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ग़ज़ल

हिस्सा बांटे हो गये
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हिस्सा बांटे हो गये

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" बुंदेली ग़ज़ल घर के हिस्सा बांटे हो गये । मिटी लड़ाई, सांते हो गए । पुरा-पड़ौसी, मीठे लग रये, हम में जैसे कांटे हो गये । हम खों रत खर्चा की तंगी, कत खेती में घाटे हो गये । मुरहा मुरही सब लावारिस से जैसे चोर-चपाटे हो गए । "प्रेम" आत मिलबे बे ऐसे, जैसे सैर-सपाटे हो गये । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिक...
प्यार तिरंगे के लिए
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प्यार तिरंगे के लिए

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज हम सब के  मन  में प्यार तिरंगे के लिए  है हर  जान   का    उपहार तिरंगे के लिए   है देखा किसी  ने  आँख उठाकर जो इस तरफ दुश्मन  का   नरसंहार     तिरंगे के लिए   है ये चेन  ये  अंगूठी     ये   बुन्दे   ये   बालियाँ ये  सोने   का    श्रृंगार     तिरंगे के लिए   है ये  कह  रही है गर्व  से     भारत की  एकता हर  क़ौम   की   ललकार तिरंगे के लिए  है शब्दों   से  सैनिकों   का  मनोबल  बढ़ाएगा ये  'ताज'   रचनाकार   तिरंगे  के  लिए    है लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … ...
बुंदेली ग़ज़ल
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बुंदेली ग़ज़ल

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" को है जी खों मरने नइयां। मनों मौत से डरने नइयां। झाड़ फूंक - गण्डा ताबीजें, ई चक्कर मे परने नइयां। तजत झूठ और भजत सत्त खों उन खों कछु बिगरने नइयां। बे-ईमानी रेत पेरबो, बा में तेल निकरने नइयां। "प्रेम" एक से मोड़ी-मोड़ा, फरक तनक भी करने नइयां। लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी, व्यंग्...
पल  में  रच  दिया  संसार को 
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पल  में  रच  दिया  संसार को 

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज जिस  ने  पल  में  रच  दिया  संसार को पूजिए    उस     एक     रचनाकार   को वो   ही     जाने   आत्मा    के   भार को जिस  ने   बाँटा   साँस   के  उपहार  को जो   भी    मानेगा    तिरे      आभार को वो    ही     जानेगा   जगत   निस्सार को वो    शिलाओं  में   समा    सकता   नहीं कैसे   दें       आकार   निर - आकार  को बंद        कर लो अपने   नयनों के  कपाट और      खोलो  अपने     मन के द्वार  को तुम  हृदय   से   माँग  लो  उस  से     क्षमा मोड़    देगा    वो समय     की   धार   को जो   वो   चाहेगा    वही       होगा      सदा कौन     रोकेगा    भला      करतार      को है   सफलता    उस के  चरणों में  ही 'ताज' ले  चलो   उस की   शरण    में  हार     को   लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फो...
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======================== रचयिता : शरद जोशी "शलभ" शम्मे उल्फ़तको हमेशा ही जलाया हमने।। रस्मे उल्फ़त को हमेशा ही निभाया हमने। वो तो राहों में अकेले ही चला करते थे। साथ उनको तो हमेशा ही चलाया हमने।। दूर रहने के बहाने तो उन्हें आते हैं। उनको नज़दीक हमेशा ही बुलाया हमने।। दिल दुखाया है उन्होंने तो हमारा अक्सर। दिल में उनको तो हमेशा ही बसाया हमने।। क्या करें उनसे शिक़ायत वो ग़ैर ही ठहरे। अपना उनको तो हमेशा ही बताया हमने।। अब इरादा है उन्हें उनके हाल पर छोड़ें। उनको पलकों पे हमेंशा ही बिठाया हमने।। क्यूँ "शलभ" को वो मिटाने पे हुए आमादा। उनपे ख़ुद को तो हमेशा ही मिटाया हमने।।   परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म....
उन को हुई मुहब्बत जब से
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उन को हुई मुहब्बत जब से

