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कहानी

गणपति बप्पा
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गणपति बप्पा

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** मम्मा बहुत रो रही थी। उसकी आंखें रोते हुए सूज गई थी। लाल आंखों से सूना पूजा घर देखते ही फफक पड़ती थी। पापा ने सभी मूर्तियां फोटो एक बेग में भरकर रख दिए थे। उन्हें नदी में विसर्जित करने के लिए गाड़ी बाहर निकालने के लिए चले गये। मम्मा रोते हुए बोल रही थी, इसमें इन देवी देवताओं का क्या दोष है। भले घर में रहने दो पूजा अर्चना नहीं करेंगे। ऐसा सूना पूजा घर अच्छा नहीं लगता है। पलट कर पापा ने कहा, सारा दिन देवताओं की कृपा कहना और सही पुरुषार्थ को राम राम कहना। करतबगार बनना, देवो जैसा बनना ये भावनाएं तो बाजू में रह गई, बस सब कुछ भगवान की कृपा कहते इतीश्री करना, ऐसा धंधा किसने कहा। सुनकर भी मैं थक गया हूं। क्रोध से भरें पापा ने पीछे देखा ही नहीं और गेट की ओर चल पड़े हाथ में झोला था। उसे गाड़ी में रख दिया। गणेश चतुर्थी के लिए भी चार दिन ही ...
दीपक की रोशनी
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दीपक की रोशनी

नरेन्द्र नाथ त्रिपाठी महराजगंज, रायबरेली (उत्तर प्रदेश) ******************** चार दिन गुजर चुके थे, टूटी-फूटी मढ़इय्या में सन्नाटे का बोलबाला था। वेदना पांव पसार रही थी, दहलीज से गलियारे पर कुछ हलचल देखी जा सकती थी, लेकिन जर्जर कोठरी की मायूसी को नहीं। कुछ घरेलू सामान अस्त व्यस्त पड़ा था, बर्तनों में जूठन तक नहीं थी, चूल्हे की आग उदर में जल रही थी। झूला बनी खटिया पर रह-रह कर ननकू के कराहने की आवाज मानो उसके जीवित होने का प्रमाण दे रही थी। बेबसी, लाचारी और बीमारी उपहासिक संयोग कर रही थी, सहसा अति कोमल लेकिन रूदित आवाज में रोशनी ने कहा "मां बर्तन भी भेज दोगी तो जब कभी रोटी बनेगी तो? मां कुछ बोल पाती तब तक दीपक ने धीरे से आंचल खींचते हुए कहा "मां अनाज के पैसे से दुकानदार ने पूरी दवा नहीं दी" मां मुझे भूख नहीं लगी, कुल दीपक के चेहरे पर रोशनी की चिंता दिख रही है, रोजदिन की तरह पड...
कहानी नदियों की
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कहानी नदियों की

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** परिवेश के साथ प्रकृति की प्रवृत्तियों में भी परिवर्तन सम्भव है। होली हो गई रेन डांस व बसन्त पंचमी अब है वेलेंटाइन डे तो नदियाँ अपनी जीवन शैली क्यूँ न बदले भला। डिजिटल दुनिया तो नदियाँ भला कैसे पीछे रहती। वर्तमान आभासी संसार की देखा-देखी नदी परिवार की मुखिया माँ गंगा ने एक कॉन्फ्रेंस काल मीट में आदेश निकाल दिया, "सभी नदियाँ अपनी खुशियाँ व गम परस्पर साँझा किया करें। जब तक समस्याएँ पता नही होगी, समाधान कैसे ढूंढेंगे ?" माँ नर्मदे तो मानो भरी हुई बैठी थी। क्या क्या बताए? अतीत की भयावह स्मृतियाँ भुला नहीं पा रही हैं। यदा कदा चट्टानों में विचरती ताप्ती को दिल का हाल सुना देती हैं, "बहना, तुम जानती हो मुझमें आने वाली उफ़नती बाड़ों को। उन विकराल लहरों को याद कर मेरी रूह काँप जाती है। होशंगाबाद जैसे कई इलाकों में घरों की छतों तक पानी पहु...
‘कन्यादान’ एक अधूरी कहानी
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‘कन्यादान’ एक अधूरी कहानी

