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लघुकथा

गजब मिठाते अऊ गजब सुहाते
आंचलिक बोली, लघुकथा

गजब मिठाते अऊ गजब सुहाते

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** एक दिन के बात आय समारू घर म कोनो नई राहय घर के जम्मो लईका सियान हर अपन ममा घर घुमे बर चल देते। फेर क घर ह पुरा सुन्ना होगे समारु जईसे तईसे दिन भर बिताए के बाद म संझा के बेरा होगे, तब समारू हर नंग्गत के अघाए भुखाय घलो रथे कबार कि बहिनिया कुन बोरे बासी भर ल खाय रथे। समारु लकर धकर हाडी कुरिया म जईसे मुच्चा ल उठआईस त पाते कि कुरवी म एको कन अन्न के दाना नई राहय। ये सब ल देख समारु भुख पियास म तरमिर-तरमिर करे लागिस फेर क करय गघरा म पानी भराय राहय समारू गघरा ले लोटा भर पानी निकाल सांस भर के पीये लागिस, अईसे-तईसे करके समारू कुछ समय बिता डरिस। फेर वोहर रोज अन्न के दाना खाय बिना वोला नींद घलो नई आवय समारू हाडी कुरिया म जेवन बनाय बर भीड़ जथे जइसे आगी सपचाय बर छेना लकड़ी ल देखते त सबे हर सिरा गे रईथे। ये सब ल देखत समारू के मति फेर छरिया ज...
कमाल की दवाई
लघुकथा

कमाल की दवाई

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "कमरे से बाहर जाओ ... !!" सुहानी ने बच्चों को डांटते हुए कहा। "नहीं हम बाहर नहीं जायेंगे। हम होस्टल से घर हमारी दादी से मिलने आये हैं। पूरा समय उनके साथ रहेंगे। सुहानी नर्स थी। परेशान हो गई। बच्चों को डांटने लगी। आवाज सुनते ही दादी ने आंखें खोली। और सुहानी को कहा, बच्चे मेरी ताकत है। तुम्हें मेरी देखभाल के लिए नियुक्त किया है। इन्हें डांटने के लिए नहीं। दादी मैं तो आपकी भलाई के लिए कह रही हूं, रूआंसी हुई सुहानी कमरे को संवारने लगी, कनखियों से दादी को देखते हुए आश्चर्य चकित थी। अस्पताल से डाक्टर ने यूं कहकर घर भेज दिया था कि ये कुछ दिनों की मेहमान है। उसने सुना बच्चे कह रहे थे, दादी, मम्मी पापा तो आफिस गये हैं आप ही हमें आपने हाथ से खिला दो ना। दादी का चेहरा चमक रहा था। सुहानी को आवाज लगाई। मुझे रसोई में ले चल। बच्चों को मैं अपने ह...
जर्जर घर
लघुकथा

जर्जर घर

स्वाती जितेश राठी नई दिल्ली ******************** कभी-कभी कहानियां इंसान नहीं सुनाते। टूटे, उजड़े घर जो कभी शोरगुल से भरे थे भी कहानियां सुनाते हैं। जहां कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थी, जहां कभी पायल की झंकार सुनाई पड़ती थी ..... आज वो घर अकेला, जर्जर खड़ा है। अपने मायके के घर के बाहर आँगन में खड़ी वान्या यही सोच रही थी कि एक समय था जब यहाँ उसकी और भाई की हँसी, मस्ती और लड़ाईयाँ गूँजा करती थी। पापा और मम्मी का लाड़, दुलार, नसीहतें, प्यार भरी डाँट बरसती थी। हर त्यौहार पर घर सजता था। पकवान बनते थे। गीत, संगीत ,खुशियाँ होती थी। दोस्तों की टोली की शैतानियों, पड़ोस की आँटीयों की बातों से गुलजार इस घर की शामें होती थी । फिर पापा के ऑफिस से आने के बाद दिन भर के किस्सों की महफिल सजती थी। माँ के हाथ के गरम खाने के स्वाद और पापा की सीख भरी कहानियों के साथ निंदिया की नगरी की सैर की जाती थी ...
नाक रगड़ना
लघुकथा

