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हे गणपति

प्रीतम कुमार साहू ‘गुरुजी’
लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़)
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छत्तीसगढ़ी

रिद्धी-सिद्धि के तै स्वामी,
तोरेच गुन ल गावत हँव।
सजे सिहासन आके बइठो,
पँवरी म माथ नवावंत हँव।।

हे गणपति, गणनायक स्वामी,
महिमा तोर बड़ भारी हे।
माथ म मोर मुकुट सजत हे,
मुसवा तोर सवारी हे।।

साँझा बिहिनिया करँव आरती,
लडवन भोग लगावंत हँव।
सजे सिहासन आके बइठो,
पँवरी म माथ नवावंत हँव।।

माता हवय तोर पारबती
अउ पिता हवय बम भोला।
दिन दुखियन के लाज रखौ,
बिनती करत हँव तोला।।

पान-फूल अउ नरियर भेला,
मै हर तोला चघावंत हँव।
सजे सिहासन आके बइठो,
पँवरी म माथ नवावंत हँव।।

अंधरा ल अखीयन देथस
अउ बाँझन ल पुत देवइयाँ।
बल,बुद्धी के तै हर दाता,
सबके बिगड़े काम बनइयाँ।।

हे गणराज, गजानंद स्वामी
मै हर तोला मनावंत हव।
सजे सिहासन आके बइठो,
पँवरी म माथ नवावंत हँव।।

परिचय :- प्रीतम कुमार साहू, गुरुजी (शिक्षक)
निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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