Saturday, April 27राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

दोहा

सिद्धार्थ
दोहा

सिद्धार्थ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** जन्म मरण का खेल यह, समझ न पायी पार्थ। गीत ग़ज़ल था छंद भी, सब कुछ था सिद्धार्थ।। बसे क्षितिज के पार तुम, भूल गए सिद्धार्थ। अब जीवन ये बोझ है, क्या साउथ क्या नार्थ।। चली तेज पछुआ हवा, रूप बड़ा विकराल। जलता दीपक बुझ गया, खोया घर का लाल।। पीर समझ पाया नहीं, बैरी था संसार। मित्र अकेली मातु थी, करे स्वप्न साकार।। सूखे-सूखे हैं अधर, अँखियों में है नीर। ममता बड़ी अधीर है, उर है अथाह पीर।। कबिरा साखी मौन है, चुप मीरा के श्याम। रूठे सीता राम भी, जप लूँ कैसे नाम।। चर्चा करती रात-दिन, मिटे नहीं संताप। खंडित है विश्वास सब, करते नित्य विलाप।। मोह त्याग कर चल दिया, भूला मातु दुलार। पल-पल लड़ता मौत से, लिए अश्रु की धार।। अतिशय अन्तस् पीर है, मनवा रहे उदास। राजा बेटा लाड़ला, करे हृदय...
कोमल है कमनीय भी
दोहा

कोमल है कमनीय भी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कोमल है कमनीय भी, शुभ्र भाव रसखान। यशवर्धक मन मोहिनी, हिंदी सरल सुजान।। भाग्यविधाता देश की, संस्कृति की पहचान। देवनागरी लिपि बनी, सकल विश्व की जान।। अधिशासी भाषा मधुर, दिव्य व्याकरण ज्ञान। सागर सी है भव्यता, निर्मल शीतल जान।। सम्मोहित मन को करे, नित गढ़ती प्रतिमान। पावन है यह गंग-सी, माॅंग रही उत्थान।। आलोकित जग को किया, सुंदर हैं उपमान। अलख जगाती प्रेम का, नित्य बढ़ाती शान।। उच्चारण भी शुद्ध है, वंशी की मृदु तान। सद्भावों का सार है, श्रम का है प्रतिदान।। पुष्पों की मकरन्द है, शुभकर्मों की खान। भारत की है अस्मिता, शुभदा का वरदान।। पुत्री संस्कृत वाग्मयी, लौकिक सुधा समान। स्वर प्रवाह है व्यंजना, माँ का स्वर संधान।। दोहा चौपाई लिखें, तुलसी से विद्वान। इसकी शक्ति अपार पर, करते हम अभिम...
शिक्षक
दोहा

शिक्षक

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु द्वैपायन द्रोण हैं, देते हमको ज्ञान। विनयी प्रज्ञावान भी, महिमा लें पहचान।। शिक्षक रक्षक राष्ट्र के, सुख-सागर आधार। अभिनंदन वंदन करें, दें सदगुण उपहार।। अज्ञानी को ज्ञान दे, श्रेष्ठ मिलें संस्कार। भव से पार उतारते, शिक्षक तारणहार।। महाकाव्य गुरु उपनिषद, वे ही वेद पुराण। कर आलोकित वे करें, शिष्यों का कल्याण।। हिय विशाल है अब्धि-सा, निर्मल धारा ज्ञान। सदाचार के स्त्रोत भी, अतुलित विद्यावान।। भाग्य विधाता छात्र के, शिल्प-कार दातार। दे विवेक प्रज्ञा सदा, दूर करें अँधियार।। निर्माता हैं राष्ट्र के, सम्प्रभुता की खान। शिक्षक संस्कृति सभ्यता, के होते दिनमान।। क्षमाशील गुरु दें विनय, अनुशासन की डोर। सूर्य किरण बन रोपते, आदर्शों की भोर।। शिक्षक प्रहरी देश के, गौरव भरा समाज। नैतिकता प...
गणपति
दोहा

