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नव्य वर्ष

विजय गुप्ता “मुन्ना”
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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ग्यारह महिने दौड़ती,
सबकी अपनी रेल।
नवल माह पूरा करे,
अंतिम वाला खेल।।

सुंदर शोभा पलक पर,
रखना सदा जरूर।
बूंद पत्ते अवसान से,
निज स्थल होते दूर।।

सबक पड़ोसी माह से,
मिल जाता हर बार।
दिसंबर को पछाड़ता,
नवल साल संसार।।

दुर्गम पथ नदिया चले,
अनुपम दे उपहार।
वक्त घड़ी चलती सरल,
अनुभव मिले अपार।।

खो देने का भय रहे,
याद बिदा का मोल।
बूढ़ा वक्त दरक रहा,
नूतन परतें खोल।।

चूके समय बहाव में,
परिणिति भी अनजान।
अहम आहुति बता रहा,
भूल गए अनुमान।।

खुशियाँ पल संयोग से,
जब भी खोले द्वार।
भुलवाए संताप का,
भारी भरकम भार।।

स्नेहयुक्त संसार में,
पल पल जीवन खास।
चाहत रंगत ही सदा,
हरदम रखना पास।।

संकट मोड़ खड़ा मिले,
अनर्थ भी तैयार।
पकड़ नहीं तकदीर पे,
कहता दिल आगार।।

आवागमन युक्ति चले,
नूतन समझो अर्थ।
सुंदरतम उपयोग हो,
लेश मात्र ना व्यर्थ।।

भावुक भाषा भंगिमा,
भरसक भरता भाल।
चहके चाल चलन चक्षु,
चित्त चले चौपाल।।

निज हित से बढ़कर रहे,
हित समाज आधार।
सनातन का नव्य वर्ष,
राम दिव्य घर द्वार।।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता “मुन्ना”
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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