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व्यंग

कल आज और कल
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कल आज और कल

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** केवल आनंद के लिए लिखा गया किसी की धार्मिक भावना आहत करने का मकसद नहीं है। सभी लोग फुरसत में हैं, भक्ति, मेडीटेशन सब यथाशक्ति कर रहे हैं। मैं भी कर रहा हूँ बार-बार सुने हुए सुंदरकांड में आज कुछ नए-नए अर्थ निकल के आये, नई-नई प्रेरणाएं मिली। आज के परिप्रेक्ष्य में ... समस्याएं आज भी सुरसा की तरह बड़ी होती जाती है आपको उनसे दुगुनी शक्ति से सामना करना होता है। लोग पहले भी सबूत मांगते थे आज भी मांगते हैं, नही तो हनुमान को रामजी मुद्रिका क्यों देते, और सीताजी चूड़ामणि उतार के क्यों देती। केजरीवाल और कांग्रेस को सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट के सबूत मांगते देखा है। लोग पहले भी विश्वास नही करते थे आसानी से अब भी नही करते, सीताजी को हनुमानजी की क्षमता पे संदेह हुआ तो कनक भूधराकार शरीर दिखाना पड़ा तब विश्वास हुआ। जनता आज भी मोदीजी पे विश्वास कहा...
महंगाई की मनमानी
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महंगाई की मनमानी

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** तीन दिन पहले की बात है। मुझे चाय पीने की इच्छा हुई और मैं रसोई में गया। मध्यम वर्ग वालों की रसोई होती ही कितनी है, बस एक आदमी मुश्किल से खड़ा हो पाता है। मैं चाय बनाने की कोशिश कर ही रहा था कि मैंने देखा कि एक मृगनयनी चुपचाप अंदर दाखिल हुई। उसे बेधड़क अन्दर घुसते देख मैंने आदतन कहा कि आंटी जी आप कौन? आंटी जी संबोधन सुनते ही वह बिदक गई और बोली- मरघिल्ले ! एक पैर केले के छिलके पर और दूसरा कब्र में लटका है और मुझे आंटी कह रहा है? अरे! आप हो कौन जो मेरी रसोई में घुसकर मुझे ही गरियाने लगी? मैं नई-नवेली जीएसटी हूँ। अभी मैंने सोलह वसंत भी पार नहीं किए और तुम मुझे आंटी कह रहे हो। उसने ठसक के साथ उत्तर दिया। ठीक है कि तुम जीएसटी हो पर मेरी रसोई में क्यों घुस रही हो? मैंने तो तुम्हें नहीं बुलाया? कैसे नही बुलाया? तुमने मुझे खुल्ला न्यौत...
चंद्रयान और चांदी
व्यंग

चंद्रयान और चांदी

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** चंद्रयान ३ की सफलता के बाद भारत भर में खुशियां छाई हैं, सुदूर चांद तक इसकी ऊंचाई है। पूरे देश में बहुत ही जोश-खरोश से जश्न मनाया गया, मिठाईयां बांटी गई तो कहीं पटाखे फोड़े गए, सबने अपने अपने ढंग से और पूरे मन से इस चंद्र पर्व को मनाया। न वर्ग गत और न ही दलगत राजनीति इसमें आड़े आई, सब तरफ बस खुशी छाई। अभी पूरा सप्ताह हमारा चंद्रमय हो गया। मन में इतना उत्साह था की क्या बताएं। जो बचपन से चंदा मामा आसमान पर टांका हुआ था, लगा जैसे अचानक हमारे हाथ आ गया। कितनी गर्मी, सर्दी, बरसातें, देख ली आसमान में ताकते हुए, कभी किसी सुंदरी का सुंदर चेहरा न दिखा तो चांद को देख लिया, भारतीय उत्सव प्रियता का एक अदद बिंदु चांद करवा चौथ वाली बहुओं का झीनी जाली से देखा जाने वाला चांद जो अपने पति की लंबी उम्र की कामना में कई उपवास खुलव...
भूकंप… बाबू और बाबूगिरी…
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भूकंप… बाबू और बाबूगिरी…