डॉ. सुभाष कुमार नौहवार मोदीपुरम, मेरठ (उत्तर प्रदेश) ******************** यू हेव अराइव्ड। योर डेस्टीनेशन इस ओन राइट। गाड़ी पार्क की और इधर-उधर देखा। सुभम मन-ही- मन बहुत खुश था कि जहाँ पर वह जगह खरीदने जा रहा है, यहाँ की लोकेशन तो अच्छी है। पार्क है, मंदिर है। चौड़ी सड़कें हैं और मुख्य मार्ग के पास में ही है। अभी तो पाँच बजे हैं। छह बजे के लिए बोला था। प्रोपर्टी वाला या उसका कोई दलाल आएगा। कोई बात नहीं जगह अच्छी है। आज मंगलवार भी है तो क्यों न मंदिर में जाकर हनुमान जी के दर्श्न कर लिए जाएँ और मन्नत भी माँग ली जाए कि सौदा ठीक-ठीक पट जाए क्योंकि आजकल जमीन के मामलों में बड़ी धोखेवाजी चल रही है। सुभम ने मंदिर में प्रवेश किया, हाथ जोड़े प्रसाद चढ़ाकर दर्शन किए। लेकिन अचानक किसी आवाज ने उसकी धड़कनें बढ़ा दीं। कुछ भ्रमित-सा हुआ लेकिन जल्दी ही वो आवाज मंदिर के प्रांगण से बाहर निकल गई ...
भगोड़ा
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भगोड़ा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चन्दन सेठजी व माधुरी जी की सर्वगुण सम्पन्न बेटी सुष्मिता की अपने घर में खूब चलती है। चले भी क्यूँ ना, छोटा भाई श्रवण ठहरा सीधा सा व शांत प्रकृति वाला। कोई भी उसे बुद्धू बना सकता है। लोगों ने दबी ज़ुबान में उसे गोबर गणेश ही नाम दे दिया। सेठ जी अक्सर सेठानी को ताना मारते, "यह तुम्हारे कारण ही ऐसा हुआ। जब वो गर्भ में था तो सेठानी जी को पूजा पाठ व दान धरम से फुर्सत नहीं थी। महापुरुषों व वीरों की कहानियाँ पढने में तुम्हारा क्या जा रहा था। इससे तो अच्छा होता भगवान उसे हमारी बेटी बना देता और सुष्मिता को बेटा।" सरलमना सेठानी बेचारी क्या बोले, "अरे, मेरा बेटा सीधा सच्चा इंसान निकलेगा, देखना आप। आपको तो व्यापार के लिए चाहिए चालबाज चालाक बेटा। ईमानदारी के किस्से आपने पढ़े ही नहीं। राजा हरिश्चंद्र, गांधी जी, शास्त्री जी जैसे लोग अपने सुकर्म...
प्रणय दान … भाग- २
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प्रणय दान … भाग- २

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र. ******************** द्वितीय भाग बेटा पयपान करते-करते सो गया मा अपने काम मे लग गयी। संयुक्त परिवार में घर के बहुत काम हो जाते है पति चार भाई थे समय के साथ परिवार में हिस्सा बाट हुआ पुराने घर से कुछ दूरी पर अपना मकान बना कर रहने लगे पर भाइयों का आपसी लगाव कम नही हुआ अब उर्मिला चार बेटे और एक बेटी की माँ बन चुकी थी पति चन्दर किसान थे अच्छी खेती थी गुजारा आराम से चल रहा था बड़ा बेटा पिता के कामो में हाथ बंटाने लगा, उसने अपनी पढ़ाई मिडिल से ही छोड़ दी थी, दूसरा बेटा प्रकाश पढ़ने में बहुत अच्छा था दोनों छोटे बेटे और बेटी भी स्कूल जाने लगे थे। प्रकाश जब मिडिल में गया तब दोनों पति पत्नी उसके आगे की पढ़ाई के लिए चिंतित रहने लगे कारण इसके बाद स्कूल ८ किमी दूर था शहर में जाना पड़ता था l माता पिता हमेसा अपने बच्चों के लिये अच्छा ही सोचते है...
प्रणय दान … भाग- १
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प्रणय दान … भाग- १

