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हुए बाग के भ्रमर मवाली

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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आधार छंद- चौपाई (मापनी मुक्त मात्रिक)
समांत- आली, अपदांत,

कलियों से ले रहे दलाली।
हुए बाग के भ्रमर मवाली।।१

आम्र बाग में छिप टहनी पर,
सुना रही कोयल कव्वाली।।२

जब हिसाब माँगा बेटे ने,
डूब गई माँ की हम्माली।।३

लाठी जब परदेश चली तो,
टूट गई उम्मीदें पाली।।४

पके खेत तब बरसे ओले,
उड़ी कृषक के मुख की लाली।।५

घिसी लकीरें श्रम के कर से,
चमक न पाई किस्मत काली।।६

स्वप्न स्वार्थ के जागे जब भी,
मुर्दों ने भी बदली पाली।।७

भाव प्रस्फुटित हुए न उर में,
जब ‘जीवन’ ने कलम सँभाली।।८

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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