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ********************  मेरा देश, महान देश है, भरत चक्रवर्ती के नाम पर बना भारत। राजा थे चक्रवर्ती राजा, रिद्धि-सिद्धि उनके यहां स्थाई निवास करती थी, सुवासित बहती हवाएं, बाग-बगीचे महलों, हवेलियों में हर वक्त मुक्त रुप बहती थीं। पक्षियों के कलरव, कोकिल कंठी कोयलों के गान, सर उठाए खुला आसमान और सुंदर वितान। परिचारिकाएं और परिचारक रात दिन उनकी सेवा में रत फूले नहीं समाते थे, हर वक्त खुशी के गीत गाते थे। बागों में लहराती तितलियां, गुंजायमान भंवरे, खिले फूलों की सुवासित सुरभि में देश डूबा हुआ रहता था, सुंदर परिवेश, इंद्र के सारे वैभव विद्यमान चौबीसों घंटे आनंद स्नान। जैसी नीव होती है उसी अनुरूप महल तामीर होते हैं, कालांतर में देश वैसा ही हुआ जैसा जन्मना शाही था। सारे विश्व की आंखें हम पर गड़ी रही। जो आया हम बांहे पसारे उसके स्वागत में वसु...
आदमी और कुत्ता
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आदमी और कुत्ता

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ********************  मेरे एक मित्र ने नया मकान बनवाया, अक्सर वे मुझसे बड़े भाई की हैसियत से सलाह ले लिया करते हैं। बड़े भाई लोग दो तरह के होते हैं, एक वह जो शहर को सम्हाले रखते हैं और उनकी भाईगिरी के चर्चे थानों से लेकर बाजारों तक और बड़े क्लब, मॉल, थिएटर, होटलों से लेकर, बाजारों के। व्यापारिक संगठनों, रेहड़ी संगठन, ऑटो रिक्शा संघ, ट्रक ऑनर एसोसिएशन, भू माफियाओं, कैसिनो, और तमाम तरह के जरायम पेशा धंधों चोर, गिरहकटियों, उठाईगिरों आदि जिन्हें की सभी को अब संगठित शक्ल दे दी गई है, इन सभी जगह के छोटे-छोटे भाईयों के ऊपर बड़े भाई के कंधे हैं उसी पर रखकर ये छुटभैय्ये अपने निशाने साधते रहते हैं, ये बड़े मजबूत कंधे सबका बोझ सम्हाले हुए रहते हैं और ये सभी उन्हें कभी दशहरा की पांवधोक के बहाने, तो कभी ईद की ईदी के नाम, कभी दीपावली की मिठाई के ...
ये परोपकार कमाने वाले
व्यंग

ये परोपकार कमाने वाले

सुरेश सौरभ लखीमपुर-खीरी (उत्तर प्रदेश) ********************  हाथ दिया वह रूक गये। ‘कोई सवारी नहीं मिल रही आज लिए चलो बाबू जी! मेरे विनयपूर्वक आग्रह को वे टाल न सके। आफिस के सहकर्मी जो ठहरे। मसाला भरा मुंह पीछे घुमाकर बैठने का इशारा किया। मैं उनके पीछे बाइक पर लद लिया। अभी चन्द दूरी ही चले होंगे..पिच पिच.पिच..गला खंगालकर बोले-नई गाड़ी है। डबल सवारी नहीं बैठाता, हां कभी-कभी हल्की-फुल्की डाल लेता हूं। और ट्रिपलिंग तो कभी नहीं?..हां हां बिलकुल नहीं... बाइक पर कभी भी तीन नहीं बैठना चहिए।... अब बैठ लिया तो क्या कहें, रपट पड़े तो हर गंगा वाला मेरा हाल था। साथ यह भी खयाल था कि मेरे पचास किलो वजन पर बेचारे ने तरस खाया है। अपने गन्तव्य पर पहुंच कर उन्हें ऐसे सलामी दी, जैसे बड़ी मुसीबत झेल, बेचारे ने दुश्मन का बार्डर पार करा के लाया हो मुझे। कई दिन बाद मैं बस अड्डे पर, आफिस जाने के लिए...
स्थानीय निकायों के दस्ते
व्यंग, हास्य

