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होली … होली … होली …
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होली … होली … होली …

लक्ष्मीकांत "कमलनयन" सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** होली होली होली आज हो ली प्रसन्न मन, अगले बरस फिर प्यार बरसायेगी। जीवन में रंग भर मन में उमंग नव, नित ही तरंग ले बहार बन जायेगी।। गायेगी मल्हार फिर जन गण मन हित, रंग भंग संग बंधु गुझिया खिलायेगी। "कमलनयन" आश,छाये नित मधुमास, छंद बंद कवियों से गीत लिखवायेगी।। परिचय :-  लक्ष्मीकांत "कमलनयन" निवासी : सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
सोरठा छंद- माघ-स्नान वृत
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सोरठा छंद- माघ-स्नान वृत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** पावन बहुत प्रयाग, चलो करें वंदन अभी। गुंजित सुखमय राग, रहें हर्षमय हम सभी।। कितना चोखा मास, कहते जिसको माघ हम। जीवित रखता आस, हर लेता हर ओर तम।। तीर्थ सुपावन नित्य, माघ माह की जय करो। खिल जाये आदित्य, सदा नेहमय लय वरो।। गंगा में हो स्नान, जीव करे यश का वरण। मिलता नित उत्थान, तीर्थराज में जब चरण।। देता माघ सुताप, गंगा माँ की जय करो। करो तेज का माप, पापों का सब क्षय करो।। करना चोखे काम, कहे माघ का माह नित। पूजन सुबहोशाम, करता सबका नित्य हित।। देती है आलोक, माघ माह की चेतना। परे करे सब शोक, हर लेती सब वेदना।। गाओ मंगलगीत, माघ माह कहता हमें। प्रभु बन जाएँ मीत, सुमिरन करना नाथ को।। जीवन हो आसान, छँट जाता सारा तिमिर। बढ़े भक्त का मान, बस जाता पावन शिविर।। गंगाजल की शान, कहता शब्द प्रयाग नित।...
नर्सेस
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नर्सेस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्या...
गोरैया (अवतार छंद )
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गोरैया (अवतार छंद )

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** अवतार छंद विधान अवतार छंद २३ मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है। यह १३ और १० मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है- २ २२२२ १२, २ ३ २१२ चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः २ को ११ में तोड़ा जा सकता है, किंतु आदि द्विकल एवं अंत २१२ (रगण) अनिवार्य है। अठकल के नियम अनुपालनिय है। फुर फुर गोरैया उड़े, मदमस्त सी लगे। चीं चीं चीं का शोर कर, नित भोर वो जगे।। मृदु गीत सुनाती लहे, वो पवन सी बहे। तुम दे दो दाना मुझे, वो चहकती कहे।। चितकबरा तन, पर घने, लघु फुदक सोहती। अनुपम पतली चोंच से, जन हृदय मोहती।। छत, नभ, मुँडेर नापती, नव जोश से भरी। है धैर्य, शौर्य से गढ़ी, बेजोड़ सुंदरी।। ले आती तृण, कुश उठा, हो निडर भीड़ में। है कार्यकुशलता भरी, निर्माण नी...
हरिगीतिका छन्द
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हरिगीतिका छन्द

डॉ. भावना सावलिया हरमडिया, राजकोट (गुजरात) ******************** हरिगीतिका छन्द हे माँ भवानी ! हम खड़े कबसे, तुम्हारे धाम हैं। हे शक्ति रूपा नित्य रटते, नाम आठों याम हैं। आए शरण जो आस लेकर, पूर्ण करती काम हैं । हम भूल सकते एक पल भी, कब तुम्हारा नाम हैं।। माँ कर कृपा इतनी हृदय से, द्वेष ईर्ष्या दूर हो। मंगल महकते भाव मन में, चेतना भरपूर हो। हुंकार माँ ऐसी भरो सब, आलसी जन शूर हों। मन के तिमिर सब दूर होकर, सूर्य-सा नित नूर हो।। वाणी मधुर हम बोल कर मन, में अमिय रस घोल दें। इतनी कृपा कर दो कि दिल के, द्वार सबके खोल दें। माँ दो अभय वरदान हमको, सत्य सबसे बोल दें। हम सत्य के पथ पर चलें यह, साधना अनमोल दें।। परिचय :- डॉ. भावना नानजीभाई सावलिया माता : वनिता बहन नानजीभाई सावलिया पिता : नानजीभाई टपुभाई सावलिया जन्म तिथि : ३ अप्रैल १९७३ निवास : हरमडिया, राजकोट सौर...
हिन्दी लावणी छंद
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हिन्दी लावणी छंद

