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गाँव

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
मंडला, (मध्य प्रदेश)
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गाँव बहुत नेहिल लगें, लगतें नित अभिराम।
सब कुछ प्यारा है वहाँ, सृष्टि-चक्र अविराम।।

सुंदरता है गाँव में, फलता है मधुमास।
जी भर देखो जो इसे, तो हर ग़म का नाश।।

सुंदर हैं नदियाँ सभी, भाता पर्वतराज।
वन-उपवन मोहित करें, दिल खुश होता आज।।

हरियाली है गाँव में, गूँजें मंगलगान।
प्रकृति सदा ही कर रही, गाँवों का यशगान।।

खेतों में धन-धान्य है, लगते मस्त किसान।
हैं लहरातीं बालियाँ, करें सुरक्षित शान।।

कभी शीत, आतप कभी, पावस का है दौर।
नयन खोल देखो ज़रा, करो प्रकृति पर गौर।।

खग चहकें, दौड़ें हिरण, कूके कोयल, मोर।
प्रकृति-शिल्प मन-मोहता, किंचित भी ना शोर।।

जीवन हर्षाने लगा, पा मीठा अहसास।
प्रकृति-प्रांगण में सदा, स्वर्गिक सुख-आभास।।

जीवन को नित दे रही, प्रकृति सतत उल्लास।
हर पल ऐसा लग रहा, गाँव सदा ही ख़ास।।

परिचय :- प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे
जन्म : २५-०९-१९६१
निवासी : मंडला, (मध्य प्रदेश)
शिक्षा : एम.ए (इतिहास) (मेरिट होल्डर), एल.एल.बी, पी-एच.डी. (इतिहास)
सम्प्रति : प्राध्यापक व विभागाध्यक्ष इतिहास/प्रभारी प्राचार्य शासकीय जेएमसी महिला महाविद्यालय
प्रकाशित रचनाएं व गतिविधियां : पांच हज़ार से अधिक फुचकर रचनाएं प्रकाशित
प्रसारण : रेडियो, भोपाल दूरदर्शन, ज़ी-स्माइल, ज़ी टी.वी., स्टार टी.वी., ई.टी.वी., सब-टी.वी., साधना चैनल से प्रसारण।
संपादन : ९ कृतियों व ८ पत्रिकाओं/विशेषांकों का सम्पादन। एम.ए.इतिहास की पुस्तकों का लेखन
सम्मान/अलंकरण/ प्रशस्ति पत्र : देश के लगभग सभी राज्यों में ७०० से अधिक सारस्वत सम्मान/ अवार्ड/ अभिनंदन। म.प्र.साहित्य अकादमी का अखिल भारतीय माखनलाल चतुर्वेदी अवार्ड (५१०००/ रु.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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