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पौराणिक सच- हमारे पुराणों का सच

सुधा गोयल द्वारा लिखित ‘पौराणिक सच’ पुस्तक की विवेचना

लेखक :- नील मणि
मवाना रोड (मेरठ)
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हिंदू धर्म में वर्णित १८ महा पुराणों (एक पुराण लगभग ७००-१००० पेज) के गहन अध्ययन के बाद लेखिका श्रीमती सुधा गोयल जी ने “पौराणिक सच” नामक किताब में अलंकारिक व शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा में कुछ चमत्कृत व हैरान कर देने वाले तथ्य चुन चुन कर कहानी के रूप में पाठकों की थाली में परोसे हैं। सन २०२२ में ‘नमन प्रकाशन’ नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित “पौराणिक सच” की कहानियां को पढ़ने के बाद पुराणों में वर्णित पाठ्य सामग्री की झलक स्पष्ट हो जाती है। मेरी तमन्ना रही थी कि कुछ पुराणों का अध्ययन करूं, जो “पौराणिक कथाओं का सच” जानकर काफी हद्द तक तृप्त हो गई है।
पुराणों में देवताओं की भोग, छल कपट व ईर्ष्या की प्रवृत्ति सर्वत्र वर्णित है। लेखिका ने पौराणिक सच की भूमिका में साहसिक तौर पर लिखा है कि पुराणों में वर्णित देवता जिन्हें मंदिर में हम स्थापित करते हैं और पूजते हैं, वे बलात्कारी हैं- इंद्र का अहिल्या से, ब्रह्मा का अपनी पुत्री सरस्वती से, विष्णु जी का तुलसी से बलात्कार सर्वविदित है। हमारा पुराण साहित्य इंगित करता है कि शक्तिशाली कुछ भी कर सकता है। औरत हमेशा से भोग्या रही है और आज भी है। अत: पुराणों के ‘पुनर्लेखन की आवश्यकता’ है। पुराणों में वर्णित अधिकतर कहानी चमत्कृत, विस्मित व आधुनिक वैज्ञानिक प्रयोगों के साथ-साथ देवताओं की भोगवादी और औरत की भोग्यवादी स्थिति को चरितार्थ करती हैं। साथ ही जिसकी लाठी उसी की भैंस वाला जंगल राज भी कुछ कहानियों में व्याप्त मिला। जिन चमत्कारों व क्रिया-कलापों ने मुझे अचंभित किया वे हैं-

तुलसी का शाप- इस कहानी में तुलसी के पति शंखचूड़ को युद्ध में हराने हेतु सारी देव शक्ति द्वारा किए गए छल में श्री हरि यानी विष्णु जी ने छद्म वेश में शंखचूड़ का कृष्ण-कवच दान में मांगा और तुलसी का सतीत्व भंग किया। जब पार्वती ने शिव को दक्षिण में दिया- पार्वती के पुत्रेच्छा यज्ञ के बाद दी जाने वाली दक्षिणा में पुरोहित सनत कुमार ने शिव को ही दक्षिणा में मांगा तो पार्वती ने कहा ‘पुत्र तो पति का अंश होता है उसका एकमात्र मूल तो पति ही है जहां मूलधन नष्ट हो जाए वहां उसका सारा व्यापार निष्फल हो जाता है।’ श्री कृष्ण जी के बीच बचाव करने पर शिव वापस मिले।

गौकर्ण की उत्पत्ति- पत्नी ने ऋषि द्वारा दिए गए फल को स्वयं न खाकर गाय को खिला दिया तो गाय ने गौकर्ण को जन्म दिया जिसका शरीर मनुष्य सा था लेकिन कान गाय के जैसे थे।

अनोखी भेंट- राजा श्वेत ब्रह्म लोक में पहुंचने पर भी मृत्यु लोक में रखे अपने ही शरीर का मांस खाकर अपनी भूख मिटाते थे। 100 साल बाद महर्षि अगस्त्य द्वारा राजा श्वेत के उद्धार का वर्णन है।

झूठे बेर- झूठे बेर कहानी का बड़ा ही संजीव चित्रांकन है। लक्ष्मण जी द्वारा फेंके गए झूठे बेर लक्ष्मण जी की रक्षा के लिए संजीवनी बूटी बने। शबरी भील कुमारी होकर भी राम भक्ति में लीन हुई और राम द्वारा ही मोक्ष को प्राप्त हुई।

मरुदगणों की उत्पत्ति- ऋषि कश्यप द्वारा दिति के उदर में गर्भ स्थापित किया गया और रक्षा यत्न बताए। लेकिन इंद्र ने चालाकी से दिति के गर्भ में प्रवेश कर गर्भ के ४९ टुकड़े करने जैसी चमत्कृत क्रिया की।

