समाधान कहां से लाओगे और अगर समाधान मिल जाए मतलब वहां समस्या का समावेश है इसी तरह सुख और दु:ख भी जीवन की एक कड़ी है सुख के बिना दु:ख नहीं मिलता और दु:ख के बिना सुख नहीं मिलता तो यह जीवन की कड़ियां हैं कभी जीवन समस्या पर है तो कभी समाधान पर कभी सुख पर है तो कभी दु:ख पर जीवन में कभी निराश नहीं होना चाहिए लेखक परिचय :-  राजेश कडोले उपनाम :- कविराज जन्मतिथि :- २६/०६/१९९८ भाषा ज्ञान :- हिंदी, अंग्रेजी शिक्षा :- इंजीनियरिंग  ट्रेड  (आईटीआई),बीएससी, जर्नलिज्म (बीजेएमसी) चलायमान कार्यक्षेत्र :- कोचिंग संस्था संचालक शिक्षक जीव विज्ञान रुचि :- मंच संचालन करना सामाजिक गतिविधि :- मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विद्या :- लेख कविता मोटिवेशन शायरी लेखनी का उद्देश्य :-  सामाजिक समस...
संयुक्त परिवार
मेरे विचार, संस्कार, संस्मरण, स्मृति

संयुक्त परिवार

=============================== रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" पांच भाई एक पुश्तैनी मकान में साथ रहते थे। जिसका पुनर्निर्माण १८००/ ठेके पर ठेकेदार ने किया था। एक बरामद, एक हाल, एक छोटा कमरा, एक दादी का कमरा, किचन, पानी की टँकी, एक शौचालय, एक बाथरूम, खुला बाड़ा, दक्षिण मुखी मकान के पूर्व में गलियारा था, ऊपर मंजिल कमरा एक था बस। पर पेड़-पौधे जगह अभाव में नही लग पाये। इसके पहले जो पुराना घर जब था उसमें बरामदा, बड़ा हाल,खोली और बाड़ा, एक टॉयलेट। बाड़े में शहतूत, कडिंग (विलायती इमली) और मीठी बोर का झाड़ यानी पेड़ पौधे लगे हुए थे। चार भाइयों की शादी हो गई थी, परिवार में माता-पिता, ४ जोड़े, दादी व एक छोटा पांचवे नम्बर का भाई, कुल जमा १२ सदस्यों का संयुक्त परिवार। संघर्षरत परिवार के पास एक सायकल के अलावा कोई वाहन नही। मांगलिक आयोजनों में बस से आना-जाना। एक रात रुकना ही, क्योंकि वाहन सुविधा नामम...
चयन
संस्कार

चयन

चयन =================================================== रचयिता : कुमुद दुबे कालोनी का सांस्कृतिक कार्यक्रम था। बच्चों के लिये गीत वाद-विवाद आदि विभिन्न प्रकार की प्रतियोगितायें आयोजित की गई थी। उत्साह-वर्धन के लिये पुरुस्कार भी रखे गये थे। वाद-विवाद प्रतियोगिता के लिये निर्णायक मंडल में तीन गणमान्य नागरिक आमंत्रित किये गये! जिनमें एक रिटायर स्कूल प्रिंसिपल अनुराग शर्मा जी को भी आमंत्रित किया गया। अनुराग जी  ईमानदारी के लिये मशहूर थे। समिति के अध्यक्ष द्वारा तीनों जजों को ससम्मान मंच पर आमंत्रित किया गया। माँ सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्वलित कराया गया। समिति के सदस्यों द्वारा हारफूल से स्वागत करते हुए तीनों जजों का परिचय दर्शकों से कराया गया। उन्हें बकायदा मंच के समक्ष प्रथम पंक्ति में बैठाया गया।    कार्यक्रम के प्रारंभ होते ही समिति के सचिव द्वारा तीनों जजों को एक-एक पर्ची ...
आज का सच
संस्कार

आज का सच

बाल साहित्य : आज का सच रचयिता : वन्दना पुणतांबेकर ============================================ आधुनिकता की दौड़ में भाग रहाआज का बचपन मॉल, गेमज़ोन से प्रभावित आज के बच्चे उन्हें नैतिक मूल्यों की कोई बात समझ नहीं आती। दस साल का कार्तिक भी हर रविवार को पापा के साथ बाहर घूमने जंक फूड खाने कि जीत करता। बेचारा इकलौता है,  तो हर संडे उसका प्रॉमिस मम्मी-पापा खुशी-खुशी करते। गर्मी की छुट्टियों में दादा जी जब घर आए तो उन्होंने देखा की कार्तिक थोड़ा होमवर्क करने के बाद सारा टाइम मोबाइल पर गेम खेलता रहता। मम्मी- पापा ऑफिस चले जाते। दादा जी से थोड़ी बहुत बातचीत की फिर वह मोबाइल में लग जाता। शाम को जब कार्तिक की मम्मी आई तो दादा जी ने पूछ लिया, 'बेटी क्या कार्तिक बाहर खेलने नहीं जाता, सारा समय घर पर ही कम्प्यूटर पर गेम खेलता रहता है। कार्तिक की माँ ने जवाब दिया, "बाहर शाम तक धूप भी तेज होती है। और य...