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ह्रदय परिवर्तन

विजय वर्धन
भागलपुर (बिहार)

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एक सिद्धिप्राप्त साधु अपनी कुटिया में सोये हुए थे। रात के बारह बज रहे थे।दरवाजे पर खट- खट की आवाज हुई। साधु जी ने कहा कौन हैं?
व्यक्ति ने कहा- मैं चोर हूँ।
साधु जी ने दरवाजा खोल दिया और कहा- तुम्हें जो लेना है ले लो।
चोर जब कुटिया के अंदर आया तब उसे कुछ भी दिखाई नहीं देने लगा जबकि कुटिया में एक दीपक जल रहा था। चोर बाहर निकला और चला गया। उसका ह्रदय ऐसा परिवर्तित हुआ कि उसने चोरी करना ही छोड़ दिया। इसके बाद वह खेती करके जीविका चलाने लगा एवं प्रवचन देने लगा।

परिचय :-  विजय वर्धन
पिता जी : स्व. हरिनंदन प्रसाद
माता जी : स्व. सरोजिनी देवी
निवासी : लहेरी टोला भागलपुर (बिहार)
शिक्षा : एम.एससी.बी.एड.
सम्प्रति : एस. बी. आई. से अवकाश प्राप्त
प्रकाशन : मेरा भारत कहाँ खो गया (कविता संग्रह), विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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