सूर्य रश्मियों से शास्त्र निर्माण- सूर्य किरण की प्रचंडता को कम करने के लिए किरणों को काट छांट करके विभिन्न शस्त्रों का निर्माण किया गया- भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, अमोघ यमदंड, शंकर जी का त्रिशूल, काल का खड़ग, कार्तिकेय को आनंद प्रदान करने वाली शक्ति तथा
भगवती दुर्गा के विचित्र शूल। कश्यप मुनि के अंश और अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण सूर्य आदित्य नाम से प्रसिद्ध हुए।

प्राण दाता असुर- सूर्य, वायु, अग्नि, चांद, ऋषि, सुरा ना पीने वाला, युद्ध निपुण आदि असुर के अर्थ हैं। असुर का अर्थ किसी समय प्राण दाता था, कालांतर में प्राणहर्ता हो गया। असुर और देव दोनों ही कश्यप के पुत्र हैं।

जरासंध- ब्रहद्रथ राजा की दो रानियां ने मुनि द्वारा दिए गए आम को आधा-आधा खा लिया और आधे-आधे पुत्र को जन्म दिया, तब भय से दसियों द्वारा चौराहे पर फिंकवा दिया। जरा राक्षसी ने दोनों टुकड़ों को जोड़ वज्र के समान बालक को राजा को सौंप दिया। जरा ने संधित किया इसलिए इस बालक का नाम जरासंध पड़ा।

पुरुष द्वारा पुत्रोत्पत्ति- गुरु द्रोणाचार्य का जन्म दोने से हुआ, ऐसा माना जाता है यानी परखनली शिशु। महाभारत में १०० पुत्रों का जन्म भी परखनली शिशुओं जैसा ही है जिन्हें घृत से भरे घड़े कहा गया। राजा युवनाश्व के अनजाने में मंत्र पूरित पुत्रोत्पत्ति जल पीने से गर्भ स्थापित हो गया और दाएं कोख को चीरकर प्रसव कराया गया। मांधाता को इंद्र ने अपनी तर्जनी उंगली से दूध पिलाया।

कंस का आगमन- राजा उग्रसेन की पत्नी पद्मावती पर रीझ कर गोभिल दैत्य ने माया से उग्रसेन का रूप धारण कर पद्मावती का उपभोग किया और पद्मावती ने कंस को जन्म दिया।

राजा इल का यौन परिवर्तन- राजा इल शरवण उपवन, जिसमें भगवान शिव पार्वती के साथ क्रीड़ा करते थे, में पैर रखते ही स्त्री हो गए। पुराण साहित्य में यौन परिवर्तन की अकेली अनोखी यही घटना है।

जीवनदान- चार मृत कन्याओं को मृगश्रृंग ऋषि द्वारा जीवन दान दिया गया।

पिप्लाद जन्म कथा- अतिथि देवो भव: उक्ति पर प्रश्न चिन्ह लगाती यह कथा जिसकी लाठी उसी की भैंस कहावत को चरितार्थ करती है। महर्षि दधीचि और पत्नी सुवर्चा पर किए गए देवों द्वारा छल की घटना है यह- समस्त देवगण ऋषि के आश्रम में पहुंचे और देवासुर संग्राम में विजय पाने के लिए दधीचि की वज्र सामान हड्डियों को अस्त्र बनाने हेतु मांगा। समस्त देव शक्ति एक तरफ, दूसरी तरफ ऋषि दधीचि अकेले. मना भी तो करते, कैसे? पिप्लाद को जन्म देकर पत्नी सुवर्चा भी पति के साथ सती हो गई।

उपयुक्त मस्तक- उपयुक्त मस्तक कहानी पढ़कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मौजूदगी का एहसास हुआ। देवराज इंद्र की कामेच्छा की मनोदशा भांप रंभा अवतरित हुई।

कार्तिकेय का जन्म- कार्तिकेय का जन्म नारद जी द्वारा सरकंडो में फेंके गए शिव के वीर्य से हुआ… कहानी चमत्कृत करती है। पुराण हिंदू धर्म के प्राचीन ग्रंथ हैं जो ब्रह्मांड की उत्पत्ति, देवताओं, ऋषियों, राजाओं और विभिन्न युगों की कहानियों के साथ हिंदू धर्म के इतिहास, संस्कृति और दर्शन को बोल, समझने के लिए महत्वपूर्ण स्रोत हैं। पुराणों को नैतिक मूल्यों, धार्मिक सिद्धांतों और सामाजिक आदर्शों के मार्गदर्शन में सहायक होना ही चाहिए।
विकिपीडिया के अनुसार भी ‘मध्य और अंग्रेज काल में पुराणों के साथ बहुत छेड़छाड़ की गई है जिसके चलते सब कथाएं गड्ड मड्ड हो चली हैं। अतः पुराणों के पुनर्शोध की स्पष्ट जरूरत है।‘

परिचय :- नील मणि
निवासी : राधा गार्डन, मवाना रोड, (मेरठ)
घोषणा : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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