गणपति

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वक्रतुंड गणपति सतत, मंगलकारी नाथ। लंबोदर गजमुख सदा, मोदक प्रिय है हाथ।। शंकर पुत्र गणेश हैं, गौरी सुत प्रथमेश। कार्तिकेय के भव अनुज, दयावान रूपेश।। भालचंद्र गज शीश है, सुखदायक गुणवंत। हरें सभी के दुख सदा, एकदंत भगवंत।। क्षेमंकर गजकर्ण हैं, करते सब यशगान। ऋद्घि सिद्घि देते सदा, धूम्रवर्ण भगवान।। बुद्धिनाथ हैं गज-वदन, रक्षक दिव्य गणेश। शाम्भव हो योगाधिपति, धवल रूप हृदयेश।। गणपति बप्पा मोरया, शुभकारी है रूप। सुख दायक धर्मेश हैं, महिमा नाथ अनूप।। विघ्नविनाशक सब कहें, करते भक्त प्रणाम। सकल लोक है पूजता, निसदिन आठों याम।। विद्या वारिधि हो अमित, मूषक पीठ विराज। करो कृपा हे रुद्रप्रिय, आओ घर में आज।। सर्वात्मन हेरम्ब हो, तुम गणराज कवीश। यज्ञकाय प्रभु भीम हो, शंभु सुवन अवनीश।। वंदन करो...
मेरा गाँव
दोहा

मेरा गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गाँव बहुत नेहिल लगे, लगता नित अभिराम। सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।। सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास। जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।। सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज। वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।। हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान। प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।। खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान। हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।। कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर। नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।। खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर। प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।। जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास। प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।। जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास। हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ही ख़...
नव्य वर्ष
दोहा

नव्य वर्ष

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** ग्यारह महिने दौड़ती, सबकी अपनी रेल। नवल माह पूरा करे, अंतिम वाला खेल।। सुंदर शोभा पलक पर, रखना सदा जरूर। बूंद पत्ते अवसान से, निज स्थल होते दूर।। सबक पड़ोसी माह से, मिल जाता हर बार। दिसंबर को पछाड़ता, नवल साल संसार।। दुर्गम पथ नदिया चले, अनुपम दे उपहार। वक्त घड़ी चलती सरल, अनुभव मिले अपार।। खो देने का भय रहे, याद बिदा का मोल। बूढ़ा वक्त दरक रहा, नूतन परतें खोल।। चूके समय बहाव में, परिणिति भी अनजान। अहम आहुति बता रहा, भूल गए अनुमान।। खुशियाँ पल संयोग से, जब भी खोले द्वार। भुलवाए संताप का, भारी भरकम भार।। स्नेहयुक्त संसार में, पल पल जीवन खास। चाहत रंगत ही सदा, हरदम रखना पास।। संकट मोड़ खड़ा मिले, अनर्थ भी तैयार। पकड़ नहीं तकदीर पे, कहता दिल आगार।। आवागमन युक्ति चले, नूतन समझो ...
नववर्ष के दोहे
दोहा

नववर्ष के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया हौसला धारकर, कर लें नया धमाल। अभिनंदित करना हमें, सचमुच में नव काल।। नवल चेतना संग ले, करें अग्र प्रस्थान। होगा आने वाला वर्ष तब, सचमुच में आसान।। वंदन करने आ रहा, एक नया दिनमान। कर्म नया,संकल्प नव, गढ़ लें नया विधान।। बीती बातें भूलकर, आगे बढ़ लें मीत। तभी हमारी ज़िन्दगी, पाएगी नव जीत।। कटुताएँ सब भूलकर, गायें मधुरिम गीत। तब सब कुछ मंगलमयी, होगा सुखद प्रतीत।। देती हमको अब हवा, एक नया पैग़ाम। पाना हमको आज तो, कुछ चोखे आयाम।। कितना उजला हो गया, देखो तो दिन आज। है मौसम भी तो नया, बजता है नव साज़।। पायें मंज़िल आज तो, कर हर दूर विषाद। नहीं करें हम वक़्त से, बिरथा में फरियाद।। साहस से हम लें खिला, काँटों में भी फूल। दुख पहले सुख बाद में, यही सत्य का मूल।। अभिनंदित हो वर्ष नव, बिखरायें ...
शून्य से शिखर तक
दोहा

