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मुरलीधर

रतन खंगारोत
कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान)
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मन बसिया, रंग रसिया गोपाल,
तुझे छलिया कहूं या कहूं नंदलाल।
हजारों नाम और असंख्य है अवतार,
मधुर तेरी मुरली की हैं, तान ओ मुरलीधर।।

गोकुलवासियों ने कोई पुण्य कमाया,
जो मुरलीधर उनका सखा बन आया।
सुख-दुःख का साथी बना नंदलाला,
त्रिलोकी का नाथ बन गया रखवाला।।

हंसी ठिठोली से चले जीवन की नैया,
तारणहार ही बन गया सबका खवैया।
सब ग्रामवासियों को बहुत प्रेम से समझाया,
पर्वत की पूजा का जीवन में महत्व बताया।।

पूजा टली इंद्र की तो, उसका क्रोध जगा,
सात दिनों तक वर्षा का सैलाब लगा।
त्राहि त्राहि मच गया जब चहूं ओर,
तब हरी हर आये सुन दिन हीन पुकार।।

गोवर्धन पर्वत को उंगली पर उठाया,
सब जीवों को उसके नीचे बसाया।
मुरली की मधुर तान सुन सब
भूल गए दुख और काज,
तब से ही गिरधर बन गए
गोवर्धन महाराज।।

परिचय : रतन खंगारोत
निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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