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ईश्वर के नाम पत्र

सुधीर श्रीवास्तव
बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश)
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मानवीय मूल्यों का पूर्णतया अनुसरण करते हुए यह पत्र लिखने बैठा तो सोचा कि सच्चाई भी लिखता चलूं। उससे भी पहले अपने स्वभाव की औपचारिक परंपरा का निर्वहन करते हुए पूरी तरह स्वार्थवश आपके चरणों में दिखावटी शीष भी झुका रहा हूँ, ताकि आप कुपित होकर भी मेरा अनिष्ट करने की सोचो भी मत। क्योंकि आप मानव तो हो नहीं, ये अलग बात है कि प्रभु जी आज भी पुरानी विचारधारा में मस्त हो।अरे अपने कथित महल/कुटिया/धाम से बाहर निकलिए, तब देखि कि दुनियां और हम मानव कहाँ तक पहुंच गये हैं, कितना विकास कर लिया है। मगर सबसे पहले एक मुफ्त की सलाह है कि बस अब लगे हाथ एक एंड्रॉयड मोबाइल ले ही लीजिए, बैठे सारी दुनियां का समाचार लीजिए, कुछ चैट शैट कीजिये, अपनी एक यूट्यब चैनल बनाइए, पलक क्षपकते ही किसी से बातें करिए। कारण कि अब पत्र लिखना भी छूट ही गया है, पोस्टकार्ड से भी कम कीमत में झट से बात करो, तनावों से बचो।यही हमारी सोच है। काश आपके पास ये सुविधा होती तो वीडियो काल से आपको यहां का सीधे नजारा दिखाता।
ओह अब समझा आप परेशान क्यों हैं?
अरे प्रभु, ये क्या बात हुई आप सबकी खबर रखते हो, पर उनके जुगाड़ तंत्र को नहीं समझते। बस आप यमराज को अपनी इच्छा भर बताइये फिर देखिये मोबाइल के ढेर लग जायेंगे। मगर आप हैं कि बस…………।
और हाँ एक राज की बात भी कहनी है आपके पास मोबाइल भले नहीं है पर यमराज जी तो आये दिन नये-नये महँगे मोबाइलों से खेल रहे हैं। तभी तो कोरोना में उनकी कार्य पद्धति एकदम बदली-बदली सी दिखी। चैंटिंग में इतना मस्त रहने लगें है कि बस पूछो मत।
वैसे तो प्रभु ये इधर-उधर की बातें करना अच्छा तो नहीं लगता पर क्या करूँ, मजबूर जो हूँ, आखिर आपका ही बनाया इंसान हूँ।
कोई बात नहीं प्रभु अब यमराज को आप ही सँभालना। वैसे यमराज की गिद्ध नजर हमारे आपके संबंधों पर है। फिर जब हम आपके सीधे संपर्क में हैं तो मेरा विचार है कि यमराज जी मेरा नुकसान करने से पहले आपकी मान प्रतिष्ठा का ख्याल तो जरूर रखेंगे।
………….सो गये क्या प्रभु? ये पत्र चीज ही ऐसी है कि हंसाती, रुलाती, सुलाती भी है। मतलब आप बोर हो रहे हैं।
कोई बात नहीं मैं ही यमराज से सीधे फोन पर बात कर लूँगा कि जब वे हमारे एरिया में आयें तो हमसे मिलकर जायें जिससे मैं आपके लिए सिम सहित मोबाइल भेज सकूँ अनलिमिटेड काल, डाटा की सुविधा के साथ।
बस प्रभु मुझे भी नींद आने लगी है। अब बंद करता हूँ अब तो फोन पर ही बात करुँगा। तब तक के लिए विदा। जय हो प्रभु। मेरा कल्याण हो आपकी ओर से मेरे लिए फिलहाल इतना ही।
भविष्य में आपको होने वाली तमाम असुविधाओं के लिए हमें दिल से खेद है।
धरती पर आपका सबसे बड़ा शुभचिंतक
सुधीर श्रीवास्तव

परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव
जन्मतिथि : ०१/०७/१९६९
शिक्षा : स्नातक, आई.टी.आई., पत्रकारिता प्रशिक्षण (पत्राचार)
पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव
माता : स्व.विमला देवी
धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव
पुत्री : संस्कृति, गरिमा
संप्रति : निजी कार्य
विशेष : अधीक्षक (दैनिक कार्यक्रम) साहित्य संगम संस्थान असम इकाई।
रा.उपाध्यक्ष : साहित्यिक आस्था मंच्, रा.मीडिया प्रभारी-हिंददेश परिवार
सलाहकार : हिंंददेश पत्रिका (पा.)
संयोजक : हिंददेश परिवार(एनजीओ) -हिंददेश लाइव -हिंददेश रक्तमंडली
संरक्षक : लफ्जों का कमाल (व्हाट्सएप पटल)
निवास : गोण्डा (उ.प्र.)
साहित्यिक गतिविधियाँ : १९८५ से विभिन्न विधाओं की रचनाएं कहानियां, लघुकथाएं, हाइकू, कविताएं, लेख, परिचर्चा, पुस्तक समीक्षा आदि १५० से अधिक स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित। दो दर्जन से अधिक कहानी, कविता, लघुकथा संकलनों में रचनाओं का प्रकाशन, कुछेक प्रकाश्य। अनेक पत्र पत्रिकाओं, काव्य संकलनों, ई-बुक काव्य संकलनों व पत्र पत्रिकाओं, न्यूज पोर्टल्स, ब्लॉगस, बेवसाइटस में रचनाओं का प्रकाशन जारी।अब तक ७५० से अधिक रचनाओं का प्रकाशन, सतत जारी। अनेक पटलों पर काव्य पाठ अनवरत जारी।
सम्मान : विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा ४५० से अधिक सम्मान पत्र। विभिन्न पटलों की काव्य गोष्ठियों में अध्यक्षता करने का अवसर भी मिला। साहित्य संगम संस्थान द्वारा ‘संगम शिरोमणि’सम्मान, जैन (संभाव्य) विश्वविद्यालय बेंगलुरु द्वारा बेवनार हेतु सम्मान पत्र।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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