=========================== रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" उन को हुई मुहब्बत जब से । गले पड़ी है आफत तब से । करते हैं आगाह सभी को, बच कर रहना इसी गजब से । उन को हुई, किसी को न हो केवल यही मांगते, रब से । दिन में तारे, ख्वाब रात भर, दिखें नज़ारे, अजब-अजब से "प्रेम" बता कैसे  छूटकारा ? यही पूछते हैं वे सब से । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी,...
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======================== रचयिता : शरद जोशी "शलभ" झूठे को भी वो हाल मेरा पूछता नहीं। भूले से भी कभी मैं उसे भूलता नहीं।। मैंने कभी किसी को न उसमें किया शरीक। क्या है मेरी नज़र में अगर वो ख़ुदा नहीं।। करने लगे तू उसकी अताओं का गर शुमार। तो ख़ुद ही कह उठेगा मुझे कुछ गिला नहीं।। वो तो वहीं मिलेगा वहीं पर मुक़ीम है। अपने ही दिल में तू उसे क्यूँ ढूँढता नहीं।। लब खोल कर तो हँसता "शलभ" हूँ सभी के साथ। दिल खोल कर ना जाने मैं कब से हँसा नहीं।।   परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद...
छोटे बहर की ताजा ग़ज़ल.
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छोटे बहर की ताजा ग़ज़ल.

========================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी तीरगी घर मे भले चिराग क़ब्रो पे जले भूखमरी हो जीते जी मरे बाद दावत चले रिश्वत देकर करे काम धन्धे  ऐसे  खूब फले, खाना बदोश जिंदगी, कोई मंज़िल न मरहले, सब  है इंसा के पास, ईमान की कमी खले, भीड़ में   दुनिया की, अब  हम  तन्हा  चले, घूमे फिरे सब जगह, घर  लौटे  शाम   ढले , करते रहो रोशन जहाँ को अंधेरा तो खुद  के तले, आस्तीन हो गई गायब, सांप अब  कहाँ  पले, चिड़िया क्या खेत चुगे, बाढ़ में ही बीज  गले, दूध की क्या बात करे, अब तो छांछ के है जले, ऐसा धरम हम क्यो करे, हवन करते हाथ जले। मन के  मैले  है जो वो, मुझसे   कैसे लगे गले। मौत  हक़  है  "इक़बाल " आये  तो  फिर ना  टले  ।। परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ...
बुंदेली ग़ज़ल
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बुंदेली ग़ज़ल

================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" आज स्याने जुते बैल से, बोझ तरें मर रए हैं, युवा देस के लै-लै डिग्री, ना-कारा फिर रए हैं । सावन-भादों के जे बदरा फिर-फिर घिर रये है । भुंसारे से भईया-भौजी भींजे ही फिर रये हैं । दद्दा ने जो कर्जा लओ थो, अबै तलक बाकी है, देनदारिएं, कर्जा निकरे, अपने ही सिर  रये हैं । बसकारे ने हमरो जीवन, नरक बना के धर दओ, धरती सें बम्मा फूटत है, झिरना से झिर रये हैं । मोड़ा मोड़ी मानत नईं हैं, गद-बद देत फिरत हैं, जी को तन्नक पांव रिपट गओ, धम्म धम्म गिर रये हैं । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर...
बुंदेली ग़ज़ल
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बुंदेली ग़ज़ल

