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राष्ट्रीय पशु बनाम कुत्ता शालाएँ

मनोरमा पंत
महू जिला इंदौर म.प्र.
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आज कुत्तों की सभा चल रही थी, जिसमें सभी नस्ल के, सभी उम्र के कुुत्ते शामिल थे। एक वयोवृद्ध कुत्ता सभा को संबोधित कर रहा था, बाकी सभी श्रोता की मुद्रा में थे। बीच सभा में एक नेतानुमा, गली का नौजवान कुत्ता उठ खड़ा हुआ और कहने लगा- क्या आप लोगों को मालूम है, गाय को “राष्ट्रीय पशु ” घोषित करने की तैयारी चल रही है?
वयोवृद्ध कुत्ते ने कहा- हमें इससे क्या? बनने दो।
नेतानुमा गली का कुत्ता बोला- क्या हमारी कोई औकात नहीं? हमें क्यों नहीं राष्ट्रीय पशु बनातें?
अब तों सभा में शोर मच गया, सभी गली के कुत्ते के पक्ष में बोलने लगे।
वयोवृद्ध कुत्ते ने कहा- मूर्खो! चुप हो जाओं। गाय को पूरा भारत “माता “कहता है। उसे पूजा जाता है। दूध के साथ ही उसका मूत्र और गोबर दिव्य माना जाता है, और हम सब जगह गंदगी फैलाते रहते हैं। हमारी और गायों की कोई तुलना नहीं।
नेतानुमा कुत्ते ने जबाव दिया- श्रीमान ! हम भी कम उपयोगी नहीं। अवैतानिक चौकीदार हैं हम अपनी गली, मोहल्ले के। पुलिस और सेना भी संदिग्धों को पकड़ने में हमारी सहायता लेती है। गाय तो बहुत कम लोग पालते हैं, पर घर-घर में हम लोगों को पाला जाता है। कितना प्यार करते हैं, हमें लोग। गायों से अधिक हम से निकटता है आदमी की। गाली भी हमारा नाम लेकर बकते है “कुत्ता कहीं का।” सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि नेता लोग तो हमें आदर्श मानकर हमारा चरित्र अपनाते जा रहे हैं।
एक ने पूछा- कैसे?
हमारी गली में जैसे ही कोई अजनबी कुत्ता आता है, हम सब एक होकर उसे भागने पर मजबूर कर देते हैं। वैसे ही कोई होनहार नेता जब उभरने लगता है तो सब ईर्ष्यालु नेता एकजुट होकर उसकी जड़े काटने में जुट जाते है और राजनीति से ही चलता करने की कोशिश करते हैं।और तो और बात बेबात हमारे समान हर समय चिल्लाते रहते हैं।
एक मूर्ख कुत्ता बीच में ही बोला- अरे वाह! तब तो नेतागण ही हमें ही राष्ट्रीय पशु बना सकते हैं।
अब वयोवृद्ध कुत्ते को गुस्सा आ जाता हैै। क्रोेधित होकर उसने बोला शुरू किया- अरे! बेवकूफों! अभी तो तुम लोगों की मजे की जिंदगी चल रही है, राष्ट्रीय पशु बन जाने पर दुर्गति के गर्त में पड़ जाओगे। खून के आँसू रो रही है गौ-माता?
सबने उत्सुकता से पूछा- कैसे?
वयोवृद्ध बोले- भाईयों ! जब गाय दूध देना बंद कर देती है, या बूढ़ी हो जाती है, तो गोपालक उन्हें सड़कों पर भटकने के लिये छोड़ देते हैं। हर शहर में सड़कों पर उन्हें घूमते नहीं देखते हम!
हाँ में हाँ मिलाते हुऐ एक युवा बोला- कचरा खाकर पेट भरती हैं, बेचारी और कचरे से भरी पोलिथिन भी पहुँच जाती हैं, पेट में,और तड़फ तड़फ कर मर जाती हैं ।
दूसरा युवा बोला-गौ-भक्तों ने इन भटकती हुई गायों गौ-शालाऐं तो बना दी है, परंतु रोज पढ़ते है वहाँ भूख से गायें मरती रहती हैं। नाम मात्र का अनुदान मिलने से क्या उनका पेट भरेगा। गाय को पूजने वाले कितने निष्ठुर होते हैं,उन्हें भूखा मारते हैं।
तो भाईयों! क्या सोचा आप सब ने? राष्ट्रीय पशु बनने के लिए क्या हम आंदोलन शुरू करें?
सब एक स्वर में चिल्लाये “हमें भूखा नहीं मरना है, कुत्ता शालाओं में। हमारी एकता जिन्दाबाद।
हम अपनी गली में रूखी सूखी खाकर ही खुश हैं।

परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत
सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल
निवासी : महू जिला इंदौर
सदस्या : लेखिका संघ भोपाल जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ
उद्घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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