स्थानीय निकायों के दस्ते

किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया (महाराष्ट्र) ******************** प्लास्टिक बंदी का दौर आया है स्थानीय निकायों ने बाजारों में रेड करने के क्षेत्र वाईस दस्ते बनाए है पर लगता है माल सुताई मौसम आया है कार्रवाई में भाई भतीजावाद समाया है अपनों पर कार्रवाई नहीं करने का मन बनाया है कुछ जातिवाद को प्रथा भी अपनाई है मलाई की चाहत भी दिखलाई है दस्ते ने अपनी दादागिरी दिखलाई है स्थानीय निकाय के अन्य विभागों से भी भीड़ कर्मचारियों की साथ लाई है पुलिस बनकर कार्रवाई की राह अपनाई है फैक्ट्रियों पर से नजर बिल्कुल हटाई है छोटे दुकानदारों पर सख्ती दिखाई है माल सूतो नीति अपनाई है हफ़्ता खोरी की नीति चलाई है दस्ते वालों समझो पीएम तक खबर पहुंचाई है मन की बात से बात बतलाई है। अब तुम पर कार्रवाई की नौबत आई है संभल जाओ वक्त की दुहाई है परिचय :- किशन सनमुखदास...
राष्ट्रीय पशु बनाम कुत्ता शालाएँ
व्यंग

राष्ट्रीय पशु बनाम कुत्ता शालाएँ

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** आज कुत्तों की सभा चल रही थी, जिसमें सभी नस्ल के, सभी उम्र के कुुत्ते शामिल थे। एक वयोवृद्ध कुत्ता सभा को संबोधित कर रहा था, बाकी सभी श्रोता की मुद्रा में थे। बीच सभा में एक नेतानुमा, गली का नौजवान कुत्ता उठ खड़ा हुआ और कहने लगा- क्या आप लोगों को मालूम है, गाय को "राष्ट्रीय पशु " घोषित करने की तैयारी चल रही है? वयोवृद्ध कुत्ते ने कहा- हमें इससे क्या? बनने दो। नेतानुमा गली का कुत्ता बोला- क्या हमारी कोई औकात नहीं? हमें क्यों नहीं राष्ट्रीय पशु बनातें? अब तों सभा में शोर मच गया, सभी गली के कुत्ते के पक्ष में बोलने लगे। वयोवृद्ध कुत्ते ने कहा- मूर्खो! चुप हो जाओं। गाय को पूरा भारत "माता "कहता है। उसे पूजा जाता है। दूध के साथ ही उसका मूत्र और गोबर दिव्य माना जाता है, और हम सब जगह गंदगी फैलाते रहते हैं। हमारी औ...
लक्ष्मी उवाच
व्यंग

लक्ष्मी उवाच

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ********************                             "सुनो विष्णु, तुम्हारे पांव दबाते सदियां निकल गई। मेरे हाथ दुखने लगे हैं। आखिर कोई तो सीमा होगी। कब तक दबाऊंगी? मैं तुम्हारे पांव के आगे की दुनिया देख ही नहीं पाती।" भगवान विष्णु चौंक कर शेषनाग की शैय्या से एकदम उछल कर बैठ गये। उन्होंने लक्ष्मी को छूकर देखा। उनकी बातों से बगावत की बू आ रही थी। विस्मय से पूछा- "क्या हुआ भगवती? आज मुझे नाम लेकर पुकार रही हो। अभी तक तो प्राणेश्वर या जगदीश्वर कहकर बुलातीं थीं। आज सीधे नाम पर आ गई। और यह क्या कह रही हो कि चरण नहीं दबाओगी। क्यों? पृथ्वीलोक का चक्कर लगा कर आ रही हो?" "मुझसे क्यों पूछते हो विष्णु? तुम तो तीनों लोकों के अन्तर्यामी और स्वामी हो। मेरे मन में हाहाकार मचा है। क्या तुम मेरा मन नहीं पढ़ सकते? आखिर कब तक सोते रहोगे। बहुत सो लिए, अब नहीं सोने...
मोह-माया की दुनिया
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मोह-माया की दुनिया

