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असमंजस

राम राज सिंह
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)

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मौन  मुखर हो जाता है
साहस जब भर जाता है
बस वही विजय को पाता है
प्रण पावक जो बन जाता है
असमंजस के अंधकार में
दीप नया जलने दो …
जीवन को पलने दो …

बाधाओं के उद्यानों में
अपमानों की अमर बेल से
घोर घृणा के तूफानों में
अरमानों के मरण मेल से
अटक भटक से पृथक,
सरपट पग चलने दो,
जीवन को पलने दो …
जीवन को पलने दो …

असफलता के भय से व्याकुल
प्राण द्वंद में क्यों जीते?
क्षमता को परिमार्जित कर फिर
लक्ष्य नए क्यों न सीते?
स्वजनों के जो स्वप्न सरल
न गरल में ढलने दो,
जीवन को पलने दो …
जीवन को पलने दो …

तमतमाते क्षितिज से मिलने
चिंगारी जुगनू की होड़
अंग झुलसते विकल बिलखते
किंतु नहीं पथ लेते मोड़
सरिता सम तुम दिशा
बदल दशा बदलने दो,
जीवन को पलने दो …
जीवन को पलने दो …

संघर्ष प्रकृति है जीवन की
अस्थिरता उसका उदधि भाव
संभवता का यह अमरकोश
बस सफल धैर्य की यहां नाव
दग्ध हृदय से अश्रु नहीं
प्रतिकार निकलने दो,
जीवन को पलने दो …
जीवन को पलने दो …

परिचय :  राम राज सिंह
निवासी : उन्नाव (उत्तर प्रदेश)
सम्प्रति : शाखा प्रबंधक (पंजाब नैशनल बैंक)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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