नाक रगड़ना

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अबे साले, आज भी तूने स्कूल के सामने खड़े होकर लड़कियों को छेड़ा। तुझे शर्म आनी चाहिए। कुछ उम्र का तो लिहाज रखता, कहते हवलदार ने आव देखा न ताव, हाथ का डंडा पीठ पर दे मारा। वह हे राम ! कहते, लड़खड़ाते नीचे गिर पड़ा। अब राम याद आ रहा है। घूरकर देखते समय आंखें निकाल लेता, मारने के लिए हवलदार के हाथ का डंडा ऊपर ही रह गया। सोहन ने हाथ पकड़ कर कहा, देखो हवलदार साब आप सही नहीं है, जानकारी पूरी लेकर हाथ चलाना चाहिए। सोहन गुरुकुल का समझदार लड़का था। प्यारेलाल फटेहाल प्रौढ़ था। वह अक्सर स्कूल से घर जाती बालिकाओं पर नजर इसलिए रखता था कि, कहीं मनचले लड़के तंग न करें। चल जा, "बड़ा आया अपनी ताक़त दिखाने वाला। तुम्हें क्या मालूम ये आदमी कैसा है।" सोहन को झटककर बाजू में कर दिया। प्यारेलाल ने हवलदार के सामने ख़ूब नाक रगड़ी, लेकिन उसने उसे छोड़ा नही...
परख
लघुकथा

परख

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** "क्या हुआ दीपू बेटा? तुम तैयार नहीं हुई? आज तो तुम्हें विवेक से मिलने जाना है।" दीपिका को उदास देखकर उसके दादा जी ने उससे पूछा। "तैयार ही हो रही हूँ दादू।" दीपिका ने बुझे मन से कहा। "पर तुम इतनी उदास क्यों हो?" "पापा ने मुझे कहा है कि आज ही विवेक से मिलकर शादी के लिए कन्फर्म कर दूं।" "तो इसमें प्रॉब्लम क्या है बेटा?" "आप ही बताओ दादू! एक बार किसी से मिलकर उसे शादी के लिए कैसे फाइनल कर सकते हैं ?" "तो एक-दो बार और मिल लेना। मैं तुम्हारे पापा से बात कर लूंगा।" "पर दादू एक-दो बार में तो हर कोई अच्छा ही बनता है।" दीपिका ने मुँह बनाते हुए कहा। "अच्छा ये सब छोड़, मुझे कुछ खाने का मन कर रह है तो पहले ऐसा कर मेरे लिए पका फल ले आ।" दीपू गई और किचेन से एक पीला-पीला मुलायम अमरूद ले आई, "ये लीजिए दादू आपका फल।" "दीपू बेटा एक बात बता, क...
तालियाँ
लघुकथा

तालियाँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रादेशिक नृत्य प्रतियोगिता के लिए नाम दर्ज हुआ था "मृणाल रेगे"। एक नाज़ुक सा साया मंच पर आया। मंच पर रोशनी होले-होले पसरने लगी। इस स्वप्न सुंदरी के आने से मंच और भी प्रकाशित हो गया। नाज़ुक सी नार-नवेली छा गई। गुलाबी चूनर से ढका मुखड़ा व रंगबिरंगी घेरदार कलियों वाला घाघरा। बगैर कुछ बोले उसने हाथ जोड़े और लगी नाचने...मैं ससुराल चली जाऊँगी...। दर्शक मंत्रमुग्ध हो निहारने लगे। शायद तालियाँ बजाना ही भूल गए। निर्णायकगण खड़े हो गए। अंत में घूमर का जलवा दिखाया। ज्यों ही घूँघट हटाया और नमस्कार बोला, अचंभित हो सब देखने लगे। एक निर्णायक से रहा नहीं गया, पूछ बैठे, " आप लड़के... हो। " सिहरती-सहमती मर्दानी आवाज़ सुनाई दी, "जी, मैं मृणाल, न लड़का और न लड़की।" हॉल में सन्नाटा, कहीं से सिसकियाँ भी सुनाई दी। जजों ने ख़ूब सराहा, "एक बार सब मृणाल के लिए जो...
श्रम साधना
लघुकथा

