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पौष-माघ के तीर

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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बींध रहे हैं नग्न देह को, पौष-माघ के तीर।
भीतर-भीतर महक रहा पर, ख्वाबों का कश्मीर।।

काँप रही हैं गुदड़ी कथड़ी, गिरा शून्य तक पारा।
भाव कांगड़ी बुझी हुई है, ठिठुरा बदन शिकारा।।
मन की विवश टिटिहरी गाये, मध्य रात्रि में पीर।।१

नर्तन करते खेत पहनकर, हरियाली की वर्दी।
गलबहियाँ कर रही हवा से, नभ से उतरी सर्दी।।
पर्ण पुष्प भी तुहिन कणों को, समझ रहे हैं हीर।।२

बीड़ी बनकर सुलग रहा है, श्वास-श्वास में जाड़ा।
विरहानल में सुबह-शाम जल, तन हो गया सिंघाड़ा।।
खींच रहा कुहरे में दिनकर, वसुधा की तस्वीर।।३

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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