शुचिता अग्रवाल 'शुचिसंदीप' तिनसुकिया (असम) ******************** भावों के उपवन में हिन्दी, पुष्प समान सरसती है। निज परिचय गौरव की द्योतक, रग-रग में जो बसती है।। सरस, सुबोध, सुकोमल, सुंदर, हिन्दी भाषा होती है। जग अर्णव भाषाओं का पर, हिन्दी अपनी मोती है।। प्रथम शब्द रसना पर जो था, वो हिन्दी में तुतलाया। हँसना, रोना, प्रेम, दया, दुख, हिन्दी में खेला खाया।। अँग्रेजी में पढ़-पढ़ हारे, समझा हिन्दी में मन ने। फिर भी जाने क्यूँ हिन्दी को, बिसराया भारत जन ने।। देश धर्म से नाता तोड़ा, जिसने निज भाषा छोड़ी। हैं अपराधी भारत माँ के, जिनने मर्यादा तोड़ी।। है अखंड भारत की शोभा, सबल पुनीत इरादों की। हिन्दी संवादों की भाषा, मत समझो अनुवादों की।। ये सद्ग्रन्थों की जननी है, शुचि साहित्य स्त्रोत झरना। विस्तृत इस भंडार कुंड को, हमको रहते है भरना।। जो पाश्चात्य दौड़ में...
तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में
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तुम्हारा अद्भुत है संसार … महाश्रृंगार छन्द में

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** महाश्रृंगार छन्द कहीं पर कितने पहरेदार, कहीं पर एक न चौकीदार। कहीं पर वीरों की हुंकार, कहीं का कायर है सरदार।। कहीं पर बूँद नहीं सरकार, कहीं जलधार मूसलाधार। कहीं पर खुशियों की बौछार, कहीं पर दुख के जलद हजार।। कहीं पर अँधियारे की मार, कहीं पर उजियारा आगार। कहीं पर गरमी है गरियार, कहीं पर सर्दी का संहार।। बदलते मौसम बारम्बार, देख कर लीला अपरम्पार। कह उठा मन यह आखिरकार, तुम्हारा अद्भुत है संसार।।१।। किसी का वेतन साठ हजार, किसी को मिलती नहीं पगार। किसी के भरे हुए भण्डार, किसी का उदर बिना आहार।। किसी को सौंपी शक्ति अपार, किसी का अंग-अंग बीमार। किसी को मिले अकट अधिकार, किसी का जीवन ही धिक्कार किसी की नाव बिना पतवार, किसी के हाथ बने हथियार। किसी का सत्य बना आधार, किसी का झूठ पा रह...
द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
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द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद (समवृत्तिक (दो-दो चरण-समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण-१२ वर्ण) (ॐ स शनये नम : !) शनि सुनो विनती हर लो दुखा। कर कृपा हिय में भर दो सुखा।। तनु श्याम कुदृष्टि भयंकरा। नसत बुद्धि, विवेक सभी हरा।। मति हरी जिसकी उ नहीं बचा। तनय अर्क उसे त रहे नचा।। फलत कर्म यमी अनुसार ही। मिलत दण्ड भरे कुविचार ही।। शनि प्रसन्न, रहे न महादशा। कठिन राह सभी रहते गशा।। अभय देकर दान बता रहे। कलुष कल्मष खेह सभी बहे।। चढ़त तेल करू जल बीच है। शनि दिना जब पिप्पल सिंच है।। कटत दु:ख अपार न संशया। शनि प्रभो जबहीं करते दया।। सुखद जीवन मंद नहीं पड़े। भज चलो शनि देव रहें खड़े।। सकल सूरत में भल कुरूप हैं। सफल न्यायिक-दाण्डिक रूप हैं।। परिचय :-  ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुर...
अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)
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अतीक का अन्त (वीर छ्न्द में आल्हा)