================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" हाड़ टोर रये, पसी बहा रए । शैर भेज कें, तुमे पढा रए । झूठी-सांची कसमें खा रए, खूब चूतिया हमें बना रए । दारू पी रये, मुर्गा खा रये, सोने जैसौ, समओ गमा रये । हम सोचत्ते, पढ़-लिख जै हौ, तुम पैसा में आग लगा रए । कौन बनक की है, जा पीढ़ी ? छोड़े आम, धतूरो खा रए । लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता,...
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================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे खुल कर कह मन में क्या है ? सच कह दे, उलझन में क्या है ? है खूबी, ख़ामी, चेहरे में, बेचारे दरपन  में क्या है ? मौसम है तो फूल खिले हैं, वरना इस उपवन में क्या है ? व्यक्ति नहीं, गुण पूजे जाते, हाड़-मांस के तन  में क्या है ? "प्रेम" नहीँ जिसके जीवन में, फिर उस के जीवन में क्या है ? लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक,...
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=================================== रचयिता : बलजीत सिंह बेनाम अपने चेहरे को आईना करके ज़िन्दगानी से जी वफ़ा करके उम्र भर आँसुओं में डूबा हूँ एक इंसान को ख़ुदा करके आप आए नहीं जला दीपक सर्द रातों से इल्तज़ा करके कर सभी का भला ज़माने में बस बुरा पाएगा बुरा करके मुश्किलें और भी बढ़ाई हैं ज़हर के पौधे को बड़ा करके लेखक परिचय : नाम : बलजीत सिंह बेनाम सम्प्रति : संगीत अध्यापक उपलब्धियाँ : विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८...
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=================================== रचयिता : बलजीत सिंह बेनाम मिल गई हो जिसे घूँट भर ज़िन्दगी शब उसी के लिए है सहर ज़िन्दगी साथ तेरे हो कैसे बसर ज़िन्दगी संग मैं हूँ तू शीशे का घर ज़िन्दगी जन्म जिसने लिया उसको मरना पड़ा कर सका कौन आखिर अमर ज़िन्दगी जी रहे हैं सभी एक ही ढँग से बेअदब ज़िन्दगी बेहुनर ज़िन्दगी मैं तो पलकें बिछा कर थका हूँ बहुत मेरी राहों से अब तो गुज़र ज़िन्दगी लेखक परिचय : नाम : बलजीत सिंह बेनाम सम्प्रति : संगीत अध्यापक उपलब्धियाँ : विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindiraks...
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=================================== रचयिता : बलजीत सिंह बेनाम जवानी यूँ ही तन्हा जाएगी तेरी गुज़र इक दिन मोहब्बत का भँवर हूँ मैं तू मुझमे आ ठहर इक दिन मेरे हाथों के छालों में तेरी तस्वीर है क़ायम तेरी फ़ुरक़त में मैंने जो रखे थे आग पर इक दिन कहाँ वो चैन पाएगा जला बस्ती ग़रीबों की ख़ुदा उसको भी कर देगा जहां में दर बदर इक दिन यही है सोचता गर तू रहेगा तू सदा प्यासा कभी तो तज़करा होगा मेरी भी प्यास पर इक दिन सदा सैय्याद कहता तेरा जीवन क़ैद में बुलबुल अगर छोड़ा क़फ़स तो तेरे दूँगा पर कतर इक दिन लेखक परिचय : नाम :-बलजीत सिंह बेनाम सम्प्रति: संगीत अध्यापक उपलब्धियाँ: विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के स...
यार से दूर
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यार से दूर

=============================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी संभल कर चलता हूँ गिरती हुई दीवार से दूर। हाँ मगर शहर में रहता हूँ मै दो चार से दूर। हर वक़्त कदम दर कदम धोके है इस जहान में, हमेशा जीत की कोशिश करे, रहे हार से दूर। सियासत हर किसी को यूं ही नही आती है रास, हम अपनी बस्ती में रहते है सरकार से दूर। गुलशन में फूलों के बीच गुजर है मेरी अक्सर राह में हर तरफ बचकर चलता हूं खार से दूर। गैर तो गैर है अपनो पे भरोसा नही इक़बाल भहकाये कोई तो मत जाना अपने यार से दूर। परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ईराक, सीरिया, जार्डन, कुवैत, इजराइल आदि देशों का भ्रमण दायित्व :- संरक्षक - पत्र लेखन संघ सदस्य :- फिल्म राइटर एसोसिएशन मुंबई, टेलीविजन स्क्रीन राइटर एसोसिएशन मुंबई प्रत...
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================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे जब कोई भूखा सोता है। दिल ये ज़ार ज़ार रोता है। ये भी नहीं आखिरी मौका, ऐसा बार-बार होता है। हैवानियत प्रभावी हो तो, रिश्ता तार-तार होता है। चिनगारी गर भड़क उठे तो, झगड़ा आर-पार होता है। "प्रेम" जुबां से, या तीरों से आखिर वार, वार होता है। लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहान...
‘ताज’ वतन का वंदन कर 
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‘ताज’ वतन का वंदन कर 

