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बचपन

सौरभ डोरवाल
जयपुर (राजस्थान)

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खोया है बचपन,
जवानी की हसीं उम्मीद में।
जैसे बेच डाला हो सबकुछ,
मामूली खरीद में।।
बचपन खोया,
खोया भाई-बहनों का प्यार।
मोह्हले की रंगत खोयी,
खोये सभी त्यौहार।।
मौज छुटी, मासूमियत छुटी,
छुटा दोस्तों का हाथ।
दिखावे के रिश्ते बनाये,
लगाये बैठे है जो घात।।
बचपन के खेल खोये,
खोये गिल्ली-डंडा और माल दड़ी।
बचपन वाला समय,
नही बताती अब हाथ घड़ी।।
सूर्योदय सा बचपन बीता,
बीत रही दोपहर सी जवानी।
कब सूर्यास्त हो जाये क्या पता,
कब ख़त्म हो जाये कहानी।।
सूर्यास्त होने से पहले,
एक बार फिर फिर
जिन्दगी को जिया जाये।
चलो गाँव की तरफ सौरभ,
मोहल्ले में फिर से बचपन
वाली मस्तियाँ की जाये।।

परिचय : सौरभ डोरवाल
निवासी : भोजपुरा, जिला- जयपुर (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

1 Comment

  • P khangarot

    बोहोत खूबसूरती से वर्णन किया है बचपन और उसके मिजाज का 👌💕

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