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Tag: शांता पारेख

बदला
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बदला

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बरसो से से एक बहुत ही गुनी कलाकार मालिश वाला हमारे परिवार के पुरुषों की मालिश करता था। शास्त्र में कहा गया है नाई व नावन चलते-फिरते अखबार होते है, मेरा मानना है कि शास्त्र कुछ भी नही अनुभव सिद्ध संसार का एक शानदार निचोड़ है। समय काल से सब बदलता ही है मगर शास्त्र की बाते शाश्वत ही है। अति सर्वत्र वर्जयेत बदल सकते हो क्या। तो ये नाई मेरे घर आज आया, कोरोना काल मे भयानक दुर्घटना में उसका इकलौता बेटा काल धर्म को प्राप्त हुआ। दुख का पहाड़ टूट पड़ा। पर उसने दुर्घटना करने वाले लड़के पर नो लाख खर्च किये कि सज़ा तो दिलाऊंगा दोनो पति-पत्नी काम पर नही गए उदास हताश पगलाए कोर्ट पुलिस करते रहे न्याय का तो आपको पता ही है। किसी समझू ने उसे राय दी, दोनो ने नसबंदी ओपन की व ५५ की उम्र में बेटी प्राप्त की जिसका वॉकर में चलते हुए मैंने फोटो देखा। मैं तो आ...
अच्छे सत्कार्य
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अच्छे सत्कार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** पर्यटन कई प्रकार के होते है। सबका उद्देश्य भी अलग होता है। यूँ तो बहुत बदनाम हुए है बाबा उनके आश्रमो ने बहुत गंदगी व दरिंदगी फैलाई। उससे अच्छे व सच्चे बाबा जी जनकल्याण की गतिविधियों से जुड़े थे उनका बहुत नुकसान भी हुआ। पर कहते है बादल आकाश को ढक के अंधेरा तो कर सकते है पर सूर्य को कौन निगल सकता है सिर्फ हनुमान, पर जो संत महात्मा कुम्भ में अपने डेरे डाल के देश विदेश के ज्ञान पिपासुओं को तृप्त करते है। उनके प्रताप को कोई आच्छादित नही कर सकता है। सदियों से चलने वाले मेले चार जगह लगते हैं। अर्ध कुम्भ भी लगते है। अन्य सारे पर्यटन को अलग करदे तो ये पर्यटन कितना बड़ा है कितना अर्थव्यवस्था को लाभ देता है। हां टेक्नोलॉजी बढ़ी है, पर इसरो के वैज्ञानिक भी लॉन्चिंग के पहले अपनी उत्तेजना पर काबू पाने अपने इष्टों को याद करते टीवी पे दिखाए गए थे।...
दर्शन विशुद्धि
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दर्शन विशुद्धि

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कोई भी दर्शन अपने आप मे अच्छा, ही होता है, क्यों कि जिसने भी प्रतिपादित किया उसने कितना चिंतन करके प्रतिपादित किया है, इसका तत्कालीन समाज ने विरोध किया तब भी स्थापित हुआ, यानी कोई तत्व तो सुदृढ होगा ही। इसलिए जब तक कोई दर्शन, दर्शन रहता वह विस्तार पाता है तब तक सब अच्छा चलता भी है। परंतु जब वह संगठन या सम्प्रदाय बन जाता है तो उसमे विकृतियां आ जाती है व्यक्तिवाद रूढ़ हो जाता है फिर अति विकृत होते ही दर्शन गौण व संगठन प्रमुख हो जाता फिर उसमे सडांध पैदा हो जाती है, फिर कोई चिंतक उसी दर्जे का आता है तो पुनरोद्धार हो जाता है, जैसे महर्षि दयानंदसरस्वती, यविवेकानंद या महर्षि अरविंद। मार्क्सवाद अच्छा था कई देशों में फैला भी रूस चीन बड़े अनुयायी थे। मार्क्सवादी पार्टी जब बनी कुछ दिन ठीक चला फिर वामपंथ जैसी अवधारणा के कारण क्षरण होता चला गय...
विनोबा जी के सतकार्य
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विनोबा जी के सतकार्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** विनोबा जी व गांधी दोनो साथ रहे गाँधीजी राजनीतिक संत थे तो विनोबा जी आध्यात्मिक संत थे जो राजनीति में भी सक्रिय तो थे पर मूल उनका आध्यात्मिक ही था देश प्रेमी के साथ अध्ययनशील भी थे। विनोबा जी पवनार आश्रम से अपनी गतिविधियां चलाते थे। भूदान आन्दोलन से भूमिहीनों को भूमि दिलवा कर, आत्मसम्मान से जीना सिखाया मजदूर से मालिक बनाया। बड़े जमीदारों से सिर्फ छह प्रतिशत जमीन मांगी उनकी सदाशयता देख दी भी, खुशी से ये उनकी संतई थी। जैन दर्शन का गहन अध्ययन किया था। गीता रहस्य तो लिखा, पर अंत समय जैन मुनि से संथारा लिया जो तीन दिन में सींझा। जैन कुल में जन्म लेने से बड़ी बात है, इसके सिद्धांत में गहन आस्था व निष्ठापूर्वक पालना। हमे अपने से परे जाकर यह भी देखना होगा कि कौन अजैन जैन दर्शन की पताका को प्रशस्त कर रहे है। ताकि हम युवाओं को प्रेरित कर सके...
नकद का मूल्य
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नकद का मूल्य