शून्य से शिखर तक

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** लक्ष्य को पाकर दिखाना है मुझको। जीत का परचम लहराना है मुझको।। इस दुनिया में कठिन कुछ भी नहीं, शून्य से शिखर तक जाना है मुझको।। यदि जीवन एक खेल है तो मैं खेलूँगा। चाहे लाख मुसीबतें आए मैं झेलूँगा।। प्रेरित होकर ध्यान लगाना है कर्म में, असंभव को संभव करके दिखाऊँगा।। रच सकता है तो रच मेरे लिए चक्रव्यूह। महारथियों के दल चाहे खड़े हो प्रत्यूह।। ज्ञान हासिल किया है मैंने माँ के गर्भ में, इस बार सातवें द्वार को भेदेगा अभिमन्यु।। रह-रह कर अभी जवानी ने ली अँगड़ाई। सुनहरे भविष्य के लिए लड़नी है लड़ाई।। अपने हाथों लिखना है मुझे नया इतिहास, यही सही समय है, शुरू करनी है पढ़ाई।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीसगढ़) संप्राप्ति : शिक्षक एल. बी., जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई। प्रकाशित पुस्तक : युगानुय...
नव वर्ष २०२४ पर दोहे
दोहा

नव वर्ष २०२४ पर दोहे

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनन्दन नव वर्ष। नई सुबह की नव किरणें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली फूलों से, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नये साल के भाल। नव किरण नव उजास से, पोषित हो नव भोर। शुभ यश जीवन में मिलें, हर्षित हो चहुं ओर। अभिनन्दन नव वर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठा कर हाथ। जीव जगत आनंद में, सदा रहें हर छोर। नये साल से आरज़ू, स्वर्णिम करना भोर। नूतन वर्ष शोभित हो सदा, सदी के भाल। दो हज़ार चौबीस में, भारत हो खुशहाल। झोली भर शुभ कामना, आप सभी को आज। मन में जो सपने बुने, होंगे पूरे काज। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान घो...
अटल बिहारी जी पर दोहे
दोहा

अटल बिहारी जी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अटल दिव्यता के धनी, किया दिलों पर राज। सदियों तक होगा हमें, महारत्न पर नाज।। विनय भाव गहना रहा, प्रतिभा का संसार। भारत मां के आंगना, फैलाया उजियार।। राजनीति के दिव्यजन, देशभक्ति-आयाम। दमका लेकर दिव्यता, अटल बिहारी नाम।। कवि बनकर साहित्य की, रक्खी हरदम लाज। कविता के सुर-ताल थे, वाणी के अधिराज।। संसद के बेटे खरे, गरिमा के उत्कर्ष। युग को वे देते रहे, अंतिम क्षण तक हर्ष।। संघर्षी जीवन रहा, थे गुदड़ी के लाल। अटल बिहारी सूर्य-से, काटा तम का जाल।। महा राष्ट्रनायक बने, शासन के सिरमौर। राष्ट्र-प्रगति के केंद्र बन, दिया शांति को ठौर।। अटल बिहारी के लिए, है सबको सम्मान। उनके तो गुण गा रहा, देखो सकल जहान।। हिंदी के सम्मान का, नारा किया बुलंद। राष्ट्र संघ तक थी पहुंच, हुए पड़ोसी मंद।। जन्मदिन पर ह...
लोहा अवसान
दोहा

लोहा अवसान

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** लोहा लेने जो खड़े, कुछ तो होगी बात। साधन साहस संग हो, दूरी बहुत जज्बात।। अतिशय खिलाफ ही सदा, अपनों से ही बैर। सहमत होते देखते, यथा समय ही गैर।। बात_चीत विरुद्ध खड़े, बोली में ही तंज। सहन_शक्ति सीमा हुई, जिसने पाया रंज।। निर्णय लेता वो सही, खुलकर दे पैगाम। बिगाड़ सदैव ही मिले, संभव नहीं लगाम।। धन जमीन संबंध ही, लाते हैं बिखराव। पारदर्शी गुण पारखी, करते तनिक बचाव।। मसला विवाद मूल है, कलयुग की पहचान। दुनिया सारी खोजती, कैसे हो निपटान।। जीवन लोहा मानते, निर्णय राह उत्थान। अंतिम यात्रा में मिले, कफन रिक्त नादान।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा ...
दिल से- कहते हम आपसे… कायल
दोहा

