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आत्मकथा

उसे कीर्ति तो मिली पर यश नही….
आत्मकथा

उसे कीर्ति तो मिली पर यश नही….

*********** रचयिता : विनोद वर्मा "आज़ाद" नोट :-- यहां "मैं"शब्द का उपयोग उस शिक्षक के लिए किया गया है,जिसको कीर्ति तो बहुत मिली पर यश नही। "जीते जी तो नही पर मरने के बाद सिर्फ तारीफे ही होती है, वो लोग भी तारीफों के पुल बांधते है, जो 'मुंह मे राम और बगल में छुरी' रखकर चलते है।" एक शिक्षक के घर 4 बेटों और 2 बेटियों ने जन्म लिया बेहद ईमानदार, सामाजिक शोषण का शिकार होते रहे व्यक्ति ने सिर्फ कर्तव्य पथ पर ईमानदारी से चलना प्रारम्भ किया। किराए पर घोड़ा लेकर घुटने-घटने कीचड़ को पार कर ५ किलोमीटर का रास्ता तय करना, बच्चों को पढ़ाना और वापस घर की बाट पकड़ना। ठंड और गर्मी में २४ इंची सायकिल का उपयोग करना। गोकलपुर, किशनगंज, क्षिप्राखटवाड़ी, बरोदा, तकीपुरा, बड़ौली, चमनचौराहा पर अध्यापन। ईमानदारी पूर्वक जीवन यापन के बावजूद जब बेटे की पढ़ाई पर व्यय का मौका आया तो 'वेतन अत्यंत कम' बेटे का स्वप्न चकनाच...