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एआई का झोला-छाप क्लिनिक

डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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तकनीक गड़बड़झाला का एक झोल सामने आया है l अखबार में विज्ञापनों के मायाजाल में फंसी इस खबर पर नजर पडी l अख़बार में सुर्ख़ी बनी है – “ए आई नीम हकीमी..चैट जीपिटी से परामर्श लेकर खाने का नमक बदला ,खतरे में आई जान” ‘नीम हकीम खतरे जान’ अब महज़ नीम और हकीम के बीच का मामला नहीं रहा, क्योंकि चैट जीपिटी भी बाकायदा झोला-छाप डॉक्टरों की बिरादरी में शामिल हो चुका है। मरीजों का इलाज करते हुए रंगे हाथों पकड़ा गया है। वो दिन दूर नहीं जब मोहल्लों की दीवारों पर रंगीन पोस्टर चिपके मिलेंगे- “दाद, खाज, खुजली, भगन्दर, पायरिया ,पीलिया,पथरी ,बवासीर, नपुंसकता, नामर्दी- चैट जीपिटी से पक्का इलाज, गारंटी सहित!” अख़बार खोलते ही पंपलेट झड़ पड़ेंगे- “आपके शहर में ही खुला है चैट जी पि टी के क्लिनिक की टापरी l पहुँचे हुए वैद्य जी का १००० बरस पुराना नुस्ख़ा-नकलचियों से सावधान रहें।” और फिर चमकता-बोल्ड इश्तेहार- “ग़रीब-गुरबा की पहुँच में चैट जीपिटी- खोया प्यार लौटाने से लेकर, किसी भी लड़के को वश में करने, पड़ोसी पर टोटका करने, भूत-प्रेत-चुड़ैल उतारने, ऊपरी आत्मा-ऊपरी हवा भगाने, जादू-टोना, झाड़-फूंक, मन्त्र-मशान सिद्धि तक सब बताएगा।” मगर जनाब, नीम-हकीम बनना बच्चों का खेल नहीं। इसके लिए बरसों की साधना चाहिए। सबसे पहले तो मरीज़ों की “दुख-दर्द” वाली ज़बान सीखनी होगी। एक अदृश्य, अलिखित शब्दकोश है आंचलिक मेडिकल भाषा का- उसे पढ़ना-समझना अनिवार्य है। और मरीज़ से जानकारी निकालना? यह तो तलवार की धार पर नाचने जैसा है। वो सीधे यह नहीं कहेगा कि “गले में दर्द है” या “दस्त लग गए हैं”। पहले बताएगा- “मेरी भैंस पड़ोसी ने खोल ली… या उस पर टोन-टोटका कर दिया… या छोरा इलाज नहीं करवा रहा… पड़ोसी ने खेत जोत दिया…”ये सब प्रस्तावना है l उसके दुखों के महाकाव्य की गाथा खोलने से पहले मंगलाचरण अनिवार्य है l
अगर आप सुनने बैठे हैं तो उसकी सारी पारिवारिक, पड़ोसन-प्रधान, जातीय और खेतिहर गाथा सुननी पड़ेगी- वो बातें भी, जो उसने अपने सगे ससुराल तक से नहीं कहीं होंगी। अब चैट जीपिटी भावुक होकर इन गैर-चिकित्सकीय समस्याओं में उलझ जाएगा, और जब इन पर अपना एआई-ज्ञान झोंककर कहेगा- “अब आगे और कोई समस्या?”- तब मरीज का असली बयान आएगा- “जी, उडो-उडो सो रहे … पेट में मइठा सा चलै… आँटो सो पड़ गयो… गोड़े बोल गओं…” तो, पहले से तैयारी रखनी होगी। इन देसी मुहावरों, इशारों और उलझी लक्षणावली को सिस्टम में फीड करना अनिवार्य है। तभी तो चैट जीपिटी असली मरीज़ी की थाह पाकर, झोला-छाप डॉक्टरों की सोहबत में अपनी दुकान जमा पाएगा। कुछ ऐसा ही हाल इस मरीज़ के साथ भी हुआ। मैं दावे के साथ कह सकता हूँ- ये “benefit of doubt” वाला मामला है, इस पर कोई मुक़दमा भी नहीं चल सकता, ठीक वैसे ही जैसे नीम-हकीम पर केस नहीं चलता।
क्योंकि, आपको पता ही है, पागल कुत्ते ने आपको काटा है मित्र जो आप किसी नीम-हकीम के दरवाज़े पर जाकर माथा टिकाये, कौनसा आपको पीले चावल बांटकर न्योता दिया कि ‘आओ भाईसाब मेरे यहाँ ऐसी तैसी करवाओ।” अब हुआ यूँ कि मरीज़ ने जो बोला, चैट जीपिटी ने उसका शब्दशः अर्थ निकालकर “इलाज” बता दिया-
उदाहरण १
मरीज़: “गोड़े बोल गओं…”
चैट जीपिटी का शब्दशः अर्थ: “घोड़े बोलने लगे हैं।”
इलाज सुझाव: “कृपया अपने घोड़ों को शांत करने के लिए कान में रुई लगाएँ, और घोड़ों के अस्तबल में शोर-रोधी पर्दे लगवाएँ।”

उदाहरण २
मरीज़: “पेट में आँटो पड़ गयो…”
चैट जीपिटी का शब्दशः अर्थ: “आंतें गिर गई हैं।”
इलाज सुझाव: “तुरंत आंतों को वापस लगाने के लिए बढ़िया क्वालिटी का ‘फेवीक्विक’ इस्तेमाल करें, और पेट पर टाइट बेल्ट बाँध लें।”

उदाहरण ३
मरीज़: “उडो-उडो सो रहूं…”
चैट जीपिटी का शब्दशः अर्थ: “मैं उड़ते-उड़ते सो रहा हूँ।”
इलाज सुझाव: “सोने से पहले पंखे की स्पीड कम करें, वरना हवा में सोने से गिरने का ख़तरा है।”

उदाहरण ४
मरीज़: “पेट में मइठा सा चलै…”
चैट जीपिटी का शब्दशः अर्थ: “पेट में मिठाई चल रही है।”
इलाज सुझाव: “शायद पेट में जलेबी घूम रही है, कृपया तुरंत हाजमोला खाएँ और मिठाई का सेवन सीमित करें।”
बस मेरा तो यही कहना है, ज्यादा भावुक होने की जरूरत नहीं, “जहाँ काम आवे सुई वहां तलवार” का प्रयोग पहले ही गुनीजनों ने वर्जित किया है l

परिचय :-  डॉ. मुकेश ‘असीमित’
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही प्रकाशित  पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से), काव्य कुम्भ (साझा संकलन) नीलम पब्लिकेशन, काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन) लायंस पब्लिकेशन।
प्रकाशनाधीन : व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन)  किताबगंज   प्रकाशन,  गिरने में क्या हर्ज है -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह) भावना प्रकाशन। देश विदेश के जाने माने दैनिकी, साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित 
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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