दिल से- कहते हम आपसे… कायल

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** कायल महक विशेष है, परखो मनुज सुजान। धर्म कर्म का मन वचन, हर पल की पहचान।। कायल घात विनाश में, करते अपना अंत। हो सकता कुछ देर हो, सुनते वाणी संत।। कायल उचित विकास का, डंका चारों ओर। संकल्प सिद्धि के लिए, थामे सेवा डोर।। कायल जन की राह में, आते बहुत तनाव। पर श्रम युक्ति चाल से, रखते बहुत लगाव।। कायल बनना अति सरल, जब मात्र निःस्वार्थ। पवित्र गंगा धार में, गुण सदा परमार्थ।। व्यर्थ जी हुजूरी छिपा, लाभ भरा ही भाव। कायल होते एक के, रखते अन्य दुराव।। ना थकते जो खुद कभी, गुनगानों में होड़। कायल बनकर भी सदा, बन जाते बेजोड़।। जब कायलता काज से, मिलते सही निशान। देश बढ़े तब अनवरत, शिखर चला परवान।। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता "मुन्ना" जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ ...
दीपक-महिमा
दोहा

दीपक-महिमा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दीपक का संदेश है, अहंकार की हार। नीति, सत्य अरु धर्म से, पलता है उजियार।। उजियारे की वंदना, दीपक का संदेश। कितना भी सामर्थ्य पर, रहे मनुज का वेश।। मद में भरना मत कभी, करना मत अभिमान। दीपक करने आ गया, आज तिमिर-अवसान।। दीपों के सँग है सजा, विजयभाव -आवेश। विनत भाव से जो रहे, परे करे क्लेश।। निज गरिमा को त्यागकर, बनना नहीं असंत। वरना असमय ही सदा, हो जाता है अंत।। पूजा में दीपक जले, जलकर रचता धर्म। समझ-बूझ लें आप सब, यही पर्व का मर्म।। कहे दीप की श्रंखला, सम्मानित हर नार। नारी के सम्मान से, हो जग में उजियार।। उजियारा सबने किया, हुई राम की जीत। आओ हम गरिमा रखें, बनें सत्य के मीत।। कोशिश करके मारना, अंतर का अँधियार। भीतर जो अँधियार है, देना उसको मार।। अहंकार मत पोसना, वरना तय अवसान । उजियारे...
नहीं बनो तुम बेरहम
दोहा

नहीं बनो तुम बेरहम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दुनिया कितनी बेरहम, दया-धर्म से दूर। मानवता ने खो दिया, अपना सारा नूर।। जो होता है बेरहम, पशु के जैसा जान। ऐसे मानव को कभी, नहीं मिले सम्मान।। नहीं बनो तुम बेरहम, रखो नेह का भाव। पर-उपकारी जीव में, होता करुणा-ताव।। रखो प्रकृति औदार्य तुम, तभी बनेगी बात। रहम जहाँ है पल्लवित, वहाँ पले सौगात।। जो होता है बेरहम, बनकर रहे कठोर। करे पाप, अन्याय वह, बिन सोचे घनघोर।। नरपिशाच बन बेरहम, करता नित्य कुकर्म। सत्य त्यागकर अब मनुज, गहता पंथ अधर्म।। हिटलर था अति बेरहम, किया बहुत संहार। ऐसे मानुष से सदा, फैले बस अँधियार।। कोमलता को रख सदा, बंदे अपने पास। मत बनना तू बेरहम, वरना टूटे आस।। जो होता है बेरहम, होता सदा कुरूप। सूरज भी देता नहीं, उसको अपनी धूप।। टेरेसा बनकर रहो, करुणा रखकर संग। कभी न बन तू बे...
40 साल बाद
दोहा

40 साल बाद

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* कपिलदेव नायक बने (विश्वकप विजय २५.६.१९८३) तरासी के साल में, आया था भूचाल। कपिलदेव नायक बने, भारत मां के लाल।। साठ साठ के मेच में, करते बेड़ा पार। किरकेट के बजार में, भारत की सरकार। पौने दो सौ रन बना, नया रचा इतिहास। विश्वकप को जीत के, लीनी थी फिर सांस।। टी-ट्वन्टी की क्या कहूँ, चौकों की बौछार। छक्के भी तो छूटते, बालर हा हा कार।। दो हजार अरु सात में, आया धोनी राज। बीस-बीस के मेच में, भारत के सिर ताज।। दो हज्जार एकादशा, बरस अठाइस बाद। तेंदुलकर की टेक थी, भारत कप निर्बाध।। हसन का बंगला ढहा, अंग्रेजन टकरार। आयरिश भी चले गये, डच भी भये किनार।। अफरीका भारी पड़ा, फिर भी कटी पतंग। इंडीजवेस्ट पिट गया, रहा नहि कोइ संग।। पोंटिंग आउट भये, अफरीदि गये हार। संगकारा संघर्ष में, छूट गई...
दर्शन दो दुर्गा माँ
दोहा

