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नहीं बनो तुम बेरहम

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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दुनिया कितनी बेरहम, दया-धर्म से दूर।
मानवता ने खो दिया, अपना सारा नूर।।

जो होता है बेरहम, पशु के जैसा जान।
ऐसे मानव को कभी, नहीं मिले सम्मान।।

नहीं बनो तुम बेरहम, रखो नेह का भाव।
पर-उपकारी जीव में, होता करुणा-ताव।।

रखो प्रकृति औदार्य तुम, तभी बनेगी बात।
रहम जहाँ है पल्लवित, वहाँ पले सौगात।।

जो होता है बेरहम, बनकर रहे कठोर।
करे पाप, अन्याय वह, बिन सोचे घनघोर।।

नरपिशाच बन बेरहम, करता नित्य कुकर्म।
सत्य त्यागकर अब मनुज, गहता पंथ अधर्म।।

हिटलर था अति बेरहम, किया बहुत संहार।
ऐसे मानुष से सदा, फैले बस अँधियार।।

कोमलता को रख सदा, बंदे अपने पास।
मत बनना तू बेरहम, वरना टूटे आस।।

जो होता है बेरहम, होता सदा कुरूप।
सूरज भी देता नहीं, उसको अपनी धूप।।

टेरेसा बनकर रहो, करुणा रखकर संग।
कभी न बन तू बेरहम, रख मानवता-रंग।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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