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माँ का खत

रतन खंगारोत
कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान)
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बहुत दिनों के बाद मेरी
मां का खत आया है।
उसकी सोंधी खुशबू ने
मेरा गांव याद दिलाया है।

वह घर-आंगन में खेलना
और पेड़ों पर चढ़ना।
उछल -कूद करके सारा दिन
मां को बहुत सताना।
इसने मेरे बचपन की सारी
नादानियों को याद दिलाया है।
बहुत दिनों के बाद मेरी
मां का खत आया है।
उसकी सोंधी खुशबू ने
मेरा गांव याद दिलाया है।

सबका लाड़ला था मैं,
वहां न कोई पराया था।
हर घर से ही मैंने
प्यार बहुत पाया था।
बहुत मजबूत था,
हम यारों का याराना।
खुशी का हर गीत ही
मैंने बचपन में ही गया है।
बहुत दिनों के बाद
मेरी मां का खत आया है।
उसकी सोंधी खुशबू ने
मेरा गांव याद दिलाया है।

शुद्ध हवा और शीतल पानी।
झरने-नदियां कहती
अपनी ही कहानी।
तालाबों में मैंने देखी
मीन की अठखेलियां।
बारिश की नन्ही बूंदों ने
हर तरु का मन हर्षाया है।
बहुत दिनों के बाद मेरी
मां का खत आया है।
उसकी सोंधी खुशबू ने
मेरा गांव याद दिलाया है।

वह परछाई संग खेलना
और दौड़ना चांद के संग।
खुले आसमान में देखा
मैंने चांद-तारों का साथ।
शीतल-शीतल चांदनी और
सितारों की अठखेलियां।
याद करके वह बीते लम्हें
मेरा रोम-रोम खिल आया है।
बहुत दिनों के बाद मेरी
मां का खत आया है।
उसकी सोंधी खुशबू ने
मेरा गांव याद दिलाया है।

पेड़ों की घनेरी छांव और
फूलों की छटा निराली।
हरे-भरे खेतों में लगी थी
धान की लंबी कतारे।
फलों से भरे बागों
की छटा निराली थी।
गांव की मिट्टी ने हीं उन्हें
शुद्धता का प्रमाण दिलाया है।
बहुत दिनों के बाद मेरी
मां का खत आया है।
उसकी सोंधी खुशबू ने
मेरा गांव याद दिलाया है।

परिचय : रतन खंगारोत
निवासी : कलवार रोड झोटवाड़ा (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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