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गीतिका

बकुल वीथिका के सौरभ में
गीतिका

बकुल वीथिका के सौरभ में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद - सार छंद बकुल वीथिका के सौरभ में, प्रेम-पंथ महमाता। गंधसार तुम बन खंजन मैं, देख तुम्हें ललचाता।।१ विधुवदनी तुम पूरनमासी, बन छत पर जब आती, दृग-सागर में प्रणय-पुस्तिका, पढ़ मैं नित्य नहाता।।२ सांध्य दीप-सी ढ्योड़ी को तुम, जगमग ज्यों कर देती, हृदयांचल के मंदिर में मैं, तुम्हें सजा हर्षाता।।३ अवगुंठन की आड़ लिए तुम, मंद-मंद शर्माती, पाटल अधरों पर प्रियता का, चुंबन मैं धर जाता।।४ रति रंभा तुम परिरंभन की, आस लगा जब बैठी, यह मन वासव प्रमुदित होकर, ठुमके साथ लगाता।।५ प्यास पपीहे सा तड़पाती, मन के मरुथल को जब, तुहिन कणों को भर सीपी में, तुम्हें पिलाने आता।।६ सुधियाँ ओढ़े सो जाती तुम, सपनों के बस्ती में। चंचरीक मैं सारंगी पर, लोरी मधुर सुनाता।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बै...
अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस
गीतिका, छंद

अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्या...
अब तक है शेष डगर साथी
ग़ज़ल, गीतिका

अब तक है शेष डगर साथी

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** अब तक है शेष डगर साथी। आओ चलते मिलकर साथी।। यदि मानव हो तुम भी मैं भी, फिर क्यों इतना अंतर साथी।। तुम उच्च महल मैं हूँ झोपड़, पर मैं भी तो हूँ घर साथी।। उपयोग हमारा दोनों का, है बिल्कुल ही रुचिकर साथी। यदि तुमने वैभव पाया है, पाये नौकर चाकर साथी।। तो मैं आध्यात्म भक्ति सेवा, सत्कार वरित किंकर साथी। हो तुम अपूर्ण मैं भी अपूर्ण, पूरा केवल ईश्वर साथी।। फिर क्यों तन तान मदांध हुए। आओ मुड़कर भीतर साथी। यह जग तो केवल एक स्वप्न, इसमें क्यों मद मत्सर साथी। सबको जब जाना परमस्थल, उस परमात्मा के दर साथी।। फिर क्यों है इतना भेद भला, क्या सेवक क्या अफसर साथी। हम एक पिता की संतानें, है एक जगह पीहर साथी।। तुम 'नित्य' सही को भूल गये, है सबके जो अंदर साथी।। परिचय...
भोर की ठंडी छुअन
गीतिका

भोर की ठंडी छुअन

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** भोर की ठंडी छुअन-सी, प्रीति का अहसास हो तुम। चंद्र मुख पर खिलखिलाता पूर्णमासी हास हो तुम।।१ रूपसी हो देख कर, शृंगार भी तुमको लजाता, रत्नगर्भा पर सजा, सौंदर्य का मधुमास हो तुम।।२ बिन तुम्हारे सब तिमिर घन, आ खड़े हैं क्लेश लेकर, जिन्दगी का हो उजाला, हर्ष का आभास हो तुम।।३ शील संयम ज्ञान साहस, उर दया भरपूर लेकिन, भूख तन की प्यास मन की, प्राण का वातास हो तुम।।४ बन पपीहा मन पुकारे, मैं यहाँ पिय तुम कहाँ हो, द्वार सजती अल्पना हो, पर्व का उल्लास हो तुम।।५ रागिनी हो राग हो सुर ताल लय का तुम निलय हो, धड़कनों से छंद गाती, गीत का विश्वास हो तुम।।६ कुंज 'जीवन' का सुवासित आ करो मधुमालती बन, मोगरा, चम्पा, चमेली, कौमुदी से खास हो तुम।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्...
सामाजिक कारा
गीतिका