श्रम साधना

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** चिमनी की टिमटिमाती रोशनी में रामू चटनी के साथ बाजरे की रोटी का कोर मुंह में चबाते हुए पत्नी से शिकायत भरे लहजे में कहा - 'यह लगातार तीसरा महिना है, जिसमें हमारी बनाई ईंटों में ठेकेदार ने कमी निकालकर पैसे काट लिए' गौरी मेरे समझ में नहीं आता, हमारे बाद आकर भट्टे पर लगी भंवरी की ईंटें हमारी बनाई ईंटों से अच्छी कैसे हो सकती है। गौरी चूल्हे पर रोटी सेंकतीं हुई अपने पति की बातें बड़े इत्मीनान से सुन रही थी। वो फिर खीझ और झुंझलाहट से बोला, तुझे रोज कहता हूं गारा (गीली मिट्टी) अच्छी तरह मिलाया कर लेकिन तू मेरी सुनतीं कहां है, अब देख सारा पैसा कट गया, बैंक की किस्त फिर बाकी रहेगी, बैंक का ब्याज दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। रामू फिर बोला 'ठेकेदार भंवरी की ईंटों का पूरा भुगतान किया है, वो कह रहा था 'भंवरी गारा अच्छी तरह मिलाती ह...
लोकतंत्र का पर्व
लघुकथा

लोकतंत्र का पर्व

माधवी तारे लंदन ******************** “ये लोकतंत्र का पर्व है सामने काल खड़ा है तू वोट कर, तू वोट कर” आशुतोष राणा जी की प्रभावी वाणी में ये कविता सुनते-सुनते मुझे १९९८ में लोकसभा मतदान का दिन याद आ गया। सड़कों पर समूहों में चर्चा करते हुए लोग, बूथ पर जाकर मतदान कर रहे थे। तो कई लोग इसे छुट्टी का दिन समझ कर घूमने भी चले गए थे। सुहासिनी के घर के सभी लोग मतदान कर आए थे। उसके पति कैंसर जैसी बीमारी से जूझ रहे थे और कमजोरी और दर्द से कराहते हुए बिस्तर पर लेटे थे। वह उनके जागने से पहले ही मतदान कर आई थी। कुछ समय के बाद सुहासिनी ने उनकी आवाज सुनी – “अरे मेरा सफारी सूट तो लाओ जरा मैं मतदान के लिये जाने का सोच रहा हूं कहीं मेरे एक मत का अभाव पार्टी पर भारी न पड़ जाए।” उसने कहा – “आप कैसे जा सकते हैं, ज़रा खुद की स्थिति तो देखिये” पर आत्मविश्वास से वे बोले- “मेरी जाने की इच्छा है” “दो तीन म...
मानवीयता
लघुकथा

मानवीयता

माधवी तारे लंदन ******************** कई साल से विदेश में मरीजों की सेवा करने वाले प्रख्यात चिकित्सक अपने अस्पताल की ड्यूटी खत्म होने के बाद अपनी क्लिनिक में आकर बैठे। वहाँ भी मरीजों की कतार लगी थी। एक-एक मरीज लाइन से आकर अपने समस्या बताकर दवाई की पर्ची ले जा रहा था। अभी लाइन खत्म ही नहीं हुई थी कि एक वृद्ध महिला के चीखने चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। उसके पैर में गहरा जख्म था, वेदना असह्य हो रही थी। वह बहुत ज़ोर-ज़ोर से चिल्ला रही थी उसके साथ उसकी बेटी थी, चिल्लाने की आवाज सुनकर डॉक्टर अपनी सीट छोड़कर बाहर आए और पूछा – “क्या हुआ बेटा” ? परिस्थिति की गंभीरता देखकर डॉक्टर ने लोगों से उस महिला को टेबल पर लिटाने को कहा, बाकी मरीजों को छोड़कर डॉक्टर उस महिला के जख्म का इलाज करने लगे। फिर डॉक्टर दूसरे मरीजों को देखने चले गए और उस महिला को और क्लिनिक के पलंग पर लेटे रहने दिया, महिला की स्थिति को देख...
ऑनलाइन
लघुकथा