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज हर  दुख  का अभिनंदन  कर चिंता मत कर चिंतन  कर खुशियों के पल निकलेंगे दुख सागर का मंथन  कर हर मानव को गंध मिले तन मन धन को चंदन  कर जिन शब्दों से दिल ख़ुश हो उन शब्दों का चुंबन  कर भँवरा बन कर ग़ज़लों का सारे जग में गुंजन कर जाना है उस पार अगर मौजों का उल्लघंन कर प्यार का शुभ  संदेश है ये 'ताज' वतन का वंदन कर लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरु...
काँटों के बगीचों में
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काँटों के बगीचों में

********** नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. कि काँटों के बगीचों में गुलों की खेतियाँ भी हैं। जहाँ  भौरें  मचलते  हैं वहाँ कुछ तितलियाँ भी हैं। घटायें देख सारे आसमाँ से डर गए कितने, कि काले बादलों के संग सुहानी बदलियाँ  भी हैं। जहाजों से  सफ़र करना समन्दर पर   रहा आसाँ, करें ग़र जान   मारी तो वहाँ पर कश्तियाँ भी हैं। जहाँ  चीखें  उभरती हैं रुलाई  की रिवायत में, वहाँ छुपकर गमें हालात गाती सिसकियाँ भी है। तुम्हारी याद सारी हर घड़ी पल साथ रहती है, अगर भूलूँ  मुझे  फिर से मिलाती हिचकियाँ भी हैं। लेखक परिचय :- नाम ...नवीन माथुर पंचोली निवास.. अमझेरा धार मप्र सम्प्रति... शिक्षक प्रकाशन... देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन। तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान... साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
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======================== रचयिता : शरद जोशी "शलभ" उसको रूदाद सुनाने की ज़रूरत क्या है। इतनी हमदर्दी कमाने की ज़रुरत क्या है। जो किसी रस्म को जाने , न जो हमराह चले। राब्ता उससे बढ़ाने की ज़रुरत क्या है।। वो अगर दुनिया से डरता है तो घर में बैठे। उसको घर जा के मनाने की ज़रुरत क्या है।। मुश्किलें उलझने मजबूरियाँ क्या हैं उसकी। इसका अन्दाज़ लगाने की ज़रुरत क्या है।। लौट कर जाना है जब एक ही मंज़िल पे "शलभ" फिर किसी और ठिकाने की ज़रुरत क्या है।। परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प...
पलट गया हूँ मैं
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पलट गया हूँ मैं

रचयिता : शरद जोशी "शलभ" ======================================== पलट गया हूँ मैं तमाम रिश्तों से नातो से कट गया हूँ मैं। निकल के दुनिया से ख़ुद में सिमट गया हूँ मैं।। किसी की चाह न बाक़ी न राबता बाक़ी। तलब की राह से अब दूर हट गया हूँ मैं।। ये रोशनी तो दिया बुझने के क़रीब की है दिये के तेल से घट- घट के घट गया हूँ मैं।। किसी भी शक्ल में घर लौटना नहींं मुमकिन। हज़ारों लाखों करोड़ों में बट गया हूँ मैं।। पलट के जाना था इक दिन ख़ुदा की सम्त"शलभ" कि आज ही से उधर को पलट गया हूँ मैं।।   परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आ...
बुझ गई इस तरह
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बुझ गई इस तरह

रचयिता : नवीन माथुर पंचोली =========================================================================================================== बुझ गई इस तरह बुझ गई इस तरह अब लगी। जिस तरह घूँट भर तिश्नगी। _________________________ वक़्त ने जब इशारा किया, तब चली दो क़दम जिंदगी। __________________________ किस तरह दूर रक्खें नज़र, भा  गई  यार  की सादगी। _________________________ जब  तलक़  वो रहे सामने, उनसे  होती  रही दिल्लगी। __________________________ रात थी, नींद  थी,ख़्वाब थे, आँख लेकिन जगी की जगी। __________________________ है उन्हीं की दुआ का असर, जिनकी  करते  रहे  बन्दगी। लेखक परिचय :- नाम : नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार मप्र सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन। तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रव...