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बदला

शांता पारेख
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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बरसो से से एक बहुत ही गुनी कलाकार मालिश वाला हमारे परिवार के पुरुषों की मालिश करता था। शास्त्र में कहा गया है नाई व नावन चलते-फिरते अखबार होते है, मेरा मानना है कि शास्त्र कुछ भी नही अनुभव सिद्ध संसार का एक शानदार निचोड़ है। समय काल से सब बदलता ही है मगर शास्त्र की बाते शाश्वत ही है। अति सर्वत्र वर्जयेत बदल सकते हो क्या। तो ये नाई मेरे घर आज आया, कोरोना काल मे भयानक दुर्घटना में उसका इकलौता बेटा काल धर्म को प्राप्त हुआ। दुख का पहाड़ टूट पड़ा। पर उसने दुर्घटना करने वाले लड़के पर नो लाख खर्च किये कि सज़ा तो दिलाऊंगा दोनो पति-पत्नी काम पर नही गए उदास हताश पगलाए कोर्ट पुलिस करते रहे न्याय का तो आपको पता ही है। किसी समझू ने उसे राय दी, दोनो ने नसबंदी ओपन की व ५५ की उम्र में बेटी प्राप्त की जिसका वॉकर में चलते हुए मैंने फोटो देखा। मैं तो आश्चर्य चकित थी कि जगजीत ने बेटा खोया, ऐसे कितने है या होँगे, अनगिनत मगर न्याय से निराश होकर प्रयत्न व सकारात्मक सोच से क्या नही हो सकता। आज उसका चेहरा घूम रहा भूल ही नही पा रही कि पांच साल पहले वह मेरे ही आंगन में कैसे दहाड़े मार के रोया था। सच मे सीखने की चीज है कि बदला लेने का काम प्रभु पर छोड़ सकते है क्या, हम उसे सौंप कर अपने खुश होने का प्रबंध कर के दुनिया को अधिक सुंदर बना सकते है। पर ये संभव नही क्योंकि धर्म ने तो प्रभु मरजी व स्वीकार करना सिखाया था पर सत्तर के दशक के बाद की फिल्मों ने बदले की आग में धधकते हीरो दिखाए अब तो महिलाएं भी फ़िल्म में भी व असली जीवन मे इसी आग में धधक रही फिर सोचते परिवार क्यों टूट रहे, जो करेगा सो भरेगा ये भूल के सब वकील व न्यायमूर्ति बने बैठे है। फिर बड़े घरों की भी घरेलू हिंसा में पिट रही अब तो पीट भी रही बच्चे ड्रग एडिक्ट छोटी उम्र में हो रहे तो काउन्सलर व मनोरोग क्लीनिक की व आई वी एफ की दुकाने थोक में खुलती ही जा रही। रोक पाओगे क्या समाज के इस स्वरूप को।

परिचय : शांता पारेख
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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