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विद्या ददाति विनयम …
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विद्या ददाति विनयम …

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** विद्या ददाति विनयम विनयात ददाति पात्रताम पात्रत्वात धनं आप्नोति धनातधर्मम ततः सुखम। अर्थात - विद्या यानी ज्ञान हमे विनम्रता प्रदान करता है, विनम्रता से योग्यता आती है और योग्यता से हमे धन प्राप्त होता है और धन से सुख मिलता है । अगर ये श्लोक और उसका अर्थ सही है तो क्यों विद्या प्राप्त करके हम विनम्र होने के स्थान पे अभिमानी हो रहे हैं? विनम्रता से योग्यता और पात्रता आती है। तो फिर क्यों हमने अपने पात्र को उल्टा करके रख दिया और शिकायत है कि भरता ही नहीं। अरे घड़ा अगर उल्टा रख दोगे तो सारा समंदर भी उड़ेल दे तो पात्र खाली ही रहेगा। जितना धनार्जन कर लेते हैं उतना ही धर्म से दूर होते जा रहे है। यहां पे धर्म का अर्थ कर्मकांड नही अपितु इंसानियत से है। फिर सुख नही मिलता यही कहते रहते है । सुख का ताल्लुक मन की स्थिति से है भौतिकता में नही। ...
बदला
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बदला

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बरसो से से एक बहुत ही गुनी कलाकार मालिश वाला हमारे परिवार के पुरुषों की मालिश करता था। शास्त्र में कहा गया है नाई व नावन चलते-फिरते अखबार होते है, मेरा मानना है कि शास्त्र कुछ भी नही अनुभव सिद्ध संसार का एक शानदार निचोड़ है। समय काल से सब बदलता ही है मगर शास्त्र की बाते शाश्वत ही है। अति सर्वत्र वर्जयेत बदल सकते हो क्या। तो ये नाई मेरे घर आज आया, कोरोना काल मे भयानक दुर्घटना में उसका इकलौता बेटा काल धर्म को प्राप्त हुआ। दुख का पहाड़ टूट पड़ा। पर उसने दुर्घटना करने वाले लड़के पर नो लाख खर्च किये कि सज़ा तो दिलाऊंगा दोनो पति-पत्नी काम पर नही गए उदास हताश पगलाए कोर्ट पुलिस करते रहे न्याय का तो आपको पता ही है। किसी समझू ने उसे राय दी, दोनो ने नसबंदी ओपन की व ५५ की उम्र में बेटी प्राप्त की जिसका वॉकर में चलते हुए मैंने फोटो देखा। मैं तो आ...
विश्वगुरु
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विश्वगुरु

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** हम विश्वगुरु थे और हमारा ये स्थान हमसे कोई नही छीन सकता। हमारा दोगला चरित्र और हर मामले में स्वार्थ कि राजनीति करने की महारत हमे विश्व के अन्य देशों से अलग करती है। हम बातें सर्वधर्म सद्भभाव की करते है, कण-कण में भगवान की करते है लेकिन हमारा बर्ताव ठीक इसके विपरीत है। नैतिकता की बातें विश्व मे हमसे अच्छी कोई नही कर सकता, हम भाषणवीर हैं, हमारे खिलाड़ी कागजी शेर हैं, हमारे नेता हमारी ही तरह भृष्ट और दोगले चरित्र के हैं। यही सब खूबियां हमे विश्व मानचित्र पे एक ध्रुव तारे का स्थान देती है। हमारा भूतकाल बहुत समृद्ध था, उसकी बातें और सपनों से बाहर आना ही नही चाहते। हम वर्तमान में हर वो काम करने में लगे हैं जो आने वाली पीढ़ियों को कहीं का न रखे। कुल मिला कर हमारा भविष्य सिर्फ अंधकारमय हो सकता है, रोशनी की कोई किरण अगर हम दिखती भी है तो हम...
अंधेरी दुनिया …
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अंधेरी दुनिया …