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** (वीर छ्न्द में आल्हा) अतीक का अन्त जिस प्रयाग की कुम्भ भूमि को, करते थे दो नर बदनाम। रूह काँप उट्ठेगी सुनकर, उनके कर्मों का अंजाम।।१।। जिस फिरोज अहमद का इक्का, रुक जाता था देख ढलान। इसी शख्स की औलादों ने, पाप बाँध कर भरी उड़ान।।२।। जैसी करनी वैसी भरनी, फसलें वैसी जैसे बीज। जैसी कुर्सी वैसी बैठक, जैसी सूरत वैसी खीज।।३।। प्रलयंकारी अत्याचारी, दुखदाई वरदान प्रतीक। दोनों विकट सहोदर युग के, नेता अशरफ और अतीक।।४।। अपराधी बन गए सांसद, और विधायक दोनों डान। था दुर्भाग्य देश का कैसा, दोनों भाई काल समान।।५।। मगर समय ने पलटी मारी, धरती हिली हिला आकाश। दोनों ने ही खुद कर डाला, खुद के घर का सत्यानाश।।६।। लूटमार रँगदारी ओछी, राजनीति छल से भरपूर। काम न आई ज़ब्त हो गई, पाप ...
हनुमत्कृपा
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हनुमत्कृपा

प्रेम नारायण मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** अगर पाया झुका तू सिर, तो हनुमत रीझ जाएंगे। तेरी भक्ति का फल परिवार, कुल सब लोग पाएंगे। अगर पाया झुका .... बहुत ही सरल है हनुमत, तुझे बस शरण आना है। मिटाकर भाव कर्ता का, निमित बस बनते जा है। तेरी कष्टों से रक्षा कर, लाज अपनी बचाएंगे। अगर पाया झुका ... विभीषण ने किया सहयोग, तो स्वामी से मिलवाया। ज्यों ही आया शरण मे, तो तुरत लंकेश बनवाया। जो गुण धारण को आतुर हो, उसे खुद सा बनाएंगे। अगर पाया झुका .... समर्पण और सेवा भाव के, पर्याय हैं हनुमत। पकड़ पाए कोई चरणों को, तो हो जाते हैं सहमत। जो भी निष्काम भक्ति, कर सके, मुक्ति दिलाएंगे। अगर पाया झुका ... परिचय :- प्रेम नारायण मेहरोत्रा निवास : जानकीपुरम (लखनऊ) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...
गगन गोचर देव प्रचंड हैं
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गगन गोचर देव प्रचंड हैं

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद समवृत्तिक (दो-दो चरण- समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण- १२वर्ण ॐस रवये नम : गगन गोचर देव प्रचंड हैं । प्रसरते चहुँ रश्मि अखंड हैं ।। परम ज्योति अलौकिक धन्य है । सुखद चारु सरूप सुरम्य है ।। जगत भासित है तुमसे शुभी । निरत रहते ना रुकते कभी ।। जपत जे प्रभु भानु हँ नित्य हैं । भरत ते धन-धान्य सुकृत्य हैं ।। अदिति पुत्र प्रभो तम नाशिकी । रवि अहस्कर तेजस मानकी ।। इसलिए इनको कहते चहूँ । कनक रूप धरे दिखते दहूँ ।। निशि-दिना जगते सुप्रभास हैं । जगत के इक सुन्दर आस हैं ।। अरुणि सारथि हाँकत स्यंदना । करत देव जती सब वंदना ।। दिखत अद्भुत दृश्य मनोहरा । अरुणिमा बिखरे जब भास्कर ।। जयति भानु विकर्तन देवता । प्रथम पूज्य अर्क विभेदता ।। परिचय :-  ज्ञानेन...
प्रथम पूज्य गणराज
कुण्डलियाँ, छंद