कु. आरती सिरसाट बुरहानपुर (मध्यप्रदेश) ******************** बात सुबह के आठ साढ़े आठ बजे की है जब मैं बालकनी में बैठीं हुई चाय और बिस्किट का मज़ा लेते हुएँ, साथ में ही अखबार के पन्नों को पलट रही थी। ओर सोच रही थी की आखिरकार हमारें देश के नागरिक कब मोह माया की दुनिया से बाहर निकलेगें। कब वर्तमान में जीवन जीएगे कब वास्तविकता का समाना करेंगे। और कब देश का विकास होगा। तभी अचानक मेरी नज़र नीचें सड़क पर पड़ी। ओर मैंने देखा की शर्मा चाचाजी चलते-चलते अचानक रूक गये। मगर मैं कहा रूकने वाली थी, मैं तो तुरंत बोल पडीं। ...अरे चाचाजी क्या हुआ आप चलते-चलते अचानक क्यों रूक गयें, क्या कुछ भुल गये बाजार से लाना। चाचाजी बोलें... अरें नहीं बेटा कुछ भुला नही... बल्कि मैं तो बहुत जल्दी में हूँ, मुझे जल्दी घर जाना है। ठीक है चाचाजी, मुझे क्षमा कर दीजिए, आप जल्दी में है ओर मैंने आपको बीच में टो...
अब तो सुधर जाओ मियां
व्यंग

अब तो सुधर जाओ मियां

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे की खबर पर जैसे ही दृष्टि पड़ी तो बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं हुआ हम तो पहले से ही जानते थे कि यही होना है नहीं होता तो जरूर आश्चर्य होता मियां। एक कहावत तो तुम ने सुनी होगी? हमारे मालवा में बहुत बोली जाती हैं कि "जो दूसरा वास्ते खाड़ा खोदें, उज उनी खाड़ा में सबका पेला पड़े।" मतलब कहने का यह पड़ रिया है कि अब तो सुधर जाओ मियां। आज अफगानिस्तान की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। तालिबानियों ने सरकार का तख्ता पलट कर राष्ट्रपति को भागने को मजबूर कर दिया।‌ महिलाओं और बच्चियों की दुर्गति हो रही है। यहां तक कि अफगानिस्तान का नाम भी बदल दिया है और पड़ोसी देशों के पास समर्थन के अलावा कोई चारा नहीं। परिस्थितियां बद से बदतर हो रही है फिर भी भारत में रहने में तुमको डर लगता है मियां जबकि भारत संव...
ईश्वर के नाम पत्र
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ईश्वर के नाम पत्र

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** मानवीय मूल्यों का पूर्णतया अनुसरण करते हुए यह पत्र लिखने बैठा तो सोचा कि सच्चाई भी लिखता चलूं। उससे भी पहले अपने स्वभाव की औपचारिक परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरी तरह स्वार्थवश आपके चरणों में दिखावटी शीष भी झुका रहा हूँ, ताकि आप कुपित होकर भी मेरा अनिष्ट करने की सोचो भी मत। क्योंकि आप मानव तो हो नहीं, ये अलग बात है कि प्रभु जी आज भी पुरानी विचारधारा में मस्त हो।अरे अपने कथित महल/कुटिया/धाम से बाहर निकलिए, तब देखि कि दुनियां और हम मानव कहाँ तक पहुंच गये हैं, कितना विकास कर लिया है। मगर सबसे पहले एक मुफ्त की सलाह है कि बस अब लगे हाथ एक एंड्रॉयड मोबाइल ले ही लीजिए, बैठे सारी दुनियां का समाचार लीजिए, कुछ चैट शैट कीजिये, अपनी एक यूट्यब चैनल बनाइए, पलक क्षपकते ही किसी से बातें करिए। कारण कि ...
कबाड़ी किंग
व्यंग

कबाड़ी किंग

रमेशचंद्र शर्मा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कबाड़ी वाला और व्यंग। सुनने में बड़ा अटपटा लगता है। कबाड़ में तो कचरे की भरमार रहती है। कचरे से व्यंग का उत्पादन सचमुच बड़ा ही विस्मयकारी है। इधर कबाड़ी वालों की देश में भरमार है। सोचता हूं यदि हिंदुस्तान में कबाड़ वाले नहीं होते तो अटालों का क्या होता है? पूरे देश का अटाला सड़कों पर जमा हो जाता। कुछ लोग जो अटाले को घरों में बड़े करीने से सजाकर रखते हैं। कबाड़ हमेशा कबाड़ नहीं रहता। यदि किस्मत बल्लियों मचले तो कबाड़ भी एंटीक की कैटेगरी में आ जाता है। कबाड़ने कितने ही कावड़ियों की लाइफ बना दी। मतलब जो सड़क छाप थे आज राजमार्ग पर फराटे दार अंग्रेजी में बतिया रहे हैं। हमारे शहर का एक कबाड़ी तो रातों रात लखपति की श्रेणी में आ गये। कावड़ची चाची बेगम के दिन इतनी जल्दी बदल गए। पूरे शहर के कबाड़ी उससे जलने लगे। शायद घूड़े के दिन भी इतनी ज...
लेखक की आत्मा
व्यंग

लेखक की आत्मा

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** पसीने से तर-बतर, लस्त पस्त से यमराज भगवान विष्णु को प्रणाम कर नतमुख खड़े हो गए। "वत्स यम, आज इतने थके और उदास क्यों लग रहे हो?" "भगवान, इस सेवक को अब आप सेवामुक्त करें। बहुत दौड़ लिया। अब नहीं दौड़ा जाता"- कहते कहते यमराज का कंठ अवरुद्ध हो गया। "ऐसी भी क्या बात है यम? जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तुम अपना काम पूरी निष्ठा और लगन से कर रहे हो। अब क्या हो गया?इतने घबराए और निराश क्यो हो? सेवा समाप्त करने से समस्या का हल नहीं निकल पाएगा।" पांव पकड़ लिए यमराज ने। "निश्चिंत होकर कहो क्या कष्ट है? संकोच मत करो।" यमराज ने हिम्मत जुटाई। करबद्ध हो बोले- "भगवन्, आपने मुझे एक वृद्ध लेखक की आत्मा लेने भेजा था।" "हां हमें याद है। परिवार वाले उससे तंग आ चुके हैं। उम्र भी पिचानवें साल है। बहू बेटे रोज मंदिर में दीपक जलाकर प्रार्थ...
सोच हमारी संस्कृति पर भारी
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सोच हमारी संस्कृति पर भारी

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** हमारा देश बहुत कमाल का देश है। हमारी एक ख़ासियत है कि जो कुछ स्वदेशी है हमने उससे हमेशा नफरत की है और जो कुछ विदेशी है उसे बेइन्तहां प्यार करते हैं। हमें तो बेहूदगी और बेशर्मी भी प्यारी है, बस शर्त यह है कि वे विदेशी हों। अपने देश की तो सादगी भी वाहियात लगती है। हमारे यहाँ महान ऋषि-मुनि हुए, हमें वे फूटी आँख नहीं सुहाते, हम उनसे नफ़रत करते हैं। नैतिकता, भाईचारा, अपनापन, बड़ों का आदर, नारियों का सम्मान ये सारी सीख हमारे पूर्वजों की देन है। लेकिन हम इन सारी अच्छाइयों को दकियानूसी समझकर नफ़रत करते हैं और पूरा ध्यान रखते हैं कि कहीं हमारे बच्चे ये बहियात बातें सीख न जाएँ? हम कितनी उच्चकोटि की निम्न मानसिकता से ग्रस्त हैं कि 'लिव इन रिलेशन' और 'समलैंगिकता' जैसी वाहियात विचारधारा को सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन करते हैं। संस्कृत औ...
पौष्टिक आहार पर कोरोना की मार
व्यंग

पौष्टिक आहार पर कोरोना की मार

विष्णु दत्त भट्ट नई दिल्ली ******************** कोरोना क्या आया दुनिया की सूरत बदल गई। प्राणवान तो इस महामारी से त्रस्त हैं ही लेकिन प्राणहीन भी कम त्रस्त नहीं हैं। मेरे घर में अनवरत रूप से एक अखबार आता है। कोरोना से पहले बड़ा हृष्ट-पुष्ट था। किसी अच्छे खाते-पीते घर का लगता था। काफ़ी वजनी होता था। पेजों की भरमार होती थी। हालांकि उनमें वजन ही होता था पढ़ने लायक समाचार तो एक-आध पेज पर ही होते थे। बलात्कार की चटपटी खबर, हत्याओं की सनसनीखेज खबरों को देखकर ऐसा अनुभव होता था जैसे ये सारी बारदातें इसी अखबार ने की हैं? इतना बारीक विश्लेषण तो खुद बलात्कारी और हत्यारा भी नहीं कर पाता जितना बारीक़ विश्लेषण अखबार करता है। कोरोना से पहले अख़बार बहुत ऊर्जावान लगता था। विज्ञापनों की पौष्टिक ख़ुराक़ जमकर मिलती थी। कभी-कभी तो ख़ुराक़ इतनी अधिक होती थी कि पढनेवालों को अपच के कारण दस्त लग जाते थे लेकिन...
कवि और चप्पल
व्यंग