अमन सिंह अलीगढ (उत्तर प्रदेश) ******************* नशा आजकल एक महाजनसंख्या की समस्या बन चुका है जिससे हर तरह के लोग प्रभावित हो रहे हैं, विशेषकर युवा वर्ग। यह समस्या समाज की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बन चुकी है क्योंकि यह सिर्फ नशे के संभावित हानिकारक प्रभावों को ही नहीं लेकर आता है, बल्कि इससे अन्य सामाजिक, आर्थिक, और परिवारिक समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। नशा आमतौर पर या तो मनोरंजन के लिए या तनाव और दुख को कम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन, इसके लाभ केवल समय के लिए होते हैं, और इसके बाद के परिणाम अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं। नशे में धुत होने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि परिवारिक प्रेशर, योजनाबद्धता की कमी, सामाजिक दूरी, आदि। युवा वर्ग नशे के प्रभाव में ज्यादा प्रभावित होता है क्योंकि वे अपने जीवन की पहली स्टेज में होते हैं और उन्हें अपने आप को ढूंढने और पह...
हरावल दस्ता
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हरावल दस्ता

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** जो लोग राजपूती युद्धशैली से वाकिफ हैं वो इसका अर्थ भली-भांति जानते हैं। हरावल सेना का वो दस्ता होता है जो युद्ध की भेरी बजने पे दुश्मन सेना से आमने सामने की भिड़ंत करता है। मकसद होता है सामने वाले को अधिकाधिक क्षति पहुंचाना और अपने राजा या सेनापति को सुरक्षित रखना। सर्वाधिक नुकसान भी इस अग्रिम दस्ते का ही होता है और वीरगति भी इन्ही की ज्यादा होती है। आज के भारत के परिप्रेक्ष्य में समझे तो साम्प्रदायिक दंगे, प्राकृतिक आपदा या युद्ध में सर्वाधिक हानि किनकी होती है। सड़क के किनारे या कच्ची बस्तियों में रहने वाले गरीब मजदूर वर्ग की। कभी सुना है की भूकंप में, बाढ़ में, या साम्प्रदायिक दंगे में नेताओ या धनाढ्य लोगो के परिवार तबाह हुए हो। भाई ऐसे परिवारों के बच्चे तो सेना में भी कहाँ भर्ती होते है। आज हरावल दस्ते में सिर्फ वंचित और शोषित ...
तृण धरी ओट कहती वैदेही
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तृण धरी ओट कहती वैदेही

संजय डुंगरपुरिया अहमदाबाद (गुजरात) ******************** तृन धरि ओट कहति बैदेही। सुमिरि अवधपति परम सनेही।। सुंदरकांड में यह दोहा सुन-सुनकर बड़े हुए मेरे जैसे पुरातनपंथी लोगो को आज की महिलाओं को ऐसे वस्त्रो में देख के अजीब लगता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कुछ भी पहनने की स्वतंत्रता अपनी मर्जी के जीवनसाथी चुनने की स्वतंत्रता स्वतंत्रता के अर्थ ये हैं क्या !!! इन अल्पवसना नारियों को हम लोग शायद रावण लगते होंगे। आप ऐसे वस्त्र पहने जो छुपाते कम और दिखाते ज्यादा हो तो आपकी स्वतंत्रता है। लेकिन अगर कोई मनचला टिप्पणी करदे तो बवाल काटेंगे। पर्दा प्रथा के विरोधी होने का मतलब ये तो नही की बिल्कुल बेपर्दा हो जाये। सीता जी रावण से तिनके की ओट धर के बात करती थी। आज की नारी ....... मुझे आज ऐसे देवर की तलाश है ..... लक्ष्मण उवाच- नाहं जानामि केयूरे, नाहं जानामि कुण्डले। नूपुरे त्वभिजानामि न...
भारतीय सिनेमा की महिला हास्य कलाकार
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भारतीय सिनेमा की महिला हास्य कलाकार