सामाजिक कारा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हुई प्रस्फुटित ज्यों ही उर में, सहज प्रणय धारा। लगा तोड़ने मन का मधुकर, सामाजिक कारा।।१ स्वाभिमान का ध्वज ले हाथों, खड़ा प्रपंचक भी, भेदभाव की तपिश बढ़ा कर, नाप रहा पारा।।२ अनुरंजन से फलित धरा पर, सत्ता का लालच, सींच घृणा का जल बो देता, विष वर्धक चारा।।३ पिछड़ों के घर आग लगाकर, हाथ सेंकता जो, जोर-शोर से लगा रहा अब, समता का नारा।।४ प्रतिभा का सपना जब छीना, जालिम रिश्वत ने, पल भर में मीठी सुधियों का, स्वाद हुआ खारा।।५ अवसादों की गझिन तमिस्रा, में डूबा जब मन, छिटक खड़ा दिल अवलंबन से, 'जीवन' का हारा।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ...
चुनावी दीवाने
ग़ज़ल, गीतिका

चुनावी दीवाने

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** देखा जिसको, वो चुनावी दीवाने लगे, वे छोड़ धन्धा, गालों को बजाने लगे। देश-दुनिया का जिनको पता ही नहीं परिणाम, हार-जीत का, सुनाने लगे। घोषणाएं क्या रिश्वत का ऑफर नहीं एक हम हैं, लार अपनी टपकाने लगे। व्यवस्था में ये दल भी विवश हैं सभी झुन-झुने, अपने-अपने, दिखाने लगे। हम देश-राष्ट्र का, अन्तर भूले सभी दादा के संग संस्कृति भी जलाने लगे। सत्य को पुस्तकों में किया है दफन झूँठ को ही, कुतर्कों से सजाने लगे। जैसे पशु, मैं धरा पर, विचरता रहा, छोड़ डंडा, मुझको ग्वाले मनाने लगे। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उ...
झर्र बिलैया
गीतिका, बाल कविताएं

झर्र बिलैया

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** टी ली, ली ली झर्र बिलैया। खा गई अक्षु, सारी मलैया। अम्मा से कट्टी क्यों कर लूं वह तो मेरी जय-जय मैया। करवाऊंगी, मैं सबकी पिट्टी जब भी आयेंगे, आबू भैया। किट्टू हैं, मेरी प्यारी दीदी संग-संग नाचें ता-ता थैया। मैं भी पढ़के दिखलाऊँगी- चाचा जी मेरे, बहुत पढैया। जब हम अच्छे काम करेंगे- तो फ्रेंड बनेंगे सभी सिपैया। रोज खिलाया करती हप्पा- जब-जब घर आती है गैया। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्...
भव्य स्वप्न जागकर
गीतिका

भव्य स्वप्न जागकर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** भव्य स्वप्न जागकर निहारते चलो सखे। मूर्त रूप भूमि पर उतारते चलो सखे।।१ शीश मातृभूमि का तना रहे सदैव ही, भाव राष्ट्रप्रेम का निखारते चलो सखे।।२ सृष्टि हो समृद्ध प्राण तत्व हो यथेष्ट सब, लोभ, मोह, राग ,द्वेष मारते चलो सखे।।३ हो न भेदभाव के निशान सुक्ष्म भी कहीं, साम्य भाव का स्वभाव धारते चलो सखे।।४ पंख जो विकास का न छू सके अभी गगन, धैर्य, प्रीति से उन्हें सँवारते चलो सखे।।५ दासता न दीनता सकें पसार पाँव अब, हो समर्थ जन सभी पुकारते चलो सखे।।६ प्रेम तत्त्व ज्ञान तत्त्व से सजे मनुष्यता, बुद्ध मार्ग शुद्ध है विचारते चलो सखे।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहा...
पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका
गीतिका

पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** जल ही जीवन, तत्त्व प्रमुख है, जलमय है सारा संसार। उठ जाता है दाना-पानी, बिन जल मचता हाहाकार।।१ जल में रहकर बैर मगर से, करता कभी नहीं विद्वान, पानी फिर जाता है श्रम पर, मत पानी पर लाठी मार।।२ कच्चे घट में पानी भरना, अर्थ और श्रम का नुकसान, आग लगा देता पानी में, जिसने खुद को लिया निखार।।३ अधजल गगरी चले छलकते, जाने कब पानी का मोल, पानी भरना, पानी देना, पानी सा रखना व्यवहार।।४ चुल्लू भर पानी में मरना, नहीं चाहता है गुणवान, तलवे धोकर पानी पीना, सीख गया मन का मक्कार।।५ दूध-दूध पानी को पानी, करता सच्चे मन का हंस, हुक्का-पानी बंद न करना, कभी किसी का पानी मार।।६ घाट-घाट का पानी पीना, नहीं सभी के वश की बात, पानी पीकर कोस न 'जीवन', पानी की सबको दरकार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' न...
तुम्हारी बातों में
गीतिका