प्रथम पूज्य गणराज

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुण्डलियाॅं छंद गणपति बप्पा मोरया, प्रथम पूज्य गणराज। प्रथम नमन है आपको, पूरण करिए काज।। पूरण करिए काज, सभी सुख के तुम दाता। तुम हो कृपा निधान, जन्म-जन्मो से नाता।। कहे राम कवि राय, गणों के तुम हो अधिपति। हरिए सकल विकार, हमारे बप्पा गणपति।। वंदन गणपति का करें, और धरें उर ध्यान। इनके शुभ आशीष से, मिलता है सद्ज्ञान।। मिलता है सद्ज्ञान, देव हैं परम कृपाला। गज मस्तक हैं नाथ, धरे हैं देह विशाला।। कहे राम कवि राय, करें इनका अभिनंदन। गूॅंज रहा जयकार, जगत करता है वंदन।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद
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द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** द्रुतविलम्बित छंद-वर्णिक छंद समवृत्तिक (दो-दो चरण- समतुकान्त)- नगण+भगण-भगण+रगण- १२वर्ण पवन-पुत्र कपीश बलीस हैं । लखन प्राण निवारक अनीस हैं ।। हरन शोक सिया त अशोक हैं । तरन सिंधु विशाल विशोक हैं ।। कपिस केश सुबाहु बलिष्ठ हैं । कनक देह सुशोभित मिष्ठ हैं ।। अमित विक्रम अम्मर साहसी । जगत रक्षक साधक जापसी ।। सच कहा भल सज्जन वानरा । कर भला जब ही भल डाबरा ।। नित करो हनु का जप ध्यान से । मनन तर्पण-अर्पण मानसे ।। पनपती विष वल्लरि द्वार है । विपति-साँसति फैलति झार है ।। सुखद भाव भरे कर दो शुभा । पतित-पावन रूप चलो निभा ।। चहुँमुखी सुरसा मुँह खोलती । प्रगति पंथ खड़ी नित रोकती ।। कुशल, कौशल आकर मोइए । चहुँदिशा यश-वैभव जोइए ।। अनीस- सुप्रीम , मिष्ठ- पुण्यात्मा , डाबरा मीठे लड्ड...
आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी
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आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** वसन्ततिलका- उक्ता वसंततिलका तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण , जगण , दो गुरु - १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त) ॐ स सूर्याय नम : आदित्य देव सुन लो, विनती हमारी। आओ प्रभास भरके, तम हे निवारी।। मुक्ता सुमाल पहिरे, गल है सुहाता। प्रद्योत राशि बिखरे, जब हो प्रभाता।। संपतिवान करते, रवि हैं दयालू। पूजो सदा प्रबल को, यह हैं कृपालू।। बाधा सभी निपट के, सुख शांति देती। स्वामी सुकर्म कहते, पहले शुभेती।। आराधना सुखद है रविवार द्यौ की। शीघ्राति पूर्ण करते, फल देत लौ की।। प्रातः सुकाल चित में, इनको बिठाना। सच्ची लगी लगन से, इनको बुलाना।। संपूर्ण व्योम चलते, थकते नहीं हैं। उत्पन्न अन्न करते, डिगते नहीं हैं।। नक्षत्र में प्रथम हैं, बहु हैं प्रतापी । सारंग सूर्य जग के, क...
साहस
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साहस

अनुराधा प्रियदर्शिनी प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) ******************** ताँका छंद यह जीवन एक संघर्ष सदा जीत मिलेगी जो लड़ता सदैव हिय रखे साहस युद्ध क्षेत्र में मजबूत इरादे पार लगा दें हर एक बाधा से सपने साकार हों लक्ष्य मिलता मजबूत इरादे जिनके होते साहस से बढ़ते मंजिल पा जाने को सत्कर्म करो नित आगे बढ़ना मंजिल मिले सफलता मिलती खुशियों का संसार स्वेद की बूंदे मुस्कान बिखेरती हरियाली हो जीवन लहराता महकता चमन परिचय :- अनुराधा प्रियदर्शिनी निवासी : प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कवित...
त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति
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त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति

अर्चना तिवारी "अभिलाषा" रामबाग, (कानपुर) ******************** त्रिभंगी छंद आधारित शिव स्तुति १ जय -जय शिव शंकर, प्रभु अभ्यंकर, नाथ महेश्वर, भंडारी। हे जग अखिलेश्वर, प्रभु परमेश्वर, हे गिरिजेश्वर, त्रिपुरारी।। यह मन है चंचल, होता विह्वल, घुलता पल-पल, माया में। प्रभु पार लगाओ, दरश दिखाओ, मत भटकाओ, काया में।। २ मद लोभ फँसी मैं, क्रोध धँसी मैं, विरह हँंसी मैं, हे भगवन्। माया में अटकी, दर-दर भटकी, दुख में लटकी, हे त्रिभुवन।। उर पीर बड़ी है , विकट घड़ी है, नीर झड़ी है, गिरिजेश्वर। हे नाथ उबारो, संकट टारो, मुझे सम्हारो, अखिलेश्वर।। ३ रोते हैं नैना, उर बेचैना, पीड़ित बैना, प्रभु मेरे। हूँ लाज गड़ी मैं, द्वार खड़ी मैं, शरण पड़ी मैं ,प्रभु तेरे।। मम त्रास मिटाओ , हृदय लगाओ, अंक बिठाओ, हे दाता। प्रभु विनती करती , नाम सुमिरती , धीरज धरती, जग त्राता।। ४ हे नाथ मह...
वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका
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वसन्ततिलका – उक्ता वसंततिलका

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** तभजा : जगौ ग : (तगण, भगण, जगण, जगण, दो गुरु - १४ वर्ण ८, ६ पर यति हो या नहीं भी हो, दो सम तुकान्त) (ॐ स विष्णवे नम:) श्री विष्णु पूजन करो, उठते सवेरे। एकादशी अति शुभी, जपले लबेरे।। पीतांबरी तन गछी, कर शंख राधे। बैजंति माल गल में, गद चक्र साधे।। दैत्यासुरा दल दिखे, भयभीत भाजे। पापी कुकर्म बझिके, कबहूँ न छाजे।। फैले प्रकाश हिय में, जब भान होगा। सत्ता उसी परम की, तब ज्ञान होगा।। मानो न बात उलटी, न बनो कुगामी। सोचो मिले न कुछ भी, घुमिए गुनामी।। आगे बढ़ें सपथ पे, न चलें कुचालें। पैनी रखें नजर यूँ, डग भी सँभालें।। लिखा वही करम का, लिखता-मिटाता। भाषा न जान सकता, कितना छुपाता।। है कर्म सुंदर जभी, तब ही सुहाता। धर्ता वही जगत का, वह ही प्रदाता।। आओ विचार करलें, भरलें चिता में। क...
शीत लहर
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शीत लहर

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** सोरठा छंद शीत लहर से आज, जूझ रहा संसार है। रूक गया सब काज, बचना इससे है कठिन।। पौष माघ की जाड़, लोग ठिठुरते ठंड से। कॅंपा रही है हाड़, बेबस हैं इससे सभी।। छायी धुंध अपार, चलना भी दूभर हुआ। ठंडी चली बयार, कहीं हुआ हिमपात है।। मौसम की है मार, इससे बच सकते नहीं। त्रस्त सभी नर नार, हैं इसके आगोश में।। बाल वृद्ध बीमार, खूब परेशाॅं हैं यही। जीना है दुश्वार, फिर भी है धीरज धरे।। मन में है विश्वास, बदलेगा मौसम कभी। है बसंत अब पास, आने को है द्वार पर।। सुखद सुहानी धूप, दिनकर लेकर आ गया। रंक रहे या भूप, सबको यह प्यारा लगे।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करत...
चामर छंद
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चामर छंद