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र. ******************** प्रथम भाग जेठ बैसाख के दिन गर्मी अपने चरम परम पर थी। घर के काम करते-करते उर्मिला बाहर किसी की आवाज सुन किवाड़े की दराज से झांका, देखा एक साधु महाराज गली में 'भगवान के नाम पर कुछ देने का आग्रह करते हुए चले जा रहे थे। प्रायः फसल काटने के बाद गांवों में साधु संत, नट मदारी आदि का आना नदी में बाढ़ की तरह हो जाता है, पेट के लिए तरह-तरह के चेतक दिखाते है वैसे तो बहुत साधु आते है इस गांव में पर इस साधु की बात कुछ अलग थी। किसी के दरवाजे के पास नही रुक रहे थे। रुकिए महाराज अरे सुनिए न, कहते हुए उर्मिला एक टोकरी में कुछ अनाज लेकर बाहर निकली पीछे से आवाज सुन साधु महाराज ठहर गए। ला माई इस झोली में डाल दो हमेशा खुश रहो तेरे बल बच्चे बने रहे बाबा ने आशीषों की झड़ी लगा दी, अरे माई तुम रो रही हो। उस स्त्री ने को...
ऐसा क्यों है?
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ऐसा क्यों है?

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** अभी मैं सोकर उठा भी नहीं था कि मोबाइल की बज रही लगातार घंटी ने मुझे जगा दिया। मैंने रिसीव किया और उनींदी आवाज़ में पूछा -कौन? उधर से आवाज आई- अबे! अब तू भी परेशान करेगा क्या? कर ले बेटा ओह! मधुर, क्या हुआ यार? कुछ नहीं यार! बस थोड़ा ज्यादा ही उलझ गया हूँ, सोचा तुझसे बात कर शायद कुछ हल्का हो जाऊं। बोल न ऐसी क्या बात हो गई? मैं तेरे पास थोड़ी देर में आता हूं, फिर बताता हूं। मधुर ने जवाब देते हुए फोन काट दिया। मैं भी जल्दी से उठा और दैनिक क्रिया कलापों से निपट मधुर की प्रतीक्षा करने लगा। लगभग एक घंटे की प्रतीक्षा के बाद मधुर महोदय नुमाया हुए। मां दोनों को नाश्ता देकर चली गई। नाश्ते के दौरान ही मधुर ने बात शुरू की। यार मेरी एक मित्र (गिरीशा) है। जिससे थोड़े दिन पहले ही आमने सामने भे...
अनूठा प्रेम
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अनूठा प्रेम

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** वो सून्दर सी पालकी "गुलाब के फूलो से सजी हुई थी। उन फूलो की खूश्बू से पूरा वातावरण सुगान्धित था। हवा के झोके अपने होने का अहसास दिला रहे थे। रुपमती का यौवन उसकी स्वरलहरियो" जैसा परिपूर्ण था। उसकी लटे उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार रही थी। पालकी को कहारो ने महल के प्रागंण मे उतारा "बहुत सारी दासियो ने पालकी को घेर लिया" पालकी के बाहर पैर रखते ही नूपुर की छुनछुन की आवाज चूडियो की खनक उस प्रागंण मे अपने मीठी अनुराग पैदा करने लगी। रूपमती पालकी से बाहर आ गई "सारी दासिया उसे अवाक सी देखती रही" उसकी खूबसूरती को नजर न लगे दासी रजला ने" रूपमती के चेहरे को घूघट से ढक दिया। और रूपमती का हाथ पकड महल की ओर बढ गई" बाजबहादुर की धडकने बेताहास धडकने लगी "उसकी कुछ मर्यादा थी। वो राजा था।वो अपनी प्रेयसी को गले नही लगा सकता था। पर उसका ...
मुझे भी जीना है!
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मुझे भी जीना है!

