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प्रकृति

ललित शर्मा
खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम)
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प्रकृति में बनकर वर्षा, हरी भरी लाली
चमत्कारी प्रकृति में, बरसाती हरियाली
अमृत बनकर प्रकृति को कर तृप्त
सूखे से प्रकृति की प्यास, बुझाती बचाती ।।१।।

प्रकृति स्वयं प्रक्रिया में करतीऋतु में वर्षा
प्रकृति में कीमती उपहार लगती,अमृत वर्षा
मौसम में बिन कहे आसमान से जमीन पर
आंनद में प्रकृति को खूब, भिगोती है वर्षा ।।२।।

प्रकृति की एक मूल आधार, मनमोहक वर्षा
घनघोर घटा में उमड़ती है आसमान से वर्षा
टपकती जल की असनान से बूंदे बनती वर्षा
प्रकृति करती इंतजार अब आओ बरसो वर्षा ।।३।।

प्रचंड, तपती, चिलचिलाती, भीषण गर्मी में
असहनीय प्रकृति में मानव पशुपक्षी जीवजंतु
खेत खलिहान होती जमीन वीरान सुनसान में
प्रकृति से जोरशोर प्रार्थनाएं की जाती वर्षा की, ।।४।।

झुलसाये, मुर्झाये प्रकृति के पेड़ पौधे की पुकार
जीव जंतुओं प्राणियों की प्रकृति से होती पुकार
वर्षा अब तड़पाओ एक बार उमड़ बदलाव लाओ
त्राहि त्राहि से प्रकृति को वर्षा से राहत दो बचाओ ।।५।।

परिचय :- ललित शर्मा
निवासी : खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम)
संप्रति : वरिष्ठ पत्रकार व लेखक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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