पुरुष
सरला मेहता
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************
विधा - मुक्तक
मात्रा भार - ३०
घर के हर सदस्य के प्रति,
कर्तव्य सारे निभाता है
पसीना दिन-रात बहाता व
अधिकार भूल जाता है
जो आधार स्थम्भ है
परिवाररूपी इक इमारत का
सबकी खुशी में ही खुश
रहता वह पुरुष कहलाता है
घिसी स्लीपरें पहनकर,
सबको ब्रांडेड शूज़ दिलाएँ
तन ढाँके उतरन-पुतरन से,
बच्चों को नये सिलाए
तन-मन-धन सब परिवार
पर अर्पण कर देता है पुरुष
करके रात पाली थककर,
सबकी दिवाली मनवाए
परिचय : सरला मेहता
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...