ऑनलाइन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "मित्र सुदेश! यह लॉकडाउन तो गज़ब का रहा? क्या अब फिर से लॉकडाउन नहीं लगेगा।" सरकारी स्कूल के टीचर आनंद ने अपने मित्र से कहा। "क्या मतलब? "सुदेश ने उत्सुकता दिखाई। "वह यह सुदेश ! कि पहले तो कई दिन स्कूल बंद रहे तो पढ़ाने से मुक्ति रही, और फिर बाद में मोबाइल से ऑनलाइन पढ़ाने का आदेश मिला, तो बस खानापूर्ति ही कर देता रहा। न सब बच्चों के घर मोबाइल है, न ही डाटा रहता था, तो कभी मैं इंटरनेट चालू न होने का बहाना कर देता रहा। बहुत मज़े रहे भाई ! "आनंद ने बड़ी बेशर्मी से कहा। "पर इससे तो बच्चों की पढ़ाई का बहुत नुक़सान हुआ।" सुदेश ने कमेंट किया। "अरे छोड़ो यार! फालतू बात। फिर से लॉकडाउन लग जाए तो मज़ा आ जाए।" आनंद ने निर्लज्जता दोहराई। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश) शिक्ष...
भाग्य
लघुकथा

भाग्य

मनोरमा जोशी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** निशा का जन्म होते ही खुशी की ठिकाना नहीं रहा बरसो बात अजय के आंगन मे किलकारी गूँजी आँखो का तारा दुलारी आयी। दुर्भाग्य वश चार दिनों के बाद अचानक माँ का दुखद निधन हो गया खुशी मातम मे छा गयी अब क्या होगा? गंभीर समस्या थी यह देख बहन ने कहा इसकी परवरिश मे करुगी उनके कोई बेटी नहीं थी दो बेटे थे वह खुशी-खुशी बच्ची को ले गये सोचा घर की घर में रहेगी और मुझे भी बेटी का सुख और साथ में पुण्य मिलेगा घर में रौनक होगी अपने ही भाई की संतान है आँखों पे रखूंगी मेरे दो नहीं तीन आंखों के तारे होगे। यह देख पिता की आंखों में थोडा साहस मिला बेटी को सौंपते हुऐ चल दिये विधाता को यहीं मंजूर था मासूम टिमटिमाते तारे को निहारते हुऐ बेसुध हो गये। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी ज...
कटु वाणी
लघुकथा

कटु वाणी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "क्या हुआ?" "लक्ष्मी आई है।" "खाक लक्ष्मी आई है।तीसरी बार भी लड़की ही।" और, सासू मां ने अनीता को वहीं अस्पताल में ही कोसना शुरु कर दिया। शोर शराबा सुनकर अनीता का ऑपरेशन करके उसके बच्चे की डिलीवरी कराने वाली डॉक्टर बाहर आई और सासू माँ पर गुर्राते हुए बोली- "माँ जी! क्या आप नहीं जानतीं, कि बच्चे को पहले नौ माह पेट में रखना, फिर जन्म देना, वह भी ऑपरेशन से, कितना कठिन होता है? आपने पोते की चाहत में अपनी बहू को तीसरी बार ख़तरे में डाल दिया। आज का ऑपरेशन तो बहुत ही जटिल था, और बड़ी मुश्किल से अनीता की जान बची है। वैसे तो हर बार ही बच्चे को जन्म देना माँ के लिए पुनर्जन्म होता है, पर आप यह समझिए कि आज तो आपकी बहू मौत के दरवाजे से ही वापस लौटी है। और-आप संतोष का अनुभव करने की जगह उसे कोस रही हैं। लानत है आप पर। इतने विषैले ब...
वो लड़की
लघुकथा

वो लड़की

अर्चना लवानिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** थोड़ा ध्यान पढ़ाई पर भी दिया करो हर थोड़ी देर मैं कक्षा के बाहर जाने का बहाना बनाती रहती हो। पढ़ना लिखना कब सीखोगी? कभी-कभी गुस्से में और ना जाने क्या-क्या कह जाती। शायद उसे पढ़ाई में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं थी इसलिए वह कभी मेरी स्नेह पात्र नहीं रही। पर उसे तो जैसे मेरी किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था। उस दिन मुझे सुबह से ही सिर दर्द और बुखार सा महसूस हो रहा था कक्षा में भी अनमने ढंग से कुछ पढ़ाई कराई फिर ज्यादा तबीयत खराब होने लगी तो सर टेबल पर टिका दिया। बच्चे चिंतित होने लगे क्या हुआ मैम ..क्या हुआ.....? कर-कर के फिर अपनी बात और अपने काम में लग गए। भोजन अवकाश में मैं अपने ऑफिस में आकर बैठ गई तो फिर वही लड़की आई मैंने थोड़ा चिढ़कर कहा अब क्या है? खाना खा लो और हम लोगों को भी यहां चैन से बैठने दो। उसने थोड़ा सकुचा...
तेरी-मेरी कहानी
लघुकथा

