
हितेश्वर बर्मन ‘चैतन्य’
डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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सबसे पहले साफ
स्थान से मिट्टी लायें,
अब गंगाजल छिड़कर
उसे पवित्र बनायें।
मिट्टी को चौड़े मुंह
वाले बर्तन में रखें,
तत्पश्चात उसमें
जौ या सप्तधान्य बोएं।
उसके ऊपर कलश
में जल भरकर रखें,
कलश के ऊपरी भाग
में कलावा बांधें।
कलश जल में लौंग,
हल्दी व सुपारी डालें,
दूर्वा और रुपए का
सिक्का डालना न भूलें।
कलश के ऊपर आम या
अशोक के पल्लव को रखें,
अब एक नारियल को लाल
कपड़े में लपेटकर रखें।
नारियल को कलश के
ऊपर श्रद्धाभाव से रखें,
इस पर माता की चुन्नी
और कलावा जरूर बांधे।
मातारानी की कृपा से कलश
स्थापना सफलतापूर्वक हो गई,
फूल, कपूर, अगरबत्ती,
ज्योत के साथ पूजा की बारी आ गई।
नौ दिनों तक मां दुर्गा से
संबंधित मंत्रों का जाप करना है,
श्रध्दा-भक्ति के साथ उनकी
विधि-विधान से पूजा करना है।
नवरात्रि के आखिरी दिन
कलश का विसर्जन कर दें,
श्रद्धा-सुमन अर्पित कर
हाथ जोड़ उनकी दर्शन कर लें।
निवासी : डंगनिया, जिला : सारंगढ़ – बिलाईगढ़ (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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