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आमाशय

शांता पारेख
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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एक महिला जो बुजुर्ग होने के कारण सात्विक तो थी ही बाहर का कुछ खाती नही थी। किसी विवाह समारोह से सड़क यात्रा से आरहे थे। रास्ते मे बैतूल आया हमारे मित्र रहते थे। उनके घर खाना खाने का सोचा, साथ मे था ही मिलना व चाय हो जायेगी। वहां बहुत प्यार से चाय पिलाई गई। गप्पे चली, सासुमा का रात्रिभोजन का समय हो गया उनको मैने पूरी व उनका मसाला एक प्लेट में रखा व दिया। मेरी मित्र ने कई चीजें परोसने का आग्रह किया, मगर अपने नियम धरम के चलते उन्होंने कुछ भी नही लिया। अब मेरी मित्र कहने लगी माताजी पूरी के साथ कौन सा मसाला खा रही है। मैंने जवाब दिया तेल में जीरा डाल नमक व मिर्ची दो बूंद पानी बस। मुझे चखना है मैंने उनको दिया उनको बहुत ही टेस्टी लगा। ये वो महिला थी जो ग्रुप की पाककला में निपुण मानी जाती थी हमेशा कुछ नया खिला कर चमत्कृत करती थी। भोजन का मूल तत्व नमक मिर्च ही है, आधी दुनिया नमक प्याज से रोटी खाती है। हमारे पूर्वज नियम धरम के चलते कितना सादा भोजन कर तृप्त रहते थे।हम सीखे है साथ मे कुछ नही चाहिए, बाहर खा लेंगे। जैसे बाहर वाला अपना कोई सगा है लाभ के लिए तुमको उत्तम वस्तु देगा क्या। हर वक्त हर प्रसंग पर बाहर खाने का रिवाज जिसमे केटरिंग वाला सुस्वादु बनाने के लिए बारह प्रकार के केमिकल डालता है। फिर हम एसिडिटी अल्सर से पीड़ित एंडोस्कोपी कराते फिर रहे। तीन दिन रोटी खाना पड़े तो लगता कुछ बनाओ नही तो आर्डर करो। मसाले पूरी से कितने आगे आ गए व किस दिशा में, जिसका कोई कोर छोर ही नही। स्ट्रीट फ़ूड में किस देश प्रान्त का खाना नही मिलता, चाट-चाट के खाते है, पर जरा सी बात पर हम गुजराती बंगाली हो जाते। बटे हुए हर स्तर पर धर्म राज्य भाषा, अन्तराष्ट्रीय सिर्फ खाने में है। अन्यथा सिरे से असहिष्णु हमसे तो आमाशय अच्छा जो हर तरह के खाने को सिर्फ खून में ही परिवर्तित करता है।

परिचय : शांता पारेख
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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