तुम्हारी बातों में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मधुरिम सी मनुहार, तुम्हारी बातों में। है अनुपम शृंगार, तुम्हारी बातों में।।१ शब्द-शब्द है स्रोत,अपरिमित ऊर्जा का, भरे सरस उद्गार, तुम्हारी बातों में।।२ संदर्भों के अर्थ, निकलते बहुतेरे, भावों का विस्तार, तुम्हारी बातों में।।३ खिलें हर्ष के पुष्प, महकता कुसुमित मन, मधु ऋतु सरिस बहार, तुम्हारी बातों में।।४ घायल हुए अनेक, समर में नैनों के, चले तीर-तलवार, तुम्हारी बातों में।।५ आशाओं के बाग, उजड़ते देखे जब, सुलगे स्वप्न हजार, तुम्हारी बातों में।।६ रहे बाँचते मौन, हृदय के पन्ने पर, खबरों का बाजार, तुम्हारी बातों में।।७ 'जीवन' के अनुबंध, हुए जिसके कारण, मिला न वह सुख सार, तुम्हारी बातों में।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि...
स्वयं चले आये
गीतिका

स्वयं चले आये

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हम सींते जा रहे, उधड़ता जाता है- ये भाग्य क्या-क्या गुल खिलाता है। कर्म की घड़ी को, जो न देता विराम निश्चित ही एक दिन मंजिल पाता है। स्वयं चले आये , बहुत दूर उजालों से- अंधेरों में हमको अब हौवा डराता है। चढ़कर उतरना है, उतरकर चढ़ना है। प्रतिदिन ही सूरज, यही तो बताता है। अर्जुन बनकर कुरुक्षेत्र में उतरना तुम- अभिमन्यु बार-बार युद्ध हार जाता है। एक हाथ मे शस्त्र, दूसरे से कृपा बरसे ऐसा प्रतापी ही श्रेष्ठ शासन चलाता है। वीर नहीं, वह तो केवल बिजुका ही है- जो आवश्यक होने पे शस्त्र न उठाता है। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय स...
वोट का मोल
गीतिका

वोट का मोल

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** नस-नस में इसकी, बहुत झोल है- कौन कहता है दुनिया, ये गोल है। सद्भावनाएँ ढूँढे से न मिलती यहॉं केवल सिक्कों से हो रही तोल है। बेचने सपने फिर वे गली आ गए- बजता खूब उनका, फटा ढोल है। जिसे नाली से कोई, उठाता नहीं- शराबी बुधुआ की वोट का मोल है। भाई, भाई का शत्रु बना है मगर- मिलता जाति से निर्मित घोल है। आपस के हैं उन्हें क्यों छोड़ें, भले कारनामों के उनकी खुली पोल है। पीढ़ियों से जो खिचड़ी पकाते रहे- अब बहुत ही ऊँचा उनका बोल हैं। भेड़िये भी चुनेंगे, आज राजा मेरा- क्यों कि मानव का पहना खोल है। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिच...
पर्वत ने कहा…
गीतिका

पर्वत ने कहा…

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** बोलो स्वप्न तुमको, क्या आते नहीं हैं, क्या रातों में अब हम, सताते नहीं हैं । दिनभर साथ रहती है मेरी अमावस- ये चन्दा, और सूरज, सुहाते नहीं हैं । कहाँ पर गिरेगी, बदली की बिजली- वह नहीं जानते हैं, या बताते नहीं हैं । पर्वत ने कहा था, एक दिन नदी से- तोड़कर हृदय को, ऐसे जाते नहीं हैं । कब तक समेटे, ये शब्दों की आँधी- वरना ऐसे तो हम, गीत गाते नहीं हैं । प्यासा है कितना, आँखों का सागर- यूँ मगर हम किसी को, जताते नहीं है । हरबार पूछते हो, तुम क्यों नाम मेरा- एक हम हैं किसी को भुलाते नहीं हैं परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहि...
आवारा मन के..
गीतिका

आवारा मन के..

