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जर्जर घर

स्वाती जितेश राठी
नई दिल्ली
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कभी-कभी कहानियां इंसान नहीं सुनाते। टूटे, उजड़े घर जो कभी शोरगुल से भरे थे भी कहानियां सुनाते हैं। जहां कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थी, जहां कभी पायल की झंकार सुनाई पड़ती थी ….. आज वो घर अकेला, जर्जर खड़ा है।

अपने मायके के घर के बाहर आँगन में खड़ी वान्या यही सोच रही थी कि एक समय था जब यहाँ उसकी और भाई की हँसी, मस्ती और लड़ाईयाँ गूँजा करती थी। पापा और मम्मी का लाड़, दुलार, नसीहतें, प्यार भरी डाँट बरसती थी। हर त्यौहार पर घर सजता था। पकवान बनते थे। गीत, संगीत ,खुशियाँ होती थी। दोस्तों की टोली की शैतानियों, पड़ोस की आँटीयों की बातों से गुलजार इस घर की शामें होती थी ।
फिर पापा के ऑफिस से आने के बाद दिन भर के किस्सों की महफिल सजती थी। माँ के हाथ के गरम खाने के स्वाद और पापा की सीख भरी कहानियों के साथ निंदिया की नगरी की सैर की जाती थी और सुबह माँ की प्यारी बोली के साथ होती थी।

पर उन प्यारे दिनों को नजर लग गई जैसे हमारी खुद की ही शायद। वान्या की शादी के बाद पापा का गंभीर बिमारी से लड़ते हुए जिंदगी की जंग हार जाना। कुछ संभलने से पहले ही भाभी का भाई और भतीजे को लेकर देश छोड़कर चले जाना और माँ का उस घर में अकेले रह जाना। वान्या आती जाती रहती पर माँ का अकेलापन कम ना कर पाती फिर एक दिन माँ भी उसे अकेला कर चली गई। जाने से पहले माँ यह घर वान्या को दे गई। पर अब यहाँ आने का उसका मन ना करता यादें दर्द जो देती थी। घर अकेला रह गया था। पुराना और जर्जर हो गया था।

वान्या सोच में गुम थी कि तभी सरोज माँ ने उसके सिर पर हाथ रखा और बोली क्या सोच रही बेटा? उसने कहा यही कि आपकी वजह से आज मेरा घर मकान से फिर घर बन गया, मेरा मायका फिर बस गया। उसे याद आया कैसे कुछ समय पहले उसे सरोज माँ सड़क पर बोहोश मिली थी। वो उन्हें घर ले आई पूछने पर पता चला कि उनका कोई नहीं। कोई ठिकाना नहीं।

वो सोच में पड़ गई थी और तब उसके पति और बच्चों ने उसका साथ दिया। अपने मायके के घर को सही कराकर उसने उनके रहने की व्यवस्था की थी। फिर धीरे-धीरे कुछ बेसहारा औरतें और बच्चें वहाँ अपना आशियाना बनाने आ गए थे। आज उसका वो उजड़ा मकान फिर उसका मायका बन चुका था। यहाँ कोई उसे बेटी कहता तो कोई बहन या बुआ । मायके के खोए रिश्तें फिर मिल गए थे उसे।
जो घर खुद को खोकर अपनों को खोकर सुनसान हो गया था आज वही घर फिर जी उठा है, वही खिलखिलाहटें और अपनापन वहाँ फिर रच बस गया था। उसका बचपन फिर लोट आया था। वान्या की आँखो में आँसु और होठों पर मुस्कान थी।

परिचय :- स्वाती जितेश राठी
शिक्षा : एम.ए, बी.एड
निवासी : नई दिल्ली
रूचि : कलात्मक कार्य, चित्रकला, संगीत, नृत्य, लेख।, पठन आदि।


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