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** इनाम किसी को भी मिले मज़ा बहुत आता है। पर कई बार इनाम जीतने वाला प्रतिभा सम्पन्न हो पर कड़का हो तो उसको इनाम ने नकद रकम की दरकार होती है, वह उधार की चीजे पहन के गया हो तो अगर इनाम में बांड मिल जाये जो एक साल बाद कैश होगा ब्याज के साथ, तो सोचिए कितनी विडंबना हो जाती है। हमारे देश मे कई खिलाड़ी संघर्ष रत होते है जिन्हें नकद राशि ही चाहिए होती है। एक विश्वप्रसिद्ध कहानी है जिसमे एक लड़की दुआ करती है कि मेरे भाई को सेकंड प्राइज मिले क्योंकि उसमे जूते मिलने वाले थे, वे दोनो भाई बहन जूते बारी बारी से पहन कर दौड़ने की प्रैक्टिस करते थे, भाई को प्रथम पुरस्कार मिला तो रोने लगी, कारण जब बताया तो आयोजको की आंखे खुली कि संघर्ष का जज्बा क्या होता है नकद की कीमत क्या है। इनांम गिफ्ट में जो चीजे दी जा रही है सोचा तो जाना ही चाहिए कि क्या दिया जाय। ...
आमाशय
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आमाशय

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक महिला जो बुजुर्ग होने के कारण सात्विक तो थी ही बाहर का कुछ खाती नही थी। किसी विवाह समारोह से सड़क यात्रा से आरहे थे। रास्ते मे बैतूल आया हमारे मित्र रहते थे। उनके घर खाना खाने का सोचा, साथ मे था ही मिलना व चाय हो जायेगी। वहां बहुत प्यार से चाय पिलाई गई। गप्पे चली, सासुमा का रात्रिभोजन का समय हो गया उनको मैने पूरी व उनका मसाला एक प्लेट में रखा व दिया। मेरी मित्र ने कई चीजें परोसने का आग्रह किया, मगर अपने नियम धरम के चलते उन्होंने कुछ भी नही लिया। अब मेरी मित्र कहने लगी माताजी पूरी के साथ कौन सा मसाला खा रही है। मैंने जवाब दिया तेल में जीरा डाल नमक व मिर्ची दो बूंद पानी बस। मुझे चखना है मैंने उनको दिया उनको बहुत ही टेस्टी लगा। ये वो महिला थी जो ग्रुप की पाककला में निपुण मानी जाती थी हमेशा कुछ नया खिला कर चमत्कृत करती थी। भोजन का...
रिस्क से इश्क
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रिस्क से इश्क

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** इश्क कई तरह के होते है, किसी से भी किया जा सकता है। मगर दुनिया मे सबसे चर्चित इश्क वह है जो रिस्क से होता है। जो जब तब रिस्क लेता रहता है दुनिया उसको दीदे फाड़ के देखती है। रतन टाटा बंगाल में नैनो का तंबू गाड़ चुके थे, ममता जी अड़ गई, फिर टाटा का ही कलेजा था जो गुजरात मे चले गए। सारा तंबू उखाड़ कर रातों रात शिफ्ट होना उनके ही बूते की बात है। पूरा देश चकित था, क्या होगा हुआ यथासमय गाड़ी आई बिकी भी सफल भी हुई, गरीब की गाड़ी फिर रीविजन भी हुआ फिर मॉडिफिकेशन हुआ फिर चल पड़ी। ऐसी ही रिस्क मोदी जी ने ली, दुश्मन के घर मे घुस कर मार के आना बिना एक भी जान का नुकसान किये। इंदिराजी हार गई, चुप बैठी, फिर तैयारी से हुंकार भरी फिर प्रचंड बहुमत से ताज पहन लिया। इंदिरा जी जो भी थी, कठोर निर्णय तो लेती ही थी। बंगला देश को झुका देना, कितनी रिस्क थी पर म...
गुंजलक
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गुंजलक

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक बिटिया को, उसकी भुआ ने बताया तू जब छोटी थी तुझे बाल्टी में बिठा के नहला देते, गर्मी की छुट्टियां होती तो, तुम बाहर निकलने को तैयार ही नही होती, एक बार बाहर निकालने को तेरे ऊपर पानी उछाला तो बहुत रोई बहुत रोई हम समझ नही सके तुझे क्या हो गया। वही लड़की बड़ी होकर पानी से बहुत डरती थी। कोई नदी तालाब झरना दिख जाता तो आंख बंद कर लेती। पिकनिक पे सब नहाते तब भी वह बाहर खड़ी रहती थी। बस बरसात से कोई परहेज न था। बाद में उसके सिवा सबने तैरना भी सीख लिया। विवाह के बाद हनीमून पे पहाड़ गई तो भी उसके पति आश्चर्य में थे कि झरना देख आंख बंद क्यों कर लेती हो, बोटिंग भी नही की, उनको बड़ा अजीब लगा क्यों कि ट्रिप में अधूरा पन जो था। दो तीन वर्ष बाद पीहर के विवाह समारोह में रात की महफ़िल में वही बाल्टी वाला किस्सा भुआजी ने सुनाया, पति को एकदम रहस्य पकड़ ...
उठते ही रहना
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उठते ही रहना

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये एक सौ चालीस करोड़ लोगों का देश है। कुछ लोग चांदी का चम्मच लेकर जन्म लेते होंगे, पर कितने रोज जन्म ले रहे, कई घिसट रहे, कोई तड़प रहे, किसी ने कुछ पा लिया तो वह उसके स्वाद की चुस्कियां ले रहे, कोई पाने के लिए जद्दोजहद कर रहा, कुछ उसी में पिस रहे, कुछ गिर के खड़े हो रहे, तो कुछ बार बार गिर रहे, कुछ एक दम गायब हो रहे जिनका अतापता ही नही। दुनिया रेलम पैला है। स्टेशन जैसी हड़बड़ी में सब है। कोई चढ़ गया कोई उतर गया कोई लटक के लहलुहाँ हुआ। कितने नज़ारों से भरी दुनिया है, किसी की कहानी दूसरे की कहानी से मिलती ही नही। सबके किरदार सबके मंच व अदायगी है। पर एक चीज जो सबमे सामान्य है शाश्वत है, विश्वव्यापी है, वह है गिर गिर के उठना, हर उठने की प्रक्रिया में कुछ सीखना, सीखे हुए में कुछ दूसरा मिला कर पहले की गलती को न दोहराते हुए कुछ अच्छा बड़ा करने...
इच्छारोधन तप
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इच्छारोधन तप

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गाय को चरते देखा है, वह चरागाह में घांस जब खाती है ऊपर से घांस को खाते हुए आगे बढ़ती है। धीरे-धीरे मैदान की घांस कम हो जाती तब वह पूर्व स्थान पर आती तब तक फिर से घांस उग जाती। याब आप गधे को देखिए दोनो शाकाहारी जानवर है व घांस ही खाते हैं, गधा घांस को उखाड़ कर खाता व जड़ समाप्त हो जाती है। मनुष्य जाति गधे की तरह आचरण कर रही है, जो भी चीज मिलती है, उसको जरूरत है तो उसका भरपूर दोहन कर लेती है। पहले कोयले से बिजली बनाई वह भंडार जब खत्म होने को आया तो वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में पानी, पवन चक्की सोलर ढूंढ लिया। नदी की रेत निकाल कर उसको कंगाल कर दिया। पहाड़ो से कितनी चट्टाने आएगी व रेत बनेगी। बनने व उपभोग में बड़ा अंतर है याब रो रहे छलनी हो गई नदिया। ग्रामीण अंचल में लकड़ी ,बांस, बल्ली व बड़े पत्तो से झोपडी बनती, पुरानी होती तो जलावन बनती, नई क...
वीगन
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वीगन

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वीगन का बड़ा प्रचार प्रसार है, कई बड़ी बड़ी हस्तियां वीगन भोजन कर रही है सन २००४ में जब अमेरिका गई तो एक वीगन परिवार में रुके। उन्होंने जो वीगन खाना खिलाया हमे तो कुछ फर्क लगा ही नही, टोफू की आइसक्रीम तो दो बार लेकर खाई उन्होंने बाद में बताया, भारतीय परिवार था। उन्होंने तो चार सौ लोगों की पार्टी भी की। अब तो भारत मे सड़को पर भी लिखा दिखने लगा है। जेनेलिया व देशमुख खुद तो वीगन है ही उनके बच्चों को बना दिया है। ये पौधों से पैदा हुआ खाना ही खाते है पशु उत्पादन नही अर्थात घी, दूध, दही, पनीर, बटर कुछ भी नही। इनका मानना है कि इस भोजन में धरती सब देती है। सारे मेडिकल टेस्ट बच्चों के भी कराए तो अच्छे परिणाम थे।हमारे विराट कोहली भी वीगन है, क्या धुंआधार बल्ले बाज़ी कर रहे। यानी कि मांसाहार व घी पुष्ट होंने की गारंटी नही है। ये लोग सारी मिठाई ...
कुछ अलग सोचे
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कुछ अलग सोचे

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रावण था धरती पर इसलिए राम का जन्म हुआ फिर कैसे क्या हुआ सबको पता है। अब हर दशहरे पर खूब लेख लघुकथा कविता व्यंग सब खूब छपता है। रावण के गुणों का बखान भी बहुत होता, पर रोज नए आकार प्रकार के रावण प्रकट हो जाते है, इसराइल फिलिस्तान आ गये तो यूक्रेन खत्म हो गए क्या। हर त्योहार पर बुराई का नाश की बात होती है। नवरात्रि में एक बार बाजार निकल गई तो सड़क अधबने रावणों से पटी पड़ी थी, तब तो एक था अब हज़ारों रावण बनते व जलाए जाते है। क्या हम बनाने की प्रक्रिया को बंद कर सकते है क्या, बडे से बड़े बनाते, खरीदते, जलाते, देखते वक्त रावण ही प्रमुख हो जाता है। जितना हो हल्ला जलाने बनाने में हो रहा, शायद उतना ही रावणत्व पनप रहा। जलाने से बढ़ रहा तो गाड़ी रिवर्स में डाल के देखो तो सही, जिस की चर्चा करते, वही चीजें बढ़ती है इसके बदले अपना कीमती समय धन रामत्...
भाषा दीवार नही
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भाषा दीवार नही

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कलाम साहब ने पूरी शिक्षा तमिल भाषा मे ली, उनको अंग्रेजी नही आती थी। आप जानते है कि वे एक चोटी के अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक है। बाद में उन्होंने कामचलाऊ अंग्रजी सीखी। ये कहना व सोचना की ज्ञान अंग्रेजी में ही पाया जा सकता है, सिरे से गलत है, अपनी मातृभाषा में हम ज्यादा चीजे कम समय मे सीख जाते है, जब बुद्धि परिपक्व हो जाय तब कोई भी भाषा सीखेंगे तो समय बहुत कम लगेगा क्योंकि मूल ज्ञान आपकीं भाषा मे आपके पास है तो अन्य भाषा की कोई भी बात से आसानी से जुड़ जाएंगे परन्तु अभी हर बच्चा ए फ़ॉर एप्पल में ही पूरी क्षमता व उर्जा समाप्त कर रहा है। नई शिक्षा नीति पर ध्यान देकर बालको को मेधावी बनाया जाय फिर अच्छे बेसिक के साथ जर्मनी जाए चाहे जापान सब कर लेगा। मध्यकाल में देशी भाषा के ज्ञान से बड़े काम किये ही थे। पर अब तो मोबाइल पर अनुवाद की खूब सुवि...
संशयात्मा विनश्यति
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संशयात्मा विनश्यति

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहा जाता है संशयात्मा विनश्यति। इसका अर्थ है संशय करने वाली आत्मा विनाश को प्राप्त करती है। परन्तु सामान्य जीवन मे जो शंका करता है वही आगे बढ़ता है, न्यूटन, गेलिलियो नचिकेता शंकराचार्य जो भी किसी भी क्षेत्र के हो जिसने कब क्यों कहाँ कैसे नही पूछा वे वही खड़े रहे आकार प्रकार में बड़े हुए होंगे पर ज्ञान कला गुणों का विकास तो जिज्ञासा से ही होता है, सेव नीचे क्यों गिरा उस पर विचार किया तो गुरुत्वाकर्षन की खोज हुई फिर उसी को आधार मान कर पूरा स्पेस साइंस की खोजे हुई है। जो जितने ज्यादा सवाल पूछता अध्यापक का प्रिय पात्र बनता व वे भी उसको आगे तुम्हे कैसे व क्या पढ़ना चाहिए के लिए निर्देश देते है। कोलंबस वास्कोडिगामा मेगस्थनीज़ सब शंका उत्पन्न हुई तो खोज कर पाए। जो है उसको अगर यथावत स्वीकार लेते तो आज पाषाण युग मे ही जीते। पर जिज्ञासु सब हो ...