कवि और चप्पल

जितेंद्र शिवहरे महू, इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************                   एक कवि मित्र ने स्व प्रयासों से जैसे-तैसे कवि सम्मेलन का आयोजन किया। मैं भी निमंत्रित था। मंचीय स्टेज पर चढ़ने से पूर्व चरण पादुकाएं नीचे एक ओर व्यवस्थित रख दी थी। सम्मेलन निपटाकर ज्यों ही चप्पलें ढूंठी, नहीं मिली। सारा पांडाल खगांल मारा। किन्तु चप्पलों का नामों निशान तक न था। हडकंप मच गया कि चोरल वाले कवि महोदय की चप्पलें चोरी चली गयीं। मेरे लिए बिना चप्पलों के एक पग चलना भी दूभर हो रहा था। नंगे पैर घर कैसे जाता? कवि मित्र से प्रार्थना की कोई वैकल्पिक व्यवस्था करें। उन्होंने बहुत देर तक विचार किया परन्तु कोई युक्ती नहीं निकली। रात्री के तीन बजे चप्पलों की दुकान कहां खोजते? अन्य कवि मित्रों ने आयोजक कवि मित्र पर दबाव बनाया की मानदेय भले न दें, लेकिन कवि महोदय की चप्पलों की व्यवस्था तो करें। आयोजक कवि मित्...
बाय-बाय ट्रम्प
व्यंग

बाय-बाय ट्रम्प

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जी हाँ! एक दम सही पढ़ा आपने दुनिया के सर्व शक्तिशाली शख्स का तमगा अपनी छाती पर लादकर बाइडेन अब व्हाइट हाउस की गद्दी में बैठने जा रहे हैं। सर्वशक्तिशाली देशों की सूची में ओहदा रखने वाले अमेरिका को नया राष्ट्रपति बाइडेन के रूप में मिल गया है। वैसे अमेरिका के नये राष्ट्रपति के समक्ष चुनौतियां भी कम नहीं होंगी जब दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है और इसका सबसे ज्यादा शिकार अमेरिका ही हुआ है, अमेरिका जैसे देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, लाखों लोग बेरोजगार हैं। ऐसे में देखना यह भी होगा कि इन सभी हालातों से बाइडेन कैसे निबटते हैं। बहरहाल उगते सूरज को सलाम करने की हमारी सनातनी परम्परा रही है और आगे भी रहेगी। हमारे हिन्दुस्तान में उगते सूरज को सलाम करने के लिए इस समय देश की महनीय कुर्सी पर दो गुजराती भाऊ बैठे हैं और गुजरा...
गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ
व्यंग

गोपियाँ, पहना रही हैं टोपियाँ

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ********************                                                                   भारत ही नहीं अपितु वैश्विक स्तर पर गोपियों का महत्व और वर्चस्व सदा से कायम रहा है और आगे भी रहेगा! सतयुग, त्रेता, द्वापरयुग से लेकर आज तक गोपियों के महत्व में कोई परिवर्तन नहीं है! पहले गोपियाँ पनघट में पानी भरते पायी जाती थीं, सावन में झूले झूलती पायी जाती थीं! बाग बगीचों में आपस में हास, परिहास, इठलाती, बलखाती पायी जाती थीं, तब नटखट नंदलाला इनको छेंड़ा करता था और ये हंसी खुशी छिंड़ जाया करती थीं! नंदलाला से छिड़ंकर ये इठलाया करती थीं! कहते हैं समय बड़ा ही परिवर्तनशील और परिवर्तन भरे दौर में इन गोपियों में भी भयंकर परिवर्तन आया है, अब गोपियों के हाथ में एंड्रायड मोबाइल है और ये गोपियाँ फेसबुक पर पायी जा रही हैं! स्वयं छिड़ने के बजाय अब तो फेसबुक पर ...
१००८ कोरोनानंद जी महाराज
व्यंग

