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मोह-माया की दुनिया

कु. आरती सिरसाट
बुरहानपुर (मध्यप्रदेश)

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बात सुबह के आठ साढ़े आठ बजे की है जब मैं बालकनी में बैठीं हुई चाय और बिस्किट का मज़ा लेते हुएँ, साथ में ही अखबार के पन्नों को पलट रही थी। ओर सोच रही थी की आखिरकार हमारें देश के नागरिक कब मोह माया की दुनिया से बाहर निकलेगें। कब वर्तमान में जीवन जीएगे कब वास्तविकता का समाना करेंगे। और कब देश का विकास होगा।
तभी अचानक मेरी नज़र नीचें सड़क पर पड़ी। ओर मैंने देखा की शर्मा चाचाजी चलते-चलते अचानक रूक गये। मगर मैं कहा रूकने वाली थी, मैं तो तुरंत बोल पडीं।
…अरे चाचाजी क्या हुआ आप चलते-चलते अचानक क्यों रूक गयें, क्या कुछ भुल गये बाजार से लाना।
चाचाजी बोलें… अरें नहीं बेटा कुछ भुला नही… बल्कि मैं तो बहुत जल्दी में हूँ, मुझे जल्दी घर जाना है।
ठीक है चाचाजी, मुझे क्षमा कर दीजिए, आप जल्दी में है ओर मैंने आपको बीच में टोक दिया।
कोई बात नही बेटा, मैं जल्दी में हूँ चलता हूँ।
मैंने कहा ठीक है, चाचाजी।
…ओर मैं अखबार और चाय की दुनिया में खो गई।
मेरी नज़र फिर सड़क पर पड़ी, मैंने देखा की शर्मा चाचाजी अभी भी वही खडें थें। लेकिन इस बार मैंने शर्मा चाचाजी को टोका नही और अपनी नज़र उन्हीं पर टिका दी।
तभी वहां से एक पांच साल का बच्चा साइकिल लेकर गुजरा… ओर शर्मा चाचाजी उस बच्चे के पिछे तेजी से चल पड़े।
मैं फिर बोल पड़ी, अरें चाचाजी वो तो सिर्फ बिल्ली का एक छोटा सा बच्चा था आप उस मासूम से बिल्ली के बच्चे से डर गये।
वो बच्चा कुछ देर पहले ही मेरे घर का सारा दुग्ध गिराकर भाग गया और आपका रास्ता उसने काट दिया। चाचाजी पिछें मूडकर बोले, बेटा मुझे बहुत जल्दी घर जाना है, मैं चलता हूँ।
मैं हँस पड़ी… ओर फिर से अपनी चाय और अखबार की दुनिया में खो गई।

परिचय :- कु. आरती सुधाकर सिरसाट
निवासी : ग्राम गुलई, बुरहानपुर (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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