तेरी-मेरी कहानी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** "हैप्पी वेलेन्टाइन डे, माय डियर, एंड आय लव यू।" कहते हुए सुनील ने एक लाल गुलाब अपनी पत्नी रत्ना के हाथ में दे दिया। "आय लव यू टू, माय लाइफ।" कहते हुए रत्ना ने अपनी खुशी व्यक्त की। इस पर दोनों ठीक चार दशक पहले की कॉलेज की यादों में खो गए। "सुनील जी! क्या आपके पास यूरोपियन हिस्ट्री की बुक है?" "हां! जी है।" "मुझे कुछ दिन को देंगे, क्या....?" "जी अवश्य..." और सुनील ने यूरोपियन हिस्ट्री की किताब एमए प्रीवियस की उसकी क्लास में आई नवप्रवेशित सुंदर, आकर्षक और शालीन लड़की रत्ना को दे दी। फिर रत्ना ने नोट्स बनाने में सुनील की मदद की। सहपाठी तो वे थे ही, आपस में दोनों का मेलजोल बढ़ता गया। कक्षा में दोनों ही सबसे होशियार थे, इसलिए दोनों के बीच स्पर्धा भी थी, पर पूरी तरह स्वस्थ। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के दिल में समाते ग...
विदिशा का जन्मदिन
लघुकथा

विदिशा का जन्मदिन

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** विदिशा आज बहुत खुश थी। उसका चौथा जन्मदिन जो था। शाम को उसके दोस्त घर पर आने वाले थे। मां आकांक्षा ने मटर पनीर, पराठे, पकौड़े और खीर की तैयारी कर ली थी। वह अपनी ही दुनिया में मस्त थी। तभी उसके पापा आशीष ने आवाज़ लगाई, बिटिया रानी नहा-धोकर तैयार हो जाओ। पहले मंदिर फिर बाजार चलेंगे। विदिशा ने शीघ्र ही तैयार होकर हर वर्ष की तरह दादा-दादी के पांव छुए। फिर खुशी से उछलते हुए पापा-मम्मी के साथ चली गई। खरीदारी हो जाने के बाद वे केक और चॉकलेट की दुकान पर पहुंचे। विदिशा की पसंदीदा चॉकलेट की तरफ इशारा करते हुए आशीष ने दुकानदार से उसे पैक करने के लिए कहा पर, नहीं अंकल, उसे नहीं पैक करना सुनकर आकांक्षा चौंक गई और विदिशा से कहा, पर बेटा वह तुम्हारी फेवरिट चॉकलेट है पिछली बार भी तुमने अपने दोस्तों को वही चॉकलेट दी थी। पर इस बार नहीं ...
कर्तव्यबोध
लघुकथा

कर्तव्यबोध

माधवी तारे लंदन ******************** दरवाजे की बेल बजी– “आंटीजी दरवाजा खोलो मैं आई हूं” ये कामवाली की आवाज थी. द्वार खोलते ही मैंने उससे कहा – “अरे... तुम्हारे पति शांत हो गए हैं न ... तुमने अपनी जगह दूसरी बाई दी थी। वो दो दिन से अच्छी तरह से काम कर रही है फिर तुम आज कैसे?” “आंटीजी माफ करना, काहे का पति, और काहे का बच्चे का पिता... आज २५ साल पहले बिना कहे वो मुझे और मेरे चार साढे चार साल के बेटे को बेसहारा छोड़ कर गया था... हमें नहीं मालूम, तब से आज तक उसने ये तक न पूछा कि हम जिंदा हैं कि मर गए... अपने कर्तव्य से मुंह फेर कर गुलछर्रे उड़ा रहा था... पर कर्म ने किसे छोड़ा है क्या ! २५-२७ साल तक न उन्हें हमारी याद आई न अपने परिवार की.... पर अबकी बार बीमार हो कर अपनी बहन के घर आ गया।” ननंद जी को मैंने कहा कि “आपने मुझे क्यों बताई ये बात... जबसे गया तभी से मैंने बेटा बड़ा किया, उसकी प...
सुरक्षा कवच
लघुकथा