१००८ कोरोनानंद जी महाराज

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** नमस्कार दोस्तों, सबसे पहले शुभकामनाओं की एक खेप स्वीकार कर लीजिए। ज्यादा उलझने की जरूरत नहीं है कि शुभकामनाऔं का ये झोंका आखिर किस पुण्य प्रताप के फलस्वरूप आप को दुर्भाग्यवश अरे नहीं-नहीं भाई सौभाग्य का पारितोषिक प्रसाद स्वरूप आपको सुशोभित हो रहा है। कुछ समझ में आया हो तो बता ही डालिए, ताकि शुभकामनाओं का एक और गुच्छा मैं आपकी ओर अबिलम्ब उछाल दूँ। नहीं समझ में आया तो भी कोई बात नहीं है, निराश होने की जरूरत नहीं है आपको फ्री में एक शुभकामना दे ही देता हूँ। हाँ तो बात शुभकामनाओं की चल रही थी। सबसे पहले मैं आपको शुभकामनाओं के साथ बता दूँ कि मेरी शुभकामनाएं एकदम नये किस्म की हैं जिसमें दिल का कोई कनेक्शन ही नहीं है। आजकल शुभकामनाओं का रोग बेहिसाब बढ़ गया है, इतना बढ़ गया है बेचारा कोरोना भी खौफ में है। यही नहीं गुस्से ...
मख्खनबाजी और बेईमानी आवश्यक है भाई!
व्यंग

मख्खनबाजी और बेईमानी आवश्यक है भाई!

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** जी हाँ ! बिलकुल सही पढ़ा है आपने! खुद के द्वारा किए गए एक शोध से यह कहने में मुझे कोई गुरेज नही कि यह दुनिया सिर्फ और सिर्फ मख्खनबाजी और बेईमानी की बुनियाद पर टिकी हुई है! दुनिया में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति में मख्खनबाजी और बेईमानी का गुण विद्यमान है चाहे वह नर हो या नारी! मैं तो यह बात भी दावे के साथ कह रहा हूँ कि यदि मख्खनबाजी और बेईमानी का रास्ता छोड़ दिया जाए तो दुनिया जैसी चल रही है वैसे चल ही नहीं पाएगी! मख्खनबाजी और बेईमानी की राह छोड़ देने से सब तहस-नहस हो जाएगा! रिश्ते नाते खत्म हो जाएंगे! मख्खनबाजी और बेईमानी छोड़ देने से आपसी प्रेम और भाईचारा खत्म हो जाएगा! आपने कभी सोचा है कि एक औरत अपने पति के बारे में जो सोचती है वह कह ही नहीं सकती या एक पति अपने पत्नी के बारे में जो सोचता है वह कहता ही नहीं जीवन पर्यन्त...
जान है तो जहान है
व्यंग

जान है तो जहान है

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ********************  वर्तमान फेसबुक, वाट्सअप, इंस्ट्राग्राम ने टीवी, वीडियो गेम्स, रेडियो आदि को लॉकडाउन में चाहने लगे। कहने का मतलब है की दिन औऱ रात इसमे ही लगे रहते है। यदि घर पर मेहमान आते और वो आपसे कुछ कह रहे। मगर लोगो का ध्यान बस फेसबुक, वाट्सअप पर जवाब देने में और उनकी समझाइश में ही बीत जाता। मेहमान भी रूखेपन से व्यवहार में जल्द उठने की सोचते है। घर के काम तो पिछड़ ही रहे।फेसबुक, वाट्सअप का चस्का ऐसा की यदि रोजाना सुबह शाम आपने राम-राम या गुड़ मोर्निंग नही की तो नाराजगी। इसका भ्रम हर एक को ऐसा महसूस होता कि-मैं ही ज्यादा होशियार हूँ। अत्याधिक ज्ञान हो जाने का भ्रम चाहे वो फेंक खबर हो। उसका प्रचार भले ही खाना समय पर ना खाएं किन्तु खबर एक दूसरे को पहुंचाना परम कर्तव्य समझते है। पड़ोसी औऱ रिश्तेदार अनजाने हो जाते। मगर क्या कहे भाई इन्हें तो बस दूर के ...
स्वर्ग से सुंदर भोले का मोहल्ला
व्यंग

