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कुछ अलग सोचे

शांता पारेख
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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रावण था धरती पर इसलिए राम का जन्म हुआ फिर कैसे क्या हुआ सबको पता है। अब हर दशहरे पर खूब लेख लघुकथा कविता व्यंग सब खूब छपता है। रावण के गुणों का बखान भी बहुत होता, पर रोज नए आकार प्रकार के रावण प्रकट हो जाते है, इसराइल फिलिस्तान आ गये तो यूक्रेन खत्म हो गए क्या। हर त्योहार पर बुराई का नाश की बात होती है। नवरात्रि में एक बार बाजार निकल गई तो सड़क अधबने रावणों से पटी पड़ी थी, तब तो एक था अब हज़ारों रावण बनते व जलाए जाते है। क्या हम बनाने की प्रक्रिया को बंद कर सकते है क्या, बडे से बड़े बनाते, खरीदते, जलाते, देखते वक्त रावण ही प्रमुख हो जाता है। जितना हो हल्ला जलाने बनाने में हो रहा, शायद उतना ही रावणत्व पनप रहा। जलाने से बढ़ रहा तो गाड़ी रिवर्स में डाल के देखो तो सही, जिस की चर्चा करते, वही चीजें बढ़ती है इसके बदले अपना कीमती समय धन रामत्व में खर्च करे चिंतन मनन में तो फायदा जरूर होगा कुछ सकारात्मक सोचा जाय। मणिपुर की बात की तो इस्राएल युद्ध आ गया पूरा दिन वही ध्वनि तरंगे व्यापी रहती है। जैसे अच्छाई खत्म ही हो गई हो, कुछ चाल बदल के देखो एक मिनिट समाचार के बाद अच्छी बात करने का निर्णय लेकर फिजा को बदला जा सकता है। चीख निकल जाए ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर आते हैं कि नरक जाने की जरूरत ही नही, इतना महिमामण्डल बुराइयों का होता कि लगता वही ओढ़ बिछा रहे है। एक सुझाव आया मन मे सो कह दिया।

परिचय : शांता पारेख
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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