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गीत

माला के मोती
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माला के मोती

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** देख-देख कर पीड़ा होती। बिखर रहे, माला के मोती।। तंत्र बना अब लूट तंत्र है, है बस्ती का मुखिया बहरा। गली-गली में दिखी गरीबी, कितने ही दर, तम है गहरा।। झूठ ठहाके लगा रहा है, सच्चाई छुप-छुपकर रोती। बहुतायत झूठे नारों की, मिलते हैं वादों के प्याले। कहते थे सुख घर आयेंगे, मिले पाँव को लेकिन छाले।। रोज बयानों के खेतों में, बस नफ़रत ही फसलें बोती। जाने कितनी ही दीवारें, मन से मन के बीच बना दी। बात किसी की कब सुनता है, मौसम हठी, ढीठ, उन्मादी।। उसकी बातें, उसकी घातें, लगता जैसे सुई चुभोती। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : नि...
चौसर की यह चाल नहीं
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चौसर की यह चाल नहीं

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चौसर की यह चाल नहीं है, नहीं रकम के दाँव। अपनापन है घर-आँगन में, लगे मनोहर गाँव।। खेलें बच्चे गिल्ली डंडे, चलती रहे गुलेल। भेदभाव का नहीं प्रदूषण, चले मेल की रेल।। मित्र सुदामा जैसे मिलते, हो यदि उत्तम ठाँव। जीवित हैं संस्कार अभी तक, रिश्तों का है मान। वृद्धाश्रम का नाम नहीं है यही निराली शान।। मानवता से हृदय भरा है, नहीं लोभ की काँव। घर-घर बिजली पानी देखो, हरिक दिवस त्योहार। कूके कोयल अमराई में, बजता प्रेम सितार।। कर्मों की गीता हैं पढ़ते, गहे सत्य की छाँव। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रत...
मेरा भारत महान
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मेरा भारत महान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** चंद्रयान पहुँचा चंदा पर, तीन रंग फहराये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। ज़ीरो को खोजा था हमने, आर्यभट्ट पहुँचाया। छोड़ मिसाइल शक्ति बने हम, सबका मन लहराया।। सबने मिल जयनाद गुँजाया, जन-गण-मन सब गाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। मैं महान हूँ, कह सकते हम, हमने यश को पाया। एक महागौरव हाथों में, आज हमारे आया।। जिनको नहीं सुहाते थे हम, उनको हम हैं भाये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। जो कहते थे वे महान हैं, उनको धता बताया। भारत गुरु है दुनिया भर का, यह हमने जतलाया।। शान तिरंगा-आन तिरंगा, गीत लबों पर आये। शान बढ़ी, सम्मान बढ़ गया, हम सारे हर्षाये।। अंधकार में किया उजाला, ताक़त को बतलाया। जो समझे थे हमको दुर्बल, उन पर भय है आया।। जोश लिये हर जन उल्लासित, हम हर दिल...
अबके वर्ष होली में
गीत

अबके वर्ष होली में

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** गायें गीत मधुर मिलन के अबके वर्ष हम होली में। मलदें विश्वासी प्रेम रंग देश-धर्म की चोली में।। बांटलें खुशियां मिलके सारी हस -हस बांटलें सारे गम। बिसराऐं मन से सारे विकार मिटाएं मन से मन के भृम। क्रोध-क्रूरता त्याग,पुनीत भाव भरें निज बोली में।। गायें गीत..... रहें न नफ़रत के निशां शेष हर डगर खिले सोहार्द-चमन। हर ह्रदय बहे रसधार प्रेम की रुके भेदभाव का कुटिल सृजन। एकता-और-अमन मुस्काये अखंडता की अनुपम रोली में।। गायें गीत... जात-पात आतंक-अधर्म से काम नही अब चलने बाला। हत्या-औ -हिंसा से मनुजों मैल नही अब धुलने बाला। आओ सींचे बंधुता की बगिया भरकर अश्रुजल झोली में।। गायें गीत मधुर मिलन के अबके वर्ष हम होली में।। मलदें विश्वासी प्रेम रंग देश-धर्म की चोली में।। परिचय :- गोविन्द...
राम अवध हैं लौटते
गीत