दर्शन दो दुर्गा माँ

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** दुर्गा माँ तुम आ गईं, हरने को हर पाप। संभव सब कुछ है तुम्हें, तेरा अतुलित ताप।। बढ़ता ही अब जा रहा, जग में नित अँधियार। करना माँ तुम वेग से, अब तो तम पर वार।। भटका है हर आदमी, बना हुआ हैवान। हे माँ! दे दो तुम ज़रा, मानव-मन को मान।। सद्चिंतन तजकर हुआ, मानव गरिमाहीन। दुर्गा माँ दुर्गुण हरो, सचमुच मानव दीन।। छोटी-छोटी बच्चियाँ, हैं तेरा ही रूप। उन पर भी तुम ध्यान दो, बाँटो रक्षा-धूप।। हम सब हैं तेरा सृजन, तू सचमुच अभिराम। दुर्गा माँ तू तो सदा, रखती नव आयाम।। ये पल पावन हो गए, लेकर तेरा नाम। यह जग दुर्गे है सदा, तेरा ही तो धाम।। दुर्गा माँ तुम वेगमय, तुम तो हो अविराम। धर्म, नीति तुमसे पलें, साँचा तेरा नाम।। दुर्गा माँ तुमने किया, मार असुर कल्याण। नौ रूपों में तुम रहो, पापी खाते बाण।। सिंहव...
चेहरा भाव
दोहा

चेहरा भाव

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** मानो कहकर सोचना, दे जाता अवसाद। जो सोचकर कहे सदा, मनमोहक हो नाद।। चेहरा भाव जानिए, अंतर्मन की चाल। कलम समझ तो अनवरत, भाषा मालामाल।। हाव_भाव गुण देन से, जीवन कुछ आसान। दोहरापन छिपा कहीं, कर लेते पहचान।। मुख से प्रकट कुछ करे, मन में रखे दुराव। भिन्न रूप अति सहजता, दिखता है स्वभाव।। पढ़कर भाषा अंग की, माना होती जीत। बचना हो जब गैर से, उसकी है ये रीत।। रिश्तों संग कटुता कभी, देती जब आभास। सहज ढंग परखो इन्हें, सुखद रहे आवास।। विभिन्न अर्थ नकारते, अपनी जिद की टेक। सदाचार ही खो गया, जो बन सकता नेक।। साफ झलकते भाव की, परख शक्ति ही शान। शब्द चयन आधार से, मृदु कुटिल पहचान।। गुण अवगुण दोनों रहें, जग मानव का सार। सहनशील हरदम नहीं, अवश्य करो विचार।। परख अनोखी चाहतें, संभव रहे बचाव। हर पहलू के रूप दो, गलत ...
स्वामी विवेकानंद
दोहा

स्वामी विवेकानंद

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** प्रखर रूप मन भा रहा, दिव्य और अभिराम। स्वामी जी तुम थे सदा, लिए विविध आयाम।। स्वामी जी तुम चेतना, थे विवेक-अवतार। अंधकार का तुम सदा, करते थे संहार।। जीवन का तुम सार थे, दिनकर का थे रूप। बिखराई नव रोशनी, दी मानव को धूप।। सत्य, न्याय, सद्कर्म थे, गुरुवर थे तुम ताप। काम, क्रोध, मद, लोभ हर, धोया सब संताप।। गुरुवर तुमने विश्व को, दिया ज्ञान का नूर। तेज अपरिमित संग था, शील भरा भरपूर।। त्याग, प्रेम, अनुराग था, धैर्य, सरलता संग। खिले संत तुमसे सदा, जीवन के नव रंग।। था सामाजिक जागरण, सरोकार, अनुबंध। कभी न टूटे आपसे, कर्मठता के बंध।। सुर, लय थे, तुम ताल थे, बने धर्म की तान। गुरुवर तुम तो शिष्य का, थे नित ही यशगान।। मधुर नेह थे, प्रीति थे, अंतर के थे भाव। गुरुवर तुमने धर्म को, सौंपा पावन ताव।। वं...
हिंदी के दोहे
दोहा