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** बॉलीवुड में हर साल अलग-अलग जॉनर की कई फिल्में रिलीज होती हैं। कॉमेडी एक ऐसा जॉनर है, जिसे देखना हर कोई पसंद करता है। लेकिन आज बॉलीवुड जितना कॉमेडी के लिए फेमस है उतना आज से ८० साल पहले नहीं था और महिला कॉमेडियन तो भूल ही जाइए। उस दौर की फिल्मों में महिलाओं को हम रोने-धोने के किरदार में देखते हुए आ रहे थे। सिनेमा में मेल कॉमेडियन बहुत देखने को मिल जाते लेकिन फीमेल कॉमेडियन नहीं। लेकिन धीरे-धीरे उस जमाने में भी कुछ ऐसी साहसी महिलाएं आगे आई जिनकी सोच ने भारतीय सिनेमा का रुख बदल दिया। यदि आप पीछे मुड़कर देखें, तो आपको ऐसी कई अभिनेत्रियां मिलेंगी जो अपनी कॉमिक टाइमिंग के लिए जानी जाती हैं। जैसे ब्लैक एंड व्हाइट युग से टुनटुन और मनोरमा, ७० के दशक की चुलबुली-मजेदार प्रीति गांगुली और अस्सी के दशक की सदाबहार गुड्डी मारुति। इस लेख में हम आपक...
जब महिला होगी सशक्त, तब देश उन्नति में न लगेगा वक्त
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जब महिला होगी सशक्त, तब देश उन्नति में न लगेगा वक्त

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** आज के आधुनिक समय में महिला उत्थान एक विशेष विचारणीय विषय है। हमारे आदि-ग्रंथों में नारी के महत्व को मानते हुए यहाँ तक बताया गया है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते है। लेकिन विडम्बना तो देखिए नारी में इतनी शक्ति होने के बावजूद भी उसके उत्थान की अत्यंत आवश्यकता महसूस हो रही है। यह आवश्यकता इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता, सती प्रथा, नगर वधु व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्यस्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, बाल विवाह तथा देवदासी प्रथा आदि परंपरा रही। इस तरह की कुप्रथा का कारण पितृसत्तामक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि रही। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वारा कई कारणों ...
विश्व में हिन्दी का परचम
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विश्व में हिन्दी का परचम

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्तजी ने कहा था कि हिन्दी उन सभी गुणों से अलंकृत है जिनके बल पर वह विश्व की साहित्यिक भाषाओं की अगली श्रेणी में सभासीन हो सकती है‌। दुनिया भर में हिन्दी का विकास, प्रचार प्रसार करने के उद्देश्य से हर साल विश्व हिन्दी दिवस दस जनवरी को मनाया जाता है। हिन्दी अब अपने साहित्यिक दायरे से बाहर निकलकर व्यापक क्षेत्र में प्रवेश करते हुए अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में अपना गौरव फ़ैलाने की तैयारी में है‌। संयुक्त राष्ट्र की अधिकारिक भाषाओं में हिन्दी को स्थान दिलाने का प्रयास अविरत चल रहा है। इसके पूर्व देश में सरल, सुबोध, सशक्त, मीठी हिन्दी भाषा के प्रति सम्पूर्ण जागरूकता एवं अनुराग पैदा कर देश का हर बच्चा कहें हिन्दी मेरी राष्ट्र भाषा है। हिन्दी की वैश्विक प्रभुता, उपयोगिता और महत्ता दर्शाने के उद्देश्य से आयोजित हो रह...
अच्छे सत्कार्य
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अच्छे सत्कार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पर्यटन कई प्रकार के होते है। सबका उद्देश्य भी अलग होता है। यूँ तो बहुत बदनाम हुए है बाबा उनके आश्रमो ने बहुत गंदगी व दरिंदगी फैलाई। उससे अच्छे व सच्चे बाबा जी जनकल्याण की गतिविधियों से जुड़े थे उनका बहुत नुकसान भी हुआ। पर कहते है बादल आकाश को ढक के अंधेरा तो कर सकते है पर सूर्य को कौन निगल सकता है सिर्फ हनुमान, पर जो संत महात्मा कुम्भ में अपने डेरे डाल के देश विदेश के ज्ञान पिपासुओं को तृप्त करते है। उनके प्रताप को कोई आच्छादित नही कर सकता है। सदियों से चलने वाले मेले चार जगह लगते हैं। अर्ध कुम्भ भी लगते है। अन्य सारे पर्यटन को अलग करदे तो ये पर्यटन कितना बड़ा है कितना अर्थव्यवस्था को लाभ देता है। हां टेक्नोलॉजी बढ़ी है, पर इसरो के वैज्ञानिक भी लॉन्चिंग के पहले अपनी उत्तेजना पर काबू पाने अपने इष्टों को याद करते टीवी पे दिखाए गए थे।...
दर्शन विशुद्धि
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दर्शन विशुद्धि