ज्ञानेन्द्र पाण्डेय "अवधी-मधुरस" अमेठी (उत्तर प्रदेश) ******************** (चामर छंद- (दीर्घ+लघु) ×७+१ दीर्घ - २ = १५ वर्ण, दो या चारों सम पदान्त, चार-चरण) बाम अंग बैठ के उमा महेश संग में । चंद्रमा निहारतीं भरे बड़े उमंग में ।। हैं गणेश कार्तिकेय नंदि पास में खड़े । सोहते सभी अतीव एक एक से बड़े ।। गंग लोरतीं कपार घूमतीं यहाँ-वहाँ । मुंडमाल क्षार देह है पुती कहाँ-कहाँ ।। हैं अनंत हैं अनादि देव जे पुकारते । देव है बड़े महान दु:ख ते निवारते ।। रूद्र देव आदि देव धूम्र वर्ण धूर्जटी । विश्वरूप आयुताक्ष* भंग रात-द्यौ घुटी ।। कामरूप सोमपा शिवा शिवा शिवा शिवा । शंकरा महेश्वरा अराधिए नवा शिरा ।। कंठ है पवित्र गंग केश में बहा करें । नृत्य तांडवा शिवा डमड्ड पे किया करें ।। ग्रीव में भुजंग माल हार ज्यूँ झुला करे । तीन नेत्र अग्नि रूप माथ पे दहा करे ।। शंभु ...
झूठे वादे
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झूठे वादे

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** सार छंद नेताओं की है यह आदत, करतें झूठे वादे। तन गोरा मन काला इनका, नेक न रखें इरादे।। जब चुनाव की बेला आती, दौड़े-दौडे आते। जिन्हें नहीं जाना पहचाना, उनको शीश नवाते।। एक बार सत्ता मिल जाए, फिर तो उसे भुलादें नेताओं की है यह आदत, करते झूठे वादे मंचासीन हुए नेताजी, जब गांवों में आए। अपने दल की लोक लुभावन, बातें खूब बताए।। मीठी-मीठी बातें करके, सबका मन बहलादे नेताओं की है यह आदत, करते झूठे वादे सीधी सादी जनता प्यारी, खूब बजाते ताली। भूल गया वह पिछली वादें, जो अब तक है खाली।। बातों से ही मोह लिया मन, फिर दे चाहे ना दे नेताओं की है यह आदत, करते झूठे वादे राजनीति गंदी होती है, ऐसे नेताओं से। बचके रहना मतदाताओं, इनके बहकाओं से।। ये चाहें तो आसमान से, तारे गिनकर लादे नेता...
मन खुशी से झूम उठा
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मन खुशी से झूम उठा

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** लावड़ी छंद आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा। शीत गुलाबी लगी कॅंपाने, अम्बर में है तेज घटा।। बिन बरसात बरसता बादल, चली हवा है पुरवाई। मौसम के इस परिवर्तन से, हुई सभी को कठिनाई।। चिंतित हैं हलधर बेचारे, अन्न अभी है पड़ा कटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा द्वार खड़ा ऋतुराज अभी है, आने को दस्तक देता। पुष्प बांण से वेध हृदय का, सारे संकट हर लेता।। करें प्रतीक्षा गुलशन सारे, उसमें सब का ध्यान बॅंटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा नाच रहा मन मोर हृदय में, कैसी यह शुभ बेला है। खेत और खलिहान भरे हैं, ज्यों खुशियों का मेला है।। लाभ किसी को हुआ अधिक है, और किसी का तनिक घटा आज खुशी से झूम उठा मन, कुदरत की है देख छटा अद्भुत है ईश्वर की लीला, देख चकि...
समय चुनाव का
छंद, दोहा

समय चुनाव का

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** दोहा छंद आया समय चुनाव का, करना है मतदान। हमें बनाना है यहाॅं, मिलकर एक विधान।। लोकतंत्र की जान है, वोटर का अधिकार। स्वस्थ प्रशासन के लिए, यह सुंदर आधार।। सोच समझकर ही करें, हम अपना मतदान। दूर प्रलोभन से रहें, बढ़े देश की शान।। छणिक प्रलोभन में डिगे, कभी नहीं ईमान। सच्चे मतदाता बनें, रखना है यह ध्यान।। ऐसे नेता को चुनें, समझ सके जो पीर। मतदाता के ऑंख से, पोंछ सके जो नीर।। पाॅंच वर्ष की योजना, लाती है सरकार। जनता के हित में बने, वही करें स्वीकार।। मतदाता को चाहिए, कर नेता की जाॅंच। वोट उसी को दीजिए, लगता हो जो साॅंच।। जाति धर्म की भावना, इन सबसे हों दूर। वोट कभी मत कीजिए, होकर के मजबूर।। प्रत्यासी जाना हुआ, देश भक्त इंसान। राजनीति की हो परख, उसे करें मतदान।। अपना देश महा...
विध्वंकमाला छंद
छंद