स्वर्ग से सुंदर भोले का मोहल्ला

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** देश ही नहीं अपितु विदेशों तक प्रसिद्ध भोले के मोहल्ले के सुंदरीकरण और विकास की गाथा अपरंपार है आइए आपको भोले के मोहल्ले से अवगत कराते हैं, टूटी फूटी गड्ढों से परिपूर्ण ज्यादातर गलियां और, थर्ड क्लास के मेटेरियल का प्रयोग, भोले की मोहल्ले की विशेषताएं है। गलियां और सड़कें इतने मजबूत है कि आप चाहे तो विमान भी यहां उतार सकते हैं, बारिश से उत्पन्न कीचड़ गंदी छींटे कभी लोगों का तो कभी बाइक और कारों की शोभा बढ़ाती हैं, यहां के गडर और सीवर ,पानी की पाइप लाइन में प्रयोग की गई सामग्री इतनी मजबूत है की, अंतरराष्ट्रीय लेवल के इंजीनियर यह देखने आते हैं कि इतना मजबूत और टिकाऊ मटेरियल कहां से और कैसे प्राप्त हुआ जो कि पूरी जिंदगी भर खराब नहीं होगी। भिन्न-भिन्न पार्को का निर्माण जो आज तक नहीं हुआ उसे देख कर मन इतना प्रसन्न होता है कि व्याख्य...
पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती
कविता, व्यंग

पत्नी से बेतकल्लुफ दोस्ती

डाॅ. हीरा इन्दौरी इंदौर म.प्र. ******************** ।।हजल।। करी पत्नी से भी यूँ बेतकल्लुफ दोस्ती मैंने। कहा उसने गधा मुझको कहा उसको गधी मैंने।। बहुत बेले हैं पापङ तेरी खातिर जिंदगी मैंने। कभी लेने गया तेल और कभी बेचा है घी मैने।। सरे बाजार चप्पल लात जूते से हुआ स्वागत। समझकर हिजँङा महिला की सारी खेंच ली मैंने।। तेरे गम में बढाकर मूँछ दाढी कुछ ही दिन पहले। बना रक्खा था अपने आपको सरदारजी मैने।। कभी खाना पकाता हूँ कभी बच्चे खिलाता हूँ। क्लर्की उसने पाई घर में कर ली नौकरी मैने।। मेरा पैसा तुम्हारा रूप अक्सर काम आया है। रकीबों को जलाया है कभी तुमने कभी मैंने।। रफीकों की तरह पेश आता है अपने रकीबों से। नहीं देखा कहीं "हीरा" के जैसा आदमी मैने।। . परिचय :-  डाॅ. राधेश्याम गोयल, प्रचलित नाम डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद...
ज़िन्दगी की हकीकत
व्यंग

ज़िन्दगी की हकीकत

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** असमंजस में कट रही है जिंदगी खुदपे करूं यकीन या दुनिया को गलत समझूं। बड़ी बेरहम है दुनिया समझ नही आता मैं खुदको बचाऊँ या गैरो का साथ दूं। हर दिन हो रहा है गुनाह हाथों से मेरे में खुदको आजकल बड़ा समझने लगा हूँ। क्या हक है मुझे किसी का दिल दुखाने का क्या मेरे अंदर इंसानियत नही है। अकेला था तो खुश था शामिल हुए कुछ और तो ज़िम्मेदारी का सफर शुरू हुआ। जितनी भी ली सुविधा उतनी हुई दुविधा क्या इरादे मेरे नेक नही थे या में काबिल नही था। बड़े यकीन के साथ निकलता हूँ घर से की आऊंगा लेकर सबका सामान। उम्मीदों और ख्वाइशों से भरा पड़ा है मेरा मकान नही देखना उनको मेरी थकान। आजमाने चला हूँ मै उनको आजकल जो पीठ पीछे मुझे कुछ मानते ही नही। और तारीफें कर रहे है वो मेरी जमाने भर में जो मुझे कभी जानते ही नही। क्या दुनिया है ये जिसको देखो वो अपन...