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोई भी दर्शन अपने आप मे अच्छा, ही होता है, क्यों कि जिसने भी प्रतिपादित किया उसने कितना चिंतन करके प्रतिपादित किया है, इसका तत्कालीन समाज ने विरोध किया तब भी स्थापित हुआ, यानी कोई तत्व तो सुदृढ होगा ही। इसलिए जब तक कोई दर्शन, दर्शन रहता वह विस्तार पाता है तब तक सब अच्छा चलता भी है। परंतु जब वह संगठन या सम्प्रदाय बन जाता है तो उसमे विकृतियां आ जाती है व्यक्तिवाद रूढ़ हो जाता है फिर अति विकृत होते ही दर्शन गौण व संगठन प्रमुख हो जाता फिर उसमे सडांध पैदा हो जाती है, फिर कोई चिंतक उसी दर्जे का आता है तो पुनरोद्धार हो जाता है, जैसे महर्षि दयानंदसरस्वती, यविवेकानंद या महर्षि अरविंद। मार्क्सवाद अच्छा था कई देशों में फैला भी रूस चीन बड़े अनुयायी थे। मार्क्सवादी पार्टी जब बनी कुछ दिन ठीक चला फिर वामपंथ जैसी अवधारणा के कारण क्षरण होता चला गय...
मकर संक्रांति का महत्व
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मकर संक्रांति का महत्व

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत के विभिन्न त्योहारों में से, विशेषकर ज्योतिष विज्ञान पर आधारित, मकर संक्रांति एक है। इस दिन से सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है और पृथ्वी के सबसे निकट होता है। धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश से यही नाम रखा गया। ऋतु परिवर्तन का संधिकाल अर्थात जाड़े की विदाई व ग्रीष्मा रानी का आगमन। पौष माह से माघ में प्रवेश। अमूमन यह चौदह जनवरी को आता है किंतु कभी-कभी मौसम परिवर्तन से तेरह या पँद्रह जनवरी को भी पड़ जाता है। पंजाब में यह लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। ज्वार मक्का की धानी, सिके चने व मुमफली जैसे चना-चबीना,बीच में आग जलाकर बाँटते व खाते हैं। दक्षिण में केरल व कर्नाटक में संक्रांति तथा तमिलनाडु में पोंगल मनाते हैं, नई फ़सल के उपलक्ष में। सुंदर फूलों आदि से रांगोळी बना पूजा-नृत्य करते हैं। घरों में नए अनाज की खाद्य सामग्री बनती...
मानते हैं पर करते नहीं
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मानते हैं पर करते नहीं

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नर व नारी...मनु व शतरूपा से बने हमारे समाज में जब भी तीसरी प्रजाति का ज़िक्र आता है, मन करुणा से भर जाता है। सामाजिक संस्थाबाएँ बस इनकी गणना करवाती हैं ताकि भीड़ जुटा कर फोटो खिचवा सके। नलसा निर्णय भी इनकी गिनती करवाने के सिवा कुछ नहीं कर सका। इनका अवतरण प्रकृतिजन्य त्रुटि ही है। जैसे मशीनों द्वारा भी कुछ आधे-अधूरे प्राडक्ट रह जाते हैं। इसमें किसी का क्या कुसूर भला ? युगों से यह परंपरा चली आ रही है। ये जनोत्पति का हिस्सा रहे हैं। पुराण व इतिहास भी इसके साक्षी हैं। यह तीसरी प्रजाति मूलत: हिमालय क्षेत्र की मानी जाती है। अर्जुन व एक नागकन्या के प्रेम का परिणाम है उनका पुत्र इरावन । इन्हें ही किन्नरों का देवता माना जाता है। अर्जुन स्वयं वनवास काल में किन्नर बन कर रहे थे। कहते हैंं इरावन का विवाह नहीं होने से स्वयं कृष्ण ने नारी रूप धर ...
विनोबा जी के सतकार्य
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विनोबा जी के सतकार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विनोबा जी व गांधी दोनो साथ रहे गाँधीजी राजनीतिक संत थे तो विनोबा जी आध्यात्मिक संत थे जो राजनीति में भी सक्रिय तो थे पर मूल उनका आध्यात्मिक ही था देश प्रेमी के साथ अध्ययनशील भी थे। विनोबा जी पवनार आश्रम से अपनी गतिविधियां चलाते थे। भूदान आन्दोलन से भूमिहीनों को भूमि दिलवा कर, आत्मसम्मान से जीना सिखाया मजदूर से मालिक बनाया। बड़े जमीदारों से सिर्फ छह प्रतिशत जमीन मांगी उनकी सदाशयता देख दी भी, खुशी से ये उनकी संतई थी। जैन दर्शन का गहन अध्ययन किया था। गीता रहस्य तो लिखा, पर अंत समय जैन मुनि से संथारा लिया जो तीन दिन में सींझा। जैन कुल में जन्म लेने से बड़ी बात है, इसके सिद्धांत में गहन आस्था व निष्ठापूर्वक पालना। हमे अपने से परे जाकर यह भी देखना होगा कि कौन अजैन जैन दर्शन की पताका को प्रशस्त कर रहे है। ताकि हम युवाओं को प्रेरित कर सके...
बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए
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बच्चों को कैसे संस्कारित किया जाए

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीजें हैं अपना समय और अच्छे संस्कार। एक श्रेष्ठ बच्चे का निर्माण सौ विद्यालय बनाने से भी बेहतर है।" -स्वामी विवेकानन्द बाल-विकास की अवधि गर्भावस्था से परिपक्वता तक मानी जाती है। गर्भ में पल रहे शिशु पर माता के खान-पान, आचार-विचार एवं वातावरण का प्रभाव पड़ता है। माता को "भए प्रगट कृपाला" जैसे पाठों का वाचन-श्रवण करने की सलाह दी जाती है। अभिमन्यु, चक्रव्यूह प्रवेश की जुगत माँ के गर्भ से सीखकर आया था। ईंट अपने साँचे जैसी ही ढलेगी। १ से ५ वर्ष तक शैशवास्था में बच्चा परिवार में रहता है। गीली मिट्टी से जैसा कुम्भ चाहो गढ़ लो। संस्कार किसी मॉल से नहीं, घर-परिवार के माहौल से मिलते हैं। कहते हैं... "बुढ़ापे में रोटी औलाद नहीं, हमारे द्वारा दिए संस्कार देते हैं" "बातों से संस्कार का पता चलता है" ५ से १२...
पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी
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पानी की कहानी उसी की ज़ुबानी

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पानी रे पानी तेरा रंग कैसा... रंग पूछ रहे हो मुझसे मेरा। मेरा अपना कोई रंग है ही नहीं। मैं बेरंगा पारदर्शी तरल पदार्थ हूँ। किन्तु मैं परिस्थिति के अनुसार अपना रूप परिवर्तित कर लेता हूँ। उच्चस्तरीय शीतलता पाकर बर्फ़ बन जाता हूँ। ऊष्मा पाकर वाष्प बन जाता हूँ। अपने स्वरूपों में बदलाव लाते हुए रिमझिम वर्षा बनकर धरा को निहाल कर देता हूँ। कभी माँ के गर्भ में समा जाता हूँ तो कभी पिता आसमान की गोद में जा बैठता हूँ। किन्तु मैं अपना उपकारी स्वभाव विस्मृत नहीं करता। और तुम मूर्ख मानव ! अभी तक मुझे समझ नहीं पाए। कब तक करूँ मैं तुम्हारी गलतियाँ माफ़ ? मुझसे ही कुछ सीख लो। याद करो... सुबह उठने से लेकर तो रात में सोने तक मुझे कितना बर्बाद करते हो। उठते से ही गए वाशबेसिन पर। धड़ाधड़ खोला नल और बहा दिया पूरा आधा बाल्टी। यही काम एक मग से भी हो सकता है...
भारत में आभूषणों का संक्षिप्त इतिहास भाग – ६
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भारत में आभूषणों का संक्षिप्त इतिहास भाग – ६