सुरक्षा कवच

सीमा रंगा "इन्द्रा" जींद (हरियाणा) ******************** अरे ! अरे ! मैं तुझे कुछ नहीं कहूंगी। बाहर आओ ! बाहर आओ ! देखो मेरे बच्चे भी खेल रहे हैं। हम सब मिलकर खेलेंगे । बहुत मज़ा आ रहा है।आ जाओ तुम भी। नहीं-नहीं चिंटू मत जाना मम्मा ने मना किया है कि बिल से बाहर जाते ही खतरा ही खतरा है, और यह बिल्ली तुझे खा जाएगी चिंटू। बहन ने उसे समझाते हुए कहा पर यह तो खेलने के लिए बुला रही है। तभी तो मैं कह रही हूं बाहर नहीं जाना नहीं तो मैं मां को बताऊगीं। लेकिन चिंटू बार-बार बाहर जाने की जिद कर रहा था। इतनी देर में ही चूहिया बाहर से आ जाती है। जिनको आते ही बच्चे सारी बातें बता देते हैं। कैसे बिल्ली हमें बाहर बुला रही थी। चूहिया ने तीनों को समझाते हुए कहा, यह बिल ही तुम्हारा सुरक्षा कवच है। जैसे ही बिल से बाहर निकले जिंदा नहीं बचोगे। इसलिए जब भी मैं खाना लेने बाहर जाऊं तुम अंदर ही रह...
इस संक्रांति
लघुकथा

इस संक्रांति

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सात वर्ष गुज़र गए बेटे पलाश को लंदन गए। वहाँ ब्याह भी कर लिया। पार्थ व जुही भी आ गए। गनीमत की बीबी मायरा भारत से ही थी। शेखर आवाज़ लगाते हैं, "अरे शारदा ! कब तक तिल गुड़ के लड्डू बना-बना कर बेटे बहू को भेजती रहोगी। क्या पता वो लोग खाते भी हैं या नहीं?" शारदा सजल हो बुदबुदाती है, "क्या करूँ? मन मानता ही नहीं। लेकिन इस बार बच्चे कहेंगे तभी भेजूँगी।" उधर पार्थ व जुही बड़ी बेसब्री से दादी के तिल गुड़ के लड्डू का इंतजार करते हैं, "पापा ! दादी कहीं बीमार तो नहीं हो गई।" शेखर सोचने को मजबूर हो जाता है। ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के लिए माँ पापा कितने पीछे छूट गए। वह ख़ुद अपने बच्चों के बगैर एक दिन भी नहीं रह सकता है। फ़िर बेचारे माँ पापा... कैसे रह रहे होंगे अकेले ? तभी पार्थ, दादी की चिट्ठी लाता है। पूरे पन्ने पर पड़े आँसुओं के दाग माँ का दर्द ब...
रक्तदान
लघुकथा

रक्तदान

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ******************** कॉलेज के कैंपस में रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया था। उसमें श्रेयस ने भी अपनी स्वेच्छा से रक्तदान किया। उसके दस साल बाद एक सड़क दुर्घटना में श्रेयस का अ‍ॅक्सीडेंट हो गया। गहरी चोट लगने से बहुत रक्त स्त्राव हो गया था। उसे अस्पताल में भर्ती किया गया। उसकी हालत देखकर 'उसे रक्त देना पड़ेगा। जल्दी से रक्त का प्रबंध करो।' ऐसा डॉक्टर ने कहा। रक्त देने के लिए माता-पिता और कई रिश्तेदार तैयार हो गए पर श्रेयस की दीदी ने उसका रक्तदान का प्रमाणपत्र रक्तपेढ़ी में दिखाया और जल्द ही रक्त का प्रबंध हो गया। दूसरे दिन श्रेयस जब होश में आया तब उसकी दीदी ने कहा- "भैया, तेरे रक्तदान ने आज तुझे ही जीवन दान मिला है।" हास्य करते हुए श्रेयस ने कहा- "मुझे कहां मालूम था कि, आगे चलकर मुझे ही जीवनदान मिलने वाला है। पर, आज मैं यह स...
मृत्यु की रात
लघुकथा

