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40 साल बाद

डाॅ. दशरथ मसानिया
आगर  मालवा म.प्र.
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कपिलदेव नायक बने
(विश्वकप विजय २५.६.१९८३)

तरासी के साल में,
आया था भूचाल।
कपिलदेव नायक बने,
भारत मां के लाल।।

साठ साठ के मेच में,
करते बेड़ा पार।
किरकेट के बजार में,
भारत की सरकार।

पौने दो सौ रन बना,
नया रचा इतिहास।
विश्वकप को जीत के,
लीनी थी फिर सांस।।

टी-ट्वन्टी की क्या कहूँ,
चौकों की बौछार।
छक्के भी तो छूटते,
बालर हा हा कार।।

दो हजार अरु सात में,
आया धोनी राज।
बीस-बीस के मेच में,
भारत के सिर ताज।।

दो हज्जार एकादशा,
बरस अठाइस बाद।
तेंदुलकर की टेक थी,
भारत कप निर्बाध।।

हसन का बंगला ढहा,
अंग्रेजन टकरार।
आयरिश भी चले गये,
डच भी भये किनार।।

अफरीका भारी पड़ा,
फिर भी कटी पतंग।
इंडीजवेस्ट पिट गया,
रहा नहि कोइ संग।।

पोंटिंग आउट भये,
अफरीदि गये हार।
संगकारा संघर्ष में,
छूट गई तलवार।।

कंगारू दादागिरी,
पाक मचा भूचाल।
लंका की लंका जरी,
हुए सभी बेहाल।।

युवराज-सहवाग ने,
खूब मचाई मार।
दुनिया में चरचित भई,
भारत की फटकार।।

हरभजन की गेन्द से,
नहि पाये थे पार।
नेहरा ने कहरा ढहे,
खुले जीत के द्वार।।

कोहली फिर विराट बन,
शतक लगाई आज।
रैना है ना वाक्य ने,
किया फिल्ड का साज।।

जहीर ने जख्मी किये,
परदेशिन के वार।
पटेल की पतवार से,
हो गये बेड़ा पार।।

धोनी का धोना चला,
गौतम बने गम्भीर।
लाखों आंखें देखती,
लंका की तस्वीर।।

शतकों की भी शतक से,
एक शतक थे दूर।
किरकट का भगवान है,
भारत रत्न मशहूर।।

सचिन निन्याणु फेर में,
युवी बने युवराज।
धोनी की अगुवाइ में,
पूरण होते काज।।

गिलानी और मन मिले,
मोहाली में साथ।
भारत पाक सद्भावना,
नही बनी थी बात।।

पाक की नापाक चाल,
अफरीका का मान।
लंका का सोना गया,
कंगारू अभिमान।।

मुरली की मुरली गिरी,
फाईनल के मेच।
भारत की इस टीम ने,
छोड़े नाही केच।।
राहुल तो दीवार थे,
वीरू रन की खान।
सचिन तो सरताज है,
धोनी का सम्मान।।

दो अप्रेल की रात का,
मै कहता हूँ हाल
दीवाली भइ देश में,
लोग हुए खुशहाल।।

विश्वकप को जीतकर,
भारत बना महान।
सवा अरब की एकता,
यही हमारी शान।।

आयपियल के मेच में,
झूठा रंग दिखाय।
नोटों के बाजार में,
सभी बिकें है आय।।

सन पन्द्रह के साल में,
फिर होवें तैयार।
अपने उस सम्मान का,
सदा करें इजहार।।

परिचय :- आगर मालवा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय आगर के व्याख्याता डॉ. दशरथ मसानिया साहित्य के क्षेत्र में अनेक उपलब्धियां दर्ज हैं। २० से अधिक पुस्तके, ५० से अधिक नवाचार है। इन्हीं उपलब्धियों के आधार पर उन्हें मध्यप्रदेश शासन तथा देश के कई राज्यों ने पुरस्कृत भी किया है। डॉं. मसानिया विगत १० वर्षों से हिंदी गायन की विशेष विधा जो दोहा चौपाई पर आधारित है, चालीसा लेखन में लगे हैं। इन चालिसाओं को अध्ययन की सुविधा के लिए शैक्षणिक, धार्मिक महापुरुष, महिला सशक्तिकरण आदि भागों में बांटा जा सकता है। उन्होंने अपने १० वर्ष की यात्रा में शानदार ५० से अधिक चालीसा लिखकर एक रिकॉर्ड बनाया है। इनका प्रथम अंग्रेजी चालीसा दीपावली के दिन सन २०१० में प्रकाशित हुआ तथा ५० वां चालीसा रक्षाबंधन के दिन ३ अगस्त २०२० को सूर्यकांत निराला चालीसा प्रकाशित हुआ।
रक्षाबंधन के मंगल पर्व पर डॉ दशरथ मसानिया के पूरे ५० चालीसा पूर्ण हो चुके हैं इन चालीसाओं का उद्देश्य धर्म, शिक्षा, नवाचार तथा समाज में लोकाचार को पैदा करना है आशा है आप सभी जन संचार के माध्यम से देश की नई पीढ़ी को दिशा प्रदान करेंगे।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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