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** गुप्त कालीन आभूषण - गुप्त कला के शुरुवात कब हुयी पर अभी तक चर्चा होती ही रहती है व यह सत्य है कि सभी गुप्त युग को चौथी सदी के प्राम्भिक वर्षों से मध्य आठवीं सदी तक माना जाता है। वेशभूषा व आभूषण - बुध गुप्त के बुध गुप्त के अभिलेख पढने से गुप्त साम्राज्य के निम्न सम्राटों की सूचना मिलती हैं - महाराजा श्री गुप्त महाराजा श्री घटोंत कच्छ महाराजधिराज श्री चंद्र गुप्त प्रथम समुद्र गुप्त चन्द्रगुप्त द्वितीय कुमार गुप्त प्रथम स्कन्द गुप्त पुरु गुप्त नरसिंघ गुप्त कुमार गुप्त द्वितीय बुद्ध गुप्त विनय गुप्त भानु गुप्त साक्ष्य - मुद्राएं, आदेश, अजंता, एलोरा उड़्यार, कई अभिलेख, यात्रियों की आत्मकथा, बाणभट्ट, कालिदास सरीखों के साहित्य आदि पुरुष वेशभूषा गुप्त सम्राटों ने कुषाण युग की शैली को अपनाया कि वेशभूषा पद व सम्मान के अनुसा...
नकद का मूल्य
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नकद का मूल्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** इनाम किसी को भी मिले मज़ा बहुत आता है। पर कई बार इनाम जीतने वाला प्रतिभा सम्पन्न हो पर कड़का हो तो उसको इनाम ने नकद रकम की दरकार होती है, वह उधार की चीजे पहन के गया हो तो अगर इनाम में बांड मिल जाये जो एक साल बाद कैश होगा ब्याज के साथ, तो सोचिए कितनी विडंबना हो जाती है। हमारे देश मे कई खिलाड़ी संघर्ष रत होते है जिन्हें नकद राशि ही चाहिए होती है। एक विश्वप्रसिद्ध कहानी है जिसमे एक लड़की दुआ करती है कि मेरे भाई को सेकंड प्राइज मिले क्योंकि उसमे जूते मिलने वाले थे, वे दोनो भाई बहन जूते बारी बारी से पहन कर दौड़ने की प्रैक्टिस करते थे, भाई को प्रथम पुरस्कार मिला तो रोने लगी, कारण जब बताया तो आयोजको की आंखे खुली कि संघर्ष का जज्बा क्या होता है नकद की कीमत क्या है। इनांम गिफ्ट में जो चीजे दी जा रही है सोचा तो जाना ही चाहिए कि क्या दिया जाय। ...
आमाशय
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आमाशय

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक महिला जो बुजुर्ग होने के कारण सात्विक तो थी ही बाहर का कुछ खाती नही थी। किसी विवाह समारोह से सड़क यात्रा से आरहे थे। रास्ते मे बैतूल आया हमारे मित्र रहते थे। उनके घर खाना खाने का सोचा, साथ मे था ही मिलना व चाय हो जायेगी। वहां बहुत प्यार से चाय पिलाई गई। गप्पे चली, सासुमा का रात्रिभोजन का समय हो गया उनको मैने पूरी व उनका मसाला एक प्लेट में रखा व दिया। मेरी मित्र ने कई चीजें परोसने का आग्रह किया, मगर अपने नियम धरम के चलते उन्होंने कुछ भी नही लिया। अब मेरी मित्र कहने लगी माताजी पूरी के साथ कौन सा मसाला खा रही है। मैंने जवाब दिया तेल में जीरा डाल नमक व मिर्ची दो बूंद पानी बस। मुझे चखना है मैंने उनको दिया उनको बहुत ही टेस्टी लगा। ये वो महिला थी जो ग्रुप की पाककला में निपुण मानी जाती थी हमेशा कुछ नया खिला कर चमत्कृत करती थी। भोजन का...
धुँधला होता रंग
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धुँधला होता रंग