रीमा ठाकुर झाबुआ (मध्यप्रदेश) ******************** कार दरवाजे पर आकर खडी हो गयी थी, कला का मन बार बार उधर ही जा रहा था! नयी बहू आयी थी पर वो खुद को रोके हुए थी! वजह उसका विधवा होना, अंश उसका इकलौता बेटा था! नीचे बहू परछन की तैयारी हो रही थी! बड़ी ननद ने सारा जिम्मा लिया था और निभा भी रही थी! कही कुछ कमी नहीं अरे कला नीचे चल अब तो बहू का मुहं देख ले, इतनी प्रतीक्षा की कुछ देर और सही, चल ठीक है, तेरी इच्छा, पडोसन सविता बोली " कुछ ही घंटो में सारे रीति रिवाज समाप्त हो गये, पर कला के कान उधर ही लगे थे! कला भाभी, बडी ननद की आवाज थी, जो दरवाजे पर अंश और नयी बहू के साथ खडी थी! अंश बहू के साथ कला के समीप आ गया, माँ "कला ने बाहे फैला दी" पर अंश उसके पैरों में झुक गया "जुग-जुग जिऐ" उसने अंश को गले लगा लिया कोमल हाथों ने उसके पैरों को धीरे से छुआ, कला अंश को हटा झट से नीचे झुक गयी...
कुछ तो है उसमें
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कुछ तो है उसमें

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सीमा घर में प्रवेश करने के बाद सीधे बेडरूम में चली गई थी। "मैं बहुत थक गई हूं।" सुनो जी कोई बुलाये या माँ पुकारे तो भी उठाना नहीं। आदेश देने के लहजे से कहकर, सीमा पलंग पर हाथ पैर फैलाये पसर गई थी। सेहल सीमा के नाटक को गौर से देख रहा था। माँ सुबह से काम में व्यस्त रहती फिर भी कुछ नहीं बोलती, थकान, चिन्ता को जैसे निगलना जान गई हो। आखिर "माँ'" है ना! सीमा करवटें बदलती सोने का उपक्रम करके पड़ी थी। थोड़ी देर बाद सेहल सीमा के पास आया, हां वाकई में थक गई हैं। नींद के आगोश में गये चेहरे को देखकर सेहल के मन में ढेर-सा लाड़ उमड़ आया। लेकिन इस वक्त हिम्मत जुटाना मुश्किल था। भरी दोपहर के दो बज रहे थे। माँ अभी भी रसोईघर में काम निपट रही थी। सीमा का यूं सोना भी उसे अखर रहा था। बैठक से भी रसोई का कमरा दिखाई देता था। सेहल ने माँ की ओर देखा वह...
शालू
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शालू

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज शालू गुमसुम बैठी थी। मन में कई प्रकार के गुब्बारे उड़ रहे थे। सभी स्वछंद होकर बिना रोक-टोक के उड़ना चाह रहे थे। पढ़ाई जहां इंसान की बुध्दि का विकास करती हैं, वहीं नियम कायदे और अनुशासन किसी हद तक बांधने की कोशिश करते हैं। घर में ममा जहां बुद्धिजीवियों में श्रेष्ठ थी वहीं पापा चार क़दम आगे थे। सदा व्यस्त रहना पसंद करते थे। दोस्तों के साथ चौबीस घंटे गप लगाने को मिल जाए तो भी तैयार रहते थे। बातों में सारी दुनिया सिमट जाती थी। वैसे भी हमारे घर में प्राचीनता और आधुनिकता का संगम दिखाई देता था। दादी कहती "आजकल समाज का रवैया अजीब हो गया है। इसलिए चाल चलन, रहन सहन, बाल कटाने वाली तथा जींस का पहराव कतई नहीं होना चाहिए। ममा, पापा तो कभी लीक से जुड़कर चलते तो कभी लीक से हटकर चलते। मैं तो घबरा जाती हूं। जब मेरा रिंकू के साथ घूमना, उसके घर ...
काली चामुण्डा और पॉंच भूत
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काली चामुण्डा और पॉंच भूत

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पिछले दिनों की बात है। जब चाचा का धौलाने से फोन आया कि तुम्हारी चाची पिछले कुछ दिनों से बीमार है। मैंने यहां और आस पास के सभी डॉक्टरों को दिखा लिया परन्तु कोई आराम नहीं हो रहा है। मैंने पूछा, "डॉक्टरों ने क्या तकलीफ़ बताई है?" वह बोलें डॉक्टरों के कोई बिमारी समझ ही नहीं आ रही है। वो तो केवल दवा देकर ये कह देते हैं कि शायद इस दवा से आराम हो जाए। कल गाजियाबाद एक बडे अस्पताल में दिखा कर लगाऊंगा। मैंने कहा कि डॉक्टर को सारी तकलीफ अच्छे से बता देना ताकि वो अच्छी दवा दे सके। चाचा बोले कि बता तो दूंगा परन्तु कुछ बातें तो ऐसी है, जिन्हें बताने में ऐसा लगता है कि कहीं डॉक्टर सुनकर हंसी ना बनाएं। मैंने कहा, "हंसी क्यू बनाएंगे?" चाचा बोले कि रात के समय इसे सांस लेने में परेशानी होती है। यहां तक तो ठीक है परन्तु इसी के साथ ही ये अ...
सपनों का संसार
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सपनों का संसार

भुवनेश नौडियाल पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) ******************** जीना और मरना, ये जीवन के दो पहलू हैं। इस संसार में जिसने जन्म लिया है, उसे मरना तो है ही, यह तो जगत विदित है। जीना और मरना यह तो ईश्वर के हाथों में है, ना तो मेरे हाथों में है, और ना दूसरे के हाथों में, किंतु माध्यम मैं भी बन सकता हूं, और कोई दूसरा भी। पर यह थोड़ी है, कि हम अपने सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी प्राणी को पीड़ा पहुंचाएं, यह तो न्याय संगत नहीं है। यह तो आपके ऊपर है, कि आप किस प्रकार का जीवन जीना चाहते हैं। अपने सपनों का संसार या इस कहानी के जैसे- यह कहानी ऐसे किसान की है, जो अपनी जिंदगी से हार मान चुका है, और आगे जीना नही चाहता है। मानों की संसार के सारे दुख इसी को प्राप्त हुए हो, इस कारण से वह अपने बच्चे को जन्म लेने से पहले ही मार देना चाहता है। पर उसे क्या पता जो भाग्य में लिख...
डर
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डर

भुवनेश नौडियाल पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) ******************** यह कहानी कल्पना पूर्ण तो है ही, पर कल्पनाओं की जंजीर तोड़ कर यह हकीकत का दर्पण दिखाती है। यह कहानी अचानक प्रकृति की गोद में सोए सोए मस्तिष्क पटल में अंकित हो गई थी। इसलिए अपनी कलम से इस कहानी को लिखने की कोशिश की है। मैं अपने रोजमर्रा के कामों को समाप्त करके अपने आपको थका हुआ, और निद्रा देवी के आंचल में लिपट रहा था अर्थात नींद के आगोश में डूब रहा था, जैसे ही मुझे नींद की देवी ने अपने आंचल तले छुपा दिया, तो मैं अपनी कल्पना की दुनिया में गोते खा रहा था। मैं खुद नहीं जानता था, कि मैं कहां हूं वह तो जब नींद खुली तो पता चला कि मैं एक जंगल में हूँ या कल्पना की दुनिया में, कल्पना.... एक प्रश्न....? मन में इस प्रकार के प्रश्न प्रस्फुटित होते रहते हैं, पर आज अचानक यह प्रश्न मन में उदित हुआ, कल्पना.........
धूलगढ़ बना फूलगढ़
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धूलगढ़ बना फूलगढ़

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** धूल से भरा हुआ एक गॉंव था जिसमें चारों तरफ धूल ही धूल दिखाई देती थी। इस गॉंव की जमीन बंजर स्वभाव की थी।जिस कारण गॉंव में बहुत कम जमीन पर ही खेती होती थी और अधिकांश जमीन का हिस्सा खाली पड़ा रहता था। दूर- दूर तक केवल बड़े-बड़े खाली मैदान दिखाई पड़ते थे जिनमें धूल उड़ती रहती थी। गॉंव के लोग बहुत गरीब थे क्योंकि वो केवल इस बंजर भूमि में उतना ही अनाज पैदा कर पाते थे जितना उनका पेट भर सके। यहॉं के बच्चे भी गॉंव के प्राथमिक विद्यालय में पॉंचवीं कक्षा तक ही पढ पाते थे क्योंकि गरीबी के कारण कोई भी अपने बच्चों को शहर पढ़ने नहीं भेज पाता था। लंगोटिलाल और उसकी पत्नी लुंगीदेवी ने निश्चय कर लिया कि उन्हें कुछ भी करना पड़े परन्तु वो दोनों अपने बेटे गम्छासिंह को इतना पढ़ाएंगे की वो पढ लिखकर इस गॉंव की जमीन को सुधार सके। गम्छासिंह ...
पारो
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पारो

