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मातृ प्रेम

विजय वर्धन
भागलपुर (बिहार)

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अमृत अपनी माँ से बेहद प्यार करता था। माँ को जरा भी कोई तकलीफ हो, वह चिंतित हो जाता था। उसकी माँ भी उसके व्यवहार से सदा खुश रहती थी।
अमृत ज़ब पढ़ लिख कर अपने पैर पर खड़ा हो गया तब उसके घर वाले उसकी शादी के लिए लड़की देखने लगे पर अमृत उन्हें सदा मना ही करता रहा क्योंकि उसे डर था कहीं लड़की माँ के साथ दुर्व्यवहार न करने लगे। किन्तु बहुत समझाने बुझाने पर वह मान गया।
कुछ दिन तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा पर धीरे-धीरे लड़की ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। अमृत उसे बार-बार समझाता पर वह मानने के लिए तैयार ही न होती। एक दिन अमृत ने डाँट कर उसे कह ही दिया-देखो मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं पर माँ को नहीं। इतना सुनना था कि वह सहम गयी और उस दिन से ठीक से रहने लगी।

परिचय :-  विजय वर्धन
पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद
माता जी : स्व. सरोजिनी देवी
निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार)
शिक्षा : एम.एससी.बी.एड.
सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त
प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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