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अभी-अभी पान पर एक लेख पढ़ा। सच इस पान प्रकरण ने कई यादें ताज़ा कर दी। यूँ देखा जाए यह शनै-शनै विलुप्त प्रजाति की श्रेणी में भी आ सकता है। मुखवास के नए साधनों की कमी नहीं है। कई तरह के पान मसालों से बाज़ार पटा पड़ा है। एक ज़माने में प्रत्येक घर में एक पीतल या चाँदी का पाँच-सात खानों वाला अदद पानदान हुआ करता था। लौंग, इलायची, सौंफ, सुपारी, पिपरमिंट, जायत्री, गुलकन्द आदि भरे रहते थे। कत्था व चूनादानी अलग से होती थी। और गीले कपड़े में लिपटे पान बेड़ामाची (पंडेरी) पर मटके के साइड में रखे रहते। भोजनोपरान्त सबको प्यार से पान खिलाया जाता था। इस कार्य का दायित्व घर के बुजुर्ग निभाया करते थे। हाँ, चाय का रिवाज़ नहीं होने से मेहमानों का स्वागत भी पान से होता, पान बहार से नहीं। पान हमारी परंपरा बनकर छा गया है। धार्मिक क्रियाओं में पान की प्रमुखता र...
रिस्क से इश्क
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रिस्क से इश्क

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** इश्क कई तरह के होते है, किसी से भी किया जा सकता है। मगर दुनिया मे सबसे चर्चित इश्क वह है जो रिस्क से होता है। जो जब तब रिस्क लेता रहता है दुनिया उसको दीदे फाड़ के देखती है। रतन टाटा बंगाल में नैनो का तंबू गाड़ चुके थे, ममता जी अड़ गई, फिर टाटा का ही कलेजा था जो गुजरात मे चले गए। सारा तंबू उखाड़ कर रातों रात शिफ्ट होना उनके ही बूते की बात है। पूरा देश चकित था, क्या होगा हुआ यथासमय गाड़ी आई बिकी भी सफल भी हुई, गरीब की गाड़ी फिर रीविजन भी हुआ फिर मॉडिफिकेशन हुआ फिर चल पड़ी। ऐसी ही रिस्क मोदी जी ने ली, दुश्मन के घर मे घुस कर मार के आना बिना एक भी जान का नुकसान किये। इंदिराजी हार गई, चुप बैठी, फिर तैयारी से हुंकार भरी फिर प्रचंड बहुमत से ताज पहन लिया। इंदिरा जी जो भी थी, कठोर निर्णय तो लेती ही थी। बंगला देश को झुका देना, कितनी रिस्क थी पर म...
सूर्य का अक्षय भंडार
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सूर्य का अक्षय भंडार

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विश्व की सभी समस्याओं का समाधान किसमे हो सकता है? यदि इस प्रश्न का उत्तर खोजें तो पता चलेगा, अनादि, आदि, अविनाशी, सूर्य की असीम शक्ति इनका निराकरण सहज करती है। सूर्य के पास ज्ञान, तेज, अद्भुत शक्ति का अक्षय स्त्रोत है। सूर्य दर्शन, सूर्य नमस्कार, सूर्य अर्घ्य, सूर्य पूजा सभी भारतीय संस्कृति में महत्व रखते हैं। तात्पर्य चमकता हुआ अप्रतिम सूर्य सौन्दर्य की खान तथा उत्साह, विकास, आशा का प्रतीक है। सम्पूर्ण सृष्टि पर निरन्तर कर्मनिष्ठ गतिशील सूर्य प्राणी जगत के लिए प्रेरणा स्त्रोत है। यदि हमें सूर्य का प्रकाश कम मिले तो आलस्य सुस्ती तथा शारीरिक व्याधी में वृध्दि हो जाती है। सूर्य का सभी सभ्यताओं तथा मानव प्राणी के साथ सीधा संबंध रहा है। क्यों कि सूर्य अपना कार्य सभी के कल्याणार्थ सम्पन्न करता है। देश के अनेक पर्व भी सूर्य से संबं...
मानवता की अलख जगाते सुधाकंठ डॉ. भूपेन हजारिका
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मानवता की अलख जगाते सुधाकंठ डॉ. भूपेन हजारिका