जुम्मन खान शेख़ बेजार अहमदाबादी अहमदाबाद (गुजरात) ********************  किसी स्टेशन पर रेलगाड़ी रुकी हुई थी, एक लड़का चाय की आवाज जोर-जोर लगाता हुआ आया, मैनें उससे एक चाय ली, चाय के पैसे देते हुए उससे स्टेशन का नाम पूंछा और चाय की चुस्की लेते हुए पारो (काल्पनिक नाम) के बारे सोचने लगा, वह बहुत ही सुंदर और अच्छे स्वभाव की लड़की थी, बचपन से कोलेज तक हम दोनों साथ में पढ़े थे, हम दोनों एक दूसरे को बहुत पसंद करते थे, में उससे बहुत प्यार करता था, मगर हम दोनों कभी एक दूसरे से प्यार का इज़हार करने की हिम्मत नहीं जुटा सके। मेरी कोलेज की पढ़ाई पूरी होने के बाद मै आर्मी में लेफ्टिनेंट के पद पर भर्ती हो गया, ट्रेनिंग के दौरान छुट्टी ना मिलने के कारण मै काफ़ी समय तक गांव नहीं आ पाया, ट्रेनिंग के बाद मेरी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर में कर दी गई। एक दिन गांव से ख़त आया दादी की तबियत ठीक नहीं ...
पप्पू पढ़ लें रे
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पप्पू पढ़ लें रे

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** नब्बे के दशक में एक गॉंंव में विवाहित जोडा रहता था। दोनों पति-पत्नी बड़े परेशान थे क्योंकि उनके सात लड़कियॉं थी परन्तु कोई भी लडका नहीं था।वे हर समय पुत्र कामना में लीन रहते थे। उन्हें हमेशा यही डर लगा रहता था कि यदि उनके कोई पुत्र नहीं हुआ तो उनका वंश समाप्त हो जाएगा। कुछ समय पश्चात उनके यहॉं एक पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम उन्होंने सज्जन सिंह रखा। वह धीरे-धीरे पॉंच साल का हो गया। परन्तु वह बहुत ही उद्डं था। पॉंच साल की उम्र से ही उसने औगार लाना शुरू कर दिया। उसके माता-पिता पूरे दिन उसकी औगारे सुनते। किसी ने कहा, इसे पढ़ने बैठा दो, पढाई और अध्यापकों के प्रभाव से सुधर जाएगा। उसका प्रवेश पहली कक्षा में करा दिया गया। जब सज्जन सिंह पहले दिन स्कूल गया तो पहले ही दिन उसने सारी कक्षा के बच्चों की किताबें फाड़ डाली। जब अध्याप...
वक्त का आईना
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वक्त का आईना

ऋतु गुप्ता खुर्जा बुलंदशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** शारदा जी के पास उनके प्रभाकर भैया का फोन आया था कि तेरी सरोज भाभी सीढ़ियों से गिर गई है, रीड की हड्डी में गंभीर चोट आई है, ना जाने अब बिस्तर से उठ भी पाएगी या नहीं, बच्चे भी पास में नहीं रहते, पता नहीं अब किस तरह बुढ़ापा कटेगा। इतना सुनकर एक बार को तो शारदा जी का मन फिर से अतित की उन गलियों में चला गया, जब उनके भाई प्रभाकर जी का विवाह सरोज भाभी के साथ हुआ था। सरोज भाभी शहर की पढ़ी लिखी थी, और उस समय में भी स्वतंत्र विचारों की थी। आजादी के नाम पर अपनी मनमानी करने वाली थी। वह अपनी सुंदरता के आगे किसी को कुछ ना समझती थी, और बेचारी अम्मा ठहरी सीधे सरल स्वभाव की बस अपने लल्ला (प्रभाकर जी) का ही भला चाहती थी, सोचती मैं ही चुप रहूं तो क्या बिगड़े, ताकि उनके बेटे की गृहस्थी में कोई अलगाव की अंगिठि ना सुलग जाये, और सोचती ...
प्यारी भाभी
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प्यारी भाभी