विध्वंकमाला छंद

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** पानी बचाओ न फेंको बहाओ। मानो कहा आप हे! मित्र आओ।। पृथ्वी हमारी तभी ही बचेगी।। सातों अकूपाद धारे रहेगी।। रोपो नए वृक्ष प्यारे सखाओं। वर्षा करें मेघ न्यारे सखाओं।। पर्याप्त वर्षा से भूमि प्यारी। फूले फले हो नई पुष्प क्यारी।। मित्रों यही धर्म भी है हमारा। सच्चा सही कर्म भी है हमारा।। आओ उठो बाल वृद्धों युवाओं। व्याही कुवाँरी धरित्री सुताओं।। मैं आपको धर्म सच्चा बताऊँ। दो हाथ से वृक्ष बीसों लगाऊँ।। लो आपभी धर्म का मर्म पाओ। दो-चार-छः वृक्ष नए उगाओ।। नीरांजली तृप्त पृथ्वी बनेगी। वृक्षाम्बरी नृत्य न्यारा करेगी।। ऊर्जा धरा में है नीर लाता।। माँ मेदिनी को सुधा है पिलाता।। सौभाग्य से मानवी देह पाई। निष्णात है कर्म की कौशलाई।। क्या द्वंद क्यों आप नहीं बताते। आनंद क्यों ...
नैन बिंबित हैं
गीत, छंद

नैन बिंबित हैं

आचार्य डाॅ. वीरेन्द्र प्रताप सिंह 'भ्रमर' चित्रकूट धाम कर्वी, (उत्तर प्रदेश) ******************** छंद : मधुरागिनी छंद (वर्णिक) गीत विधान : वर्णवृत :- तगण, भगण, रगण, तगण, भगण, गा। शिल्प : १६ वर्ण, १०/६ वर्ण पर यति, समपाद वर्णिक छंद, दो-दो चरण समतुकांत। संकल्प से मन की मयूरी, नाचती वन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। आराधिके बन दामिनी की, नृत्य है करती। निर्विघ्न चंचल चंचला-सी, चूमती धरती।। आकाश से चुनती अपेक्षा, साधना घन में। सामर्थ से सपने सजाती, स्वयं के तन में।‌। अम्भोज-सा बिखरा पड़ा है, दिव्यता छहरे। दे ताल अंबर को पुकारे, धारणा लहरे।। झूमें लता तरु पुष्प डाली, प्रेम अर्चन में। सामर्थ्य से सपने सजाती, स्वयं के तन में।। प्रत्यूष की अभिलाष में द्वै, नैन बिंबित हैं। कौमार्य की वन वीथिका में, बिंब चिह्नित हैं।। वातास गंधिल शोभती है, प्...
पुतले का दहन
कुण्डलियाँ, छंद

पुतले का दहन

रामसाय श्रीवास "राम" किरारी बाराद्वार (छत्तीसगढ़) ******************** कुंडलियां - छंद करके पुतले का दहन, हर्षित है इंसान। रावण अब मारा गया, कहता है नादान।। कहता है नादान, इसी भ्रम में वह जीता। पुतले को निज हाथ, जलाते सदियों बीता।। कहे राम कवि राय, जोश हिय में वह भरके। मना रहा है पर्व, दहन पुतले का करके।। मरना रावण का नहीं, है इतना आसान। जब तक के अपने हृदय, भरा हुआ अभिमान।। भरा हुआ ‌अभिमान, यही रावण कहलाता। फिर पुतले पर क्रोध, व्यर्थ में क्यों दिखलाता।। कहे राम अभिमान, हमें है निज का हरना। तब होगा आसान, दुष्ट रावण का मरना।। परिचय :- रामसाय श्रीवास "राम" निवासी : किरारी बाराद्वार, त.- सक्ती, जिला- जांजगीर चाम्पा (छत्तीसगढ़) रूचि : गीत, कविता इत्यादि लेखन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...