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** ढूँढे जिसको उधर गया होगा- वो तेरा गाँव, नगर गया होगा । झूँठ के आगे दुम हिलाता है- शायद अंदर से मर गया होगा । सफेद बादल यूँ नहीं बरसा इस मौसम से डर गया होगा । बेटी नदिया को विदा करके कोई पर्वत बिखर गया होगा । भूखे बच्चों के लिए तूफां में- वो समन्दर उतर गया होगा । भीड़ क्यों जुटी, वह बेचारा- नहीं समझा मगर गया होगा । मंजिल मिल जाएगी उसको- जो दिशा परखकर गया होगा । तड़पता, ये जो काँपता हृदय- आवारा मन के घर गया होगा । यूँ ही वह कत्ल नहीं कर देता भाई हद से गुजर गया होगा । बेटा पढ़ा लिया है एम ए तक- वह, अब तो संवर गया होगा । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"का...
बापूजी
गीतिका

बापूजी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** बदल लिया है चोला सब ने, बदल गए ढब बापूजी। दिखा रहे दल झूठे सारे, अपने करतब बापूजी।।१ बुरा न बोलो, सुनो, न देखो, बदली सबकी परिभाषा, इन राहों पर चलता कोई, दिखा नहीं अब बापूजी।।२ सत्य अहिंसा दया प्रेम के, अर्थ हुए सब बेमानी, स्वार्थ साधना में रम जाना, सबका मतलब बापूजी।।३ सम्मानों के ओढ़ दुशालें, कलमें भूली बल अपना, शर्मिंदा है नजरें उनकी, बंद पड़े लब बापूजी।।४ चाहा तुमने यहाँ रोपना, भाईचारे के उपवन, भेदभाव के उग आए पर, सारे मजहब बापूजी।।५ टाँग खींचना और गिराना, फिर चढ़ना है ऊपर को, ताड़ रही नजरें सबकी, ऊँचे मनसब बापूजी।।६ आड़ तुम्हारे तस्वीरों की, कब तक इन्हें बचाएगी। तुम्हें बनाने लगे हुए जो, अपना ही रब बापूजी।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मै...
क्या ठीक है …?
गीतिका

क्या ठीक है …?

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** इन दानवों को पढ़ाना, क्या ठीक है ? लालची रुंठे, तो मनाना क्या ठीक है ? जिसमें सदभावनाएं सब मर ही चुकीं- बताओ ऐसा, ये जमाना, क्या ठीक है ? सच की परिभाषा, हम जानते ही नहीं किसी के सच को बताना क्या ठीक है ? नहाओ चाहो जिस भी नदिया में तुम किन्तु इनमें ही समाना क्या ठीक है ? हो सके तो सबके हृदय की अग्नि मिटा ये घर का चूल्हा बुझाना क्या ठीक है ? स्वाभिमान बिना, हर जीवन व्यर्थ है- बिना बुलाये कहीं जाना क्या ठीक है ? आदमी से भयानक, नहीं प्राणी कोई उनका जीवों को सताना क्या ठीक है ? कभी तो अन्तर में भी सिमट कर देखिए- हरदम स्वयम को दिखाना क्या ठीक है ? परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रे...
प्रीति की रसधार हो तुम
गीतिका

प्रीति की रसधार हो तुम

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** प्यास जो दिल की बढ़ाए, प्रीति की रसधार हो तुम। छेड़ दे संगीत स्वर जो, कर्ण प्रिय झंकार हो तुम।।१ प्राण बनकर बस गई हो, श्वास में प्रश्वास में हर, शुष्क पतझड़ उर विपिन का मौसमी श्रृंगार हो तुम।।२ घोर तम में टिटहरी सी, आस की आवाज देकर, रश्मियों सी छू रही तन, भोर का उपहार हो तुम।।३ महमहाते बाग में तुम, चहचहाती पंछियों सी, जो न उजड़ेगा कभी, सौंदर्य का बाजार हो तुम।।४ उर समंदर में विचारों की भटकती नाव जब भी, दर्द देती उर्मियों को चीरती पतवार हो तुम।।५ हो गया साकार 'जीवन' जो किया गठजोड़ तुम से, स्वप्न देखे जिस भवन के, नींव का आधार हो तुम।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कव...
राजमहल में..
गीतिका

राजमहल में..