निर्दोष लक्ष्य जैन धनबाद (झारखंड) ********************  सीमा ओर रीता दोनों एक ही कॉलेज ओर एक ही क्लास में पढ़ती है, दोनों पक्की सहेली है। रीता के पिता का इलेक्ट्रॉनिक समान का बड़ा शोरूम था। सीमा एक गरीब मजदूर की बेटी थी। इससे उनकी दोस्ती पर कोईप्रभाव नहीं पड़ा। दोनों में अटूट प्रेम था। रीता का बर्थडे था उसने सीमा को निमंत्रित किया ओर तुम्हें बर्थडे पार्टी में जरूर आना है अन्यथा मैं केक नहीं काटुंगी सीमा को रीता की जिद्द के आगे झुकना पड़ा उसने हाँ कर दी। शाम को जब पार्टी के लिये तईयार होने लगी तो उसे एक भी ऐसे कपड़े नजर नहीं आये जिन्हे पहनकर पार्टी में जा सके उसने जाने का प्रोग्राम कैंसिल करना पड़ा वह नहीं चाहती थी की उसके चलते सीमा को शर्मिंदगी का सामना करना पड़े वह मन मारकर रह गई इधर जब सीमा का इंतजार कर के रीता गाड़ी लेकर उसके घर पहुंची ओर बोली तुम क्यों नहीं आई तुम जानती हो मैं...
घायल शेरनी
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घायल शेरनी

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  विमला का पति शहर के नामचीन सेठ के यहां बंगले पर चौकीदारी करता था। विमला की १२ साल की बेटी थी। विमला भी सेठ के यहां झाड़ू पोछे का काम करती है। विमला के पति को सेठ ने परिसर में ही एक कमरा सर्वेंट क्वार्टर के रूप में दे रखा था। विमला का पति शराबी था। वह अक्सर शराब के लिए विमला से रुपए मांगता एवं झगड़ा करता रहता। यह बात सेठ एवं उसके पूरे परिवार को मालूम थी। एक बार सेठ सपरिवार किसी रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे। अचानक रात में सेठ की हवेली में डकैत आ जाते हैं। हवेली में विमला का पति अकेला था। उसने डकैतों को रोकने की कोशिश की। डकैतों ने विमला के पति की हत्या कर दी। लूटपाट करके सोने के कुछ जेवर विमला के घर के पीछे तफ्तीश भटकाने की नियत से फेंककर चले गए। सुबह हत्या की जानकारी मिली। सेठ को बुलवाया गया। सेठ ने विमला पर शक जाहिर किया। ...
रेलगाड़ी की खिड़की
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रेलगाड़ी की खिड़की

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावन की छुट्टी खतम हो गई थी। वह अष्टमी से बासी दशहरे के अवकाश पर गाँव आया था। जब से साबरमती में जाॅब लगा वह बहुत खुश था। माँ ने आवाज देकर कहा सावन सामान पूरा पेक कर दिया है। दो तीन कमरों वाला मकान ढूंढ ले तब सब आसान हो जायेगा। हां माँ, "आप ठीक कह रही हैं।" रेलगाड़ी समय पर चल पड़ी। गाँव के दोस्तों को अलविदा कहते सावन गाड़ी में बैठते ही खिड़की से सभी प्रियजन लद ओझल होने तक हाथ दिखाता रहा। फिर आराम से सामान जमाया और अपने आसपास देखने लगा। दूसरी खिड़की के पास एक वृद्ध महिला सिमटी हुई बैठी थी। उसने सामान भी सीट पर अपने आसपास लगाकर रखा हुआ था। शायद वह अकेली थी। आप कहां जा रही है? पूछने पर कुछ अस्पष्ट जवाब दिया। फिर सावन भी चुप हो खिड़की के बाहर देखने लगा। वृद्धा टकटकी लगाए बाहर देख रही थी। हर स्टेशन पर वह खिड़की के बाहर झुककर ऐसी देखती ...
सावित्री
कहानी