राम अवध हैं लौटते

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** वायु सुगंधित हो गई, झूमे आज बहार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। सरयू तो हर्षा रही, हिमगिरि है खुश आज। मंगलमय मौसम हुआ, धरा कर रही नाज़।। सबके मन नर्तन करें, बहुत सुहाना पर्व। भक्त कर रहे आज सब, इस युग पर तो गर्व।। सकल विश्व को मिल गया, एक नवल उपहार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। जीवन में आनंद अब, दूर हुई सब पीर। नहीं व्यग्र अंत:करण, नहीं नैन में नीर।। सुमन खिले हर ओर अब, नया हुआ परिवेश। दूर हुआ अभिशाप अब, परे हटा सब क्लेश।। आज धर्म की जीत है, पापी की तो हार। राम अवध हैं लौटते, फैल रहा उजियार।। आज हुआ अनुकूल सब, अधरों पर है गान। आज अवध में पल रही, राघव की फिर आन।। आतिशबाज़ी सब करो, वारो मंगलदीप। आएगी संपन्नता, चलकर आज समीप।। बाल-वृद्ध उल्लास में, उत्साहित नर-नार।। राम अवध हैं लौटते, फै...
देवाधिदेव
गीत, भजन

देवाधिदेव

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** देवाधिदेव भोलेशंकर, परमेश्वर गंगाधारी। शिव-शंकर का अनुपम दर्शन, मानव हित मंगलकारी।। रवि विरन्चि हो धर्म सनातन, सत्यनिष्ठ हो कैलाशी। सात्विक पावन सुभग सौम्य प्रभु,घट-घट बसते अविनाशी।। गौरा संग बिराजें शंभू , प्रभु जग सारा बलिहारी। वैद्यनाथ नागेश्वर भोले, केदारनाथ अभिनंदन। सोमनाथ भीमाशंकर हो, त्र्यंबकेश्वर शंभु वंदन।। त्रिकालदर्शी कपाल भैरव, शशिशेखर भभूति धारी। ओंकारेश्वर घृष्णेश्वर हो, रामेश्वर प्रभु त्रिलोचनम्। मल्लिकार्जुन महाकाल शिवा, विश्वनाथ नीलकंठकम्।। बर्फानी औघड़दानी हो, भस्म मण्डितम बलिहारी।। भाँग धतूरे का भोग लगे, चंदन कर्पूर प्रभु सुहाते। दूग्ध रूद्राक्ष अक्षत अकवन, जल बिल्बपत्र नित भाते।। ताप मिटा बाघम्बरधारी, हे खण्डपरशु हितकारी। गाते महिमा पुराण सारे, दर्शन की प...
अपना ही घर जला रहे …
गीत

अपना ही घर जला रहे …

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** अपना ही घर जला रहे हैं, घर के यहाँ चिराग़। फैल रही है सारे जग में, लाक्षागृह सी आग।। शुभचिंतक बन गये शिकारी, रोज़ फेंकते जाल। ख़बर रखें चप्पे-चप्पे की, कहाँ छिपा है माल।। बड़ी कुशलता से अधिवासित, हैं बाहों में नाग। ओढ़ मुखौटे बैठे ज़ालिम, अंतस घृणा कटार। अपनों को भी नहीं छोड़ते, करते नित्य प्रहार।। बेलगाम घूमें सड़कों पर, त्रास दें बददिमाग़। सिसक रही बेचारी रमिया, दिए घाव हैं लाख। लगी होड़ है परिवर्तन की, तड़पे रोती शाख।। हरे वृक्ष सब काटें लोभी, उजड़ रहे वन बाग। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम...
हे! भोलेभंडारी
गीत

हे! भोलेभंडारी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हे त्रिपुरारी, औघड़दानी, सदा आपकी जय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। देव आप, भोले भंडारी, हो सचमुच वरदानी भक्त आपके असुर और सुर, हैं सँग मातु भवानी देव करूँ मैं यही कामना ,मम् जीवन में लय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। लिपटे गले भुजंग अनेकों, माथ मातु गंगा है जिसने भी पूजा हे! स्वामी, उसका मन चंगा है हर्ष,खुशी से शोभित मेरी, अब तो सारी वय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। सारे जग के आप नियंता, नंदी नियमित ध्याता, जो भी पूजन करे आपका, वह नव जीवन पाता पार्वती के नाथ, परम शिव, मेरे आप हृदय हो। करो कृपा, करता हूँ वंदन, यश मेरा अक्षय हो।। कार्तिकेय,गणपति की रचना, दिया जगत को जीवन तीननेत्र, कैलाश निवासी, करते सबको पावन जीवन हो उपवन-सा मेरा, अंतस तो ...
कंचन मृग छलता है
गीत