हिंदी के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिंदी में तो शान है, हिंदी में है आन। हिंदी का गायन करो, हिंदी का सम्मान।। हिंदी की फैले चमक, यही आज हो ताव, हिंदी पाकर श्रेष्ठता, रखे उच्चतर भाव।। हिंदी में है नम्रता, देती व्यापक छांव। नवल ताज़गी संग ले, पाये हर दिल ठांव।। दूजी भाषा है नहीं, हिंदी-सी अनमोल। है व्यापक नेहिल 'शरद', बेहद मीठे बोल।। हिंदी का बेहद प्रचुर, नित्य उच्च साहित्य। बढ़ता जाता हर दिवस, इसका तो लालित्य।। हिंदी प्राणों में बसे, यही भावना आज। हर दिल पर करती रहे, मेरी हिंदी राज।। हिंदी नित गतिमान हो, सदा करे आलोक। इसी तरह हरदम प्रथम, फिर मन कैसा शोक।। हिंदी मेरा ज्ञान है, यह मेरा अभिमान। रोक सकेगा कौन अब, इसका तो उत्थान।। हिंदी में संवेग है, हिंदी में जयगान। सारे मिल नित ही करें, हिंदी का गुणगान।। हिंदी पूजन-यज्ञ है,...
राखी पर दोहे
दोहा

राखी पर दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** राखी में तो धर्म है, परंपरा का मर्म। लज्जा रखने का करें, सारे ही अब कर्म।। राखी धागा प्रीति का, भावों का संसार। राखी नेहिलता लिए, नित्य निष्कलुृष प्यार।। राखी बहना-प्रीति है, मंगलमय इक गान। राखी है इक चेतना, जीवन की मुस्कान।। राखी तो अनुराग है, अंतर का आलोक। हर्ष बिखेरे नित्य ही, परे हटाये शोक।। राखी इक अहसास है, राखी इक आवेग। भाई के बाजू बँधा, खुशियों का मृदु नेग।। राखी वेदों में सजी, महक रहा इतिहास। राखी हर्षित हो रही, लेकर मीठी आस।। राखी में जीवन भरा, बचपन का आधार। राखी में रौनक भरी, देती जो उजियार।। भाई हो यदि दूर तो, डाक निभाती साथ। नहीं रहे सूना कभी, वीरा का तो हाथ।। यही कह रहा है 'शरद’, राखी का कर मान। वरना होना तय समझ, मूल्यों का अवसान।। राखी में आवेश है, राखी में उल्लास। राखी...
प्रीति की रीति के दोहे
दोहा

प्रीति की रीति के दोहे

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन दिखता है वहाँ, जहाँ प्रीति की रीति। अंतर्मन में चेतना, पले नेह की नीति।। नित्य प्रीति की रीति से, जीवन बने महान। ढाई आखर यदि रहें, दूर रहे अवसान।। संग प्रीति की रीति है, तो जीवन खुशहाल। कोमल भावों से सदा, इंसां मालामाल।। जियो प्रीति की रीति ले, तो सब कुछ आसान। मन की पावनता सदा, लाती है उत्थान।। जहाँ प्रीति की रीति है, वहाँ बिखरता नूर। सुख आ जाता साथ में, हो हर मुश्किल दूर।। ताप प्रीति की रीति है, जो हरती अवसाद। श्याम-राधिका हो गए, सदियों को आबाद।। अगर प्रीति की रीति है, तो होगा यशगान। दिल से दिल जुड़कर सदा, रचते नवल विधान।। आज प्रीति की रीति से, युग को दे दो ताप। जीवन तब अनमोल हो, दर्द उड़े बन भाप।। प्रीति रीति मंगल रचे, करे सदा आबाद। प्रीति बिना इंसान तो, हो जाता बरबाद।। रीति प...
धरती करे पुकार
दोहा