सावित्री

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** सावित्री ने बाबा को खांसी की दवाई दी और पैरों में तथा छाती पर सरसों के तेल से मालिश की और बोली बाबा अब आराम से सो जाओ। मैं भी सोती हूं। कल से ऑफिस भी जाना है। वह जानती थी बाबा अभी चुप है लेकिन उन्हें बहुत कुछ बोलना है। बाबा ने कहा, "बेटी थोड़ा और रूक जाओ।" 'मीठी को छोड़ आई।' हां कहते वह दरवाजे की ओर जाने लगी। वह रो रही थी ना! नहीं, बाबा शान्त थी लेकिन कहती थी बाबा बहुत याद आयेंगे। वहां का माहौल कैसा था बेटा? बाबा आज ही सब सवाल पूछोगे, अभी सो जाओ, कल बातें करते हैं कहते सावित्री ने बाबा को चादर ओढ़ा दी और कमरे बाहर हो गई थी। रात के दो बज रही थी, जाते हुए मीठी ने एक चिट्ठी दी और बोला था, दीदी इसे घर पर पढ़ना। सोचकर भी सावित्री ने चिट्ठी नहीं खोली थी। मुझसे गुस्सा हुई मीठी ने चिट्ठी में मुझे गाली दी होगी और क्या लिखती वह। नींद भी त...
धीरे-धीरे रे मना
कहानी, नैतिक शिक्षा

धीरे-धीरे रे मना

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "अरे चुन्नू ! क्या सारा दिन खेलते रहोगे। पता है, छः माही सर पर आ रही है। पढ़ाई के लिए स्कूल ने छुट्टी रखी है और मैं भी तुम्हारे लिए घर पर हूँ। तिमाही का रिज़ल्ट देखकर पापा ने कितनी डाँट लगाई थी, याद है न। चलो जल्दी से पढ़ने बैठो।" कामवाली सरयू अभी तक आई नहीं है। धैर्या पोहे धोकर प्याज़ काटने बैठ जाती है। आँखों से झरते पानी में मिले बहू के आँसू अम्मा को सोचने पर मजबूर कर देते हैं। उन्होने भी तीन तीन बच्चों को पाला है। दोनों बेटियाँ सुघढ़ता से गृहस्थी चलाते हुए नौकरी भी कर रही हैं। और बेटा भी अपने कर्तव्य निभा रहा है। बस तीनों को नियमित अभ्यास करने बिठा देती थी। ख़ुद तरकारी भाजी साफ़ करते हुए उनकी कॉपियाँ भी देखती जाती। फ़िर तीनों मस्ती में खेलते-कूदते रहते थे। तभी बहू ने नाश्ते के लिए आवाज़ लगाई। सही मौका देख उसे टेबल पर हिदायतें देन...
उसकी छवि
कहानी

उसकी छवि

अतुल भगत्या तम्बोली सनावद (मध्य प्रदेश) ******************** सुबह चाय लेते समय मैंने उससे फोन पर बात करते हुए पूछ लिया। क्या चल रहा है आजकल? उसने दबी हुई आवाज में मुझसे कहा कि जीवन है बस जीये जा रहे है। मैंने उस आवाज को समझ लिया और उससे समस्या जानना चाहा पर वह समस्या बता नही पा रहा था। मुझे जल्द से जल्द तैयार होकर ऑफिस जाना था इसलिए मैंने ज्यादा जोर न देते हुए कुछ समय बात करके फोन काट दिया। मैं व्यस्त हो गया। ऑफिस जाने की जल्दी में मैं अपना मोबाइल जो बार बार बज रहा था। उसे उठा नही पाया। मैंने जब मोबाइल उठाया शायद उस समय काफी देर हो चुकी थी। मैंने जब मोबाइल देखा उसमें रवि के चार मिस्ड कॉल थे। उस नम्बर पर जब कॉल किया तो किसी सज्जन व्यक्ति ने उसका मोबाइल उठाया। मुझे जैसे ही पता चला रवि इस दुनिया में नही रहा। मेरे पैरों तले जमीन सरक गई। मैं अपना काम छोड़ उस जगह पर...