कंचन मृग छलता है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कंचन मृग छलता है अब भी, जीवन है संग्राम। उथल-पुथल आती जीवन में, डसती काली रात। जाल फेंकते नित्य शिकारी, देते अपनी घात।। चहक रहे बेताल असुर सब, संकट आठों याम। बजता डंका स्वार्थ निरंतर, महँगा है हर माल। असली बन नकली है बिकता, होता निष्ठुर काल।। पीर हृदय की बढ़ती जाती, तन होता नीलाम। आदमीयत की लाश ढो रहे, अपने काँधे लाद। झूठ बिके बाजारों में अब, छल दम्भी आबाद।। खाल ओढ़ते बेशर्मी की, विद्रोही बदनाम। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश (मध्य प्रदेश), लोकायुक्त संभागीय सत...
धुन
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धुन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** वेणु की प्रभो प्यारी धुन है, हे मनमोहन हे गिरधारी। भीगी प्रीति फुहारों से है, मधुवन में बृषभानु दुलारी।। अन्तर्मन में प्रीति बसी है, लोभ कपट सब छूटी माया। अधरों को सिंचित करती है, कामदेव सी तेरी काया ।। धुन भाती वंशी की सबको, महका दो जीवन फुलवारी। पात -पात पर प्रीति पल्लवित, स्वर्णमयी आभा फैलाती। पावन धुन मुरली की बजती, राधे ललिता प्रीति निभाती।। कटुता की बेलें कटतीं हैं, श्याम शरण पाते सुखकारी। कण-कण में मनमोहन बसते, नित उर नूतन आस जगाते। वंशी धुन पर गोपी झूमे, कान्हा जब भी रास रचाते।। मंजुल नैना रूप मनोहर, छवि कान्हा शुभ मंगलकारी। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्...
हिंदुस्तान हमारा
गीत

हिंदुस्तान हमारा

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** गंगा-यमुना-सी नदियों की, बहे जहाँ शुचि धारा। वन, उपवन, हिमगिरि से शोभित, हिन्दुस्तान हमारा।। होली-दीवाली मनती है, जहाँ खुशी के मेले। जहाँ तीज-त्यौहार सभी ही, सचमुच हैं अलबेले। ईदों में हिन्दू शामिल हैं, मुस्लिम नवरातों में। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई मिलकर उल्लासों में।। रातें उजली होतीं जहँ पर, दूर भगे अँधियारा। वन, उपवन, हिमगिरि से शोभित, हिन्दुस्तान हमारा।। ताजमहल में भाव भरे हैं, मीनारों में गुरुता। धर्म सिखाता है हम सबको, विनत भाव अरु लघुता। गीता की वाणी में देखो, भरी अनोखी क्षमता। संत-महत्मा सिखलाते हैं, पाना कैसे प्रभुता।। सूरज वंदन करे हमारा, देता नित उजियारा। वन, उपवन, हिमगिरि से शोभित, हिन्दुस्तान हमारा।। गीत सुहाने गायक गाते, खुशबू रोज़ बिखरती। सुनकर भजनों,आज़ानों को, बस्ती रोज़ निखरती। ख...
विनती
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विनती

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रिय नेताजी, तुमसे विनती करती जनता, बातें हैं सब सच्ची। काश ! ग़रीबी मिट जाए यह, कर भी लो कुछ वादा। मरें सड़क पर हम सब भूखे, ज्यों बिसात के प्यादा।। तरस रहे मिल जाए हमको, चाहे रोटी कच्ची।। सोते रहते हो महलों में, मखमली बिछौने पर। फुटपाथों पे हम रह खाते, भी पत्तल-दौने पर जीवन अब तो नर्क हुआ है, खाते हरदम गच्ची। करो निदान समस्याओं का, पा जाएँ संरक्षण। मिल जाए हमको भी थोड़ा, सेवा में आरक्षण।। अच्छे दिन कब तक आएँगे, पूछे घर की बच्ची।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिवृत्त जिला न्यायाध...
जय शिवाजी
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जय शिवाजी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शाहजी भोंसले बाबा थे माँ थी महान जीजाबाई पुणे के शिवनेरी दुर्ग में अवतारे लाल शिवाजी थे वंदेमातरम... माँ ने दी थी शिक्षा दीक्षा शस्त्र शास्त्र का ज्ञान मिला बुद्धिमानी निडरता पाई बहादुरी का थे दम भरते रामायण महाभारत पढ़ते सर्वधर्म समभाव वे रखते जातिभेद से नफ़रत करते सबको अपना ही समझते कद छोटा और छोटा घोड़ा पर भारत का नक्शा बदला छुरी कटार जैसे हथियार कपड़ो में छुपाकरके रखते गुफ़ा और कंदराओं से छापामारी खूब करते थे मुट्ठीभर सैनिक लिए वे पहाड़ी चूहों से दुबकते थे आदिल शाह ने चालाकी से शाह जी को किया नज़रबंद फ़िर भी आदिल तोड़ न पाया वीर शिवा का चक्रव्यूह बड़ी साहिबा बीजापुर ने अफ़ज़ल खान को भेजा था उसने जो गड्डा खोदा था वो ख़ुद ही जमीदोज हुआ शाइस्ता खान बराती बनकर औरंगजेब का संदेसा लाया तीन उंगलियाँ कटवा...
उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल
गीत

उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। उगा रहा खेतों में सूरज, अब लोहे के शूल। सड़कों पर राही का स्वागत, करते तभी बबूल।। कटे पंख के सुग्गे जिनका, जागा अभी जमीर। लेकर कैंची काट रहे पर, डरे न जो रणधीर।। जगह-जगह पर बिछा रहे हैं, फाँसे ऊल-जलूल।। नशा भक्ति का चढ़ा अभी तक, पड़ा उनींदा भोर। पुरवा-पछुआ के मृदु स्वर में, रहा न अब वह जोर।। धूल झोंक, बन बैठा उर में, अंधड़ स्वयं रसूल।। अश्वमेघ को दौड़ रहा है,...
जीवन का सत्य
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जीवन का सत्य

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** जीवन का तो अंत सुनिश्चित, मुक्तिधाम यह कहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। रीति, नीति से जीने में ही, देखो नित्य भलाई है। दूर कर सको तो तुम कर दो, जो भी साथ बुराई है।। नेहभाव ही सद्गुण बनकर, पावनता को गहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। मुक्तिधाम में सत्य समाया, बात को समझो आज। साँसें तो बस गिनी-चुनी हैं, मौत का तय है राज।। बड़ा सफ़र है मुक्तिधाम का, मोक्ष को तो जो दुहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। रहे मुक्ति की चाहत सबको, सच्चाई को जानो। मोक्ष मिले यह जीवन जीकर, बात समझ लो, मानो।। कितना भी हो बड़ा राज्य पर, कालचक्र में ढहता है। जीवन तो बस चार दिनों का, नाम ही बाक़ी रहता है।। मुक्तिधाम तो बड़ा तीर्थ है, सबको जाना होगा। ...
दो पल साथ निभाओ तो …
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दो पल साथ निभाओ तो …

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** हाथ छुड़ाकर किधर चल दिए, दो पल साथ निभाओ तो। चार दिनों का जीवन है ये, कान्हा दर्श दिखाओ तो।। तुम बिन मुश्किल जीना मेरा, रास बिहारी आ जाओ। मीरा जैसी व्याकुल रहती, वंशी मधुर सुना जाओ।। ग्वाल बाल बेहाल सभी हैं, आकर के समझाओ तो। द्रुपद सुता भी राह देखती, दुष्ट दुशासन को मारो। भक्तों की रक्षा हो कान्हा, उनको भी पार उतारो।। किया सुदामा से जो वादा, कान्हा उसे निभाओ तो। अत्याचार बढ़ा है जग में, क्रोध लोभ की माया है। संयम का तो नाम नहीं है, राग -द्वेष भरमाया है।। वध कर दो अब दंम्भ कंस का पापी सबक सिखाओ तो। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति ...
मानवता का गान
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मानवता का गान