मृत्यु की रात

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** घर में निर्मला की मम्मी उसका भाई राजू छोटी बहन पिंकी घर में थे। पिता भोपाल से बाहर अपनी छोटी बहन की सगाई करने गए थे। तभी दो और तीन दिसंबर की रात १९८४ को मृत्यु की रात बन कर आई। निर्मला की मकान मालिक ने दरवाजा खटखटाया बोली धुआं-धुआं फैला है और आंखों में जलन हो रही है। जैसे ही दरवाजा खोला तो बाहर भीड़ दौड़े जा रही जान बचाने। निर्मला का भाई भी मोहल्ले वालों के साथ जान बचाने कहां गया पता ही नहीं। निर्मला की मां बहन छोटी अपनी सहेली के घर पहुंचे सहेली से बोली- "चलो हम भी कहीं चलते हैं।" सहेली के पति भी बाहर गए हुए थे। उनके तीन बच्चे थे। वह बोली- "हम कहीं नहीं जाते"। हम तो यही घर में रहते हैं। जिसको भी उल्टी आ रही है। उल्टी घर में ही कर लो, लेकिन घर में ही रहेंगे, तो कम से कम घर वालों को अपनी लाश मरने के ब...
सायरा का दायरा
लघुकथा

सायरा का दायरा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मैं मंगोड़ी की थाल लिए जीना चढ़ने ही वाली थी कि पीछे से सायरा बानो बोली, "लाओ आंटी मैं रख दूँगी धूप में, ऊपर ही जा रही हूँ।" यह उसका रोज का धंधा है। आते-जाते भाभी, दीदी, भैया सबके काम हँसते-हँसते निपटाना। सभी से आत्मीय सम्बंध बना लेना उसका स्वभाव ही है। मैं बालकनी में बैठी सोचने लगी कि वह सभी घरों का अटाला, कपड़े, पुरानी चीज़े आदि सहर्ष ले जाती है। जैसे ही वह ऊपरी मंजिल से उतरी मैं जिज्ञासावश पूछ बैठी, "सायरा ! मैं तुम्हें इतने सूट...।" वह बीच में ही बात काटते हुए बोली, "आंटी ! मैं तो बस कॉटन ही पहनती हूँ, आप रोज देखते ही हो। लेकिन मेरी सब सहेलियाँ रास्ता ही देखती है कि कब मैं पोटला लाऊँ? वे सब अपने हिसाब से छाँट बाँट लेती हैं।" "और दूसरा सब सामान....।" मैने टोका। बातूनी सायरा तपाक से बोली, "रब की दुआ से मेरे पास तो सब कुछ है। आप लो...
पाँच घण्टे
लघुकथा

पाँच घण्टे

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शिक्षक अभिभावक मीटिंग में प्राचार्या जी समझ नहीं पा रही क्या करे? अजीबोग़रीब प्रश्न पूछे जा रहे हैं, "बच्चे कहना नहीं मानते, ऊपर से झूठ बोलते हैं। दिनरात फ़ोन पर लगे रहते हैं। देर रात पार्टी करते हैं। फैशन के पीछे दीवाने हो रहे हैं। बात बात में झूठ बोलते हैं। आप स्कूल में यही शिक्षा देते हैं क्या ? प्राचार्या जी सादगीपूर्ण वर्दी में बैठे स्टॉफ की ओर इशारा करती हैं, "देखिए हमारे शिक्षक शिक्षिकाएं अनुशासन में रहते हैं। अपनी तरफ से बच्चों को व्यहारिक रूप से मूल्य सिखाते हैं। स्वयं रोल मॉडल बन समझाते हैं।" फ़िर मेडम अभिभावकों की ओर मुखातिब होती हैं, "मैं स्पष्ट देख पा रही हूँ कि लगता है आप किसी फैशन परेड में आए हो। बताइए मुझे, क्या बच्चों के दादा-दादी साथ रहते हैं? आप अपनी पार्टियों में व्यस्त रहते हो, देर रात आते हो। नानी-दादी का साथ च...
नीनू चली जादू नगरी
लघुकथा

