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संतकृपा

माधवी तारे
लंदन
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अपनापन खो जग में अपना मिलता है
जग सपना भी अपने को सोकर ही मिलता है
जब हार न पाया मैं अपनापन जगने में
तब जग को अपनी जीत सुनाना चाहती हूं

सबको ऐसा अनुभव जीवन के किसी न किसी मोड़ पर आता ही है. कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके, रोज कहीं न कहीं नौकरी की अर्जी देना, साक्षात्कार के लिये जाना ये सिलसिला मुझे आज भी याद है। पीएससी के इंटरव्यू के लिये नागपुर गई थी। तब सोलह सोमवार जैसा कड़क व्रत मेरा था। मां ने हजारों सूचनाओं से मेरा दामन भर दिया था। ये नहीं खाना, वो नहीं करना ऐसी अनेक सूचनाएं पल्लू में भरकर में गाड़ी में बैठ गई। किसी ने सहृदयता से भी कुछ दिया तो हाथ में लेना नहीं। मां के कहे अनुसार आचरण करते हुए और भगवान की कृपा से इंटरव्यू का नतीजा भी अच्छा रहा। प्रथम नौकरी पुरुषों के डीएड कॉलेज में मिली। वरिष्ठ अधिकारी ने आश्वासन दिया था कि दो-तीन महीने मुझे महिलाओं के कॉलेज में भेज दिया जाएगा। दोनों संस्थान पास-पास थे घर के लोगों ने हाँ की और कॉलेज के काम को मैंने स्वीकार किया। शुरुआत में माँ ने सहेली की पुरानी साइकिल कॉलेज में जाने के लिये खरीदी और कहना नहीं भूली कि पहली तनख्वाह से नई खऱीद लेना तब का समय माँ-पिता या बड़ों के साथ हुज्जत करने का नहीं था क्योंकि छोटे बहन भी होते थे जो मिला उसे स्वीकार कर अपना काम शुरू किया। उस समय माता-पिता वर की तलाश में थे, हमें कुछ कहने की इजाज़त नहीं थी दलील की ये कि तुम्हारी नौकरी का लालच हमारी दिमाग में नहीं बैठ जाए। दिन अच्छे जा रहे थे पुरानी साइकिल बढ़िया चल रही थी पर सब दिन एक जैसे नहीं होते एक दिन कॉलेज से घर आते समय मैंने देखा कि मेरी छोटी बहन सड़क के किनारे नई साड़ी पहने खड़ी थी इत्तेफाक से मैंने भी उस दिन नई गुलाबी रंग की साड़ी पहनी थी सड़क के दूसरे किनारे से बहन रोकने के लिये जोर-जोर आवाज लगा रही थी।
मैंने उससे पूछा कि यहाँ क्यों आई हो, तो कहने लगी कि आपको देखने के लिये लड़के वालों के घर से कुछ मेहमान आए हैं आपको देर हुई इसलिये पिताजी ने मुझे आपको बुलाने के लिये भेजा मैं शरमाई लेकिन बहन को पीछे बिठा साइकिल से हम दोनों तेजी से घर की ओर बढ़े, सड़क पर ऑफिस जाने वालों की और वाहनों की भीड़ थी घंटी बजाते हुए हम साइकिल से जा रहे थे दोनों की साड़ियाँ भी नहीं नई थी और हम नौसिखिये थे साइकिल के पिछले पहिये में साड़ी कब अटकी पता नहीं चला। सामने दूसरी साइकिल को देख जैसे ही मैं उतरने को हुई, मैं गिर गई क्योंकि मेरी साड़ी चेन में अटक गई थी यह देख भीड़ इकट्ठा हुई और लोग हालचाल पूछने लगे एक-दो ने चेन में फँसी साड़ी निकालने की भी कोशिश की साड़ी अब फटने लगी थी तब एकाएक हमारे यहां के प्रसिद्ध संत श्री सखाराम टोके वहां आए, उन्होंने भीड़ को हटाया और हल्के हाथ से साड़ी को चेन में निकालना शुरू किया स्वाभाविक शहर के संत को कोशिश करते हुए देखकर चालू लड़कों की भीड़ धीरे-धीरे छँटने लगी। कुछ समय बाद शांतिपूर्वक साड़ी चेन में से सही सलामत छूट गई बाद में संत जी ने मृदु शब्दों में फटकार भी लगाई “आगे ऐसी डबल सीट साइकिल चलाने का साहस कभी नहीं करना नहीं करोगे न…!” हमने भी उनके चरण छुए और रात को उनके घर भगवान की आरती में प्रसाद लेकर शामिल हो गए।

परिचय :-  माधवी तारे
वर्तमान निवास : लंदन
मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
अध्यक्ष : अंतर्राष्ट्रीय हिंदी रक्षक संघ (लन्दन शाखा)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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