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मानवता को जब मानोगे, तब जीने का मान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। भेदभाव में क्या रक्खा है, ये बेमानी बातें हैं। मानव-मानव एक बराबर, ऊँचनीच सब घातें हैं।। नित बराबरी को अपनाना, यह प्रभु का जयगान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। दीन-दुखी के अश्रु पौंछकर, जो देता है सम्बल। पेट है भूखा,तो दे रोटी, दे सर्दी में कम्बल।। अंतर्मन में है करुणा तो, मानव गुण की खान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। धन-दौलत मत करो इकट्ठा, नहीं खुशी पाओगे। जब आएगा तुम्हें बुलावा, तुम पछताओगे।। हमको निज कर्त्तव्य निभाकर, पा लेनी पहचान है। जात-पात का भेद नहीं हो, मिलता तब यशगान है।। शानोशौकत नहीं काम की, चमक-दमक में क्या रक्खा। वही जानता सेवा का फल, जिसने है इसको चक्खा।। देव नहीं,म...
शूलों से भरा प्रेम पथ
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शूलों से भरा प्रेम पथ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** है शूलों से भरा प्रेम-पथ, मनुज-स्वार्थ के खम्भ गड़े। कुछ भौतिक लाभों के कारण, कौरव पांडव देख लड़े।। क्रोध घृणा जग मध्य बढ़ा है, प्रेम सुधा का काम नहीं। त्याग समर्पण को भूले सब, समरसता का नाम नहीं।। अवरोधों को पार करो सब, छोटे हों या बहुत बडे़।। धर्म-कर्म करता ना कोई, गीता का भी ज्ञान नहीं। मोहन की मुरली के जैसी, मधुरिम कोई तान नहीं।। बहु बाधित सुख शांति हुई है, नाते हुए चिकने घड़े।। तप्त हुई वसुधा पापों से, दानव हर पल घात करें। भूल भावना सहयोगों की, राग-द्वेष की बात करें। आवाहन करते खुशियों का, दो मोती प्रभु सीप जड़े।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
संघर्ष का गीत
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संघर्ष का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हर मुश्किल से जूझ तू, रहकर के गतिशील। विपदाओं में ठोक दे, तू इक पैनी कील।। गहन तिमिर डसने लगा, भाग रहा आलोक। पर तू रख यदि हौसला, तो हारेगा शोक।। संघर्षों को जीतकर, रचना है इतिहास। धूमिल हो पाये नहीं, तेरी पलती आस।। जीवन कांटों से भरा, रखना होगा ध्यान। अनगिनत तो जंजाल हैं, लाते जो अवसान।। बच तूू नित्य अनर्थ से, रीति,नीति ले मान। जग तुझको देगा तभी, जीवन में सम्मान।। जो करता है पाप को, उसका घटता ताप। इस संसारी खेल मे, हर क्षण है अभिशाप।। हिंसा यहाँ अनर्थ है, और छोड़ना धर्म। मानवता के नाम पर, कर तू अच्छे कर्म।। बच अनर्थ से नित्य ही, खुश होंगे भगवान। तू पाएगा शान तब, कदम-कदम सम्मान।। है अनर्थ संताप सम, हर लेता जो जोश। मानव जाता नित्य तब, रोगों के आगोश।। रह अनर्थ से दूर तू, तो पाएगा हर्ष। ह...
प्रीतम पावस बन कर आए
गीत

प्रीतम पावस बन कर आए

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** प्रीतम पावस बन कर आए, बरसे मन की अँगनाई में। खनक उठे कँगना भी मेरे, बीते दिन की तरुणाई में।। नव किसलय आये बागों में मधुकर उपवन-उपवन डोले मधु से भरी हुई कलियों का, हौले-हौले घूँघट खोले।। जीवन में माधव आया है, खोया मन अब शहनाई में प्रीतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। साँस-साँस पर नाम लिखा है, सपनों की नित गूथूँ माला। तुम मेरे कान्हा मैं राधा, जादू कैसा प्रियतम डाला।। गीत प्रणय के गातीं झूमूँ, मैं कोयल सी अमराई में। प्रियतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। प्रेमपाश में बँधी पिया मैं, नशा प्रीति का जैसे छाया। गाल लाल पिय हुए छुअन से, निखरी कंचन सी है काया।। तुम्हें खोजनी उतरी चितवन, दृग -झीलों की गहराई में। प्रीतम पावस बनकर आए, बरसे मन की अँगनाई में।। पर...
घनघोर घटाएँ
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घनघोर घटाएँ

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** छाईं हैं घनघोर घटाएँ, तन-मन को आनंदित कर दे। अंतस् का तम दूर सभी हो, जीवन को अनुरंजित कर दे।। नेह-किरण तेरी मिल जाए, दुविधा में जीवन है सारा। मधुरस नैनों से छलका दो, रातें काली, राही हारा।। दम घुटता है अँधियारो में, जीवन पथ को दीपित कर दे। निठुर काल की छाया जग पे, मौत सँदेशा पल-पल लाती। रोते नैना विकल सभी हैं, क्षणभंगुर काया घबराती।। विहग-वृंद सब घायल होते, आस-दीप आलोकित कर दे। पीर बड़ी है पर्वत से भी, टूटी सारी है आशाएँ। क्रंदन करती है ये धरती, पग-पग पर देखो बाधाएँ।। डूबी निष्ठाओं की नौका, प्रेम-बीज को रोपित कर दे। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत...
नये साल का गीत
गीत

