सिद्धार्थ
मीना भट्ट "सिद्धार्थ"
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
********************
जन्म मरण का खेल यह,
समझ न पायी पार्थ।
गीत ग़ज़ल था छंद भी,
सब कुछ था सिद्धार्थ।।
बसे क्षितिज के पार तुम,
भूल गए सिद्धार्थ।
अब जीवन ये बोझ है,
क्या साउथ क्या नार्थ।।
चली तेज पछुआ हवा,
रूप बड़ा विकराल।
जलता दीपक बुझ गया,
खोया घर का लाल।।
पीर समझ पाया नहीं,
बैरी था संसार।
मित्र अकेली मातु थी,
करे स्वप्न साकार।।
सूखे-सूखे हैं अधर,
अँखियों में है नीर।
ममता बड़ी अधीर है,
उर है अथाह पीर।।
कबिरा साखी मौन है,
चुप मीरा के श्याम।
रूठे सीता राम भी,
जप लूँ कैसे नाम।।
चर्चा करती रात-दिन,
मिटे नहीं संताप।
खंडित है विश्वास सब,
करते नित्य विलाप।।
मोह त्याग कर चल दिया,
भूला मातु दुलार।
पल-पल लड़ता मौत से,
लिए अश्रु की धार।।
अतिशय अन्तस् पीर है,
मनवा रहे उदास।
राजा बेटा लाड़ला,
करे हृदय...