नीनू चली जादू नगरी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के लिए मम्मा ने गुजिया लड्डू बनाकर ऊँची रेक पर रख दिए। नीनू सोचने लगी मैं गुड़िया बहियन की छोटी गुजिया केही विधि पाऊँ? लेकिन उसके सारे प्रयास विफ़ल। नीनू ललचा कर माँगती है, "बस एक गुजिया दो ना मम्मा, सच्ची बस एक ही।" माँ फटकार लगा देती है, "बिलकुल नहीं, सब भोग के बाद।" नीनू मिठाई का सोचते-सोचते निंदिया रानी की दुलारी हो जाती है। वह जादू की नगरी में पहुंच जाती है। वहाँ देखती है...वह एक अनूठे पार्क में नितांत अकेली चहलकदमी कर रही है। पेड़ो पर फलों के साथ मिठाइयाँ भी लटक रही हैं। रसगुल्ले, जलेबी, गुलाबजामुन आदि-आदि और उसकी मनपसन्द रंगबिरंगी टॉफियाँ। नीनू की तो बल्ले-बल्ले हो जाती है। वह सोचती है, पहले सब देख लूँ, फिर खाने का इंतज़ाम करती हूँ। ज्यों ही वह सामने देखती है, "अहा ! शिकंजी के ताल में इमरती की नौका, मजा आ गया।" नीनू ...
विकल्प
लघुकथा

विकल्प

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शराबी अय्याश पति संकेत की प्रताड़ना से व्याकुल सरिता बदनामी के डर से मन मसोसकर रह जाती। अंतर्जातीय प्रेम विवाह के बाद भी सरिता का चयन गलत निकला। माता-पिता से विद्रोह कर चुकी सरिता ससुराल में भी सम्मानजनक स्थान नहीं बना पाई। देर रात शराब के नशे में धुत संकेत सरिता पर चिल्लाने लगा "तुमने मेरा जीवन बर्बाद कर दिया। मेरे भावनाओं का फायदा उठाकर शादी कर ली। अब मैं तुमसे छुटकारा पाना चाहता हूं।" सरिता "हमारी शादी कुछ सालों तक प्रेम सम्बन्ध रहने के बाद आपसी सहमति से हुई है। अब आपको मुझमें खोट नजर आने लगी।" संकेत "अपने पिता की इकलौती संतान हूं। मेरे पास अच्छी खासी धन दौलत है। लड़कियों की कतारें लगी रहती थी। तुमने अपने प्रेम जाल में फंसाकर मुझे अंधा कर दिया था।" सरिता "नादान तो मैं निकली। आप पर आंख मूंदकर भरोसा करती रही। आपने मेरे भरोस...
थाती
लघुकथा

थाती

रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' लखनऊ ******************** दीपावली हेतु सफाइयाँ जोर-शोर से चल रही थीं। पुराना सामान हटाते-हटाते अचानक सुधा के हाथ में एक मखमली लाल थैला लग गया। मानो उसके हाथ में यादों का पुलिंदा ही आ गया हो! नन्हें-नन्हें कपड़े, छोटे-छोटे कुछ टूटे-फूटे खिलौने, कुछ छिली-अधछिली पेंसिलें, रंग बिरंगी चौक के टुकड़े, कुछ ट्रॉफियाँ और न जाने कौन-कौन-सी "थाती" सहेज कर रखी थी अपने चारों चहेते बच्चों की, सब एक चलचित्र की भाँति आँखों के सामने घूम गया और वह ममता के सागर में गोते लगाने लगी! परिचय : रजनी गुप्ता 'पूनम चंद्रिका' उपनाम :- 'चंद्रिका' पिता :- श्री रामचंद्र गुप्ता माता - श्रीमती रामदुलारी गुप्ता पति :- श्री संजय गुप्ता जन्मतिथि व निवास स्थान :- १६ जुलाई १९६७, तहज़ीब व नवाबों का शहर लखनऊ की सरज़मीं शिक्षा :- एम.ए.- (राजनीति शास्त्र) बीएड व्यवसाय :- गृहणी प्रकाशन :- राष्ट...