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** मनुष्य का जीवन दुख विपदाओं, नाना समस्याओं का संगी है। गौर करें तो उलझनें सुलझाने में अक्सर जटिल रूप धारण करती है, यानि जीवन को अंतहीन समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलती है। विवेकपूर्ण निर्णय से सरल जीवन जीने की कला में सुख की कलाएं प्रत्यक्ष होती है। बस आपाधापी जीवन संग्राम में लक्ष्य प्राप्ति हेतु लगन, इसमें बतौर संकल्प व एकाग्रता नितांत जरूरी है। मनुष्य जीवन कठिन सँघर्षरत तो है ही, सरलता, कुशलता से खुशहाली में ढालना एक विशेष कला है इसमें ढालकर व्यक्ति सुख की अनुभूति का अहसास करता है असम के सुविख्यात गायक, गीतकार, संगीतकार, कवि, साहित्यकार, सुधाकंठ डॉ भूपेन हजारिका में यह विशेषता अक्सर झलकती थी। कठिन डगर में बिन लड़खड़ाये खुशहाली से जीवन बिताये, अपने अंदर छुपी तमाम् कलाओं, प्रतिभाओं को जनमानस के बीच सरलता सादगी जीवन में पारदर्शी ...
गुंजलक
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गुंजलक

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक बिटिया को, उसकी भुआ ने बताया तू जब छोटी थी तुझे बाल्टी में बिठा के नहला देते, गर्मी की छुट्टियां होती तो, तुम बाहर निकलने को तैयार ही नही होती, एक बार बाहर निकालने को तेरे ऊपर पानी उछाला तो बहुत रोई बहुत रोई हम समझ नही सके तुझे क्या हो गया। वही लड़की बड़ी होकर पानी से बहुत डरती थी। कोई नदी तालाब झरना दिख जाता तो आंख बंद कर लेती। पिकनिक पे सब नहाते तब भी वह बाहर खड़ी रहती थी। बस बरसात से कोई परहेज न था। बाद में उसके सिवा सबने तैरना भी सीख लिया। विवाह के बाद हनीमून पे पहाड़ गई तो भी उसके पति आश्चर्य में थे कि झरना देख आंख बंद क्यों कर लेती हो, बोटिंग भी नही की, उनको बड़ा अजीब लगा क्यों कि ट्रिप में अधूरा पन जो था। दो तीन वर्ष बाद पीहर के विवाह समारोह में रात की महफ़िल में वही बाल्टी वाला किस्सा भुआजी ने सुनाया, पति को एकदम रहस्य पकड़ ...
ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी
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ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ********************  सभी को ज्ञात होगा कि रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखी है। नारी अवधी भाषा का शब्द है जो नाली शब्द का अपभ्रंश है। नारा जिसे हिंदी में नाला कहते हैं, का अर्थ अवधी भाषा ‌मे है जलवाहक, जिसमें दोनों ओर बांध (ताड़ना का एक अर्थ बांधना भी है) होते हैं। बांध न हो तो जल प्लावन हो जाए। उसी का स्त्रीलिंग है नारी। समुद्र ने स्वयं अपने लिए नारा ‌शब्द का प्रयोग किया। काव्य में तुकबंदी के लिए तुलसीदास जी ने नारा का नारी लिखा। इतने, परमज्ञानी, स्वयं अपनी पत्नी का इतना सम्मान करने वाले, स्त्री जातिमात्र (शबरी को माता कहकर पुकारा है भगवान राम ने रामचरितमानस में) का आदर करने वाले भक्तज्ञानी गोस्वामी तुलसीदास जी यह नहीं जानते थे कि ५०० वर्ष बाद भारतीयों के अज्ञान की पराकाष्ठा होगी, व उनके नारी शब्द के अर्थ का इतना बड़ा...