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** हमने, स्वयम ही उनको, कई बार मरते देखा निजी स्वार्थ के लिए ही, नजरों से गिरते देखा । जाना कहाँ है पूछा, तो कुछ भी बता न पाए लेकिन उम्रभर निरंतर, उनको है चलते देखा । हम दिशाहीन हो गए हैं, कोई राह तो बताए- उस चन्दा को अमावस में, हमने दुबकते देखा । राजा डरा हुआ है, उसे सूझे न जतन कोई इस राजमहल में भी, चोरों को पलते देखा । ये रोबोट बन चुकी है, एक भीड़ बहुत सारी- बिजूका-से, रक्षकों को अब हाथ मलते देखा । माना कि दूर हैं वो, उनकी यादें ही निकट हैं फिर छाए हैं क्यों बादल, मौसम मचलते देखा । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाश...
नीर जैसी जिंदगी
गीतिका

नीर जैसी जिंदगी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** स्वच्छ चंचल नत नदी के, नीर जैसी जिंदगी। मुक्त नम मारुत सरीखी, हीर जैसी जिंदगी।।१ पंछियों सी चहचहाती,नीड़ नभ तरु के शिखर, चुलबुली बन पर पसारे,चीर जैसी जिंदगी।।२ स्वाद के नौ रस समेटे, इस प्रकृति के थाल में, चटपटी नमकीन खारी, खीर जैसी जिंदगी।।३ दासताओं की सुदृढ़, दीवार मटियामेट कर, व्योम छूने को खड़ी, प्राचीर जैसी जिंदगी।।४ लहलहाते खेत जो, मरु सींचते है स्वेद से, मौसमी संताप सहती, धीर जैसी जिंदगी।।५ सज तिरंगे में विहँसती, सरहदों पर देश के, मातृ भू पर यह खनकती, वीर जैसी जिंदगी।।६ रातरानी सी गमकती, बाँटती खुश्बू फिरे, कामना से मुक्त यह तस्वीर जैसी जिंदगी।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
षडयंत्र आतुर हैं
गीतिका

षडयंत्र आतुर हैं

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** जन संख्या की, जब यहाँ भरमार है ये महंगाई का मुद्दा तो सदाबहार है। जब चाहो विरोध कर सकते हो तुम कोई मौसम या फिर कोई सरकार है । दिखीं नहीं तुमको निन्यानवें अच्छाइयां मेरी ही एक गलती पर बस टकरार है। देश निगलना चाहते हैं, वह नास्ते में कहते हैं हमको भी तो इससे प्यार है । षडयंत्र आतुर हैं, आस्तित्व मिटाने को ये अपनी संस्कृति भी, बहुत लाचार है । अहिंसा के जाल की तासीर तो देखो इसे हम समझ बैठे कि शीतल बयार है । सबके सुख की, क्यों करें हम कामना जब दरिन्दों के, हर हाथ में तलवार है। तुम जो हमको, घाव देते जा रहे हो चुकायेंगे, ये तेरा हम पर जो उधार है । जब संघर्ष करना ही पड़ेगा, देर क्यों या फिर बता की मिटने को तैयार है । परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर ...
राह अपनी बनाकर
गीतिका

राह अपनी बनाकर

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** सपन, हृदय में ज्यों-ज्यों पनपते गए- उधर रपटन न थी, पर फिसलते गए। अपनों को समझते हैं, अपना ही हम- परन्तु उनको सदां, हम तो खलते गए। यूँ सैकड़ों झाड़ियाँ, रोड़े आते हैं बहुत- हम राह अपनी बनाकर, निकलते गए। टांग खींचने वालों का, लगा मेला यहां- मंजिल पायी उन्होंने जो बस चढ़ते गए। यूँ मानवता- अहिंसा के पुजारी है हम- किन्तु नागों के फन, हम कुचलते गए। एक शातिर, थोड़ा मीठा बोले तो क्या- उसकी बातों से, क्यों हम पिघलते गए। निर्धारित नहीं लक्ष्य, ना दिशा ज्ञात है- हम एक नशेड़ी के जैसे ही चलते गए। संस्कृति- धर्म का कुछ, पता ना किया- हम यूँ बहकते-बहकते ही ढलते गए। स्वार्थ का झुनझुना, जब बजा सामने- तो हम पागल बने, और उछलते गए। कार-कोठी तक पहुँचे, वह किस तरह- राह जानी ही नहीं, केवल जलते गए। संघर्षो...
अक्षर-अक्षर प्यार लिखें …
गीतिका

