Monday, May 20राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

Tag: भीमराव झरबड़े ‘जीवन’

वासंती-बंगा
गीत

वासंती-बंगा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शब्दों की धक्का-मुक्की को, कविवर तुम दंगा मत कहना।। मर्यादित है संज्ञा इसको, वासंती-बंगा मत कहना।। केवल कंकड़ ही फेंके हैं, मैंने ही वे भी गुलेल से। कहीं किसी को चोट न पहुँचे, शब्द भिगोये इत्र तेल से।। नमक डालता हूँ घावों पर कहीं इसे पंगा मत कहना।।१ संता बंता और महंता, मेरे सभी सहोदर भाई। अपनी नाक दिखाने ऊँची, इनकी लंका रोज ढहाई।। राज घाट का पानी पी-पी, राजा को नंगा मत कहना।।२ ज्ञान पत्रिका अर्जित करने, भिड़ा दिये थे शब्द मवाली। काँव-काँव के राग सियासी, छीन गये इस मुख की लाली।। मुख से निकल रही जो अविरल, गाली को गंगा मत कहना।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
बुलडोजर का राग
कविता

बुलडोजर का राग

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चींख रहा है अब कानों में, बुलडोजर का राग। गूंगे को गुड़-सा रस देता, सत्ता का मृदु पाग।। मौन खड़ी संसद के भीतर, प्रश्नों की बंदूक। थाम रखी हाथों ने खाली, उत्तर की संदूक।। गरल हुआ फूलों के दिल में, संचित हुआ पराग।। दुखड़ों के जंगल में बदले,सुख-सुविधा के कोष। पनप रहा बंजर आँखों में, चंबल का जल रोष।। धो न सका साबुन सत्ता का, लगे सियासी दाग।। सीना फाड़ दिखाये श्रद्धा,बहुमत का अन्याय। जंगी ताले में बैठी हैं....आशाएँ निरुपाय।। फैल गई है गली-गली तक, तानाशाही आग।। सेवक पंजे करते पग-पग, अब खूनी तकरार। स्वप्न भूख के थके दौड़कर, पीछे छोड़ गुबार।। हवा बसंती भूल गई है, सद्भावों के फाग।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एव...
उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल
गीत

उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। अश्वमेघ को दौड़ रहा है,...
पौष-माघ के तीर
गीत

पौष-माघ के तीर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** बींध रहे हैं नग्न देह को, पौष-माघ के तीर। भीतर-भीतर महक रहा पर, ख्वाबों का कश्मीर।। काँप रही हैं गुदड़ी कथड़ी, गिरा शून्य तक पारा। भाव कांगड़ी बुझी हुई है, ठिठुरा बदन शिकारा।। मन की विवश टिटिहरी गाये, मध्य रात्रि में पीर।।१ नर्तन करते खेत पहनकर, हरियाली की वर्दी। गलबहियाँ कर रही हवा से, नभ से उतरी सर्दी।। पर्ण पुष्प भी तुहिन कणों को, समझ रहे हैं हीर।।२ बीड़ी बनकर सुलग रहा है, श्वास-श्वास में जाड़ा। विरहानल में सुबह-शाम जल, तन हो गया सिंघाड़ा।। खींच रहा कुहरे में दिनकर, वसुधा की तस्वीर।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
हुई समीरण संदल
गीत

हुई समीरण संदल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन के उर्वरा धरा पर, खिले प्रीति के पाटल। नाचे मन चंचल।। भावों का प्रस्पंदन तन में, लेने लगा हिलोरे। स्वप्निल चित्र छापने वाले, पृष्ठ पड़े जब कोरे।। प्रस्वेदी तन लगा महकने, हुई समीरण संदल।। नाचे मन चंचल.... (१) दिव्य प्रगल्भा सम्मोहन की, कुसुमित सेज सजाती। चटुल दृगों के संकेतों से, मुझको पास बुलाती।। लोहित लब पर मधु नद जैसे, स्वर उसके हैं प्रांजल।। नाचे मन चंचल....(२) स्वाति बूँद की आस सजाये, मन का चातक डोले। स्वागत में अभिसारी दृग भी, द्वार प्रणय का खोले।। ऋतुपति ने छू किया पलाशी, दग्ध देह का अंचल।। नाचे मन चंचल....(३) परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं,...
हम बासी उपमाओं से
गीत

हम बासी उपमाओं से

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से। साध लिया है लक्ष्य व्यंजना ने जुगाड़ कर। हार गया अभिधा का भाषण लट्ठमार कर।। जीत न पाये जीवन का रण प्रतिमाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। १ वंचित रहे विशेषण अपने कर्म पंथ पर। सर्वनाम हम, हिस्से आया गरल सरासर।। जान बचाने भाग रहे हम संज्ञाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। २ कूड़ा-करकट धूल हुए उपमान हमारे। संबंधों की नदियों ने दो दिए किनारे।। किंतु बहें हम नौ रस बन के कविताओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। ३ तथ्य हीन शब्दों के जाले में नित उलझे। प्रश्न प्यास के रहे उम्र भर ही अनसुलझे।। हाथ जलाते रहे रोज हम समिधाओं से। टँगे अरगनी पर हम बासी उपमाओं-से।। ४ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित ...
इसके जद में सब आयेंगे
गीत

इसके जद में सब आयेंगे

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तूफ़ानों-सी बढ़ी रैलियाँ, समरसता का वंश मिटाने। इसके जद में सब आयेंगे।। सघन तिमिर है आम्र वृक्ष भी, लगे खड़ा हो प्रेत वहम का। संस्कारित कुछ शृंग-श्रेणियाँ, खोज रही अस्तित्व स्वयं का। अनुबंधों की धुँधली शर्तें, बनकर मौत खड़ी सिरहाने।। इसके जद में सब आयेंगे।। सावन के घन संभाषण से, कर देते हैं जादू-टोना। अलगावों के दावानल में, सुलग उठा है कोना-कोना।। विश्वासों की मीनारों में, दिखते हैं अब रोग पुराने।। इसके जद में सब आयेंगे।। अट्टहास मौसम का सुनकर, पंछी होने लगे प्रवासी। धुआँ-धुआँ है सभी दिशाएँ, आँखों में निस्सीम उदासी।। जिह्वा पर ताले के भूषण, आजादी पर मारे ताने।। इसके जद में सब आयेंगे।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेर...
उपजाऊ रेत
गीत

उपजाऊ रेत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** कविता के गाँव हुई, उपजाऊ रेत। लहकने लगे हैं अब, छंदों के खेत। शब्दों के सागर से, चुन-चुन के रत्न। सजा रहा आँगन को, धैर्य का प्रयत्न। पढ़ें गीत सोहर के, चिंतन अनिकेत।। लहकने लगे हैं अब, छंदों के खेत।।१ बाल रहे द्वार दीप, प्रमुदित अनुप्रास। संधि करे नैनों से, चपल सब समास। शिल्प कथ्य साध रहा, व्याकरणिक प्रेत।। लहकने लगे हैं अब छंदों के खेत।।२ लगे रंग रोगन में, सधे अलंकार। लीप रहे भाषा की, खुरदुर दीवार। रसिक व्यंजना परसे, नौरस समवेत।। लहकने लगे हैं अब छंदों के खेत।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
आ न सकूँगी इस राखी में भैया कुछ मजबूरी है
गीत

आ न सकूँगी इस राखी में भैया कुछ मजबूरी है

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आस मिलन की माँ बापू से, फिर इस साल अधूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।। पैरोकार नहीं है कोई, निष्ठुर यहाँ जमाने में।। सदय ससुर पर मिर्ची ननदी, शातिर है भड़काने में। कटुक करेले-सी सासू के, मुख में बस अंगारे है, माहिर हैं सब पास पड़ोसी, घर में आग लगाने में।। गऊ सरीखे जीजा तेरे, देवर मीठी छूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।।१ बीज खाद की चढ़ी उधारी, गेह गिरस्थी है घायल। खेतों में हो सकी बुआई, जब गिरवी रख दी पायल। भैंस बियानी घर की जब से, बंद दूध की चंदी पर, मुझे दिहाड़ी मिल जाती है, पंचायत जो है कायल।। पेट पालने को सच भैया, कुछ श्रमदान जरूरी है। आ न सकूँगी इस राखी में, भैया कुछ मजबूरी है।।२ नाम लिखाया है काॅलिज में, बिटिया का रजधानी में। फेल हो ग...
दीवारें पत्थर की
गीत

दीवारें पत्थर की

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हाथ हथौड़ी ले शिक्षा की, छेनी साथ हुनर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।। जकड़े थे कोमल भावों पर, रूढ़िवाद के बंधन। हाथ-पाँव चक्की-चूल्हे में, झुलसे बनकर ईंधन। परंपराओं की कैंची ने, बचपन से पर काटे, पाषाणी सदियों ने इनके, सुनें न अब तक क्रंदन।। प्रीति युक्त जिनके चरित्र को, पुड़िया कहा जहर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।१ कसी कसौटी पर छलना के, आदिम युग से नारी। वत्सल पर धधकाई जग ने, लांछन की चिनगारी। धरा तुल्य उपकारी जिसके, भाव रहे हो उर्वर, हुए नहीं संतुष्ट भोग कर, रागी स्वेच्छाचारी।। हर पड़ाव पर बनी निशाना, व्यंग्य युक्त नश्तर की। तोड़ रही सच आज नारियाँ, दीवारें पत्थर की।।२ उठ पौरुष के अहंकार ने, पग-पग डाले रोड़े। गाँठ प्रीति की जिनसे बाँधी, ताने ...
विषधर-सा मौसम
कविता

विषधर-सा मौसम

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** फन काढ़े विषधर-सा मौसम, सीने पर डोले। कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।। प्यासा सावन मरा माँगते, चुल्लू भर पानी। नाच रही फागुन के आँगन, अब बरखारानी। खलिहानों के दुखिया उर पर, काले बदरा ने, तूफानों की गारत लाकर, कर ली मनमानी।। बिना सूचना के दागे हैं, दुखड़ों के गोले। कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।१ पटवारी के अक्खड़पन में, खेती रोज मरी। घर पटेल के बैठ खाट पर, गिरदावरी भरी। मुआवजे पर निर्मम कैंची, टेढ़ी चाल चले, होरी के अँगुली की गिनती, होती कहाँ खरी।। हर हिसाब पर हुक्मरान का, गब्बरपन बोले। कृषकों की रोटी पर बरसे, बेमौसम ओले।।२ बीज खाद की चढ़ी उधारी, लागत माटी में। बहा मुफ्त में खून पसीना, इस परिपाटी में। चना-चबेना रूखी-सूखी, रोटी से लड़कर, हार गया है कृषक खेत की, हल्दी घाटी में।। ...
ईर्ष्या हुई गझिन…
कविता

ईर्ष्या हुई गझिन…

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** ताज और तलवार चुभोते, चौराहे पर पिन। सद्भावों के कलधौती दिन, होने लगे मलिन।। ढीली गाँठे कसने बैठा, संविधान स्वैच्छिक। प्यास बुझाने लगे लहू से, नर पिशाच वैदिक।। आग लगा जाती बस्ती में, ईर्ष्या हुई गझिन।। रोज स्वार्थ का कुंभ नहाते, कपटी वैरागी। उजला दिखने फेंक रहे हैं, कालिख ही दागी।। गले लगाकर घोंप रहा है, छुरा पेट नलिन।। शब्दों के कृषकों ने बो दी, अपघाती फसलें। पगलाई है चर कर जिसको, मानव की नस्लें।। सरल प्रश्न जीवन के सत्ता, करती रही कठिन।। वरक चढ़े रिश्ते परकोटे, कर देते नंगे। जयकारे है सम्मुख पीछे, प्रायोजित पंगे।। डुबो गया है भाटा फिर से, निकले नये पुलिन।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
बकुल वीथिका के सौरभ में
गीतिका

बकुल वीथिका के सौरभ में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद - सार छंद बकुल वीथिका के सौरभ में, प्रेम-पंथ महमाता। गंधसार तुम बन खंजन मैं, देख तुम्हें ललचाता।।१ विधुवदनी तुम पूरनमासी, बन छत पर जब आती, दृग-सागर में प्रणय-पुस्तिका, पढ़ मैं नित्य नहाता।।२ सांध्य दीप-सी ढ्योड़ी को तुम, जगमग ज्यों कर देती, हृदयांचल के मंदिर में मैं, तुम्हें सजा हर्षाता।।३ अवगुंठन की आड़ लिए तुम, मंद-मंद शर्माती, पाटल अधरों पर प्रियता का, चुंबन मैं धर जाता।।४ रति रंभा तुम परिरंभन की, आस लगा जब बैठी, यह मन वासव प्रमुदित होकर, ठुमके साथ लगाता।।५ प्यास पपीहे सा तड़पाती, मन के मरुथल को जब, तुहिन कणों को भर सीपी में, तुम्हें पिलाने आता।।६ सुधियाँ ओढ़े सो जाती तुम, सपनों के बस्ती में। चंचरीक मैं सारंगी पर, लोरी मधुर सुनाता।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बै...
नवनीत
कविता

नवनीत

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** समरसता के पथ पर रोपे, छल ने बेर बबूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। जले पंख सपनों के सम्मुख, नैन हुए रीते। शाकाहारी के जीवन में, छोड़ दिए चीते।। चलता है अब लाठी से ही, इस जंगल का रूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। ऊँची चिमनी ने वैचारिक, धुआँ बहुत उगला। पर्यावरण प्रदूषित करके, समझा हुआ भला।। भूख प्यास की कर दी उसने, सच में ढीली चूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। धुँधले नभ में अंतर्मन के, दृष्टि दोष जागे। खाई खोदी गई जिधर को, पाँव उधर भागे।। समझ रही है आज तर्जनी,कल की थी जो भूल। पाँव बचाना फटे न फँसकर, भैया कहीं दुकूल।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
प्रिये! तुम्हारे रूप का …
दोहा

प्रिये! तुम्हारे रूप का …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिये! तुम्हारे रूप का, ज्यों ही खिला बसंत। नैनों में हँसने लगा, सुधियों का हेमंत।।१ ठिठुरन ले जब आ गई, माघ-पौष की रात। बैरन निंदियाँ कर रही, रोज कुठाराघात।।२ प्रत्यूषा के द्वार पर, दिखलाने औचित्य। कुहरे का स्वेटर पहन, घूम रहा आदित्य।।३ साया ज्यों ही झूठ का, लगा निगलने धूप। गरम चाय की केतली, ले आया ठग भूप।।४ शर्मिंदा जब-जब हुआ, कर्मों पर दरबार। लिखते गौरव की कथा, चारण बन अखबार।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहान...
मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र….
दोहा

मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र….

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** मृगनयनी के दृग चटुल, छोड़ रहे ब्रह्मास्त्र। बचना हैं तो आप भी, पढ़ें प्रीति का शास्त्र।।१ चंचरीक मन खोलकर, बैठा हृदय गवाक्ष। पढ़े प्रीति की पत्रिका, गोरी के पृथुलाक्ष।।२ भुजपाशों में कैद हो, विहँस उठा शृंगार। जीत गया तन हार कर, मन का वणिक विचार।।४ मेघावरियाँ प्रीति की, बरस रही रस धोल। नर्तन करे कपोल पर, कुंतल भी लट खोल।।४ अवगुंठन कर यामिनी, पढ़े प्रणय के गीत। निक्षण की अभ्यर्थना, स्वीकारो मन मीत।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर ...
गहरे अँधियारे
गीत

गहरे अँधियारे

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** श्रद्धा का विषवर्धक दरिया, तोड़ रहा नित नर्म किनारे। स्वच्छ पुलिन को निक्षेपण में, सौंप रहा गहरे अँधियारे।। छल के पाँसे लेकर बैठी, मैले मन की मथुरा काशी। पाप-पुण्य की ले दोधारी, हरिद्वार हो गया विनाशी। यहाँ लगाती साँझ सबेरे, भूख निमज्जन कर जयकारे।। क्रत्रिम दिनकर ने ही की है, ऊँच-नीच की हेराफेरी। पोथी के पन्ने-पन्ने पर, छल-छंदों ने जीत उकेरी।। अधनंगे मजरे-टोले के, हिस्से आये आँसू खारे।। सुप्त देह में चेतनता की, जब-जब उठती रही तरंगें जितने बिल से बाहर निकले, उतनी गहरी हुई सुरंगें।। रक्त-बीज से उगते परचम, जिह्वा पर रखते अंगारे।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अप...
अपनी प्रीति का आया प्रिये प्रसंग
कविता

अपनी प्रीति का आया प्रिये प्रसंग

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** दोहा सप्तक जब भी अपनी प्रीति का, आया प्रिये प्रसंग। अंग-अंग में जीव के, कुसुमित हुआ अनंग।।१ नैन मिले मन फिर बदन, हुई प्रीति की वृष्टि। पुलक-पुलक कर दे रही, शुभाशीष कुल सृष्टि।।२ दिवस कोकिला की तरह, गाये राग मलार। पिया मिलन पर हो गई, रातें हरसिंगार।।३ मेरे दिल के ओर है, उसके नैन गवाक्ष। चुंबन के शर छोड़ती, विहँस विहँस मंदाक्ष।।४ प्रणय निवेदन भेज कर, भूला तन दुष्यंत। मन शाकुन्तल खोजता, पर्ण-पुष्प में कंत।।५ चंचरीक प्यासे नयन, बन कर तुलसीदास। जिधर पुष्प रत्नावली, करते उधर प्रवास।।६ शृंगारित विद्योतमा, आ न सकी जब पास। विप्रलंभ गढ़ता गया, तन मन कालीदास।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आधार छंद
छंद, दोहा

आधार छंद

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद - दोहा सपनों के आकाश में, पंछी बन संसार। दिखा रहा जादूगरी, रिश्तों को संहार।।१ दृष्टि प्रवंचक घूरती, तन का स्वेद निचोड़, तृषित नैन से भूख के, बहे अश्रु की धार।।२ व्यथित हुई हैं चींटियाँ, भूल गयी प्रतिरोध। यह मौसम जो दे रहा, कोड़े की फटकार।।३ संस्कारों का आवरण, तार-तार कर शर्म। बना रहा मन क्रूरतम, धर्म मनुजता मार।।४ सड़कों पर ज्वालामुखी, घर-घर में आक्रोश। समरसता को दे दिया, उन्मादक आहार।।५ तख्ती बैनर झंडियाँ, जलसों के परवाज। मार रहे सौहार्द को, बन घातक हथियार।।६ सत्ता के घर कैद में, सुख की धवल प्रभात। चढ़ सीने पर दीन के, करे बदन विस्तार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
संवेदन संदूक
दोहा

संवेदन संदूक

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हुई रिक्त इंसान की, संवेदन संदूक। हर हमीद ने हाथ अब, थाम रखी बंदूक।।१ उर में रखे सँभालकर, नफरत वाले बीज। तभी परस्पर खून से, तर हो रही कमीज।।२ भाईचारे की नसें, काट रहे हम रोज। समरसता उन्माद में, कौन सका है खोज।।३ अलगू जुम्मन नित्य ही, करते वाद-विवाद। अब जख्मी सद्भाव से, रिसने लगा मवाद।।४ जहर फसल पर सींचकर, किया प्रदूषित खेत। बचा न कोई गीत अब, गाये हम समवेत।।५ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित...
दोहाष्टक
दोहा

दोहाष्टक

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन रस बरसा मगर, हुई न प्रीति प्रगाढ़।। मृदु चुंबन की आस में, दुर्बल हुआ असाढ़।।१ चितवन ने होकर मुखर, बिछा दिया है जाल। चुग्गा चुगने को प्रणय, खग सा भरे उछाल।।२ मदिर नैन झुकते गये, रक्तिम हुए कपोल। चुंबन का प्रतिसाद पा, थिरक उठे रमझोल।।३ हृदय पृष्ठ पर प्रीति के, उग आये जलजात। नैनो से झरने लगे, प्रियता युक्त प्रपात।।४ ले स्वरूप संकल्पना, जोड़ - जोड़ संदर्भ। शब्द-बीज का प्रस्फुटन, हो जब कवि के गर्भ।।५ धरा मेघ मिल रच रहे, प्रियता के अनुबंध। रोम-रोम से आ रही, मदिर पावसी गंध।।६ जला दिये तारीफ कर, हीरामन ने दीप। रत्नसेन मन जा बसा, प्रिय के सिंहल द्वीप।।७ सम्बन्धों के दुर्ग की, कवच बने प्राचीर। मोती रखे सहेज कर, पड़ी सीप ज्यों नीर।।८ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश...
अवगुंठन के खोल पट
दोहा

अवगुंठन के खोल पट

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** अवगुंठन के खोल पट, सुधियों की बारात। थिरकी मानस पृष्ठ पर, जैसे निविड़ प्रपात।।१ अधर शलाका से प्रिया, गई अधर रस घोल। गुलमोहर पी मत्त है, करता कलित किलोल।।२ आतप का अवदान पा, तन हो गया निहंग। मन का वृंदावन रँगा, गुलमोहर के रंग।।३ अनुरंजक अवसाद ने, किये स्वप्न चैतन्य। भिगो गया अंतस पटल, सुधियों का पर्जन्य।।४ आशाएँ बूढ़ी हुई, साँझ गई जब हार। नव प्रभात ने फिर किया, किरणों से शृंगार।।५ पुष्प प्रभाती प्रीति के, चुनकर लायी भोर। अवसंजन की कामना, मुखर हुई पुरजोर।।६ हुआ समर्पित भाव से, प्रणयन जो अनुमन्य। मरुथल मन महका गये, सुधियों के पर्जन्य।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
फागुन ने आलाप भर …
दोहा

फागुन ने आलाप भर …

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** फागुन ने आलाप भर, पढ़े प्रीति के छंद। बढ़ा समीरण में नशा, पुष्प-पुष्प मकरंद।।१ मन्मथ पर मधुमास का, ज्यों ही पड़ा प्रभाव। खारिज यौवन ने किया, पतझड़ का प्रस्ताव।।२ तन कान्हा की बाँसुरी, मन राधिका मृदंग। बजा स्वयं नित झूमता, 'जीवन'हुआ मलंग।।३ मन के गमले में खिला, दुर्लभ प्रीति गुलाब। झुककर स्वागत में खड़ा, इस तन का महताब।।४ देख रहा है स्वर्ग से, जब से मरा कबीर। भेदभाव की हो रही, गहरी और लकीर।।५ सड़कों पर आएँ निकल, घर के पूजन-पाठ। शिक्षित हो कर बन गया, हृदय हिन्द का काठ।।६ शकुनि चित्त जब-जब चले, छल चौसर के दाँव। दुख का आतप जीतता, हारे सुख की छाँव।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
भोर की ठंडी छुअन
गीतिका

भोर की ठंडी छुअन

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** भोर की ठंडी छुअन-सी, प्रीति का अहसास हो तुम। चंद्र मुख पर खिलखिलाता पूर्णमासी हास हो तुम।।१ रूपसी हो देख कर, शृंगार भी तुमको लजाता, रत्नगर्भा पर सजा, सौंदर्य का मधुमास हो तुम।।२ बिन तुम्हारे सब तिमिर घन, आ खड़े हैं क्लेश लेकर, जिन्दगी का हो उजाला, हर्ष का आभास हो तुम।।३ शील संयम ज्ञान साहस, उर दया भरपूर लेकिन, भूख तन की प्यास मन की, प्राण का वातास हो तुम।।४ बन पपीहा मन पुकारे, मैं यहाँ पिय तुम कहाँ हो, द्वार सजती अल्पना हो, पर्व का उल्लास हो तुम।।५ रागिनी हो राग हो सुर ताल लय का तुम निलय हो, धड़कनों से छंद गाती, गीत का विश्वास हो तुम।।६ कुंज 'जीवन' का सुवासित आ करो मधुमालती बन, मोगरा, चम्पा, चमेली, कौमुदी से खास हो तुम।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्...
विस्मृत चित्र श्रम का
गीत, छंद

विस्मृत चित्र श्रम का

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** गीत, आधार छंद - लावणी भाग्य मिटाया मजदूरों का, धन के मदिर बयारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।। गमक स्वेद की समा न पायी, कभी कागजी फूलों में। अमिट वेदना श्रम सीकर की, फँसती गई उसूलों में।। वार सहे पागल लहरों के, युग-युग विवश किनारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।१ कौर रहे हाथों से रूठे, वस्त्र बदन की व्यथा कहे। बिन बारिश ही पर्णकुटी के, विकल नैन से अश्रु बहे।। लूटी है सपनों की डोली, खादिम बने कहारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता के फनकारों ने।।२ दूध पिलाया पुचकारा है, आस्तीनों के व्यालों को। भूख छेड़ देती है पल-पल, घायल पग के छालों को।। देह निचोड़ी श्रमजीवी की, लालच के बाजारों ने। श्रम का विस्मृत चित्र किया है, सत्ता क...