नये साल का गीत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** नया काल है, नया साल है, गीत नया हम गाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। बीत गया जो, उसे भुलाकर, हम गतिमान बनेंगे जो भी बाधाएँ, मायूसी, उनको आज हनेंगे गहन तिमिर को पराभूत कर, नया दिनमान उगाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। काँटों से कैसा अब डरना, फूलों की चाहत छोड़ें लिए हौसला अंतर्मन में, हम दरिया का रुख मोड़ें गिरियों को हम धूल चटाकर, आगत में हरषाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। जीवन बहुत सुहाना होगा, यही सुनिश्चित कर लें बिखरी यहाँ ढेर सी खुशियाँ, उनसे दामन भर लें सूरज से हम नेह लगाकर, आलोकित हो जाएँगे। करना है कुछ नवल-प्रबल अब, मंज़िल को हम पाएँगे।। परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे जन्म : २५-०९-१९६१ निवासी : मंडला, (मध्य प...
पौष-माघ के तीर
गीत

पौष-माघ के तीर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** बींध रहे हैं नग्न देह को, पौष-माघ के तीर। भीतर-भीतर महक रहा पर, ख्वाबों का कश्मीर।। काँप रही हैं गुदड़ी कथड़ी, गिरा शून्य तक पारा। भाव कांगड़ी बुझी हुई है, ठिठुरा बदन शिकारा।। मन की विवश टिटिहरी गाये, मध्य रात्रि में पीर।।१ नर्तन करते खेत पहनकर, हरियाली की वर्दी। गलबहियाँ कर रही हवा से, नभ से उतरी सर्दी।। पर्ण पुष्प भी तुहिन कणों को, समझ रहे हैं हीर।।२ बीड़ी बनकर सुलग रहा है, श्वास-श्वास में जाड़ा। विरहानल में सुबह-शाम जल, तन हो गया सिंघाड़ा।। खींच रहा कुहरे में दिनकर, वसुधा की तस्वीर।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच प...
मादक नैन
गीत

मादक नैन

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आओ साजन देख रहे पथ, मादक नैन हमारे हैं। सुरभित यौवन ले अँगड़ाई, प्रियतम हमें बिसारे हैं।। निश्छल प्रीति हमारी साजन, सावन-सी मदमाती है। दुग्धमयी निर्झरिणी-सी ये देख तुम्हें इठलाती है।। प्रियवर बसते हो तुम हिय में, हर पल राह निहारे हैं। आओ साजन देख रहे पथ मादक नैन हमारे हैं।। करते व्याकुल नयन प्रतीक्षा, कंचन काया मुरझाई। प्रणय सेज हँसती हैं मुझ पर, प्रतिपल डसती तन्हाई मौन अधर, पायल के घुँघरू, निशदिन तुम्हें पुकारे हैं। आओ साजन देख रहे पथ, मादक नैन हमारे हैं।। खोई मधुऋतु की है सरगम, दुख के बादल मँडराते। छाया है घनघोर अँधेरा, जलते जुगनू घबराते।। पीड़ाओं के भँवर-जाल में, डूबे सभी किनारे हैं। आओ साजन देख रहे पथ, मादक नैन हमारे हैं।। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी...
हुई समीरण संदल
गीत

हुई समीरण संदल

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** यौवन के उर्वरा धरा पर, खिले प्रीति के पाटल। नाचे मन चंचल।। भावों का प्रस्पंदन तन में, लेने लगा हिलोरे। स्वप्निल चित्र छापने वाले, पृष्ठ पड़े जब कोरे।। प्रस्वेदी तन लगा महकने, हुई समीरण संदल।। नाचे मन चंचल.... (१) दिव्य प्रगल्भा सम्मोहन की, कुसुमित सेज सजाती। चटुल दृगों के संकेतों से, मुझको पास बुलाती।। लोहित लब पर मधु नद जैसे, स्वर उसके हैं प्रांजल।। नाचे मन चंचल....(२) स्वाति बूँद की आस सजाये, मन का चातक डोले। स्वागत में अभिसारी दृग भी, द्वार प्रणय का खोले।। ऋतुपति ने छू किया पलाशी, दग्ध देह का अंचल।। नाचे मन चंचल....(३) परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं,...