अक्षर-अक्षर प्यार लिखें …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता को जिंदा रखने, अक्षर-अक्षर प्यार लिखें। कलम कसाई बनकर हम क्यों, दुखड़ों का अंबार लिखें।।१ बीज प्रीति के रोपित करने, मानव के बंजर उर पर, श्रम सीकर-सा सींच-सींच हम, करुणा के उद्गार लिखें।।२ छंदों के उद्यान उगा हम, महकाने वाले जग को, पंक्ति-पंक्ति में बस मानव के, सद्कर्मों का सार लिखें।।३ दिल के सम्यक् संयोजन कर, भरें मधुरिम काव्य के रस, कलुष भाव के भेद मिटा हम, प्रणय युक्त संसार लिखें।।४ विश्व शांति हो विश्व पटल पर, लहराएँ हम वह परचम, भाल भारती का हो उन्नत, ऐसा लोकाचार लिखें।।५ जला ज्ञान के दीप जगाएँ, हो जिनके घर अँधियारा, सत्पथ के राही हैं जितने, हम उनका आभार लिखें।।६ हो'जीवन'खुशियों से रोशन, मिट जाये अवसाद सभी, रोम-रोम में इस मिट्टी से, हम कुसुमित श्रंगार लिखें।।७ परिचय...
कलुष-कल्मष हृदय से
गीतिका

कलुष-कल्मष हृदय से

रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि कोलार रोड, भोपाल (म.प्र.) ******************** यदि कलुष-कल्मष हृदय से त्यागना है. हो अगर संकल्प दृढ़ सम्भावना है. राष्ट्र का गौरव बढ़े हो नाम जग में, मन-हृदय में शुभ्र मंगल कामना है. स्वर्ण चिड़िया था कभी भारत हमारा, चमचमायेगा पुन: प्रस्तावना है. मोह-मत्सर दम्भ-लालच त्यागकर अब, सत्य का दामन सभी को थामना है. नित्य कर चिंतन-मनन निज दोष देखें, इंद्रियाँ संयम-नियम से माँजना है. पाठ पूजा हो न हो सेवा जरूरी, कर्मनिष्ठा प्रेम ही तो साधना है. देश में हो एकता मिलकर रहें हम, 'रवि' परम प्रभु से यही बस प्रार्थना है. परिचय :- रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि' निवासी : कोलार रोड, भोपाल (म•प्र•) * २००५ से सक्रिय लेखन। * २०१० से फेसबुक पर विभिन्न साहित्यिक मंचों पर प्रतिदिन लेखन। * विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित। * लगभग १० साझा संकलनों मे...
प्रेम रंग ले खेले होली
गीतिका

प्रेम रंग ले खेले होली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** गीतिका आधार छंद - चौपाई विधान - कुल १६ मात्राएँ, आदि में द्विकल त्रिकल त्रिकल वर्जित, अंत में गाल वर्जित समांत - ओली, अपदांत हँसी, खुशी, मस्ती की टोली। प्रेम रंग ले खेले होली।।१ चुन्नू-मुन्नू के मुखड़े अब, लगे उकेरी है रंगोली।।२ लाल हुआ है किंशुक का तन, सुन बसंत की हँसी ठिठोली।।३ महुए पर चढ़ दाग रहा है, फागुन पिचकारी से गोली।।४ हरिया धनिया देख चहकते, अटी अन्न से खाली खोली।।५ हुए पड़ोसन के स्वर मीठे, कोकिल ने मुख मिश्री घोली।।६ सरस लेखनी कहती है बस, 'जीवन' के भावों की बोली।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
हुए बाग के भ्रमर मवाली
गीतिका

हुए बाग के भ्रमर मवाली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद- चौपाई (मापनी मुक्त मात्रिक) समांत- आली, अपदांत, कलियों से ले रहे दलाली। हुए बाग के भ्रमर मवाली।।१ आम्र बाग में छिप टहनी पर, सुना रही कोयल कव्वाली।।२ जब हिसाब माँगा बेटे ने, डूब गई माँ की हम्माली।।३ लाठी जब परदेश चली तो, टूट गई उम्मीदें पाली।।४ पके खेत तब बरसे ओले, उड़ी कृषक के मुख की लाली।।५ घिसी लकीरें श्रम के कर से, चमक न पाई किस्मत काली।।६ स्वप्न स्वार्थ के जागे जब भी, मुर्दों ने भी बदली पाली।।७ भाव प्रस्फुटित हुए न उर में, जब 'जीवन' ने कलम सँभाली।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं...