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अपना घर का सपना

ललित शर्मा
खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम)
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मेरा अपना आलीशान बंगला है नहीं
बड़ी आलीशान इमारत भी है नहीं
कहीं कोई बड़ी कोठी भी नसीब है नहीं
न कहीं कोई है बड़ी ऊंची हवेली है नहीं,

मेरा कहने को है घर
कहता हूँ चाव से गर्व से अपना घर
घर मकान बस है
कच्ची झोंपड़ी का है बना
सबको गर्व से कहता हूँ
अपना घर,

टपकता है घर की चहारदीवारी
छत में, बरसात का पानी
बाढ़ में जलमग्न हो जाता
हफ्तेभर जलमग्न की रहती कहानी,

जीवनभर, आंधी बरसात में
छत घर की उड़ा ले जाता
हर बार कहना चाहता हूँ
घर बना नहीं पाता,
कहता हूँ फिर भी उसे ही
अपना घर, आंनद में रम जाता,

सपना मन में हर बार आता
सच कभी सपना, कर नहीं पाता
मेहमान का आवभगत
घर की हालात से कभी कर नहीं पाता
बारिश में टप-टप बून्द में भीग जाता
तेज गर्मी घूप से बैचैन
ओलावृष्टि में घर हर बार
टूटकर बिखरकर
धाराशायी हो जाता,
उसी में मिलती खुशी
कहता अपना घर
सुख आंनद भले न पाता
अपना घर
वेदनाओं आंसुओ को थाम
अपना घर
कहता सपना जीवन का
सपना अपना घर का
जीवन बिताता

परिचय :- ललित शर्मा
निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम)
संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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