धरती करे पुकार

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन भर गाते सभी, धरा मातु के गीत। हरियाली को रोपकर, बन जाएँ सद् मीत।। हरी-भरी धरती रहे, धरती करे पुकार। तभी हवा की जीत है, कभी न होगी हार।। हरियाली से सब सुखद, हो जीवन अभिराम। पेड़ों से साँसें मिलें, धरा बने अभिराम।। धरा सदा ही पालती, संतति हमको जान। रखो धरा के हित सदा, बेहद ही सम्मान।। धरा लुटाती नेह नित, वह करुणा का रूप। उसकी पावन गोद में, सूरज जैसी धूप।। धरा लिए संसार नित, बाँटे सुख हर हाल। हवा, नीर, भोजन, दुआ, पा हम मालामाल।। धरा-गोद में बैठकर, होते सभी निहाल। मैदां, गिरि, जंगल सघन, सुख को करें बहाल।। हरियाली के गीत नित, धरा गा रही ख़ूब। हम सबको आनंद है, बिछी हुई है दूब।। नित्य धरा-सौंदर्य लख, मन में जागे आस। अंतर में उल्लास है, नित नेहिल अहसास।। धरा सदा करुणामयी, बनी हुई वरदान।...
नीर से ही जीवन है
दोहा

नीर से ही जीवन है

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नीर लिए आशा सदा, नीर लिए विश्वास । नीर से सांसें चल रही, देवों का आभास ।। अमृत जैसा है सदा, कहते जिसको नीर । एक बूँद भी कम मिले, तो बढ़ जाती पीर ।। नीर बिना जीवन नहीं, अकुला जाता जीव । नीर फसल औ' अन्न है, नीर "शरद" आजीव ।। नीर खुशी है, चैन है, नीर अधर मुस्कान । नीर सजाता सभ्यता, नीर बढ़ाता शान ।। जग की रौनक नीर से, नीर बुझाता प्यास । कुंये, नदी, तालाब में, है जीवन की आस ।। सूरज होता तीव्र जब, मर जाते जलस्रोत । घबराता इंसान तब, अनहोनी तब होत ।। नीर करे तर कंठ नित, दे जीवन को अर्थ । नीर रखे क्षमता बहुत, नीर रखे सामर्थ्य ।। नीर नहीं बरबाद हो, हो संरक्षित नित्य । नीर सृष्टि पर्याय है, नीर लगे आदित्य ।। नीर बादलों से मिले, कर दे धरती तृप्त । बिना नीर के प्रकृति यह, हो जाती है तप्त ।। नीर ...
महाप्रभु वल्लभ चालीसा
दोहा

महाप्रभु वल्लभ चालीसा

डाॅ. दशरथ मसानिया आगर  मालवा म.प्र. ******************* श्री वल्लभ सुमिरन करुं, मनुज रूप अवतार। लीला राधे श्याम की, कीनी जग विस्तार।। जयजय महप्रभु वल्लभदेवा। पुष्टि मार्ग को तुम्ही सेवा।।१ इलम्मागारु कोख से आये। लक्षमन भट्ट पिता कहाये।।२ संवत पंद्रह सौ पैंतीसा। एकादशी को जन्में ईशा।।३ कृष्णा पक्ष मास बैसाखा। धरम महीना जग की आशा।।४ जिला रायपुर चम्पा ग्रामा। आये वल्लभ जन कल्याणा।।५ गोपाल कृष्ण कुल के देवा। मातु पिता सब करते सेवा।।६ गुरु मंगला विल्व पढ़ाया। अष्टादश का मंत्र बताया।।७ काशी में प्रभु विद्या पाई। अल्पकाल में करी पढ़ाई।।८ स्वामी नारायण दी शिक्षा। तिरदंडा संयासी दिक्षा।।९ ब्रह्मसूत्रअणु भाष्य बनाया। उत्तर मीमांसा कहलाया।।१० भगवत टीका की कर रचना। तत्व अर्थ दीपा का लिखना।।११ अग्निदेव अवतारा भाई। जगत गुरु की पदवी पाई।।१२ ...
गाँव
दोहा

गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गाँव बहुत नेहिल लगें, लगतें नित अभिराम। सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।। सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास। जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।। सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज। वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।। हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान। प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।। खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान। हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।। कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर। नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।। खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर। प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।। जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास। प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।। जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास। हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ह...