
डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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मानव जाति भी कमाल की चीज़ है। अपने पापों को वह ऐसे संजोकर रखती है मानो कोई व्यापारी पुराने माल को गोदाम में ठूँस रहा हो। व्यापारी सोचता है- “सीज़न आएगा तो क्लीयरेंस सेल में निकाल दूँगा।” और यही फॉर्मूला धर्म के बाज़ार में भी चलता है। फर्क बस इतना है कि वहाँ माल एक्सचेंज की सुविधा है- “पाप लाओ और बदले में पुण्य ले जाओ।” मानो धर्म की दुकान चलाने वालों ने भगवान से बाकायदा लाइसेंस ले रखा हो। हर पाप की एक तय एक्सचेंज वैल्यू है- आपके सारे काले पापों को पुण्य की व्हाइट मनी में बदलने की दरें निर्धारित हैं।
सावन का महीना तो जैसे खास इसी काम के लिए बना है। ठीक वैसे ही जैसे दुनियावी धन-दौलत का हिसाब-किताब मार्च क्लोज़िंग के दबाव में निपटता है, कुछ ऐसा ही दबाव सावन में पाप-पुण्य के वार्षिक ऑडिट का होता है। सरकारें भी तो स्कीम निकालती रहती हैं- “काली कमाई को व्हाइट बनाइए, स्पेशल डिस्काउंट पर।” इंसान हर जगह जुगाड़ खोज लेता है, पर उसे पता है ऊपर वाले दरबार में कोई स्कीम नहीं चलती। वहाँ न किक-बैक चलता है, न दलाली। पाप-पुण्य का लेखा-जोखा बिल्कुल पारदर्शी है। इसलिए सावन आते ही लोग पहले से ही पाप का स्टॉक क्लियर करवा लेते हैं। सोचते हैं- “दूध के धुले होकर जाएंगे तो स्वर्ग की रिज़र्व सीट तो पक्की ही है।” और ये देखिए- पापों के थोक उत्पादक! ग्यारह महीने इंसान बेशर्मी से रिश्वत, धांधली, फरेब और धोखाधड़ी का माल गोदाम में भरता है। और जैसे ही सावन या नवरात्र आते हैं, सब अपनी गठरियाँ उठाए मंदिर की ओर दौड़ पड़ते हैं। गठरियाँ इतनी भारी कि चलना मुश्किल हो जाए, कमर झुक जाए। रोचक यह है कि श्रद्धालु अपने पाप खुद पैदा करते हैं और फिर बड़ी सज-धज से उन्हें अर्पित करने चले आये हैं। मंदिर की लंबी कतारें दरअसल गोदाम खाली करने की लाइन होती हैं। पूरा साल रिश्तों में छल, कारोबार में मिलावट और दफ़्तर में रिश्वत का माल गले-भर तक इकट्ठा करने वाले अब गला फाड़कर गुहार लगा रहे हैं- “प्रभु, जगह नहीं बची, इस स्टॉक को खपा दो।” पाप भरे-पूरे और वजनदार होते हैं , और पुण्य हमेशा हल्के। शायद इसलिए आदमी पापों को हल्के में ही लेता है। और फिर भोलेनाथ से गुहार लगाता है- “लो प्रभु! गोदाम खचाखच भर गया था। अब आपके चरणों में
क्लीयरेंस सेल निकाल रहे हैं।”
ज़रा देखो तो- कैसी भोली सूरत लेकर आते हैं। दस दिन हो गए न मुर्गे को हाथ लगाया, न बकरे को। गले में रुद्राक्ष, होंठों पर मंत्र और थाली में लौकी-तोरी सजाकर प्रस्तुत हो गए प्रभु के सामने। त्याग और समर्पण की मूर्तियाँ यूँ ही नहीं बन जातीं। जिसके पास भंडार हो वही त्याग कर सकता है, जिसकी इच्छाएँ हों वही दमन का संकल्प ले सकता है। इसीलिए ग्यारह महीने हम सब पापों की गठरियाँ भरते रहते हैं, इच्छाओं के खजाने संजोते रहते हैं- ताकि एक महीने उन्हें त्यागकर पुण्य का तमगा हासिल कर सकें। याद आता है भोलेनाथ का वही रूप- जिनके लिए शुभ-अशुभ का कोई भेद नहीं, ज़हर-अमृत का कोई फर्क नहीं। वही हैं जिन्होंने देवताओं के कहने पर हलाहल तक पी लिया। इंसान सोचता है-जब देवताओं ने भगवान को मूर्ख बना लिया, तो हम भी क्यों न अपनी बही-खाते साफ कर लें।
अचरज यह है कि इस सेल पर न कोई बिल बनता है, न गारंटी कार्ड मिलता है। फिर भी ग्राहक इत्मीनान से लौटते हैं। चेहरे पर वही ताजगी जैसे पुराने कपड़े दान कर नए पहन लिए हों- रीफ्रेश्ड आत्मा! कुछ लोग तो ‘साप्ताहिक ऑफर’ पर भरोसा करते हैं। सोमवार का व्रत रख लिया और मान लिया कि हफ्तेभर का हिसाब बेलपत्र पर राइट-ऑफ हो गया। मंगलवार और शुक्रवार वालों के भी अलग पैकेज हैं। कोई कहता है- “पाप की वीकली ईएमआई भरना आसान है।” और कोई नवरात्र का सीज़नल ऑफर चुनता है- दस दिन माला, हवन और आहुति, और समझ लो बाकी ३५५ दिन फ्री पास मिल गया। सच तो यह है कि पाप का धंधा कभी घाटे में नहीं जाता। जितनी तेजी से पुण्य खर्च होते हैं, उससे कहीं तेज़ पाप की पूँजी बढ़ती है। फिर जैसे ही धर्म-सीज़न आता है, इंसान छूट की तलाश में भाग पड़ता है। सोचिए- कितना विचित्र संसार है! जहाँ पुण्य हमेशा एम.आर.पी. पर बिकते हैं और पाप हमेशा सेल पर। यही शायद मानव सभ्यता का अद्भुत संतुलन है- पापों की स्टॉक क्लीयरेंस और पुण्यों की एडवांस बुकिंग। इंसान का आचरण भी मौसम की तरह बदलता है। यानी पाप भी इन्वेंट्री मैनेजमेंट से ही चलते हैं- पाप करते
रहो, और प्रायश्चित की ईएमआई सावन में भरते रहो। भगवान भी सोचते होंगे- “बाबा, यह इंसान हमें भी बैंक बना बैठा है!” सावन समाप्त हुआ तो मैं गली से गुज़रा। शर्मा जी की रसोई से प्याज़-मसाले की खुशबू आ रही थी। तभी साफ हो गया-इस साल की क्लीयरेंस सेल पूरी हो चुकी है और अब नए पापों का स्टॉक भरने की वैकेंसी शुरू हो चुकी है।
निवासी : गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
व्यवसाय : अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
लेखन रुचि : कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं
प्रकाशन : शीघ्र ही प्रकाशित पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से), काव्य कुम्भ (साझा संकलन) नीलम पब्लिकेशन, काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन) लायंस पब्लिकेशन।
प्रकाशनाधीन : व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन) किताबगंज प्रकाशन, गिरने में क्या हर्ज है -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह) भावना प्रकाशन। देश विदेश के जाने माने दैनिकी, साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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