Monday, May 13राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने

मनमोहन पालीवाल
कांकरोली, (राजस्थान)
********************

कुछ शराफ़त बची हैं दरमियां अपने
या मुहब्बत बची हैं दरमियां अपने

हर इक चेहरा नया, अभी प्यार हुआ
कुछ नजाकत बची हैं दरमियां अपने

वो मुहब्बत नहीं शायद नादानिया थी
अपनी शरारत बची हैं दरमियां अपने

चाँद तोड़ लाते थे मुहब्बत में लोग
इक नदामत बची हैं दरमियां अपने

कह न पाए आपस मे बारहा हम तुम
यही शिकायत बची हैं दरमियां अपने

जीना किसको हे ताअबद यहाँ पर
एक कयामत बची हैं दरमियां अपने

हम छुपा भी गए ख़ामोशियों को
यही हकीकत बची हैं दरमियां अपने

बारहा नज़र उठतो तेरी सूरत पर मेरो
कोई चाहत बची हैं दरमियां अपने

तेरा अतीत मेरी ज़िंदगी बन गई यारो
यही इमारत बची हैं दरमियां अपने

मेरे अलफ़्फ़ाज सुनाइ नहो देते मोहन
यही मुसीबत बची हैं दरमियां अपने

नजाकत-कोमलता
नदामत-पश्चाताप
ताअबद-अनंत काल तक

परिचय :- मनमोहन पालीवाल
पिता : नारायण लालजी
जन्म : २७ मई १९६५
निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान
सम्प्रति : प्राध्यापक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय  हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉 hindi rakshak manch  👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें...🙏🏻.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *