गाँव की बेटी-दोहों में
प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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बेटी भाती गाँव की, जो गुण से भरपूर।
जहाँ पहुँच जाती वहाँ, बिखरा देती नूर।।
बेटी प्यारी गाँव की, प्रतिभा का उत्कर्ष।
मायूसी को दूरकर, जो लाती है हर्ष।।
बेटी जो है गाँव की, करना जाने कर्म।
हुनर संग ले जूझती, सतत् निभाती धर्म।।
गाँवों की बेटी सुघड़, बढ़ती जाती नित्य।
चंदा-सी शीतल लगे, दमके ज्यों आदित्य।।
कुश्ती लड़ती, दौड़ती, पढ़ने का आवेग।
गाँवों की बेटी लगे, जैसे हो शुभ नेग।।
बेटी गाँवों की भली, होती है अभिराम।
जिसके खाते काम के, हैं अनगिन आयाम।।
खेतों से श्रम का सबक, बढ़ना जाने ख़ूब।
गाँवों की बेटी प्रखर, होती पावन दूब।।
करती बेटी गाँव की, अचरज वाले काम।
मुश्किल में भी लक्ष्य पा, हासिल करती नाम।।
गाँवों को देती खुशी, रचती है सम्मान।
बेटी मिट्टी से बनी, रखती है निज आन।।
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