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डायरी

प्रीति चित्रण
कविता, डायरी

प्रीति चित्रण

भारमल गर्ग जालोर (राजस्थान) ******************** मौन धारण कर वचन मेरे, लज्जा आए प्रीत मेरे। मगन प्रेम सांसे सत्य ही है, शब्द अनुराग है मेरे।। दुखद: प्रेम सदियों से चला आया। माया, लोभ ने विवश बनाया।। कामुक कल्पनाएं प्रेम सजाए, विनम्र प्रेम जगत सौंदर्य दिखाएं। प्रीति, प्यार अनोखा चित्रण मन को भाता यह बोध विधान।। बजता प्रेम का है यह अलौकिक संदर्भ जगत में। देखो सजना सजे हैं हम प्रेम इन जीवन अब हाट पे।। स्वर का विश्वास नहीं, देखो माया संसार में। वाणी के बाजे भी अब तो, टूट गए हैं आस में।। प्याला मदिरा का मनमोहक दृश्य लगे जीवन आधार में। बिखरे हैं यह सज्जन देखो, टुकड़े-टुकड़े कांच जैसे कांच के।। कलयुग में सजती है स्वर्ण कि यह लंका। ताम्र भाती प्रेम बना है, प्रेम यह संसार में।। मैं चला हूं उस पथ पर अग्रसर कटु सत्य वचन से। मिथ्य वाणी ना बोलता सदा करूं मनमोहक जीवन से।। एहसास है मेरे, ह...
बहन की डायरी
डायरी, पत्र

बहन की डायरी

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** कैसे हो भैया ! मैं तुम्हारी छोटी सी, मोटी सी और शरारती बहन क्रांति, पहचानते हो ना मुझे? मैं वही क्रांति हूं जो आज से १४ वर्ष पूर्व तुम से लड़ती, झगड़ाती थी, तुम्हारे मजबूत कंधों में झूलती थी। आह! कितना मनोरम दृश्य था वह एक कंधे में मैं, दूसरे कंधे में कुंदन और तुम बीच में लोहे के मजबूत झूले की तरह तुम! हम दोनों को गोल मटोल घूमाते थे। क्यों भैया तुम्हें थकान नहीं लगती थी....??? वह बचपन के समस्त आनंद तुम्हारे जाते ही खत्म हो गए, जीवन जैसे निरीह हो गया, घर अब घर नहीं लगता, वहां रहने की इच्छा नहीं पड़ती, घर सिर्फ एक रैन बसेरा हो गया है जहां सब कुछ पल के लिए आते हैं और चले जाते हैं। पता है अब घर में पिता जी, शुभम और कुंदन के अलावा कोई नहीं रहता। वह तीनों भी मजबूरी में रहते हैं उनका भी मन नहीं लगता होगा, लगे भी कैसे वहाँ अब मन लगने ल...